असमिया कवि 'अनुभव तुलसी' की कविताओं का हिंदी अनुवाद .....
हमारी शारदीय की माँ ... (असमिया कविता )
हमारी बेटी शारदीय का जन्म
अस्पताल के एक गलियारे में हुआ था
क्योंकि उस दिन अस्पताल की
सेवाएं बंद थीं ...
शारदीय की माँ के लिए
जमीन पर ही बिछा दिया गया था
प्रसूति बिस्तर
वहीँ से किया शारदीय ने प्रथम बार
भूमि रूपी माँ को
साष्टांग प्रणाम ...
हमारी बेटी शारदीय का जन्म
हुआ था मेंड़ पर
जहां से बहा ले गया था
मदमाता पानी शारदीय की माँ को
लगा दिया गया था फिर पानी में ही
शारदीय की माँ का प्रसूति बिस्तर
पानी के बिस्तर से ही शारदीय ने किया था
पानी रूपी पिता को
साष्टांग प्रणाम ....
एक दिन
प्रात: भ्रमण के समय
कचरे के ढेर से उठा लाई थी माँ
हमारी शारदीय को ...
हमारी बेटी शारदीय के जन्म के दिन
हँस पड़े थे लाल-नीली हँसी में
कुमुद के फूल ...
हमारी बेटी शारदीय के जन्म के दिन
हर सिंगार रो पड़ा था फूट-फूट कर
क्यों रोया कोई नहीं जानता ....
हमारी बेटी शारदीय की
दो आँखें हैं जैसे शबनम की दो बूंदें
देव और असुर दोनों तारे वहीँ
स्नान किया करते हैं ...
जन्म के दिन ही माँ ने
खिलाई थी शारदीय को शपथ
रणभूमि में जब धर ही चुकी हो पैर
साँसे रहने तक लड़ना ..
शारदीय के ....
स्वप्न धारण करने के दिन से लेकर
माँ का था अपविश्वास के विरुद्ध युद्ध
एसिड ,किरासिन ,दांत,नाख़ून के विरुद्ध युद्ध
बार -बार दु:शासन द्वारा
नग्न किये जाने के विरुद्ध युद्ध
कभी इस युद्ध से कभी उस युद्ध से
लड़ते-लड़ते शारदीय की माँ के
दोनों हाथों की जगह उग आये थे
दस - दस हाथ .....
मूल - अनुभव तुलसी
अनुवाद - हरकीरत हीर
(२)
रोग ग्रस्त ...(असमिया कविता )
एक ऐसा शुष्क सा परिवेश फैला दिया है
कि पत्नी की आँखों का जल सूख गया है
एक ऐसी आग निशदिन जला रखी है
कि उसके के चेहरे की हँसी जल गई है
एक ऐसा मानसिक दबाव बना रखा है
कि पत्नी की रक्त-प्रवाह गति थम सी गई है
उसे ऐसी कड़वाहट के बाद कड़वाहट दी है
कि उसे मीठे और नमकीन से हो गई है अरुचि
मुसलसल शब्दों से मेरा विस्फोटन जारी है
अब उसकी वाकशक्ति भी खत्म हो गई है
अति आधुनिक माइक्रोवेब में उसे यूँ तला है
कि अब वह जरा सी चोट से ही बिखर जाती है
विलायती बनियों के कड़कड़ाते डालरों की तरह
पत्नी बदलने का यही उचित समय है ....!!
मूल - अनुभव तुलसी
अनुवाद - हरकीरत हीर
(३)
पानी ....
पानी जा घुसा है
उस मनुष्य के घर
वो मनुष्य
बिलकुल अकेला है
घर के चारो ओर
पड़ी वस्तुओं में
लगे उसके स्पर्श को
छूना चाहता है पानी
गर्भ शून्य हवा
बेड़े की दरारों से
देखती है पानी को
पानी आने की खबर सुन
जमीनी बिस्तर पर लेटा
फर्श भी सर उठाता है
अतिथि पानी को
अकेला मनुष्य करता है
स्नेह से स्वागत
पानी को आती है
उसकी शारीरिक गंध
दोनों गंधों के
मिलन के पश्चात
वह निकल पड़ता है
अपने काम के लिए
उसके बिना उस घर में
पानी भी नहीं ठहरता
ज्यादा देर
आ गए पानी से
एक बार मिल चुकने के बाद
वह नहीं भूलता जल्द उसे
सूख जाने के बाद भी
पानी की स्मृति में
रहता है वह
जब तक कि
जीवन में पानी है ...!!
मूल - अनुभव तुलसी
अनुवाद - हरकीरत हीर
(४)
मोहतरमा की आँखें ....
घी के दीये की सी दो गहरी नीली आँखें
आम्र मंजरी सी वो तुम्हारी ही हैं मुदर्रिस मोहतरमा
ख़त के गर्भ से मुड़े -तुड़े अक्षरों से
झड़े हुए सूखे फूलों की पंखुड़ियों के साथ
अमलतास के पत्तों की तरह
इस छोर से उस छोर तक खिंची
काजल की स्याह असंभव रेखा
समेट लेता हूँ हौले से
भीग जाती हैं अंगुलियाँ छूते ही
पर घर में पहले ही हैं एक जोड़ी आँखें
फिर इन दो आँखों की और कैसे लूँ मुसीबत ...?
कहाँ रखूँ छुपाकर ...कहाँ रखूँ ....?
तकिये के नीचे रख नहीं सकता
रखते ही भिगो देगीं ये बिस्तर
फेंक दो इन्हें , कौन देखता है , दूर फेंक दो
बात- बात में सिसकना
मानो आँखें न होकर कोई मोल ली आफत हो
फिर भी मैं चाहता हूँ वो यहीं रहे
मुसीबत के बीच भी मेरे साथ
साथ न रहने पर भी गर तुम्हारा बोझिल ह्रदय
हो जाता है हल्का ....!!
मूल - अनुभव तुलसी
अनुवाद - हरकीरत हीर
(५)
बरसात ....
बरसात में भी है कुछ काँटों जैसी चुभन
जो बेंध जाती है मेरा तन-मन आते ही
तकिये के सहारे बैठ मेरे बिस्तर पर
जला जाती है सपनो की शमा ....
और मैं रख देता हूँ धीरे से शमादान में
भविष्य के कुछ सुनहरी गुलाब
बरसात मुझे बनाती है उपजाऊ और मैं
रोप देता हूँ उसकी छाती में उम्मीदों के पौधे
कभी पतंग उडाता हूँ बारिश के संग ,और
कभी दोनों खेलते हैं डोर काटने का खेल ...
मूल - अनुभव तुलसी
अनुवाद - हरकीरत हीर
(६ )
गहरे नील तारे के चारो ओर ..
कल तक जो नहीं थी चिड़िया
थी कुछ और ही .....
आज सुबह भी पैदल चलकर
किया था उसने पुल को पार
अकस्मात् ही कुछ और से
वह बन गई थी चिड़िया
बड़ी अनहोनी सी बात थी
न पहले कभी सुनी न देखी
हमारे बीच कईयों ने देखा है उसे
और कइयों की है बातचीत भी ....
जिसकी चोंच से चोंच मिलाकर
कईयों ने चूमा है आकाश
उस चिड़िया के गहरे नील पंखो का
एक मैं भी हूँ प्रशंसक ....!!
मूल - अनुभव तुलसी
अनुवाद - हरकीरत हीर
हमारी शारदीय की माँ ... (असमिया कविता )
हमारी बेटी शारदीय का जन्म
अस्पताल के एक गलियारे में हुआ था
क्योंकि उस दिन अस्पताल की
सेवाएं बंद थीं ...
शारदीय की माँ के लिए
जमीन पर ही बिछा दिया गया था
प्रसूति बिस्तर
वहीँ से किया शारदीय ने प्रथम बार
भूमि रूपी माँ को
साष्टांग प्रणाम ...
हमारी बेटी शारदीय का जन्म
हुआ था मेंड़ पर
जहां से बहा ले गया था
मदमाता पानी शारदीय की माँ को
लगा दिया गया था फिर पानी में ही
शारदीय की माँ का प्रसूति बिस्तर
पानी के बिस्तर से ही शारदीय ने किया था
पानी रूपी पिता को
साष्टांग प्रणाम ....
एक दिन
प्रात: भ्रमण के समय
कचरे के ढेर से उठा लाई थी माँ
हमारी शारदीय को ...
हमारी बेटी शारदीय के जन्म के दिन
हँस पड़े थे लाल-नीली हँसी में
कुमुद के फूल ...
हमारी बेटी शारदीय के जन्म के दिन
हर सिंगार रो पड़ा था फूट-फूट कर
क्यों रोया कोई नहीं जानता ....
हमारी बेटी शारदीय की
दो आँखें हैं जैसे शबनम की दो बूंदें
देव और असुर दोनों तारे वहीँ
स्नान किया करते हैं ...
जन्म के दिन ही माँ ने
खिलाई थी शारदीय को शपथ
रणभूमि में जब धर ही चुकी हो पैर
साँसे रहने तक लड़ना ..
शारदीय के ....
स्वप्न धारण करने के दिन से लेकर
माँ का था अपविश्वास के विरुद्ध युद्ध
एसिड ,किरासिन ,दांत,नाख़ून के विरुद्ध युद्ध
बार -बार दु:शासन द्वारा
नग्न किये जाने के विरुद्ध युद्ध
कभी इस युद्ध से कभी उस युद्ध से
लड़ते-लड़ते शारदीय की माँ के
दोनों हाथों की जगह उग आये थे
दस - दस हाथ .....
मूल - अनुभव तुलसी
अनुवाद - हरकीरत हीर
(२)
रोग ग्रस्त ...(असमिया कविता )
एक ऐसा शुष्क सा परिवेश फैला दिया है
कि पत्नी की आँखों का जल सूख गया है
एक ऐसी आग निशदिन जला रखी है
कि उसके के चेहरे की हँसी जल गई है
एक ऐसा मानसिक दबाव बना रखा है
कि पत्नी की रक्त-प्रवाह गति थम सी गई है
उसे ऐसी कड़वाहट के बाद कड़वाहट दी है
कि उसे मीठे और नमकीन से हो गई है अरुचि
मुसलसल शब्दों से मेरा विस्फोटन जारी है
अब उसकी वाकशक्ति भी खत्म हो गई है
अति आधुनिक माइक्रोवेब में उसे यूँ तला है
कि अब वह जरा सी चोट से ही बिखर जाती है
विलायती बनियों के कड़कड़ाते डालरों की तरह
पत्नी बदलने का यही उचित समय है ....!!
मूल - अनुभव तुलसी
अनुवाद - हरकीरत हीर
(३)
पानी ....
पानी जा घुसा है
उस मनुष्य के घर
वो मनुष्य
बिलकुल अकेला है
घर के चारो ओर
पड़ी वस्तुओं में
लगे उसके स्पर्श को
छूना चाहता है पानी
गर्भ शून्य हवा
बेड़े की दरारों से
देखती है पानी को
पानी आने की खबर सुन
जमीनी बिस्तर पर लेटा
फर्श भी सर उठाता है
अतिथि पानी को
अकेला मनुष्य करता है
स्नेह से स्वागत
पानी को आती है
उसकी शारीरिक गंध
दोनों गंधों के
मिलन के पश्चात
वह निकल पड़ता है
अपने काम के लिए
उसके बिना उस घर में
पानी भी नहीं ठहरता
ज्यादा देर
आ गए पानी से
एक बार मिल चुकने के बाद
वह नहीं भूलता जल्द उसे
सूख जाने के बाद भी
पानी की स्मृति में
रहता है वह
जब तक कि
जीवन में पानी है ...!!
मूल - अनुभव तुलसी
अनुवाद - हरकीरत हीर
(४)
मोहतरमा की आँखें ....
घी के दीये की सी दो गहरी नीली आँखें
आम्र मंजरी सी वो तुम्हारी ही हैं मुदर्रिस मोहतरमा
ख़त के गर्भ से मुड़े -तुड़े अक्षरों से
झड़े हुए सूखे फूलों की पंखुड़ियों के साथ
अमलतास के पत्तों की तरह
इस छोर से उस छोर तक खिंची
काजल की स्याह असंभव रेखा
समेट लेता हूँ हौले से
भीग जाती हैं अंगुलियाँ छूते ही
पर घर में पहले ही हैं एक जोड़ी आँखें
फिर इन दो आँखों की और कैसे लूँ मुसीबत ...?
कहाँ रखूँ छुपाकर ...कहाँ रखूँ ....?
तकिये के नीचे रख नहीं सकता
रखते ही भिगो देगीं ये बिस्तर
फेंक दो इन्हें , कौन देखता है , दूर फेंक दो
बात- बात में सिसकना
मानो आँखें न होकर कोई मोल ली आफत हो
फिर भी मैं चाहता हूँ वो यहीं रहे
मुसीबत के बीच भी मेरे साथ
साथ न रहने पर भी गर तुम्हारा बोझिल ह्रदय
हो जाता है हल्का ....!!
मूल - अनुभव तुलसी
अनुवाद - हरकीरत हीर
(५)
बरसात ....
बरसात में भी है कुछ काँटों जैसी चुभन
जो बेंध जाती है मेरा तन-मन आते ही
तकिये के सहारे बैठ मेरे बिस्तर पर
जला जाती है सपनो की शमा ....
और मैं रख देता हूँ धीरे से शमादान में
भविष्य के कुछ सुनहरी गुलाब
बरसात मुझे बनाती है उपजाऊ और मैं
रोप देता हूँ उसकी छाती में उम्मीदों के पौधे
कभी पतंग उडाता हूँ बारिश के संग ,और
कभी दोनों खेलते हैं डोर काटने का खेल ...
मूल - अनुभव तुलसी
अनुवाद - हरकीरत हीर
(६ )
गहरे नील तारे के चारो ओर ..
कल तक जो नहीं थी चिड़िया
थी कुछ और ही .....
आज सुबह भी पैदल चलकर
किया था उसने पुल को पार
अकस्मात् ही कुछ और से
वह बन गई थी चिड़िया
बड़ी अनहोनी सी बात थी
न पहले कभी सुनी न देखी
हमारे बीच कईयों ने देखा है उसे
और कइयों की है बातचीत भी ....
जिसकी चोंच से चोंच मिलाकर
कईयों ने चूमा है आकाश
उस चिड़िया के गहरे नील पंखो का
एक मैं भी हूँ प्रशंसक ....!!
मूल - अनुभव तुलसी
अनुवाद - हरकीरत हीर
waaaaaah bhot khub
ReplyDeleteor 2-4 to masha aallah bhot khub hai waaaaaaaaah
गजब की कवितायें .. काफी गहराई तक असर करती हुई......
ReplyDeleteThanks for sharing ! Send Birthday Gifts for Husband Online
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