Thursday, November 8, 2012

(पंजाबी कहानी ) बूचड़खाना -- लेखक - फ़क़ीरचंद शुक्ला
                                                            (अनु. हरकीरत 'हीर' )


अस्पताल के जनरल वार्ड में लेटा हुआ एस.पी. सोच रहा था कि अगर वह मीट  न खाता तो शायद इस दुर्घटना से बच  सकता था  . एक तो मनोवैज्ञानिक प्रभाव, दुसरे अधिक शराब पीने का असर उसे काफी कुंठित किये जा रहा था . किन्तु एस. पी. का मन अनेकों बार यही दोहरा रहा था कि यह सब मीट खाने का ही परिणाम है . मगर तभी उसका मन विरोध कर उठा . कोई ऐसी बात तो है नहीं कि उसने पहली बार मीट खाया हो ? मगर एक बात से तो चाहकर भी एस.पी. विमुख  न हो सका कि कसाई से लाये गए कच्चे मांस का सम्बन्ध इस हादसे से अवश्य है .

अमृतसर से एस . पी का जिगरी दोस्त रांणा आया था . एस.पी. का नाम भी राणा की ही देन है जो कालेज के दिनों में उसे सुरेन्द्रपाल कहकर बुलाने की अपेक्षा  एस .पी. कहा करता था  और अब 'एस.पी. ' शब्द उसके लिए जैसे पेटेंट हो गया था .

राणा के आने की खुशी में उसने मीट बनाने का फैसला किया था . राणा को साथ लेकर जब वह कसाई की दूकान पर पहुंचा तो शायद रविवार होने के कारण या किसी अन्य कारणवश , पहले का झटकाया हुआ बकरा खत्म हो गया था . उसके आने पर कसाई उन्हें जानवरों के बाड़े में ले गया ताकि अपना मन पसंद बकरा चुन सके , बाड़े में बकरे, बकरियाँ , मेमने , यूँ चिल्ला रहे थे मानों बम गिरने वाला हो . उसकी चिल्लाहट कानों के परदे फाड़ रही थी .

कसाई जब किसी बकरे अथवा मेमने के पास  पलभर के लिए रुक जाता तो उस अबोध जीव की तो जैसे सांस  ही घुट जाती . भयभीत  हो वह कसाई  की ओर देखने लगता . उन्हें जरा भी गौर से देखने से साफ पता चल जाता कि मौत से साक्षात्कार का भयंकर नजारा भोग पाना उनके लिए भी कष्टमय है .
और तभी उनकी आँखों के सामने उसने एक मेमने को झटक दिया . राणा की मन की तो राणा जाने लेकिन एस.पी. के दिल में जैसे खून की सप्लाई कम हो गई थी . वैसे तो उसने भी आज तक न जाने कितनी बार मीट खाया  था लेकिल आज यह पहला अवसर था जब उसने अपनी आँखों के सामने बकरे को झटके जाते देखा था . मीट खाने की सारी इच्छा जैसे अवसादमई हो गई थी . परन्तु राणा की 'खातिरदारी' के सामने उसने अपनी भावनाएं दबाकर ही रखीं .

भोजन के पश्चात शीघ्र ही वह खर्राटे भरने लगा था . अब पता नहीं फ़ूड प्वाज्निंग   हो गई थी या की साइकिक तौर पर असर था . रात के आधी बजे के करीब एस.पी. के पेट में बहुत जोरों से दर्द होने लगा था . और उसके तुरंत बाद ही उसे निरंतर इस कद्र उल्टियां आने लगीं थीं की वह कुछ घंटों में निढाल होकर पसर गया था .

राणा ने जब यह सब देखा तो उसे कोई चारा नज़र न आया सिवाए इसके कि वह उसे अस्पताल के एमरजेंसी  वार्ड में ले जाये . मारे दर्द के एस. पी. के प्राण गले में अटके हुए थे और अस्पताल वालों ने भर्ती करते-करते ही आधा घंटा लगा दिया था .
एमरजेंसी में न तो डियूटी वाले डाक्टर का कहीं पता था और न ही नर्स  का . बाहर बरामदे में वार्ड ब्वाय इम्तिनान से सो रहा था . एस. पी. की चीखें सुनकर उसकी आँख खुल गई लेकिन उसे इतनी रात गए उठना गवारा न हुआ . अत: वह दम साधे पड़ा रहा. आखिरकार राणा को उसे झिंझोड़कर उठाना पड़ा . वार्ड ब्वाय के निर्देश पर राणा ने प्राइवेट वार्ड के एक दो कमरों के दरवाजे खटखटाए तो कुछ समय पश्चात एक डाक्टर और नर्स प्रकट हुए . उनके चेहरों पर बेहद खीज स्पष्ट दिखाई दे रही थी .

'' क्या हुआ ?'' डाक्टर ने , जो देखने में किसी मार्डन रोमियों से कम नहीं लगता था , जरा तल्ख़ लहजे में पूछा .

'' जी डाक्टर साहब .....उसे उल्टियां आ रही हैं . पेट में भी ..." राणा ने मरीज की स्थिति का अभी पूरा  विवरण भी न दिया था कि डाक्टर बीच में ही उबल पड़ा - '' मामूली सी बात के लिए इतनी रात गए आसमान सर पर उठाने की क्या जरुरत थी . सुबह भी आ सकते थे .''


डाक्टर का चौखटा  यूँ लग रहा था जैसे उसे ततैयों ने काट खाया हो . एक दो पल रूककर उसने नर्स  से कहा - '' इसे स्टेमिटिल  और फोर्टविन का इंजेक्शन लगा दो . बाकी सुबह देखेंगे . और हाँ ....'' उसने राणा की ओर इशारा किया-'' पहले इसकी फाइल बना लाओ. ''

नर्स का मुड  भी जैसे पूरी तरह ऑफ हो गया था . मुंह में ही बुदबुदाती चली गई . कुछ देर बाद आई तो हाथ में एक पर्ची थी  . उसने राणा की ओर  पर्ची बढ़ाते  हुए कहा - '' ये दो टीके ले आओ ''

'' लेकिन इतनी रात में मैं कहाँ से ले आऊँ ..?'' राणा ने अपनी मज़बूरी जतलाने की भरपूर कोशिश की .
'' यह तुम जानो...नीचे स्टोर में देख आओ अगर खुला हो तो ....''

''आप ही कोई कृपा करें बहन जी ...''
'' बहन जी कोई जेब में तो डाले नहीं घुमती . टीका  मिल जाये तो बता देना '' वह बुदबुदाती हुई चली गई .

यह कैसा अस्पताल है ?एमरजेंसी में इतनी लापरवाही है ..तो जनरल वार्ड का तो भगवान ही मालिक है ...राणा और एस.पी. दोनों यही सोच रहे थे .

राणा नीचे भागा  स्टोर बंद था . उसने जोर  से दरवाजा पीटा..मिन्न्नते कीं ...खुशामदें कीं , तब जाकर मेडिकल स्टोर वाले ने दरवाज़ा खोला .

''मालूम नहीं आपको कि  स्टोर बारह बजे बंद हो जाता है ...?''

''भइया  एक एमरजेंसी केस है , नहीं तो आपको क्यों कष्ट देता '' राणा  जैसे उससे भीख मांग रहा हो  .


'' इनको भी इसी समय इमरजेंसी आनी थी ...'' स्टोर वाला बुदबुदाता रहा - लाओ क्या लेना है ...?

राणा ने पर्ची उसकी और बढ़ा दी . स्टोर वाले को तो जैसे सांप सूंघ गया ....

''बस दो टीके ही चाहिए ..? शोर तो ऐसे मचा रखा था जैसे .....नींद का सत्यानाश कर दिया ..."

राणा के मन में आया था की 'बाऊ' को गर्दन से पकड़ कर दो चार झापड़ लगा दे ... ! अगर नींद इतनी ही प्यारी है तो क्या जरुरत पड़ी थी अस्पताल में दूकान खोलने की . घर में टंगे पसार कर पड़ा रहता . मगर उसने चुप रहना ही उचित समझा .

स्टोर वाले का शुक्रिया अदा करने के बाद राणा को फ़ाइल बनाने वाले की भी मिन्नतें करनी पड़ीं . वह भी गहरी नींद सोया हुआ था .

खैर राणा वार्ड में लौट आया . टीका लगाने के लिए वह दो बार नर्स को बुलाने गया पर एक ही जवाब था - ''अभी आई''

और फिर राणा ने दो-तीन बार वार्ड ब्वाय को नर्स को बुलाने के लिए भेजा , तब कहीं जाकर नर्स ने दर्शन दिए .
सिरिंज उबालने में भी वक़्त लगता है न ...? वह बडबड़ाई .....

और उसने इंजेक्शन को सिरिंज में भरकर जब एस;पी; के लगाया तो एस;पी; की तो जैसे chikh ही निकल गई . नर्स ने इंजेक्शन कुछ इस प्रकार लगाया था जैसे छुरा घोंप रही हो . थोड़ी देर बाद दुसरा इंजेक्शन भी लगा गई .

'' इसे नींद का टीका लगा दिया है और उल्टियां रोकने का भी . सुबह बड़े डाक्टर आयेंगे फिर जैसा वह कहें .....''
और वह ठुमक-ठुमक करती चली गई .
थोड़ी देर बाद वह फिर आई तो उसके  हाथ में एक और पर्ची थी - '' ये दवाइयां और ग्लूकोज की चार बोतलें ले आओ ..इसे कहीं डीहाईड्रेशन  न हो जाये ..''

'' ये भी अभी चाहिए क्या ...?''
'' नहीं मेरा मतलब था कि आप यदि उसी समय बता देतीं तो मैं सभी दवाइयां एक साथ ले आ ....''
'' मेरे साथ बहस करने की जरुरत नहीं . आपका मन हो तो ले आइये नहीं तो रहने दीजिये . अगर मरीज को कुछ हो गया तो हमें दोष मत दीजिएगा .''
और वह लेफ्ट-राईट करती वहाँ  से चली गई .
राणा के पास मेडिकल स्टोर का दरवाज़ा पीटने के सिवाए और कोई चारा नहीं था . राणा सोच रहा था - किसी महापुरुष के नाम पर बने इस अस्पताल में ऐसी दुर्दशा ..! शायद उस महापुरुष की आत्मा भी बिलख रही होगी ...!
शायद एस.पी.  की किस्मत अच्छी थी . सुबह दिन निकलते ही डाक्टरों की टीम  अस्पताल में दनदनाने लगी . एस.पी. और राणा को बहुत हैरानी हुई कि इतनी सुबह डाक्टर कैसे आ गए . लेकिन कुछ समय  बाद ही जैसे उनकी शंका का समाधान हो गया था . शहर की एक मोटी 'आसामी' को जो कि अस्पताल की  मैनेजमेंट कमेटी में में भी है , को थोड़ी सी तकलीफ हो गई थी .

बस ..! फोन की घंटियों ने डाक्टरों की कोठियों की जड़ें हिला दी थीं और 'असामी' के अस्पताल में पहुँचने से पूर्व ही डाक्टरों ,नर्सों की पलटन वहाँ मार्च करने लगी थी . मानो बिल्ली के भाग से छींका टूटा . डाक्टर ने एस.पी. का भी निरीक्षण किया .
'' इसे अपेंडिसाईटिस का दर्द था . मगर अटैक पूरा नहीं था , इसलिए इतना टाइम निकल गया . लेकिन अभी आपरेशन करना पडेगा , नहीं तो फिर किसी भी समय खतरा बढ़ सकता है ..!''

राणा बेचारा फिर भाग-दौड़ में लग गया . दवाइयां खरीद कर लाने के लिए एक और लिस्ट उसे पकड़ा दी  गई . वह एक पर्ची की दवाइयां लेकर आता तभी उसे एक और पर्ची मिल जाती . राणा को खीज भी बहुत आ रही थी . एक ही बार क्यों नहीं सारी दवाइयां लिख देते ये लोग ...दवाइयाँ लाते-लाते यही ख्याल उसके दिमाग में बार-बार आता . इतनी सारी दवाइयाँ क्या एक ही बार में सारी काम आ जायेंगी ....? दवाई की शीशियों , गोलियों  आदि ने एस.पी. के बैड के साथ रखी डोली में काफी स्थान घेर लिया था .

खैर एस.पी. का आपरेशन हो गया और उसे रिकवरी रुम में लिटा दिया गया . राणा शहर चला गया था . एस.पी. के घरवालों को तार देने और साथ ही एस.पी. के आफिस में फोन द्वारा सुचना देने के लिए .
रिकवरी रुम में भी जैसे एस.पी. के लिए चैन नहीं था . वहाँ थी तीन नर्सें और दो वार्ड ब्वाय . लगता था जैसे किसी ' ह्यूमरस प्ले' की रिहर्सल कर रहे हों . हा..हा..हा...ही..ही...ही...पता नहीं कौन सी ऐसी बात थी जो खत्म होने में नहीं आ रही थी . रिकवरी रुम में लेटे हुए दुसरे मरीज़ भी दुखी होकर उनकी ओर अजीब निगाहों से देख रहे थे .
एस.पी. को नींद का इंजेक्शन लगा दिया गया था परन्तु जैसे हो हल्ले में नींद का इंजेक्शन भी असरहीन हो गया था . एस.पी. की सहन -शक्ति जैसे समाप्त हुई जा रही थी . आखिर उसने हाथ के इशारे से एक नर्स को पास बुलाया  ...
'' क्या बात है ..?''उसके बैड के पास आते हुए नर्स ने पूछा .
''सिस्टर ! जहां मैं लेता हूँ , यह कौन सी जगह है ...?'' बिना कोई भूमिका बांधे एस.पी. ने पूछा !
''क्यों ..?''
''मैं किसी को सूचित करना चाहता हूँ कि मैं फलां रुम में हूँ .''
''यह रिकवरी रुम है ..''
'' लेकिन सिस्टर , '' एस.पी. जैसे अपने मन की बात छुपा न सका - ''मुझे तो यह रिक्रियेशन रुम लग रहा है .''
''व्वाट ..?'' नर्स की भवें तन गईं . लेकिन एस.पी. के मुंह के शब्द खुद-ब-खुद निकलते रहे - ''कृपया अपना नाटक बंद कर दें ताकि मैं कुछ देर सो सकूँ .''
''स्टुपिड !'' बुदबुदाती हुई वह अपनी चंडाल -चौकड़ी की तरफ मुड़ गई . शायद अन्य सब ने एस.पी. की बात सुन ली थी .
कुछ ही क्षणों में कमरे का भारीपन जैसे कम हो गया . दुसरे दिन एस.पी. को रिकवरी रुम से जनरल वार्ड में भेज दिया गया .
सुबह-सुबह डाक्टर 'राउंड' लगाने आये तो एस.पी. के 'ट्रीटमेंट चार्ट ' पर कुछ लिख गए . डाक्टरों की टीम के जाने के पश्चात वहाँ की डयूटी-नर्स ने आकर एस.पी. को एक पर्ची थमा दी -'' ये दवाइयां ओर टीके मंगवा लीजिये .''

जब राणा आया तो एस.पी. ने पर्ची उसे थमा दी  .

''ये टीके हमारे पास हैं शायद ,'' राणा ने पर्ची पढ़ते हुए कहा . अभी कल ही तो मैं दस लाया था ओर इन गोलियों के तीन स्ट्रिप ...!''

राणा ने डोली का दरवाज़ा खोला , वहाँ इस्तेमाल किये हुए टीकों के दो चार खोल ओर कुछ गोलियां पड़ी थीं . '' सभी दवाइयां कहाँ गई एस.पी. ...? मैं तो कल काफी सारी लाया था ...?''

'' मुझे क्या पता लग गईं होंगीं .''
'' लगती कहाँ हैं बाबु साहब रात में सफाचट हो जाती हैं .'' साथ वाले बैड के मरीज ने व्यंगात्मक स्वर में कहा ... !
''सफाचट ..?'' एस.पी' ने हैरान होते हुए कहा .
'' हाँ जी ये डाक्टर लोग जान बुझ कर ज्यादा दवाइयाँ मंगवा लेते हैं और रात को मरीज़ को टीका लगा कर सुला देते हैं . तब  दवाइयाँ एक बार फिर वहीँ चली जाती हैं जहाँ से आती हैं . ''
''आपका मतलब है मेडिकल स्टोर वालों को बेच देते हैं .''
'' हाँ जी  , तभी तो ये बार-बार इस बात पर जोर देते हैं की अस्पताल के मेडिकल स्टोर से ही दवाइयाँ लायें , बाहर से अच्छी नहीं मिलतीं . ''
एस.पी. तो जैसे यह सब सुनकर स्तब्ध रह गया . अपने कानों पर जैसे विशवास ही नहीं हुआ ...लेकिन डोली का खालीपन जैसे इस बात का साक्षी था . और भला क्या प्रमाण चाहिए था उसे ...!
और अस्पताल में लेटा हुआ एस.पी. सोच रहा था कि अगर वह वह मीट न खाता तो शायद इस दुर्घटना से बच जाता लेकिन वह खुद ही अपने उत्तर प्रश्नों में और प्रश्न उत्तरों में गड़बड़ किये जा रहा था .
****
आज काफी सुबह ही एस.पी. की आँख खुल गई . एक नया मरीज़ आया था . चिल्ला-चिल्ला कर उसने वार्ड के सभी मरीजों को जगा दिया था . दो चक्कर लगाने के बाद नर्स नहीं आई थी . डाक्टर तो एक बार भी नहीं आया . वार्ड के बाकी मरीज़ भी बिलबिला रहे थे लेकिन नए आये मरीज़ की चीखें अभी भी पहले की तरह ऊंची थीं जबकि डाक्टरों के  राऊंड लगाने का समय हो गया था .
अचानक नए आये मरीज़ की चीखें बंद हो गईं .
एस.पी. के आस-पास लेटे मरीजों ने भी जैसे सांस खींच ली हो ....और सभी की आँखें वार्ड के दरवाजे की तरफ  थीं . हैं ....s ..s ....यह सन्नाटा क्यों ...? एस.पी. जैसे  हैरान हो गया .
और फिर अगले ही क्षण एस.पी. की नज़र भी उस ओर घूम गई जिस ओर बाकी मरीज देख रहे थे . एक डाक्टर भीतर आ रहा था . लेकिन यह क्या ...?एस.पी. की आँखों को यह क्या हो गया ..? उसे यह क्या दिखाई देने लगा है . वार्ड की जगह बकरियां का बाड़ा ...डाक्टर की जगह कसाई ...? नहीं...नहीं....यह कैसे हो सकता है ...? एस. पी. ने आँखें मलीं ...लेकिन नहीं ...सब कुछ पहले की तरह दिखाई दे रहा था .
और शायद इसलिए बकरियों ने मिमियाना बंद कर दिया था और सहमी हुई उस तरफ देख रही थीं ...!!

संपर्क - डॉ फकीरचंद  शुक्ला
२३०-सी,
भाई रंधीर सिंह नगर
लुधियाना - १४१०१२ (पंजाब )
फोन- १६१-२४५९०३० , ४६१२२३०
मो. ९८१५३५९२२२
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अनुवादक- हरकीरत 'हीर'
१८ ईस्ट लेन. आर.जी. बरुआ रोड ,
पोस्ट-दिसपुर , हॉउस न. ५
गुवाहाटी-७८१००५ (असाम )




1 comment:

  1. . वार्ड की जगह बकरियां का बाड़ा ...डाक्टर की जगह कसाई ...? नहीं...नहीं....यह कैसे हो सकता है ...? एस. पी. ने आँखें मलीं ...लेकिन नहीं ...सब कुछ पहले की तरह दिखाई दे रहा था .

    यही हाल है हमारे अस्पतालों का । कहानी अच्छी लगी ।

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