Sunday, July 8, 2012

हीर को लिखे खतों में इमरोज़ की इक नज़्म..............


अब तुम ...
कहीं मत जाना
न गुवाहाटी
न दिल्ली
न तख़्त-हजारे
बस अपने भीतर  रहना
यह अपना राँझा ही
कह सकता है
यह अपना वारिस
ही लिख सकता है ......

              इमरोज़ ....(अनु: हरकीरत हीर )

1 comment:

  1. बस अपने भीतर रहना........



    ...बस इतना रहना..

    कि.. कोई सदी न रहे...

    कि .. कोई ख्वाब दूसरा न रहे.....

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