इमरोज़ जी के मेरे पास ढेरों ख़त पड़े हैं ...अक्सर वे नज़्म रूप में ही ख़त लिखते हैं ....उनके लिखे कुछ खतों का हिंदी .अनुवाद ....
मनचाही किस्मत....
तुम्हारे कमरे लगीं हुई
तुम्हारी पेंटिंग्स कहाँ हैं ...?
मेरे आज को जगाकर सारी की सारी
मेरा कल हो गईं हैं
हँसकर कहने लगी
जागकर क्या कर रहे हो ...?
आज तक मर्ज़ी की पेंटिंग नहीं बना पाए ...?
मर्ज़ी की पेंटिंग बनाने के लिए
अपने आपको मर्ज़ी का बना रहा हूँ
यह सोच सुनकर , यह रेयर सोच सुनकर
वह सोचने लग पड़ी ...
किसी पढाई में यह सोच क्यों नहीं
न बाहर की पढाई में , न अन्दर की पढाई में
सोचना छोड़
आ अपनी मर्ज़ी के रंग देखें
तुम मेरी आँखों में देखो...
और मैं तुम्हारी आँखों में देखता हूँ
सादा- सहज ज़िन्दगी के खुबसूरत रंग
तुम भी देख सकती हो और मैं भी
ज़िन्दगी की पेंटिंग अपने - अपने अनुभवों से
तुम मेरे लिए बनाओ और मैं तुम्हारे लिए बनता हूँ ....
मेरी पीठ पर अब तुम क्या लिख रही हो ...?
जो सिर्फ तुम्हारी पीठ पर ही लिख सकती हूँ
अपनी किस्मत ....
अपनी मनचाही किस्मत .......!!
इमरोज़.......(अनु; हरकीरत हीर )
मनचाही किस्मत....
तुम्हारे कमरे लगीं हुई
तुम्हारी पेंटिंग्स कहाँ हैं ...?
मेरे आज को जगाकर सारी की सारी
मेरा कल हो गईं हैं
हँसकर कहने लगी
जागकर क्या कर रहे हो ...?
आज तक मर्ज़ी की पेंटिंग नहीं बना पाए ...?
मर्ज़ी की पेंटिंग बनाने के लिए
अपने आपको मर्ज़ी का बना रहा हूँ
यह सोच सुनकर , यह रेयर सोच सुनकर
वह सोचने लग पड़ी ...
किसी पढाई में यह सोच क्यों नहीं
न बाहर की पढाई में , न अन्दर की पढाई में
सोचना छोड़
आ अपनी मर्ज़ी के रंग देखें
तुम मेरी आँखों में देखो...
और मैं तुम्हारी आँखों में देखता हूँ
सादा- सहज ज़िन्दगी के खुबसूरत रंग
तुम भी देख सकती हो और मैं भी
ज़िन्दगी की पेंटिंग अपने - अपने अनुभवों से
तुम मेरे लिए बनाओ और मैं तुम्हारे लिए बनता हूँ ....
मेरी पीठ पर अब तुम क्या लिख रही हो ...?
जो सिर्फ तुम्हारी पीठ पर ही लिख सकती हूँ
अपनी किस्मत ....
अपनी मनचाही किस्मत .......!!
इमरोज़.......(अनु; हरकीरत हीर )
तुम मेरी आँखों में देखो...
ReplyDeleteऔर मैं तुम्हारी आँखों में देखता हू..........
ठीक वैसे ही....
अंतर्मन की यात्रा में
मेरा शब्द... तुम्हारे पास
तुम्हारा शब्द.... मेरे पास