इमरोज़ जी की कुछ नज़मों का अनुवाद ....
पंजाबी की कोयल ....
बरसों की बात है
पंजाब के इक बाग़ से
इक कोयल मर्जी के गीत गाती - गाती
उड़ती -उड़ती कई राह और दरिया
पार कर ब्रह्मपुत्र की धरती जा पहुंची
इक हरे -भरे दरख़्त पर बैठ कर
गाती रही , गाती रही
गाते -गाते जवान हो गई
जवान होते -होते हीर हो गई
हीर होते -होते प्यार हो गई
प्यार होते -होते कविता हो गई
अब कविता लिखती रहती है
और अपने आपको चुपचाप
गाती रहती है ....... !!
इक दिन उसने उसका फल खाया
और मुहब्बत का पंछी बन गया
अब वो दीवानों की तरह हीर को तलाशता
हीर …
(२)
बराबर का ....
कुछ दिनों से
जब भी वो मुझे देखता
उसकी आँखों में
इक ख़ास सी चमक
मुझे दिखती थी
मुझे अभी वह छोटा दिखता था
और था भी वह मुझसे छोटा
उसने अभी कुछ भी नहीं देखा था
मैं तो माँ बनकर भी देख चुकी थी
और एक मुहब्बत करके भी ....
इक दिन मेरा उसके साथ इक बात
करने को दिल किया
उसे बुलाकर पास बैठा कर कहा
तू पहले दुनिया देख आ
फिर भी अगर तुम्हें मेरी जरुरत हुई
जो भी तुम कहोगे मैं कर लूँगी
उसने मेरी ओर देखा
और उठकर सात चक्कर लगाये
और हँसता -हँसता मेरे पास आ बैठा और बोला
देख मैं दुनिया देख आया हूँ
मेरी ओर देखते उसके हँसते -हँसते बोल सुनकर
और उसे देखकर मैं हैरान रह गई
वह मेरे ही सात चक्कर लगा कर छोटा न रहा था
न दिखने में न समझ में
अब वह मेरे बराबर का भी हो गया था
और ज़िन्दगी के बराबर का भी ....
पंजाबी की कोयल ....
बरसों की बात है
पंजाब के इक बाग़ से
इक कोयल मर्जी के गीत गाती - गाती
उड़ती -उड़ती कई राह और दरिया
पार कर ब्रह्मपुत्र की धरती जा पहुंची
इक हरे -भरे दरख़्त पर बैठ कर
गाती रही , गाती रही
गाते -गाते जवान हो गई
जवान होते -होते हीर हो गई
हीर होते -होते प्यार हो गई
प्यार होते -होते कविता हो गई
अब कविता लिखती रहती है
और अपने आपको चुपचाप
गाती रहती है ....... !!
इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर
मुहब्बत का पंछी ....
इक मुहब्बत का बाग़ था इक दिन उसने उसका फल खाया
और मुहब्बत का पंछी बन गया
अब वो दीवानों की तरह हीर को तलाशता
कभी चनाब तो कभी ब्रहम्पुत्र पहुँच जाता है
रंगो से हीर बनाता
जुबां से हीर गाता
वो राँझा -राँझा हो जाता है .... !!हीर …
(२)
बराबर का ....
कुछ दिनों से
जब भी वो मुझे देखता
उसकी आँखों में
इक ख़ास सी चमक
मुझे दिखती थी
मुझे अभी वह छोटा दिखता था
और था भी वह मुझसे छोटा
उसने अभी कुछ भी नहीं देखा था
मैं तो माँ बनकर भी देख चुकी थी
और एक मुहब्बत करके भी ....
इक दिन मेरा उसके साथ इक बात
करने को दिल किया
उसे बुलाकर पास बैठा कर कहा
तू पहले दुनिया देख आ
फिर भी अगर तुम्हें मेरी जरुरत हुई
जो भी तुम कहोगे मैं कर लूँगी
उसने मेरी ओर देखा
और उठकर सात चक्कर लगाये
और हँसता -हँसता मेरे पास आ बैठा और बोला
देख मैं दुनिया देख आया हूँ
मेरी ओर देखते उसके हँसते -हँसते बोल सुनकर
और उसे देखकर मैं हैरान रह गई
वह मेरे ही सात चक्कर लगा कर छोटा न रहा था
न दिखने में न समझ में
अब वह मेरे बराबर का भी हो गया था
और ज़िन्दगी के बराबर का भी ....
(३)
रब्ब की पेंटिंग ....
वह चुपचाप मुझे देखता
उसकी ड्रॉइंग खूबसूरत थी और मेरे नैन -नक्श
वह जब भी ड्रॉइंग करता
मैं उसके पीछे खड़ी होकर
उसकी ड्रॉइंग को देखती रहती
और उसके ड्रॉइंग में से उसे
उसकी खूबसूरत ड्रॉइंग देख -देख उसकी खूबसूरत पेंटिंग देख -देख
मैं और खूबसूरत होती रहती
आर्ट स्कूल का अंतिम दिन आ गया
एक -दूसरे को मिलकर सभी बिछड़ रहे थे
वह भी मेरे पास आ गया
मैं देख कर हैरान रह गई बोली
तुम तो सचमुच पेंटिंग बना-बनाकर
तुम तो सचमुच पेंटिंग बना-बनाकर
खूबसूरत हो गए हो
वह बोला हो सकता है पेंटिंग के साथ भी
थोड़ा बहुत हो गया होऊँ
पर खूबसूरत तो मैं रब्ब की पेंटिंग देख -देख हुआ हूँ
मैं हैरान भी और खुश भी हुई
उसके यह खूबसूरत बोल सुनकर
जिस के पीछे खड़े होकर जिसकी ड्रॉइंग से
उसे देखा करती थी
अब वह मेरे सामने बैठा है मैं उसका हाथ पकड़कर
उस खूबसूरत कलाकार को उसकी सोच की
खूबसूरती को महसूस कर रही हूँ
उसे देख -देख ……
(४)
खुशबू का फ़िक्र …
खुश्बू का फ़िक्र करने वाली
आज याद आ रही है २० साल पहले
मैं भी आर्ट स्कूल में था और वह भी मेरी क्लास में थी
बड़ी सयानी और बड़ी प्यारी
वह मुझे भी अच्छी लगती थी और मैं भी उसे
वह सबसे खूबसूरत फूल पेंट कटरी थी मुझसे भी सुंदर
उसे मेरे साथ बोलना अच्छा लगता था
कभी पूछती तुम्हारे रंग बड़े नए हैं कहाँ से लेकर आये हो
मैं हँस कर कहता अपने पिंड से
वह फिर पूछती अपना पिंड कब दिखाओगे
मैं हँसकर फिर कहता जब तुम्हें उड़ना आ जायेगा ....
वह अपना लंच हर रोज मेरे साथ शेयर करती
और मैं अपने ख्याल ....
फूलों के एक मुकाबले में उसके फूलों को एक इनाम मिला
अपनी खूबसूरती में बैठी वह और भी खूबसूरत हो रही थी खुश भी थी
और उदास भी हजारों खूबसूरत फूल बनाये पर खुशबू
कभी एक फूल में से भी नहीं आई
जानती है कि पेंटेड फूलों में से खुशबू नहीं आती पर उस सोच में बैठी है
जानती है कि पेंटेड फूलों में से खुशबू नहीं आती पर उस सोच में बैठी है
वह उडीक रही खुशबू ....
जो कभी नहीं हुआ वह मैं करके देख रहा हूँ
मैं तुम्हारे फूल की खुश्बू बन सकता हूँ
पर पेंटेड फूलों की नहीं तुम खुद फूल बनो
तो उस फूल की खुशबू बन जाऊँगा
मंज़ूर जोर से बोली
मैं और कुछ बनूँ न बनूँ
पर मैं तेरी खुशबू के लिए फूल जरुर बनूँगी
तुम पता नहीं क्या हो अपनी उम्र से कहीं बढ़कर
न समझ आने वाले भी और समझ आने वाले भी …
(५)
ख्याल …
इक दिन
पेंटिंग में बैठी -बैठी लड़की
गंगा से उठकर चलती-चलती
पोयट्री में पहुँच गई
पोयट्री उस वक़्त
पोयट्री उस वक़्त
ख्यालों को रंग दे रही थी
और ख्यालों से रंग ले भी रही थी
रंगों की लड़की ने
ऐसे ख्याल कभी नहीं देखे थे न रंग
उसने मुस्कुरा कर देखा था
पर हँस कर नहीं देखा था
आज ख्यालों के पास खड़ी
ख्याल भी हो रही थी रंग भी हो रही थी
और हँस भी रही थी ……
इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर
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