Sunday, September 8, 2013

इमरोज़ की नज्में  ……

ज़िंदा पूजा  …
फूल टूटा और फूल मर गया
सब जानते हैं
और नहीं भी जानते
एक दिन
मैंने  को पूछा
टूटे बाजारी फूलों के साथ
किसी ज़िंदा की पूजा हो सकती है ?
भगवान ने हँस कर कहा
तुमने देखा होगा
मंदिर में और कहीं भी
टूटे बाजारी फूलों से
पूजा होती है और हो रही है
वहां मैं पत्थर का हो जाता हूँ
न कुछ सुनता हूँ न कुछ बोलता हूँ
न देखता हूँ
और जो खुद फूल बनकर
मेरी पूजा करता  है
वहां मैं बुत नहीं बनता
वहां मैं महक - महक
पूजा करने वाले को देखता भी हूँ
और सुनता भी हूँ  ….
(२)
खामोश  ….
रंग भी खामोश और कैनवास भी
तो र खामोश पेंटिंग ही बनती है
मोनालिसा की खामोश मुस्कराहट
खूबसूरत है बहुत खूबसूरत
पर शब्द
न ख़ामोशी देख सकते
न ही पढ़ सकते  ….
मुहब्बत भी खामोश और ज़िक्र भी
मुहब्बत सिर्फ ज़िन्दगी बनती है
न लिखत बनती है न बोल  …
पोइट्री भी खामोश और पहचान भी
नज्में बहुत
पर किसी किसी के नज़र में ही
पोइट्री चमकती  है  …
(३)
सात चक्कर  …
 
घर में आती अखबार के
सन्डे एडिशन में लेखकों का कालम पढ़ा
मुझे अपनी नज्मों की किताब के लिए
नई तरह का कवर डिजाइन चाहिए था
अपने एक वाकिफ आर्टिस्ट को पूछा
कोई नई तरह का है आर्टिस्ट पोइट्री जैसा
कहने लगा - 'है '
और फोन करके वह नई तरह का आर्टिस्ट आ गया
सचमुच नई तरह का था देखने में  भी बोलने में  भी
न मैं उसे देख फार्मल हुई न वह मुझे देख
नई तरह का कवर डिजाइन मेरी पसंद का बन गया
और नई तरह का आर्टिस्ट भी मेरी पसंद बन गया
मिलने लगा फोन करने लगे
इक दिन उसने आकर कहा अब बस पर नहीं
आज से स्कूटर पर रेडिओ स्टेशन जाया करेंगे
मैं सुनकर बोली इतनी देर से क्यों मिले हो ?
क्या करता जवानी भी देर से आई और पैसे भी
जब से तुम्हें बस पर जाते देखा है
स्कूटर के लिए पैसे जोड़ता रहा
मैं बोली अब तुम मेरी शाम का फूल हो
शाम भी खिलती रहेगी और रात भी महकती
वह रोज़ शाम को मुझे रेडिओ स्टेशन ले भी जाता और ले भी आता
मैं उसके पीछे बैठ कर
उसकी पीठ पर जो जी चाहता लिखती रहती
कभी कोई नया ख्याल कभी कोई नया शेर  ….
वह मुझसे छोटा था
पर मुझसे पहले ही मेरे साथ सीरियस
होता जा रहा था
एक दिन जब हम दोनों ही कमरे में थे
मैंने उससे कहा तू पहले दुनिया देख आ
दुनिया देखकर अगर फिर भी तुम्हें मेरी जरुरत हुई
फिर ठीक है जो कहोगे करूंगी  …
वह उठा उसने सात चक्कर लगाये और बोला
मैं दुनिया देख आया हूँ
यह सुनकर मैं उसे देखती रह गई
मेरे ही सात चक्कर लगा
वह मेरे बराबर का भी हो गया था
और ज़िन्दगी के बराबर का भी  …
यह कालम पढ़ के
मैं कितनी देर अपने आप को सोचता ही रहा
और देखता भी रहा
मेरे रंगों में मेरी औरत भी
मेरी न बन पाई
और आर्टिस्ट के रंगों में
वह मेरी औरत आर्टिस्ट की
मनचाही हो गई
मैं ही मिसमैच हूँ और अपने आप में गैर हाजिर भी
मैच सिर्फ आर्टिस्ट है
आर्टिस्ट जैसा कोई कम ही होगा इतना खूबसूरत
लेखकों को और आर्टिस्टों को भी हाजिरी देख देख
दोनों की खूबसूरती देख देख
मैं मिसमैच भी खूबसूरत होकर
जा रहा हूँ अपने आपको साथ लेकर भी
अलविदा  ….
- इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर

Tuesday, September 3, 2013

इमरोज़ की कुछ नज्मों का अनुवाद  ….

(१)

हाजिर हो कर  …

जब भी मेरा दिल करता है
भगवान से मिलने का
भगवान मुझे धरती पर
हाजिर दिखने लगता है
और मैं हाजिर हो कर
हाजिर से मिल लेता हूँ
हाजिर को हाजिर हो कर
सब मिल जाता है
जो बताया नहीं जा सकता
हाजिर हो कर
जाना जा सकता है  …
(२)
आज जीने के लिए  …
पेंटेड मास्टरपीस
मियुजियम के लिए  होते हैं
कल को देखने के लिए जानने के लिए
मुहब्बत ही सिर्फ
ज़िंदा मास्टरपीस ज़िन्दगी के लिए होती है
आज को जीने के लिए हर रोज़  …
(३)
ज़िन्दगी के बराबर   ….
कुछ दिनों की मैं उस को
देख - देख सोच रही हूँ
वह छोटा - छोटा लग रहा था , वैसे ही
उस ने ज़िन्दगी में  मुझ जैसा
कुछ देखा नहीं था
इक दिन मैं घर में भी और कमरे में भी
अकेली थी
उसे पास बिठा कर कहा
तुम भी दुनिया देख आओ
अगर फिर भी तुझे मेरी जरुरत हुई
तो फिर ठीक है तुम जो भी कहोगे
मुझे देख कर मेरे बोल सुन कर कर
वह उठा
उस ने मेरे सात चक्कर लगाये
और आकर हँसता - हँसता
मेरे पास बैठ गया , बोला -
देख ले मैं दुनिया देख आया हूँ
यही दुनिया थी मेरे देखने लायक
मैं उसे देख - देख उसके हँसते- हँसते
बोलों को देख सुन  हैरान रह गई
वह  छोटा नहीं था
वह तो मेरे ही सात चक्कर लगा कर
मेरे बराबर का भी हो गया है
और ज़िन्दगी के बराबर का भी  …

(४)
खामोश मुहब्बत  …
मैंने जब अपने आपको
फूल सोचा था उसे खुशबू सोच लिया था
पर  …
किसी के साथ चल कर भी देखा
किसी के साथ फूल बनकर भी देखा
किसी के साथ शायरी करके भी देखी
किसी को न अपने साथ
जागना आता है न औरत के साथ  …
मैं तो कब की खामोश
फूल बनी खुशबू को उडीक रही हूँ
आज मेरी उडीक ने
इक नज़र पढ़ ली है
उसकी जो है
जो हवाओं को पूछता है
मैं भी तुम्हारी तरह आज़ाद और अदृश्य
रहना चाहता हूँ
हवाओं ने कहा
खामोश मुहब्बत कर ले
किसके साथ
जो भी अच्छा लगे
अभी तो अपना आप ही मुझे अच्छा लगता है
जब कोई अच्छी लगी
फिर खामोश मुहब्बत भी कर लूंगा
मैं आज उसे मिलने जा रही हूँ  …
( ५ )
हर रोज़  …
 फूल हो के
उगते सूरज के साथ जागता हूँ
खिलता हूँ
और कितनी ही देर महक कर
खुशबू हवाओं के हवाले कर
अपने रंगों के साथ हँसता हूँ खेलता हूँ
और शाम को सूरज के साथ
रंगों के साथ मिलकर
अपना फूल होना
पूरा कर लेता हूँ  …
(६)
जो दिल करे  …
कोई भी मजहब
जो भी दिल करे करने की छूट नहीं देता
पर लोग जो भी दिल करे
करना चाहते हैं कर रहे हैं
और मजहब जो भी करे करने वालों को
रोक नहीं पा रहे रोक भी नहीं रहे
लोग जब भी दिल करता है
झूठ बोल लेते हैं
किसी को लूटने का दिल करे
लूट लेते हैं
किसी को रेप करने का दिल करे
गैंग रेप कर लेते हैं
और मिलकर क़त्ल भी कर लेते हैं
आसमान से रब्ब क्या देख सकता है
मजहब तो जमीन से भी न देख रहा है
न रोक रहा है
अपने लोगों को अपना निरादर
कर रहे लोगों को
कुछ समझ नहीं आ रहा किसी को
क्या लोग अभी मजहब
के काबिल नहीं या  मजहब अभी लोगों के
काबिल नहीं   …

इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर