श्वेत अश्व श्वेत गुलाब .....( असमियाँ कविता , अनु. हरकीरत 'हीर' ) मूल: उदय कुमार शर्मा
(१)
खेतों में फसल नहीं अब - रेत है
तालाबों में मछलियां नहीं - दरारें हैं
पर्वतों में नहीं बचे दरख्त- अग्नि है
पेड़ों में भी अब नहीं है परिंदे- बस रक्त है
शहर की अँगुलियों में अब नहीं बची जगह अंगूठी की
बस जंगी सफ़ेद घोड़े सी
हिनहिनाती हुई मौत
पुकारती है
हर दिशा ....!!
( २)
हजारों लोग महज़
ख्वाबों में ही सो पाते हैं अब
आँखों की चाहत बन जाती है
सावन का आकाश
चमक उठती है मौत
बिल्ली की आँखों सी
(३)
तितलियों ने
फूलों के कानों में
चुपके से ये मंत्र फूंका
के अब जंगल भी समझने लगे हैं
तूफानों से जूझने की भाषा ...
क्षुधाग्नि ....
क्रोधाग्नि .....
मृतप्राय तृण पुनर्जीवित हो
अचानक बो देते हैं बीज प्रकाश के
मेढकों के गीत....
फसल बोने के गीत
जिन्हें सुन-सुन देखता रहूँगा मैं चिरदिन
आसमां में लिखे उस श्वेत गुलाब का
अनग्न अनंत यौवन ......!!
Sunday, December 20, 2009
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क्षुधाग्नि ....
ReplyDeleteक्रोधाग्नि .....
मृतप्राय तृण पुनर्जीवित हो
अचानक बो देते हैं बीज प्रकाश के
बहुत सुन्दर अभिव्यक्तु है उदय कुमार जी को बधाई आपका धन्यवाद ।
इक-दर्द था सीने में,जिसे लफ्जों में पिरोती रही दिल में दहकते अंगारे लिए, मैं जिंदगी की सीढि़याँ चढती रही कुछ माजियों की कतरने थीं, कुछ रातों की बेकसी जख्मो के टांके मैं रातों को सीती रही। (
ReplyDeletemene to apna dard pe liya or so gaya varso pahle ......Ab bus mast safar hai..manzil ki talash nahi .... par Heer ji aap ka dard to apka profile ban gaya hai...aisha kiyo???????
harkirat ji...kavita ki panktiya kafi sundar hai....Assam sahi me kahi kho gaya hai....bihu nahi ab sirf nafrat ki awaj fijan me hai....
ReplyDeleteapse anurodh hai...apki pujbai ki site ka devnagari lipi me ho sake to like de....padne me kafi assani hogi.....(Viboa Bhave ki baat maan le ).... punjab .... one and half year kaam kia punjabi channel ke liye...jana kafi nazddek se....desha mera ek hai.....majboot hai..dard sajha hai...
शुभकामनायें !
ReplyDeleteगणतंत्र की हार्दिक शुभकामनाएँ !!!! हरकीरत जी आपने अपना मुख्य ब्लाग केवल आमंत्रित सदस्यों के लिए क्यों कर दिया है ? अब हम आपकी रचनाओं से कैसे रु-बरु होंगे ?
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.......
ReplyDeleteManoj bharati ka prashn mera bhee hai........
बहुत खूब, हरकीरत जी, सुंदर कविता का सुंदर अनुवाद । बधाई ।
ReplyDeleteबहुत खूब
ReplyDeleteतितलियों ने
फूलों के कानों में
चुपके से ये मंत्र फूंका
के अब जंगल भी समझने लगे हैं
तूफानों से जूझने की भाषा ...
बहुत बहुत आभार
Apko padhkar deil hi nahi bharta...din me 2-4 to aapke blog par ahi jata hun..
ReplyDeletetrue feelings of Indian
ReplyDeletebahoot hee achha likha hai aap ne
ReplyDeleteउदय कुमार शर्मा की सामयिक परिबर्त्तन प्रवृत्ति का बोध कराती रचना का भावानुवाद हीर जी की साधारणीकरण क्षमता की परिचायक है ।
ReplyDeleteपढकर आनन्द आया ।
सशक्त अभिव्यक्ति
ReplyDeleteaapke anuvaad ne kavita ko ham tak pahunchaaya .. aapko shukriya !!
ReplyDeleteकल 24/04/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
गहन रचनाएँ ... बहुत खूबसूरती से हुआ अनुवाद ... आभार
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