Sunday, October 14, 2012

इक शब्द की कहानी ....इमरोज़ ....(पंजाबी से अनुदित )

इक सपने में
इक खूबसूरत लड़की कह रही थी
कोई कहानी लिखूं
इक शब्द की,  इक ज़िंदा शब्द की ....
जागा तो देखा ...
इक अनलिखी कहानी सामने खड़ी थी
और इक शब्द खुशबू भी कागज़ पर लिखा पड़ा था ....
इक खामोश सुंदर लड़की रहती तो बहुत दूर है
पर उसके मनचाहे जवान को बिलकुल दूर नहीं लगती
जवान को वह सुंदर लड़की बहुत अच्छी  लगती है
वह लड़की भी मनचाहे जवान को उडीकती रहती है
इस उडीकती लड़की के लिए जवान कुछ भी कर सकता है
कागज़  भी बन सकता है , शब्द भी और खुद ही ले जाने वाला कबूतर भी
कबूतर बनकर सब फासले उड़कर वह लड़की की मुंडेर पर जा बैठता है
सूरज की पहली धूप   आकर बताती है सूरज का हाजर  होना
और जवान का हाजर  होना भी ....
उडीकती लड़की आकर कबूतर से अपना कागज़ ले लेती है
जब कागज पढ़ती है
लिखा हुआ शब्द खुशबू  सा हो जाता  है
ज़िंदा शब्द की महक से सुन्दर लड़की और सुंदर हो जाती है ...
यह इक शब्द की कहानी
अपने आप हर बार इक नए शब्द को ज़िंदा कर देती है
सुंदर लड़की कब से देखती आ रही है पता नहीं
मुहब्बत का यह भी एक रंग है
लिखे शब्द को पढ़ के ज़िंदा शब्द करते रहना
और अपने आप को भी और सुंदर देखते रहना ....

इमरोज़ .....

अनु . हरकीरत 'हीर

3 comments:

  1. लिखा हुआ शब्द खुशबू सा हो जाता है
    ज़िंदा शब्द की महक से सुन्दर लड़की और सुंदर हो जाती है ...
    man ko sukoon deti post...
    behtarin

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  2. हरकीरत ' हीर'21 October 2012 21:27
    चारो खाने चित' ही सही शब्द है ....
    इसमें वर्तनी की कोई गलती नहीं ....
    चित्त .- मन
    चित- पीठ के बल या बेहोश

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    मुद्दा वर्तनी नहीं है महेंद्र जी ,हरकीरत जी ,

    वह तो प्रसंग वश कोई बात निकल आती है तो मैं कह देता हूँ लिखके इशारा कर देता हूँ .शुद्ध अशुद्ध रूप तो वर्तनी के माहिर ही बतला सकतें हैं या फिर

    आप जिसने थोड़ी बहुत हिंदी पढ़ी भी होगी .मैं तो विज्ञान का विद्यार्थी हूँ .

    कोई अच्छा शब्द कोष देखिए रही बात माफ़ी की तो पहले वह सक्षमता हासिल कीजिए ,फिर आप से माफ़ी मांग लूंगा .फिलहार चारो चारो करोगे

    .........हुआं हुआं करोगे तो चारों तरफ से घिर जाओगे .माफ़ी तो मैं सरकार से भी नहीं मांगता आपको कुछ दे ही रहा हूँ .ले कुछ नहीं रहा आपसे .

    रही बात चित और पट्ट की पट्ट के वजन से चित्त लिखा जाता है .चित सचेत है चित्त नहीं .

    प्रभुजी मोरे औगुन चित न धरो .......


    पहली मर्तबा हुआ है इस देश में सरकार ही पूरी भ्रष्ट हो गई है .जिस मंत्री से आपका हाथ छू जाए वह भ्रष्ट निकलता है .ऐसी सरकार की मैं आलोचना

    करता हूँ तो आपको बुरा लगता है .क्या जिस पार्टी की सरकार है आप उसके सदस्य हैं ?हैं तो पार्टी छोड़ दो आप तो पत्रकार हैं ऐसा आसानी से कर सकतें

    हैं .

    इस गुलाम वंशी मानसिकता के साथ क्यों रह रहें हैं भारत धर्मी समाज में ?भारत का हित सोचो ."भ्रष्ट कांग्रेस का नहीं " असल मुद्दा वर्तनी नहीं है .भ्रष्ट

    सरकार है .

    और हाँ कविता और भाषा में दोनों रूप प्रचलित हैं कबीर भी कबिर भी .

    फिर दोहरा दूं कबीरा खड़ा ब्लॉग मेरा नहीं है मैं एक कन्ट्रीब्युटर हूँ प्रशासम नहीं हूँ इस ब्लॉग का .

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  3. और इक शब्द खुशबू भी कागज़ पर लिखा पड़ा था ....खुश्बू .............

    सूरज की पहली धूप आकर बताती है सूरज का हाजर होना।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।हाज़िर होना ......

    उडीकती लड़की आकर कबूतर से अपना कागज़ ले लेती है।।।।।।।।।हरकीरत जी कृपया बतलाएं यह उडीकती कौन सी भाषा का शब्द है ?क्या आंचलिक प्रयोग है .

    असल शब्द चारों ही होता है चारो नहीं होता अनुवादक महोदया नोट कर लें .

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