Friday, June 7, 2013

(1)

धूप लड़की .....

इक लड़की है
जो उदासी की छाँव में बैठी भी
फूल बीज लेती
और फूल खिल पड़ते
अक्षर बीजती
तो कविता खिल पड़ती
वह प्यारी सी लड़की
उदासी की छाँव-छाँव चलती भी
अपने आप की धूप जी लेती है ....

इमरोज़ .....
अनुवाद - हरकीरत हीर


(२)

किस दिन ...

जितने वक़्त भीग कर न भीगना याद है
जितने वक़्त बरस के न बरसना याद है
जितने वक़्त खाली हो कर खाली न होना याद है
और जितने वक़्त अपना आप भी तुझे याद है
मुझे भी याद है
उतने वक़्त कोई भी और कुछ भी याद रह जाता है
वह भी भूल कर भीगें
कि भीगना भी याद न रहे
अन्दर की बाहर की आँखें बंद करके
और दिल खोल कर आसमां की तरह हद भूल कर
छुए अनछुए का कोई ख्याल न आये न रहे ...
बता देना वह दिन
मेरे दिल के मोबाईल पर ...

इमरोज़ .....
अनुवाद - हरकीरत हीर


(३)

जब तक ...

इक दरिया
खामोश मुहब्बत का दरिया और
सब नज्में
अनलिखी हो जायें
धरती पढ़े
या आसमां
लोग नहीं
जब तक
पढने योग्य नहीं हो जाते ....

इमरोज़ .....
अनुवाद - हरकीरत हीर


(४)

अपने आप संग ...

सड़क के किनारे बैठे एक फकीर से
इक मुसाफिर ने पूछा
बाबा यह सड़क कहाँ जाती है ..?
फकीर ने कहा
मैंने इस सड़क को कभी भी
कहीं भी जाते नहीं देखा
हाँ लोग आते -जाते रहते हैं
फकीर का जवाब सुना  अनसुना कर
मुसाफिर चल पड़ा अपने आप संग
अपने आप संग चले जा रहे मुसाफिर को
सड़क दूर तक देखती रही
ऐसा राही सड़क ने पहले
कभी न देखा था .....

इमरोज़ .....
अनुवाद - हरकीरत हीर


(५)

क़र्ज़ ....

बार - बार
कर्ज़दार होकर
क्यों कर्ज़दार करती हो
खामोश मुहब्बत  भी
हँसेगी .....

इमरोज़ .....
अनुवाद - हरकीरत हीर


(६ )

मर्जी की मर्जी ...

मैं सोहणी हूँ
सोहणी से सोहणी
मुझे मनचाहे की तलाश है
मास्टरपीस बनने की तलाश नहीं
दुनिया के सारे मास्टरपीस
दीवारों पर टंगे हुए हैं सब स्टिललाइज
मैं खिला फूल बनना चाहती हूँ
हमेशा रहने वाला पेटिंड फूल नहीं
मैं सोहणी हूँ
सोहणी से सोहणी
हर दरिया हर रुकावट
पार करुँगी
कच्चे घड़े संग भी और पक्के घड़े संग भी ....

इमरोज़ .....
अनुवाद - हरकीरत हीर


(७)
सच जीने के लिए ...

ज़िन्दगी सच है सच जीने के लिए
यह वाक् किसी न किसी  अर्थ में
हर ग्रन्थ में शामिल है
लोग रोज़ पढ़ते हैं पढ़ छोड़ते हैं
सुनते हैं सुन छोड़ते हैं
और वाक् किसी की भी ज़िन्दगी नहीं बनता
किसी भी वाक् का सच जिए बगैर
अपना सच नहीं बनता ज़िन्दगी का सच नहीं बनता ...

प्यार भी इक वाक् है सच का वाक्
अपने आप में से पढने -सुनने वाला
जिसने यह वाक् अपने आप में से पढ़ लिया
वह कोई हीर हो गया कोई रांझा हो गया
प्यार भी सच है सच जीने के लिए ....

इमरोज़ .....
अनुवाद - हरकीरत हीर


(८)
तेरे रंग मेरे रंग ...

उसका जब भी दिल करता
मेरे मन के खाली कैनवास पर
अपनी अनलिखी कविता
अक्षर - अक्षर करती
मैं उसे भी देख - देख पढ़ता
और अपने आपको भी पढ़ता
जब कभी मैं भी अपनी रौ में होता
उसके मन के खाली कागजों पर
फूलों के खाके बनाकर
उनमें मनचाहे रंग भरता
वह मेरे रंग भी देखती
और रंग भरने वाले को भी देख -देख
चहकती  रहती
और कहती तेरे हाथों में रंग आकर
और भी खूबसूरत हो जाते हैं
तुम  इतना खूबसूरत पेंट कर लेते हो
कभी खूबसूरत सोच भी पेंट की
सोच पेंट नहीं होती
खूबसूरत से खूबसूरत सोच जी जा सकती है
यह सुनकर वह और खूबसूरत हो गई
मेरे और पास आकर बोली
चल आ
अपनी -अपनी सोचें जी कर
पेंट करते हैं
तुम मेरे रंग बन जाओ
और मैं तेरे रंग बन जाऊं .....

इमरोज़ .....
अनुवाद - हरकीरत हीर


2 comments:

  1. तुम मेरे रंग बन जाओ
    और मैं तेरे रंग बन जाऊं .....
    -------------------
    shaandaar

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