Wednesday, October 16, 2013

अपने आप की हीरे ….

कोई बुरी सोच आई होगी
जो सपना बनकर खत्म हो गई
तुम भी अच्छी भली और मैं भी अच्छा भला
एक हीर वारिश ने लिखकर जी ली
एक हीर हरकीरत लिखकर जी रही है
हीर होकर भी हरकीरत क्यों उदास है ?
उदासी की वजह देख कर
मैसेज भी किया सकता है स्पीड पोस्ट भी
बहुत हुआ तो किसी खाली कश्ती में
नज़्म लिखकर बहा दिया कर …
पर उदासी को ठहरने न दिया कर
जो मैं लिख रहा हूँ
तू इससेकहीं ज्यादा सयानी भी है
और प्यारी भी ….
मैंने भगवान को कभी नाराज़ नहीं किया
खुश करने की जरुरत भी नहीं पड़ी
पर तुझे खुश करने की जरुरत है
बता तू किस तरह खुश हो सकती है ?
खुश हो जाना
और बिल मुझे भेज देना….

इमरोज़ -
अनुवाद - हीर

(2)पूजा  ….



इक दिन

भगवान को पूछा

टूटे बाजारी फूलों से

किसी की पूजा हो सकती है ?

भगवान ने हँस कर कहा

तूने देखा होगा

मंदिरों में घरों में

जहाँ कहीं भी टूटे फूलों से

पूजा होती है या हो रही है

वहाँ मैं पत्थर हो जाता हूँ

न सुनता हूँ न बोलता हूँ न देखता हूँ

पर जो खुद फूल बनकर

मेरी पूजा करता है

वहाँ मैं बुत नहीं बनता

उसे देख -देख

मैं भी फूल हो जाता हूँ

प्यार हो जाता हूँ  …।

इमरोज़ -
अनुवाद - हीर


(४)
फूल …. 
 
मैं फूल देख - देख
फूल होता रहता हूँ
पूजा के रूप में
भगवान होने के लिए  … 
(5)
रब्ब  … 

रब्ब पाठ नहीं बनता
अरदास भी नहीं बनता
सिर्फ आने वाला ख्याल बनता है  …. 
(6)
भगवान  …. 

भगवान को मैंने
कभी नाराज़ नहीं किया
खुश करने की जरुरत भी नहीं हुई  …. 
(7)
पूरा अच्छा  …

पूरा अच्छा लेखक
किसी अच्छे लेखक को
कभी बुरा नहीं कहता  … 
(8)
शर्म  …. 

आदमी  रेप करता है
हमें शर्म आ जाती है
सिकंदर
मुल्कों के मुल्क
रेप करता रहा
उसे ग्रेट कहने वालों को
आज तक शर्म नहीं आई  …. 
(9)
जरुरत  … 
रांझे तख़्त हजारे के जन्म पल
जिन्हें औरत हीर दिखती है
ज़िन्दगी की खूबसूरती
बाकी के मर्द
हैरम की पैदावार
जिन्हें औरत जिस्म दिखती है
सिर्फ जिस्म की जरुरत  …. 
(10)
नया पानी  …. 
दरिया हर रोज़
नए पानी संग दरिया होता है
मज़हब भी एक दरिया था
नया पानी न मिलने के कारण
खड़ा पानी बनकर रह गया  ….
 (11)
ख्याल …
उसका ख्याल आया
बिजली सी चमकी
जंगल में भी राह दिख गया
मुझे भी और डर को भी  …. 
(12)
अपना मज़हब  …. 
मज़हब अब मज़हब नहीं रहा
ताकत बन गया है, सियासत बन गया है
अब वक़्त आ गया है
खुद
अपना मज़हब बनने का ….

इमरोज़ -
अनुवाद - हीर

Friday, October 4, 2013

 imroz ki kuchh nazmein .....
हीर भी शायरा भी  …
सोचता रहता हूँ
शायरी की कला भी
जीने की कला भी
खूबसूरत जीने की कला हो जाये
सोचें
सोच भी हो जाती हैं
 अपनी इस सोच को
सच होते मैंने भी देख लिया है
और सबने भी
इक खूबसूरत शायरा को जब मुहब्बत हुई
उसकी शायरी और खूबसूरत हो गई
और उसकी ज़िन्दगी
उसकी शायरी से भी खूबसूरत ….
मुहब्बत संग
कोई भी हीर हो सकती है
कोई भी शायरी भी  …।
(२)
मानता ……………
समझ, समझ के बनती है
पर मानता बगैर समझे ही बन जाती है मानता
लोग मानता के साथ ही
काम चला रहे हैं
मज़हब चला रहे हैं
ज़िन्दगी चला रहे हैं
और अपना आप भी  …
………………
(३)
दरिया ….
रोज नए पानी से
दरिया होता है
मज़हब भी दरिया था
नया पानी न मिलने के कारण
खड़ा पानी ही रह गया  ….
……………….
(४)
………………
मर्जी की मर्जी  ……
मैं सोहनी हूँ
सोहनी से सोहनी
मुझे मनचाहे की तलाश है
मास्टरपीस बनने की तलाश नहीं
 दुनिया के सारे मास्टरपीस
दीवारों से टंगे हुए हैं सब स्टिललाइज
मैंने खिला फूल बनना है
हमेशा रहने वाला पेटिंड फूल नहीं
मैं सोहनी हूँ
सोहनी से सोहनी
हर दरिया हर रोक
पार करूँ अपने आप संग
कच्चे घड़े के संग भी और पक्के घड़े के संग भी  …

(५)
पेंटिंग के बीच की लड़की……
इक दिन
पेंटिंग के बीच की लड़की
रंगों से बाहर आकर
एक नज़्म के ख्यालों को
देखने लगी
देख देख उसे
अच्छा लगा ख्यालों को रंग देना भी
और ख्यालों से रंग लेना भी
ख्यालों ने देखती हुई लड़की से पूछा
तू बता पेंटिंग के रंगों में
क्या - क्या बनकर देखा
मैंने मुस्कराहट बनकर देखा
पर हँस कर नहीं
मैंने  खड़े होकर देखा है रंगों में
पर चलकर नहीं ….

……………………
मज़हब और ईश्वरवाद
कोई जरुरी नहीं  …
अपना सच
और अपनी मर्ज़ी जरुरी है  …
……………….
मुहब्बत ही तो
ज़िन्दगी भी महबूबा है  …
………………
रब्ब को सोचा
नया ख्याल आ गया  …
……………
लोग पुराने नहीं होते
ख्याल पुराने होते हैं  …
…………
हर रात कल हो जाती है
हर सबेर आज भी
और कल भी  ….
…………
उसका ख्याल आया
बिजली चमकी
जंगल में भी राह दिख गई
मुझे भी और डर  को भी  ….
…………….
कहते हैं
मानता जड़ हो गई
पर न कभी कोई नया पत्ता लगा
न फूल  …
…………
भगवान रोज़
आज हो जाता है
पर लोग पता नहीं
कल को ही
क्यों दोहराते रहते हैं …….
…………
मज़हब अब मज़हब नहीं रहा
ताकत बन गया है
सियासत बन गया है
अब वक़्त आ गया है
खुद
अपना मज़हब बनने का  ….
……………….
मेरा दिल करता है
फूल- फूल होकर
खुशबू बन जाऊं
खुशबू होकर अक्षर
अक्षर-अक्षर होकर
नज़्म
नज़्म-नज़्म होकर
ज़िन्दगी
ज़िन्दगी-ज़िन्दगी होकर
प्यार
और प्यार-प्यार होकर
जीना आ जाये
जैसा मेरा जी करता है …
…………….
कभी-कभी
खाली सोच की तरह
जिधर भी दिल करे
चलता-फिरता रहता हूँ
हालांकि
जिसे मिलना था वह तो मैं खुद ही हूँ ……
……………….
हीर बने बिना
हीर समझ नहीं आती ……
जितनी देर लोग
अर्थ नहीं बनते
शब्दों का काम खत्म नहीं होगा  ….

………………….
रंग भी नहीं होते
कैनवास धरती नहीं होती
लाइफ धरती है
और कैनवास सिर्फ स्टिल लाइफ ….
……………

इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत 'हीर'