Saturday, May 11, 2013

इमरोज़ की कुछ और नज्मों का अनुवाद ..... 
खूबसूरत मर्द ......

खेतों में ..
तितलियों संग खेलते खेलते
उड़ते- उड़ते , हँसते -हँसते
पता ही न चला
कब इक तितली के खास रंगों से
रंगा मैं जवान भी होता गया
और अपनी मर्ज़ी का भी होता-होता
आर्ट स्कूल पहुँच गया ....

क्लास की लड़कियों में
इक लड़कीअपनी -अपनी सी लगी
 वह लड़की जब भी क्लास में आती
अपनी सीट से उठकर मैं उसे देखता
वह भी मुझे देखता देख
मुस्कुराती भी रहती और देखती भी ....
पता नहीं उस तितली के रंगों से
या वक़्त के रंगों से या सोच के रंगों से
या उस ख़ास की खूबसूरती के रंगों से
मेरी पेंटिंग भी
और खूबसूरत होती जा रही थी
और मैं भी उसे रोज -रोज देखकर ...

इक दिन
लंच के वक़्त जब सभी लंच को चले गए
वह मेरे पास आकर बैठ गई और बोली
तुम रोज -रोज मुझमें क्या खास देखते हो ...?
तुम्हारी खूबसूरती में मुझे
इक खास खूबसूरती दिखती है
जिस देख -देख मैं खूबसूरत होता रहता हूँ
 और हो भी रहा हूँ
क्या तुम कोई ख़ास हो ...?

इक खूबसूरती को देख - देख
खूबसूरत होने वाला
तेरे जैसा और कोई न होगा
खूबसूरती से भी खूबसूरत मर्द .....



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हर  में टेस्ट में
रब्ब का टेस्ट है

तुम्हारा नाम .....
(१)

कोई नज़र में है
अभी तो अपना आप ही नज़र में है
और अपना आप
अपनी मर्ज़ी का बन रहा है
कितना नया ख्याल है
और कितना जरुरी भी
फिर किस तरह मिलोगी
जैसे आज मिली हूँ
तेरा नाम
मर्जी ....

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(२)
तुम क्या कर रही हो
ख्यालों को रंग दे रही हूँ
और ख्यालों से रंग ले भी रही हूँ
क्या खूब देना -लेना है
अब मिलोगी
जिस दिन कोई नया ख्याल मिल गया
तुम्हारा नाम
ख्याल .....
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रब्ब का कोई भी नाम हो सकता है
प्यार का भी हीर का भी .......

इमरोज़ .....
अनुवाद - हरकीरत हीर ....

2 comments:

  1. तुम क्या कर रही हो
    ख्यालों को रंग दे रही हूँ
    और ख्यालों से रंग ले भी रही हूँ
    क्या खूब देना -लेना है
    अब मिलोगी
    जिस दिन कोई नया ख्याल मिल गया
    तुम्हारा नाम
    ख्याल .....
    ................................
    सच में.... कितने सुन्दर शब्द हैं ये .....

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