इमरोज़ की कुछ नज्मों का अनुवाद ….
(१)
(१)
हाजिर हो कर …
हाजिर दिखने लगता है
(२)
आज जीने के लिए …
(३)
ज़िन्दगी के बराबर ….
(४)
खामोश मुहब्बत …
मैंने जब अपने आपको
फूल सोचा था उसे खुशबू सोच लिया था
पर …
किसी के साथ चल कर भी देखा
किसी के साथ फूल बनकर भी देखा
किसी के साथ शायरी करके भी देखी
किसी को न अपने साथ
जागना आता है न औरत के साथ …
मैं तो कब की खामोश
फूल बनी खुशबू को उडीक रही हूँ
फूल बनी खुशबू को उडीक रही हूँ
आज मेरी उडीक ने
इक नज़र पढ़ ली है
उसकी जो है
जो हवाओं को पूछता है
मैं भी तुम्हारी तरह आज़ाद और अदृश्य
रहना चाहता हूँ
हवाओं ने कहा
खामोश मुहब्बत कर ले
किसके साथ
जो भी अच्छा लगे
अभी तो अपना आप ही मुझे अच्छा लगता है
जब कोई अच्छी लगी
फिर खामोश मुहब्बत भी कर लूंगा
मैं आज उसे मिलने जा रही हूँ …
( ५ )
हर रोज़ …
फूल हो के
उगते सूरज के साथ जागता हूँ
खिलता हूँ
और कितनी ही देर महक कर
खुशबू हवाओं के हवाले कर
अपने रंगों के साथ हँसता हूँ खेलता हूँ
और शाम को सूरज के साथ
रंगों के साथ मिलकर
अपना फूल होना
पूरा कर लेता हूँ …
(६)
जो दिल करे …
कोई भी मजहब
जो भी दिल करे करने की छूट नहीं देता
पर लोग जो भी दिल करे
करना चाहते हैं कर रहे हैं
और मजहब जो भी करे करने वालों को
रोक नहीं पा रहे रोक भी नहीं रहे
लोग जब भी दिल करता है
झूठ बोल लेते हैं
किसी को लूटने का दिल करे
लूट लेते हैं
किसी को रेप करने का दिल करे
गैंग रेप कर लेते हैं
और मिलकर क़त्ल भी कर लेते हैं
आसमान से रब्ब क्या देख सकता है
मजहब तो जमीन से भी न देख रहा है
न रोक रहा है
न रोक रहा है
अपने लोगों को अपना निरादर
कर रहे लोगों को
कुछ समझ नहीं आ रहा किसी को
क्या लोग अभी मजहब
क्या लोग अभी मजहब
के काबिल नहीं या मजहब अभी लोगों के
काबिल नहीं …
इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर
kya bat hai.bahut khub
ReplyDelete