Saturday, July 7, 2012

स्वर्णजीत 'सवी ' की पंजाबी क्षणिकायें ....
नाम- स्वरणजीत 'सवी'
जन्म- २० अक्तू. १९५८ ,लुधियाना (पंजाब)
शिक्षा- ऍम. ए. (अंग्रेजी )
कृतित्व- पोस्टर कविताओं की  पैंतीस चित्र प्रदर्शनियाँ , ७० से अधिक पोस्टर चित्रकला .., कई चित्र प्रदर्शनियाँ , सात काव्य संग्रह -दायरियाँ दी कब्र चों(१९८५) , अवज्ञा (१९८७),दर्द  पियादे होण दा, १९९०,देहि नाद (1994.), काला हाशिया ते सूहा गुलाब (१९९८),डिजायर (English) १९९९,आश्रम ( २००५), माँ  (२००८)

सम्प्रति- आर्ट केव प्रिंटर्स
संपर्क- 1978/2, महाराज  नगर , बिहाइंड  सर्केट हॉउस , लुधिअना
swarnjitsavi@gmail.com
फ़ो . 0161-2774236 , 0987666899
(१)
मंत्र.....

ज़िस्म पर पड़ते चिमटों से
 झुलसता रहा  ज़िस्म
धीमे -धीमे.....
रूह काँप उठी देख बिलखती आँखें
पर वह बाबा ....
 बेरहमी से पीटता गया
 किसी रूह से मुक्त करने की खातिर..... 
पता नहीं कौन से मंत्र
पढ़ी जाता है .....!!!

(२)
झूठ....

  झूठ....
मेरे ज़िस्म की वह किताब है
जो घुन की तरह
चाटती जा रही है हर पल मुझे
और वह गर्द जो धीमे-धीमे
झड़  रही है मेरे ज़िस्म से
इस दहशत का कारण है
पता नहीं मैं कब जिन्दा हूँ
कब नहीं ....
(3)
साजिश  .....

साजिश है ....
हमारी गैरत वाली आँख को
हमसे दूर करने की
साजिश है ....
ताबूत में लाशों की जगह
जीते ज़िस्म रख
उन्हें मुर्दा घोषित करने की ...
साजिश है ....
हमें एकलव्य की जून में डाल
हमारे कारगर हथियारों को हथियाने की .....
(4)

पंजाब.....

यह मिटटी
बड़ी उपजाऊ है
पर कोई खूनी क्यारियाँ बना
  रोप गया है गोलियां
और उग  आये हैं धमाके
तो मिट्टी का क्या दोष ..?
मिट्टी तो बड़ी उपजाऊ है  .....
(5)
धर्म....

हथियारों की
नोक पर तंगी
बुजुर्ग बेबस
 देह .....
(6)
सरहदें.....

यह लकीरें ...
तकदीर की तो नहीं ....
फिर दिन-पर-दिन
 गहरी क्यों होती जा रही हैं .....?
क्यों रिस रहा है खून ....?
आखिर यह ...
मिट क्यों नहीं जाता .....?

(7)
देश का भविष्य ...

यह बच्चा ....
बेबस जवानी के झटको की पैदावार है
यह ज़र्द चेहरा ..
गन्दी बस्तियों के फुटपाथों पर
कमजोर टांगों और बेजान हाथों से
देश का भविष्य लिखेगा .....

(8)
ईश्वर....

क्या हूँ मैं ...?
हवा, चेतना,शब्द ,काल
मैं नहीं .....
तो इक पारदर्शी सा हर तरफ
क्या है जो देख रहा है
मेरे अन्दर का  सबकुछ
मेरे ही जरिये ....
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अनुवाद - हरकीरत 'हीर'

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