हीर को लिखे खतों में इमरोज़ की इक नज़्म..............
अब तुम ...
कहीं मत जाना
न गुवाहाटी
न दिल्ली
न तख़्त-हजारे
बस अपने भीतर रहना
यह अपना राँझा ही
कह सकता है
यह अपना वारिस
ही लिख सकता है ......
इमरोज़ ....(अनु: हरकीरत हीर )
अब तुम ...
कहीं मत जाना
न गुवाहाटी
न दिल्ली
न तख़्त-हजारे
बस अपने भीतर रहना
यह अपना राँझा ही
कह सकता है
यह अपना वारिस
ही लिख सकता है ......
इमरोज़ ....(अनु: हरकीरत हीर )
बस अपने भीतर रहना........
ReplyDelete...बस इतना रहना..
कि.. कोई सदी न रहे...
कि .. कोई ख्वाब दूसरा न रहे.....