डॉ सुशिल रहेजा की क्षणिकाएं ......(पंजाबी से अनुदित )
नाम: डॉ सुशिल रहेजा
जन्म: ११सितम्बेर १९६२
शिक्षा : :M.A,LL.B,Ph.D,
कृतित्व: अमबडी (कहानी संग्रह ) , चौरस ग्लोब (उपन्यास), सी कोई (ग़ज़ल संग्रह ), अगले जन्म'च लिखांगा (काव्य संग्रह ), पंजाबी ग़ज़ल डा रूप विधान (शोध प्रबंध ) .......
सम्प्रति- वकालत
संपर्क : drsushilraheja@gmail.com
(१)
मुहब्बत .....
जो मुहब्बत कर सकता है
वही बगावत कर सकता है
जो बगावत कर सकता है
वही मर सकता है
जो मर सकता है
वही मुहब्बत कर सकता है ......
(२)
हिन्दुस्तान......
बेटा
क्या कर रहे हो ....?
पापा ....
हिन्दुस्तान गलत बन गया था
रबड़ से मिटा रहा हूँ .....!
(3)
एहसास .....
मैंने उसे पूछा ...
मुझे भूल तो न जाओगी ...?
वह बोली ...
इन्सान साँस लेना
कब याद रखता है ..?
(४)
ज़िन्दगी ...
ज़िन्दगी ...
कोई मसाला फिल्म नहीं
जिसके अंत में
सब ठीक हो जाये .....
(५)
तुम्हें भुलाना ....
तुम्हें भुलाने के लिए
शायद मुझे बहुत कुछ करना पड़े ...
खाली वक़्त में भी
खुद को ....
व्यस्त रखना पड़े ....
या बेवजह
उन चीजों को तोड़ना पड़े
जिन्हें कभी तूने छुआ था ......
(६)
मैं बच्चा था खिलौने चाहता था
पर कोई मेरे ढंग का न था ....
मैं जवान हुआ साथी चाहता था
पर यह बात बताने से डरता रहा .....
मैं अधेड़ हुआ नेकी चाहता था
पर कोई तगमा मेरे रंग का न मिला
अब मैं बूढ़ा हुआ ,अपनत्व चाहता हूँ
पर इक डर मेरे साथ खांसता है .....
(७)
मैं हर रोज़
कुछ न कुछ भूल जाता हूँ
कभी पर्श
कभी रुमाल
कभी ऐनक
कभी मोबाईल
तो कभी पैन ...
पर तुम कैसे हो वक़्त ...?
न कभी गिरते हो
न कभी कुछ भूलते हो ........
(८)
अगर ....
किसी के बारे जानना चाहो
तो
ताज्जुब का कारण यह नहीं होगा
कि
वह मर चुका है
बल्कि यह होगा कि
वह अभी तक जिंदा है ......
अनुवाद - हरकीरत 'हीर'
नाम: डॉ सुशिल रहेजा
जन्म: ११सितम्बेर १९६२
शिक्षा : :M.A,LL.B,Ph.D,
कृतित्व: अमबडी (कहानी संग्रह ) , चौरस ग्लोब (उपन्यास), सी कोई (ग़ज़ल संग्रह ), अगले जन्म'च लिखांगा (काव्य संग्रह ), पंजाबी ग़ज़ल डा रूप विधान (शोध प्रबंध ) .......
सम्प्रति- वकालत
संपर्क : drsushilraheja@gmail.com
(१)
मुहब्बत .....
जो मुहब्बत कर सकता है
वही बगावत कर सकता है
जो बगावत कर सकता है
वही मर सकता है
जो मर सकता है
वही मुहब्बत कर सकता है ......
(२)
हिन्दुस्तान......
बेटा
क्या कर रहे हो ....?
पापा ....
हिन्दुस्तान गलत बन गया था
रबड़ से मिटा रहा हूँ .....!
(3)
एहसास .....
मैंने उसे पूछा ...
मुझे भूल तो न जाओगी ...?
वह बोली ...
इन्सान साँस लेना
कब याद रखता है ..?
(४)
ज़िन्दगी ...
ज़िन्दगी ...
कोई मसाला फिल्म नहीं
जिसके अंत में
सब ठीक हो जाये .....
(५)
तुम्हें भुलाना ....
तुम्हें भुलाने के लिए
शायद मुझे बहुत कुछ करना पड़े ...
खाली वक़्त में भी
खुद को ....
व्यस्त रखना पड़े ....
या बेवजह
उन चीजों को तोड़ना पड़े
जिन्हें कभी तूने छुआ था ......
(६)
मैं बच्चा था खिलौने चाहता था
पर कोई मेरे ढंग का न था ....
मैं जवान हुआ साथी चाहता था
पर यह बात बताने से डरता रहा .....
मैं अधेड़ हुआ नेकी चाहता था
पर कोई तगमा मेरे रंग का न मिला
अब मैं बूढ़ा हुआ ,अपनत्व चाहता हूँ
पर इक डर मेरे साथ खांसता है .....
(७)
मैं हर रोज़
कुछ न कुछ भूल जाता हूँ
कभी पर्श
कभी रुमाल
कभी ऐनक
कभी मोबाईल
तो कभी पैन ...
पर तुम कैसे हो वक़्त ...?
न कभी गिरते हो
न कभी कुछ भूलते हो ........
(८)
अगर ....
किसी के बारे जानना चाहो
तो
ताज्जुब का कारण यह नहीं होगा
कि
वह मर चुका है
बल्कि यह होगा कि
वह अभी तक जिंदा है ......
इन्सान साँस लेना
ReplyDeleteकब याद रखता है ..?
बहुत ही खूब और उम्दा क्षणिकाएं....