डॉ. कुञ्ज मेधी की क्षणिकाएं .....(असमिया से अनुवाद )
नाम - डॉ कुञ्ज मेधी
जन्म-१९४२ , १२ नवम्बर
शिक्षा- ऍम ए , पी एच.डी (राजनितिक विज्ञान)
कृतित्व - अब तक पच्चीस पुस्तकें , सात काव्य संग्रह , चार अनुदित संग्रह , संस्मरण यात्रावृत व राजनितिक विषय पर पुस्तकें ....
सम्मान- देश और विदेश से अनेकों सम्मान व प्रशस्ति -पत्र
सम्प्रति - गुवाहाटी विश्व -विद्यालय से अवकाश प्राप्त ....
संपर्क - १८ ईस्ट लेन , सुन्दरपुर , हॉउस न -16
गुवाहाटी-५
मो. 9435104096
(१)
कोरा सा ...
शून्य और खोखले हैं
सभी पल और अनुपल मेरे
मानो दोपहर के सूरज के ताप से
जला हुआ है मेरा ह्रदय
कोरा सा
विमर्श,विधुर .....
(२)
अग्नि परीक्षा....
जलते जलते अंगार हो गई
ज्वाला की चिंगारी मेरी
लेकिन खत्म नहीं हुई अब भी जलकर
अपमान ,लांछना के बीच
फिर अग्नि परीक्षा है मेरी .....
(३)
नारी ....
नारी हूँ मैं
मैं ही हूँ मेरा परिचय
स्वप्न , नक्षत्र ,पतित
विपन्न आकाश में
सारे विषाद ढोकर भी
छिपाकर जलाती हूँ
मंगल दीप ......
(४)
गांधारी पृथ्वी .....
तमोमय ध्वंस यज्ञ में
अविरत अशुभ आहुति
अवश्यम्भावी परिणाम देखकर
आँखें बांध कर रह जाती है
गांधारी पृथ्वी ......
(५)
बालक की हँसी में .......
मंदिरों में पूजा की सुगंध
मस्जिदों में आजान की ध्वनी
गिर्जा-गुरद्वाराओं की प्रार्थनाओं में
उसी तृप्ति का अनुभव है
जो इक नन्हें बालक की
हँसी में .......
(६)
रजत पुष्प ...
दूर कहीं अन्तरिक्ष में
सोन चिड़िया की चोंच में है
चांदनी का रजत पुष्प
जी चाहता है
मुट्ठी भर कर छिड़क दूँ
इधर-उधर
और उज्जवल कर दूँ इस
अरण्यमय धरती को .....
(७)
खोज ....
जगह-जगह गड़े हैं
मिल के पत्थर ....
उन्हीं निशानों का सहारा लेकर
हे ईश्वर तुम्हें
ढूंढती फिर रही हूँ
अब तक ......
(८)
परिचित सौरभ .....
मुट्ठी भर उष्म प्रहर में
ह्रदय को टांक दिया है मैंने
धूप भरे आकाश में
ढूंढती हूँ फिर रही हूँ
मंदिर के प्रांगन में
फिर वही
परिचित सौरभ .....
****************************** *****
अनु : हरकीरत 'हीर'
गुवाहाटी
नाम - डॉ कुञ्ज मेधी
जन्म-१९४२ , १२ नवम्बर
शिक्षा- ऍम ए , पी एच.डी (राजनितिक विज्ञान)
कृतित्व - अब तक पच्चीस पुस्तकें , सात काव्य संग्रह , चार अनुदित संग्रह , संस्मरण यात्रावृत व राजनितिक विषय पर पुस्तकें ....
सम्मान- देश और विदेश से अनेकों सम्मान व प्रशस्ति -पत्र
सम्प्रति - गुवाहाटी विश्व -विद्यालय से अवकाश प्राप्त ....
संपर्क - १८ ईस्ट लेन , सुन्दरपुर , हॉउस न -16
गुवाहाटी-५
मो. 9435104096
(१)
कोरा सा ...
शून्य और खोखले हैं
सभी पल और अनुपल मेरे
मानो दोपहर के सूरज के ताप से
जला हुआ है मेरा ह्रदय
कोरा सा
विमर्श,विधुर .....
(२)
अग्नि परीक्षा....
जलते जलते अंगार हो गई
ज्वाला की चिंगारी मेरी
लेकिन खत्म नहीं हुई अब भी जलकर
अपमान ,लांछना के बीच
फिर अग्नि परीक्षा है मेरी .....
(३)
नारी ....
नारी हूँ मैं
मैं ही हूँ मेरा परिचय
स्वप्न , नक्षत्र ,पतित
विपन्न आकाश में
सारे विषाद ढोकर भी
छिपाकर जलाती हूँ
मंगल दीप ......
(४)
गांधारी पृथ्वी .....
तमोमय ध्वंस यज्ञ में
अविरत अशुभ आहुति
अवश्यम्भावी परिणाम देखकर
आँखें बांध कर रह जाती है
गांधारी पृथ्वी ......
(५)
बालक की हँसी में .......
मंदिरों में पूजा की सुगंध
मस्जिदों में आजान की ध्वनी
गिर्जा-गुरद्वाराओं की प्रार्थनाओं में
उसी तृप्ति का अनुभव है
जो इक नन्हें बालक की
हँसी में .......
(६)
रजत पुष्प ...
दूर कहीं अन्तरिक्ष में
सोन चिड़िया की चोंच में है
चांदनी का रजत पुष्प
जी चाहता है
मुट्ठी भर कर छिड़क दूँ
इधर-उधर
और उज्जवल कर दूँ इस
अरण्यमय धरती को .....
(७)
खोज ....
जगह-जगह गड़े हैं
मिल के पत्थर ....
उन्हीं निशानों का सहारा लेकर
हे ईश्वर तुम्हें
ढूंढती फिर रही हूँ
अब तक ......
(८)
परिचित सौरभ .....
मुट्ठी भर उष्म प्रहर में
ह्रदय को टांक दिया है मैंने
धूप भरे आकाश में
ढूंढती हूँ फिर रही हूँ
मंदिर के प्रांगन में
फिर वही
परिचित सौरभ .....
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अनु : हरकीरत 'हीर'
गुवाहाटी
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