Saturday, July 7, 2012

पंजाबी कवयित्री   सुखविंदर 'अमृत' की क्षणिकाएं .....(अनु . हरकीरत 'हीर')

नाम- सुखविंदर 'अमृत'

जन्म- ११ दिसम्बर १९६३, सदरपुर (लुधियाना)

शिक्षा -  एम् . ए  ( पंजाबी)

कृतित्व- ५ ग़ज़ल संग्रह , २ काव्य संग्रह , गणतंत्र दिवस व स्वतंत्रता दिवस के कवि सम्मलेन में भाग , देश-विदेश की अनेकों काव्य गोष्ठियों में भाग , कुछ कवितायें स्कूल व कालेज के सिलेबस में शामिल .

सम्मान- शिरोमणि कवि पुरस्कार (भाषा विभाग पंजाब )व अनेक साहित्यिक अनुष्ठानों द्वारा सम्मानित व पुरस्कृत
संपर्क- ८४५ आई  ब्लोक , बी . आर. एस नगर , लुधियाना
मो. 9855544773

(१)
लहू की किस्म ....

उसने मेरी नब्ज़ काटकर
मेरे लहू की किस्म धुंध ली
और बेफिक्र होकर तश्दाद करने लगा
वह जान गया था कि मेरा लहू
मोहब्बत के बिना हर शै से
ना वाकिफ है .....

(२)
सांप और मोर ...

कुछ समां आया था
उनके फुंफकारने पर रोष
फिर मन के मोर ने
साँपों के सरों  पर
नाचना सीख लिया ...

(३)

मन में ....

हर पानी के मन में
मरुस्थल था
और मुझे
ज़िस्म की प्यास न थी ....

(४)

शुभचिंतक.....

उसने...
मेरे पंख कुतर कर कहा
देख
मैंने तुझे थोड़ा सा संवारा
और तू कितनी खूबसूरत हो गई ....

(५)
तितलियाँ और फूल ....

जब कागची फूल
तितलियों का मूल्य आंकने लगे
जब तितलियाँ
कागची फूलों को सच्चे सौदागर समझ लें
तो बहारें रूठ जाती हैं .....

(६)
मेरे बदन में .....

मेरे बदन में
जितना लहू था
उससे मैंने
प्यार भरी कवितायें लिख डाली हैं
अब तो बस आँखों में नीर बचा है
क्या तुम मुझे
प्यार करते रहोगे ......?

(७)

चोरी की आग .....

आलणे का मोह करने वाले
आग को चुरा कर
कहाँ रखेगा ....?

(८)
दीया और चन्न  .....

वह रात भर
घर के दीये को बचाता रहा
पर हवाएं
उसका चन्न उड़ा ले गयीं .....

(९)
आग का तंद ...

मैं
बर्फ के तकले पर
आग का तंद डालती रही
और
मेरे एहसासों जितना
कफ़न उतर आया .....

(१०)
प्यास ...

पार होते दरिया को
हाक मारते  वक़्त
ध्यान ही न रहा
कि मैं तो रेत के घर में
रहती हूँ .....

अनु . हरकीरत 'हीर

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