Tuesday, September 3, 2013

इमरोज़ की कुछ नज्मों का अनुवाद  ….

(१)

हाजिर हो कर  …

जब भी मेरा दिल करता है
भगवान से मिलने का
भगवान मुझे धरती पर
हाजिर दिखने लगता है
और मैं हाजिर हो कर
हाजिर से मिल लेता हूँ
हाजिर को हाजिर हो कर
सब मिल जाता है
जो बताया नहीं जा सकता
हाजिर हो कर
जाना जा सकता है  …
(२)
आज जीने के लिए  …
पेंटेड मास्टरपीस
मियुजियम के लिए  होते हैं
कल को देखने के लिए जानने के लिए
मुहब्बत ही सिर्फ
ज़िंदा मास्टरपीस ज़िन्दगी के लिए होती है
आज को जीने के लिए हर रोज़  …
(३)
ज़िन्दगी के बराबर   ….
कुछ दिनों की मैं उस को
देख - देख सोच रही हूँ
वह छोटा - छोटा लग रहा था , वैसे ही
उस ने ज़िन्दगी में  मुझ जैसा
कुछ देखा नहीं था
इक दिन मैं घर में भी और कमरे में भी
अकेली थी
उसे पास बिठा कर कहा
तुम भी दुनिया देख आओ
अगर फिर भी तुझे मेरी जरुरत हुई
तो फिर ठीक है तुम जो भी कहोगे
मुझे देख कर मेरे बोल सुन कर कर
वह उठा
उस ने मेरे सात चक्कर लगाये
और आकर हँसता - हँसता
मेरे पास बैठ गया , बोला -
देख ले मैं दुनिया देख आया हूँ
यही दुनिया थी मेरे देखने लायक
मैं उसे देख - देख उसके हँसते- हँसते
बोलों को देख सुन  हैरान रह गई
वह  छोटा नहीं था
वह तो मेरे ही सात चक्कर लगा कर
मेरे बराबर का भी हो गया है
और ज़िन्दगी के बराबर का भी  …

(४)
खामोश मुहब्बत  …
मैंने जब अपने आपको
फूल सोचा था उसे खुशबू सोच लिया था
पर  …
किसी के साथ चल कर भी देखा
किसी के साथ फूल बनकर भी देखा
किसी के साथ शायरी करके भी देखी
किसी को न अपने साथ
जागना आता है न औरत के साथ  …
मैं तो कब की खामोश
फूल बनी खुशबू को उडीक रही हूँ
आज मेरी उडीक ने
इक नज़र पढ़ ली है
उसकी जो है
जो हवाओं को पूछता है
मैं भी तुम्हारी तरह आज़ाद और अदृश्य
रहना चाहता हूँ
हवाओं ने कहा
खामोश मुहब्बत कर ले
किसके साथ
जो भी अच्छा लगे
अभी तो अपना आप ही मुझे अच्छा लगता है
जब कोई अच्छी लगी
फिर खामोश मुहब्बत भी कर लूंगा
मैं आज उसे मिलने जा रही हूँ  …
( ५ )
हर रोज़  …
 फूल हो के
उगते सूरज के साथ जागता हूँ
खिलता हूँ
और कितनी ही देर महक कर
खुशबू हवाओं के हवाले कर
अपने रंगों के साथ हँसता हूँ खेलता हूँ
और शाम को सूरज के साथ
रंगों के साथ मिलकर
अपना फूल होना
पूरा कर लेता हूँ  …
(६)
जो दिल करे  …
कोई भी मजहब
जो भी दिल करे करने की छूट नहीं देता
पर लोग जो भी दिल करे
करना चाहते हैं कर रहे हैं
और मजहब जो भी करे करने वालों को
रोक नहीं पा रहे रोक भी नहीं रहे
लोग जब भी दिल करता है
झूठ बोल लेते हैं
किसी को लूटने का दिल करे
लूट लेते हैं
किसी को रेप करने का दिल करे
गैंग रेप कर लेते हैं
और मिलकर क़त्ल भी कर लेते हैं
आसमान से रब्ब क्या देख सकता है
मजहब तो जमीन से भी न देख रहा है
न रोक रहा है
अपने लोगों को अपना निरादर
कर रहे लोगों को
कुछ समझ नहीं आ रहा किसी को
क्या लोग अभी मजहब
के काबिल नहीं या  मजहब अभी लोगों के
काबिल नहीं   …

इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर

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