भागू (उपन्यास )
लेखक - परगट सिंह सतौज ( अनुवाद - हरकीरत हीर )
संक्षिप्त परिचय -
समर्पित
जिसकी महान लेखनी पढ़ कर
मैंने साहित्य की पगडण्डी पर चलना सीखा
उस महान लेखक
जसवंत सिंह कंवल
को
(1)
चाहे बरसात हो चुकी थी , फिर भी गर्मी से बुरा हाल था। हवा जैसे रूठ गई थी। दरख़्तों का पत्ता तक नहीं हिल रहा था। आज सारा दिन बाड़े में खड़े पशु हाथ -हाथ भर लम्बी जीभ निकाले हाँफते रहे थे। बूढ़े -ठेरे गर्मी से डरते सथ्थ (वह स्थान जहां लोग अक्सर एकजुट होकर बैठते हैं ) के बीच फैले बरगद के नीचे जा बैठे। कुछ ताश के शौकीन घेरे बना पत्ते फेंकने लग पड़े और कुछ रात भर मच्छर के सताये उनकी ओर करवट बदल कर कंधे पर रखे गमछों का तकिया बना गहरी नींद सो गए। भैसों को सन्नी (चारा) कर भगवान भी इस मण्डली के बीच जा शामिल हुआ। अब लगभग पांच बजे भैसों को चारा डालने के ख़्याल से मुड़ परत आया था। आते ही उसने मशीन के आगे से मकई का कतरा हुआ चारा टोकरी में भर लिया। दोनों बाहों से उसे उठाकर कमर पर टिका लिया और फिर भैंसों के चारागाह में जा फेंका । दोनों भैंसें एक दुसरे से बढ़कर जल्दी - जल्दी कच्ची मकई को मुंह मारने लगीं। भगवान ने '' ऐ मेरियो सालियों '' कहकर दोनों के थोबड़े पर एक -एक मुक्का जड़ दिया . भैंसों ने चारे से मुंह हटा लिया , उसने जल्दी से चारागाह के बीच की सन्नी में हाथ मार दिया। माँ से आँख बचा कर बरामदे में खड़ा अध पुराना साइकिल उठाया , हाथ से दबाकर दोनों टायरों की हवा जाँची और पैडल मार चिमियाँ की ओर जाती सड़क पकड़ ली …………………………………… . ।
गुरुद्वारा पार होते ही टोभा आ गया। टोभे के ठीक सामने श्मशान में स्थित बड़ा बुजुर्ग पीपल का पेड़ दिखाई देने लग पड़ा। पीपल से कुछ हट कर एक पुराना जंड का पेड़ भी था। यह जंड तो पता नहीं कितनी पीढ़ियों का इतिहास अपनी टहनियों में छुपाए इसी तरह खड़ा था। कोई गिनती नहीं कितने ही सूरज इसने चढ़ते- छिपते देखे। कितने ही मचते श्मशानों की लाटें आसमान में चढती देखीं और अभी पता नहीं कितनी और चिताओं की आग सेकनी बाकी थी। भगवान ने साईकिल सड़क से उतार कर नई पिंडी (छोटा गाँव ) की ओर मुड़ते कच्चे पाहे पर डाल ली। सड़क से पाहे पर उतरते ही सामने नए पिंड के घर नज़र आते हैं। इस पिंड में बसने वाले कोई अजनबी नहीं , बल्कि सांतपुर से आकर यहाँ बसे थे क्योंकि पिंड के दक्षिण में बहता नाला बरसातों के मौसम में कई बार उछल कर पिंड में आ जाता। निचले घर ज्यादा पानी की मार झेल नहीं पाते और ढह जाते। कईयों ने पानी के क्रोध से डरकर पिंड की चढती तरफ ऊंची जगह पर घर डाल लिए. यह जगह टिब्बे की जमीन होने के कारण सस्ती मिल गई थी और कुछ बेकार पड़ी सरकारी जमीन पर कब्जा कर गोबर - उपले की जगह बना ली. इस तरह पानी की मार ने एक नए गाँव का निर्माण कर दिया था।
पाहे में साइकिल रुक -रुक जा रही थी। भगवान सीट से उठकर रिक्शे की तरह झूल - झूल कर पैडल मारने लगा। उसकी चढ़ी हुई साँस धौकनी की तरह चलने लगी। जब साइकिल रेत पार कर पक्की सड़क जा चढ़ा , वह उलटी हथेली से पड़पडियों से पसीना पोंछता सीट पर जा बैठा। सामने ही करमी का घर दिखा। किसी प्यार भरे डर से उसके दिल की धडकन तेज हो गई। पगली मुझे देख कर ऐसे मुंहफुला लेगी ! बोलेगी , '' इतने दिन बाद आया ओये !'' मैं भी कई दिनों से नहीं गया था. भला मैं क्या बहाना बनाऊंगा? चलो कोई न कोई तो बहाना ढूंढना ही पड़ेगा। वह करमी के सात आसमानी पहुंचे गुस्से को ठंडा करने की मन ही मन किसी बहाने को तरतीब देता बाहर से पार हो अंदर आ गया।
सामने ओटे के पास बैठी करमी बर्तन माँज रही थी. उसके पास ही बैठी कोई और लड़की माँजे बर्तनों को बट्टठल में धो -धोकर टोकरे में रख रही थी. एक बार तो देख कर भगवान अन्दर तक हिल गया. उसने होश गुम करती खूबसूरती पहली बार देखी थी. जैसे उसकी आँखों को यकीन न आ रहा हो , '' उफ्फ ! इतनी सुंदर लड़की पहले तो कभी नहीं देखी। किसी रिश्तेदारी में से न हो …!'' वह इसी उलझन में अनुमान लगाता करमी के पास जा खड़ा हुआ .
'' करमी ! '' भगवान ने बुलाया …।
करमी ने अपने गोरे माथे पर सिलवटें डालते हुए नीचे का होंठ थोड़ा आगे निकाला और दूसरी ओर मुंह घुमा लिया पर उसका मन अन्दर से भगवान से बातें करने को पल - पल तरस रहा था .
'' करमी पहले सुन तो ले , फिर चाहे जो मर्जी कह लेना .'' कहता हुआ भगवान उसके सामने बारिश में भीगी गाय की तरह इकठ्ठा सा होकर खड़ा हो गया.
'' हाँ , बता फिर !'' करमी के माथे की सिलवटें कुछ कम हुईं।
'' मुझे मेरे घर वालों ने बुआ के पास भेज दिया था जमीन जोतने ! '' भगवान ने रस्ते में बनाया बहाना करमी के आगे परोस दिया। करमी ने इसे सच मान सुलह कर ली.
'' अच्छा फिर सुबह भी जरुर आना . '' उसने चेहरे के हाव- भाव पूरी तरह बदले नहीं थे अभी क्योंकि उसे पता था कि अगर वह इतनी जल्दी उसकी बात से सहमत हो गई , फिर उसने अगले दिन भी ऐसे ही करना है । .
'' अच्छा मेरी माँ आ जाऊंगा। '' भगवान ने दोनों हाथ करमी के आगे जोड़ दिए.
पास बैठी लड़की ने भगवान और करमी की नोक - झोंक सुन होंठों में ही धीमा - धीमा मुस्कुराते हुए नखरे के साथ भगवान की ओर देखा।
लड़की की आसमान से परिंदे उतारती नज़र ने भगवान के धड़कते दिल में प्यार की ज्वाला जला दी. उसके पैर थिरक गए.
'' अरी कोई काम- धंधा भी करोगी या यूँ ही बैठी गप्पें लड़ाती रहोगी !''
करमी की माँ के बोल सुन भगवान को होश आई। उसने मेले में रुलती गाय की तरह डोर - भोर हुए खड़े ने आस - पास नज़र मारी। करमी की माँ बट्टठल बाहर के कोल के पास रख कर , मुंह में दाने से भुनती नलके पर हाथ धोने लग पड़ी।
'' बेबे मुश्किल से तो अपना भागू आया , तूने यूँ ही आकर ' गाजरों में गधा ' ला खड़ा कर दिया '' करमी ने हाथ बट्टठल में धोकर चुन्नी के लड़ से पोंछ लिए।
करमी की माँ सुरजीत को इन बहन- भाइयों के गहरे प्यार का पता था. आज ही नहीं, जब भी भागू आता , करमी सब काम धंधा छोड़ कर उसके साथ जा बैठती । फिर पता नहीं दोनों कौन सी कथाएँ छेड़ बैठते, न वो कभी खत्म होतीं न उनका कोई अंत दिखता। बातें करते- करते कभी वे बारिश में धुले फूल से खिल जाते तो कभी संजीदा हो जाते इसलिए वे और बहस करने की बजाय नलके पर हाथ धो कमरे में जा घुसी।
'' बैठ जा भागू क्यों भागने जैसी मुद्रा में खड़े हो. '' करमी ने चारपाई की ओर इशारा किया।
'' चौड़ी होकर हमें तो रोज़ बुला लेती हो , जिस दिन व्याही गई , हमारे घर एक दिन भी नहीं घुसना तूने '' भगवान चारपाई पर बैठी लड़की की बगल में बैठ गया.
'' तुझे भी देख लूँगी बड़े नाडू खाँ को , जब आ गई न कोई झबरिटी सी फिर पूछूंगी , उसके बिना तो खांसेगा भी नहीं। पीछे - पीछे दुम हिलाता घूमता फिरेगा सारा दिन । '' करमी ने भगवान की बात का वकीलों की तरह तुरंत जवाब दिया।
'' मैं तो आगे लगा कर रखूंगा आगे …. तीर की तरह सीधी करकर रखूंगा '' भगवान ने चारपाई पर बैठे ही सीना उभार कर ऊँगली हवा में तीर की तरह लहराई। साथ बैठी लड़की मुंह पर हाथ रख हँस पड़ी.
'' चल आने दे वक़्त , देख लूँगी तुझे भी. '' करमी भगवान के कंधे पर हाथ मारती उसके बराबर बैठ गई. तीनों के भार से चारपाई की घुन खाई बाही चर … र …. र ' करती टूट गई. करमी और उसकी सहेली बीच में बैठे भगवान के ऊपर जा गिरीं। लड़की का ऊपरी हिस्सा भगवान की चौड़ी छाती को छू गया. यह छुअन दोनों जवान शरीरों में इक कंपकपी सी फैला गई. लड़की बिजली के झटके सी खड़ी हो गई. अनजानी शर्म से उसका चेहरा सुर्ख फूल सा लाल हो गया.
'' अरी चढा दिया चाँद … ? '' बाही टूटने की आवाज़ सुनकर सुरजीत गोली की गति से बाहर आई. भगवान और लड़की ' चाँद चढा देने ' की बात पर एक - दुसरे की ओर देख मुस्कुरा पड़े.
'' इसने तोड़ी बाजे ने '' करमी ने शरारत से भगवान की ओर इशारा किया।
''लो देख लो लोगो , वैसे ही भले आदमियों पर इतने बड़े -बड़े कलंक ! हम तो आराम से बैठे थे ताई , यही बाद में आकर बैठी थी '' फिर भगवान ने धीमे सुर में बोलते हुए करमी की ओर मुक्का ताना , '' खीर में कोकडू।''
किरना आ चलें। '' बाहर साइकिल पर खड़े लगभग चालीस साल के आदमी ने लड़की को आवाज़ मारी।
'' अच्छा करमी। '' किरना लिफाफा लेकर चल पड़ी.
'' अरी बैठ जाती और थोड़ा घर में क्या सूत कातना है. '' करमी अभी उसे जाने नहीं देना चाहती थी पर कुछ बोले बिना ही किरना उस आदमी के साथ बैठकर चली गई.
'' भागू आ जा चूल्हे के पास ही बैठ जा , मैं रोटी उतारती हूँ , तुम रोटी खा लेना और कुछ सुनाना भी नई ताज़ी। '' करमी भगवान की बाँह पकड़ के जोर जबरदस्ती चौके के पास ले गई और पास पडा पीढ़ा अपने गोर पाँव से सरका कर उसके आगे कर दिया। भगवान पीढ़े पर बैठ गया। करमी ओटे पर पड़ी परात उठाकर अन्दर आटा लेने चली गई. ।
किरना चली गई थी पर भगवान की आँखों के सामने वह खूबसूरत चेहरा अभी तक घूम रहा था. .' किरना !' यह शब्द उसके होंठों से अपने आप निकल गया और उसने किसी शर्मीली लड़की की तरह मुस्कुरा कर निगाह नीची कर ली. वह इस सुंदर सूरत के बारे जानने के लिए अपने अन्दर ही अन्दर धागे की तरह उलझा पड़ा था जिसका उसे अभी तक कोई सिरा नहीं मिला था।
'' यह लड़की कौन थी ?'' उसने करमी को आटा लेकर आते देख पूछा।
''कौन ? यह किरना …. ?''
'' हाँ ''
'' यह तो भंगुओं की लड़की है , जो तल्लोवाल गाँव जाते वक़्त रस्ते में घर आता है.'' कहते हुए वह आटा गूंधने लगी।
'' अच्छा ! अच्छा ! भगवान ने पूरी समझ से सर हिलाया। उसने इस लड़की के हुस्न के चर्चे पिंड के हर गली मोड़ पर सुने थे पर उसने उसे देखा आज था पहली बार . पिंड का हर लड़का इस ताजी महक को अपना बनाने के लिए ललायित था। उसका ताजे खिले गुलाब सा गुलाबी चेहरा , हिरनी सीचमकती आँखें , पीठ पर काले नाग सी लहराती लम्बी चोटी हर एक देखने वाले को डस लेती। उसके सुर्ख होंठों से हर जवान दिल प्यार के बोल सुनने को बेताब रहता . जब वह मुर्गाबी की तरह चलती हुई लड़कों की मंडली के पास गुजरती तो लड़के दिल पर हाथ रखकर ठंडी आहें भरते।
''भागू ! ओये भागू !! '' करमी ने पहले धीमे से फिर जोर से आवाज़ मारकर कहा , कौन सी परियों से देश में गुम गए … ?''
'' हूँ … ! नहीं … ! '' भगवान इस तरह तबका , जैसे किसी ने झकझोर कर उठा दिया हो, '' यह पहले तो कभी नहीं देखी , कहाँ रहती थी … ?''
'' हाँ , अपनी बुआ के पास रहती थी , बीस - पच्चीस दिन हुए आई को । '' करमी ने रोटी बेल कर तवे पर डाल दी ।
'' यह इसका क्या लगता है जो इसे लेकर गया … ? ''
'' तुम नहीं जानते इसको ? '' करमी ने हैरानी भरी सवाली नज़रें उसके चेहरे पर गड़ा दीं ।
'' जानता तो हूँ पर यह नहीं जानता कि यह इसका लगता क्या है । '' भगवान ऊँगली से धरती पर लकीरें खींचने लगा ।
'' यह इसका बाप है बाजे । ख़ास बन्दों का तो पता रखा कर …. । '' करमी की खोजी आँखें भगवान के दिल में किरना प्रति पल रहे प्यार को खुरच - खुरच कर देख रहीं थीं ।
'' करमी बहन एक बात बोलूं , मानेगी ? '' कहते हुए भगवान ने नज़र नीची कर ली । उसका दिल जोर -जोर से धडका ।
'' करमी बहन ! '' करमी ने भगवान का मुंह चिढ़ा दिया , '' जरुर कोई मतलब होगा जो करमी बहन, करमी बहन कर रहे हो … ? '' चाहे करमी को पता था कि वह क्या कहना चाहता है पर वह उसके मुंह से सुन स्वाद लेना चाहती थी ।
' हाँ बता मानूँगी । '' करमी रोटी उतार बैठी थी ।
' करमी!'' उसने खंगुरा मारकर गला तर किया और फिर धड़कते दिल को सँभालते हुए हिम्मत कर बोला , '' यह …क…किरना …. !'' भगवान के आधे शब्द मुंह में ही दब कर रह गए। उसका दिल फिर फड़क -फड़क बजने लगा ।
'' हाँ …. हाँ… मुझे पता है, मैं भी कहूँ आज मुझ से इतने मीठे -प्यारे क्यों हुए जाते हो। मुझे सब पता चल गया तुम दोनों की चोरी का । वह भी कैसे तुम्हारी ओर आँखें फाड़ - फाड़ कर देख रही थी । ''
'' ही … ही …. !'' भगवान ने हँसते हुए निगाह नीची कर ली।
'' अच्छा यूँ करना बाजे , अपना थोबड़ा अच्छी तरह धोकर आ जाना मैं उसे बुला लाऊँगी। '' करमी उसे छेड़कर भागने को तैयार हो गई ।
भगवान ने झपट्टा मार कर करमी की चोटी जा पकड़ी , '' अब बोल क्या बोल रही थी । ''
आ … ई … ई बेबे … ए … . '' करमी ने लम्बी चीख के साथ बेबे को पुकारा ।
'' अरी क्या हो गया तुम लोगों को , क्या झाटम-झट्टे हुए पड़े हो। '' सुरजीत बोलती हुई अन्दर से बाहर आई ।
'' बेबे ये भागू सा नहीं हटता । '' करमी ने नकली गुस्सा दिखलाया ।
'' मुझ से नहीं तुम लोगों से निपटा जाता । तुम लोगों का तो रोज का यही काम है ।'' कहती हुई वह फिर अन्दर चली गई ।
'' छोड़ मेरी चोटी।'' करमी ने भगवान के डौले पे धीमे से मुक्की जमाई।
'' पहले मेरा काम । ''
'' जा बाजे कर दूंगी वह भी । ''
'' अच्छा चल ले , तू भी क्या याद रखेगी । '' भगवान ने करमी की चोटी छोड़ दी , अच्छा करमी मैं जाता हूँ । '' भगवान ने समय का ख्याल करते हुए करमी से इजाज़त मांगी ।
'' भागू बस आधा घंटा और बैठ जा । ''
ना भाई जाकर पशुओं की भी देख -भाल करनी है । अभी दूध भी दोहना है । '' भगवान ने अपना काले रंग का अध पुराना साइकिल उठा लिया ।
'' अच्छा फिर कल जरुर आना । '' करमी ने ' जाते चोर की पगड़ी ही सही ' का दाव खेला ।
'' अच्छा मेरी माँ ।'' भगवान मुस्कुराते हुए साइकिल की काठी पर बैठ गया ।
' ओ भागू और वोटें … !'' करमी ने इशारे के साथ ऊँगली हवा में हिला दी और अगली बात वह समझ गया जानकर बीच में ही छोड़ दी ।
भगवान ने भी आगे से सहमती में हाथ खड़ा कर दिया । वह किसी नई ख़ुशी में आसमां में उड़ान लगा रहा था । उसके होंठों पर थिरकती मुस्कान किसी बेअंत ख़ुशी का इज़हार कर रही थी । गर्मियों का खुश्क वातावरण ख़ुशी में हँसता दिख रहा था। पाहे में बिछी रेत ने उसे पसीना -पसीना कर दिया था पर उसका ख़ुशी भरा मन अब इसकी परवाह कब करता , वह तो किसी अद्भुत शक्ति के बस में कैद साइकिल को सरपट दौडाई जा रहा था। शाम के झुरमुटे में भगवान के पैर पैडल पर मशीन की तरह चल रहे थे।
२ .
'' साहब जी '' पास खड़े सिपाही की खत्म होती बोतलें देख लारें गिरने लगीं ।
'' लो … लो … , अपने पास कौन सी कमी है । '' सरपंच ने बोतल उठा सिपाही को पकड़ा दी ।
''' ही … ही … ही … कमी किस बात की जी । '' सिपाही दांत निकालता हुआ बोतल की बची -खुची सारी उलट गया । मेज पर खाली बोतल और गिलास रखकर अपनी खुश्क मूंछों के सख्त बालों पर हाथ फेर लिया ।
'' टल्ली … ओये टल्ली । '' सरपंच खाली बोतल देख कर अमरीकी बैल की तरह रंभाने लगा ।
'' क्या है स … सरपंच सा … ह … ब … । '' टल्ली लड़खड़ाता हुआ बार में आ खड़ा हुआ ।
'' ऐसे कर ढोली से एक और भर कर ले आ । '' सरपंच ने खाली बोतल टल्ली को पकड़ा दी ।
'' न … न … ओ प्रोब्लम , डी …दि …. दिस … इज … प … प्लेन ऑफ़ दा ग्राउंड … इन …. द … मोर्निंग … व … अ … क … । '' टल्ली की टूटी - फूटी अंग्रेजी सुन सारे हँस पड़े ।
'' तू ले आ यार अगर लानी है तो । '' थानेदार अपना ठंडा सा रोब डाल गया । उसके कन्धों पर लगे स्टार टल्ली को घूर - घूर कर देख रहे थे ।
'' नो … दिया … दियर … इ … इज … वै … वैरी …। '' टल्ली बोलता हुआ कमरे से बाहर चला गया ।
'' सरपंच बन्दे बड़े कमाल रखे हैं । '' थानेदार ने हड्डी का टुकड़ा चूस कर ट्रे में रख दिया और मसाले से लिबड़ी हुई ऊँगलियाँ दरवाजे जैसे मुंह में डालकर चाटने लगा ।
'' बन्दे तो जी सभी काम वाले हैं ।'' सरपंच ने टेढ़ी आँख से लड़कों की और देखा। अपनी तारीफ होती देख कर लड़कों के हाथों ने और तेजी पकड़ ली ।
'' सरपंच बदाणे का प्रोग्राम कहता था करने को ।'' थानेदार के बदाणे बारे ज़िक्र करने से वैष्णू लड़कों के कान खड़े हो गए ।
'' हाँ … हाँ … आज रात को तैयार करेंगे , तड़के बाँट देंगे । '' सरपंच तसल्ली दे गया ।
'' दिस इज वै … वैरी … म … मच !'' टल्ली ने रुड़ी मार्का मेज पर ला रखी । थानेदार के साथ आये दोनों सिपाही बोतल की तरफ भूखी नज़रों से देखने लगे ।
''लो थानेदार साहब लगाओ फिर । '' सरपंच ने बोतल और गिलास थानेदार की ओर सरका दी ।
'' वैसे तो सरपंच पहले तुम्हारा हक़ था चक्की के फेर की तरह । '' थानेदार ने चक्की के ह्थड़े की तरह ऊंगली घुमाई ।
जब आपने कह ही दिया तो … । '' फिर वो होंठो से लगे गिलास को एक ही डीक में पी गया ।
'' इसकी माँ की , कौन मुख्त्यार - सुख्त्यार । '' बाहर टेक की पी हुई रंग दिखाने लग पड़ी थी ।
'' चढ़ गई टेक की तो सुई लाल पर । '' सरपंच अपने विरोधी को दी हुई गाली सुनकर हँस पड़ा ।
'' अच्छा सरपंच अब हम चलते हैं । '' लड़के काम से निवृत हो चुके थे ।
'' अच्छा फिर सवेरे जरा जल्दी आ जाना , बदाना( मिठाई ) हम लोगों ने ही बांटना है । '' सरपंच ने इज़ाज़त देने के साथ ही यह हुक्म भी दे दिया ।
'' जब कहेगा , तभी ।'' लड़के सरपंच को तसल्ली दे गए .
'' मुझे टक्कर आकर,चाहता है सरपंची , सर … सरपंची तो ह … हमने लेनी है… सी ….सीने के जोर से . इसकी माँ की . '' टेक का इंजन गर्मी पकड़ गया था .
अन्धेरा होने तक सरपंच का आँगन शराब के पियक्कड़ों से शादी के घर जैसा भर गया था । सारे आँगन में चींटियों की तरह कुर्बल - कुर्बल होने लग पड़ी थी . कुछ मुफ्त के पियक्कड़ पी -पी कर बेसुरत हुए पड़े थे । सारे लड़के अपने -अपने घरों को चल पड़े . भगवान अपने घर जाने के लिए बाहर की फिरनी पड़ गया । आसमान में मद्धम -मद्धम से तारे निकल आये थे। चाँदनी मिले अँधेरे से गलियाँ भरी हुई थीं । लोग कोठों पर पड़ी चारपाइयों पर ऊंघ रहे थे । किसी-किसी कोठे से दबे बोल में घुसर-मुसर सुनाई दे रही थी । टेक की गालियाँ अभी भी चांदनी रात में दूर तक सुनाई दे रही थी ।
3
गुरदीप सरपंच पिछले दो दिनों के बीच ही मुख्त्यार के ऊपर पानी की तरह फिर गया । शराब की ओर हाथ और खुला कर दिया । बदाना पकाकर कई गाँव में बाँट दिया। कई औरतें बदाने की लालच में मुख्यतार से टूट कर गुरदीप से आ जुडी । वे एक दुसरे के कान में कहतीं , '' लो री जैसे मर्दों को इतनी-इतनी मंहगी दारु पिलाते हैं औरतों के लिए भी तो कुछ होना चाहिए न । क्या हमारी वोटें नहीं होतीं … ? ''
'' ले बहन , ये तो गुरदीप ने बढ़िया किया । '' दूसरी पहली की बात को पकड़ते हुए बोली ।
दोनों पार्टियों के लोग वोटें मांगने के लिए आधी - आधी रात तक चप्पलें घिसाते गलियों में घूमते रहते । आखिर वोटों का दिन भी आ ही गया । जो स्थिति वोटों से पांच सात दिन पहले थी , वह अब पिछले दो दिनों में हवा के झोंखे की तरह इक तरफ से आकर दूसरी तरफ बढ़ गई थी । गुरदीप जो कि पहले डावाँडोल दखाई दे रहा था अब मुख्त्यार के बराबर आ खड़ा हुआ । क्लब के लड़कों ने टैंट गाड़ कर काम मुकम्मल कर लिया ।
'' ये लो भागू वोटर सूचियाँ । '' सरपंच ने स्कूटर की डिक्की में से वोटर सूचियाँ निकाल कर पकड़ा दीं ।
''देख सरपंच टैंट ठीक है … ? '' क्लब के लड़के अपने किये काम को सरपंच की अच्छी निगाह में चढाना चाहते थे ।
'' हाँ … हाँ … बहुत बढ़िया , अगर किसी और चीज की जरुरत हो तो बता देना । '' सरपंच किसी भी पक्ष से किसी चीज की कमी नहीं रहने देना चाहता था .
'' चाय जरुर भेज दिया करना करड़ी सी । '' राजा अपनी चाय पीने की आदत सरपंच के आगे खोल गया ।
'' वह मैंने कहा है टल्ली को , जब भी जरुरत हो कह कर मंगवा लेना । '' सरपंच सारे काम अच्छे अगुवाई की तरह संभाल रहा था .
'' तेरी जान नूं की लड्डूआँ दा तोड़ा सालिये … '' गुनगुनाते हुई टल्ली ने चाय की केतली तख़्त पोश पर रख दी । जैसे ' माँ जन्मी नहीं पुत्र कोठे पे ' कहावत की तरह टल्ली कहने से पहले ही चाय बना लाया था ।
ओये वाह… ओये टल्ली सिंह '' राजे ने चाय की केतली देखकर टल्ली की पीठ थपथपाई ।
टल्ली ने चाय डाल सबको एक -एक गिलास पकड़ा दिया । सभी चाय पी कर अपने - अपने काम में जुट गए । टल्ली खाली केतली और चाय के जूठे गिलास लेकर चला गया । धीरे - धीरे वोटें डालने का काम जोर पकड़ने लगा । पोलिंग पर तिल धरने को जगह नहीं थी । वोटें डालने वालों की जैसे बाढ़ सी आ गई थी । हरेक पार्टी के आदमी अपने - अपने उम्मीदवारों के निशान लेकर सबके सामने कर देते । क्लब के कुछ लड़के गुरदीप और चंदन के चुनाव निशान उठाये हर इक को दिखा रहे थे और कुछ पोलिंग बूथ पर वोट पर्चियां निकालने में उलझे हुए थे।
'' भागु ! वह देख करमी और वह लड़की । '' राजे ने पर्ची निकालते भागु के कान में आकर कहा।
'' कहाँ … ?'' भगवान का चेहरा फूल सा खिल गया । वह कुर्सी से बंदर की तरह टपुसी मार खड़ा हो गया ।
'' वह … देख पीपल के नीचे । '' राजे ने बड़े पीपल की ओर इशारा किया । दोनों गहरे रंगों के सूटों में सजी पीपल के नीचे खड़ी आसमान से उतरी परियाँ सी दिख रही थीं । भगवान देख ख़ुशी में उछल पड़ा । भगवान क्या जो भी इनकी ओर देखता , सांप की तरह कील जाता । कितने ही लड़कों की नज़रें इन दोनों पर टिकी हुई थीं ।
'' क्यों करमी कैसे आना हुआ … ?'' भगवान के पास आते ही आस -पास के लड़के पीछे सरक गए थे ।
'' बस ऐसे ही वीर जी के दर्शनों को । ''
'' वोट डाल आये या रहती हैं अभी … ? '' भागू ने साथ खड़ी किरना को भी साथ जोड़ लिया ।
'' अभी कहाँ , गुरजीत वीर जी वोट पर्चियां ढूंढ कर ला रहे हैं , फिर जाते हैं डालने । भीड़ में जल्दी मिलती भी नहीं । '' करमी पोलिंग के पास जुडी भीड़ को देख परेशान थी ।
'' वोटें किसे डालोगी … ? '' भागु बातों के बहाने से किरना के खिले चेहरे को जी भर भर देख लेना चाहता था ।
'' मैं तो वीर जी सरपंची की गुरदीप को और मैम्बरी की चाचे चन्नन को डालूंगी , बाकी तू इसे पूछ ले । '' करमी ने पास खड़ी किरना की ओर इशारा किया । वह दोनों को इक - दूसरे से खोल देना चाहती थी ।
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लेखक - परगट सिंह सतौज ( अनुवाद - हरकीरत हीर )
संक्षिप्त परिचय -
नाम- परगट सिंह सतौज
जन्म- १९८१ , संगरूर , पंजाब
शिक्षा - स्नातकोत्तर
कृतियाँ - तेरा पिंड ( काव्य संग्रह ), भागू (उपन्यास ) , तीवीयाँ (उपन्यास )
सम्मान - , कर्नल नारायण सिंह भट्टल कहानी सम्मान , नंगे हर्फ़ साहित्य
पुरस्कार , प्रकाश कौर सोढ़ी कहानी पुरस्कार, साहित्य अकादमी युवा पुरस्कार
सम्प्रति - शिक्षक
संपर्क -गाँव - सतौज , - धरमगढ़ , जिला- संगरूर- 148028 (पंजाब)
मोब - 09417241787, 09592274200
जिसकी महान लेखनी पढ़ कर
मैंने साहित्य की पगडण्डी पर चलना सीखा
उस महान लेखक
जसवंत सिंह कंवल
को
(1)
चाहे बरसात हो चुकी थी , फिर भी गर्मी से बुरा हाल था। हवा जैसे रूठ गई थी। दरख़्तों का पत्ता तक नहीं हिल रहा था। आज सारा दिन बाड़े में खड़े पशु हाथ -हाथ भर लम्बी जीभ निकाले हाँफते रहे थे। बूढ़े -ठेरे गर्मी से डरते सथ्थ (वह स्थान जहां लोग अक्सर एकजुट होकर बैठते हैं ) के बीच फैले बरगद के नीचे जा बैठे। कुछ ताश के शौकीन घेरे बना पत्ते फेंकने लग पड़े और कुछ रात भर मच्छर के सताये उनकी ओर करवट बदल कर कंधे पर रखे गमछों का तकिया बना गहरी नींद सो गए। भैसों को सन्नी (चारा) कर भगवान भी इस मण्डली के बीच जा शामिल हुआ। अब लगभग पांच बजे भैसों को चारा डालने के ख़्याल से मुड़ परत आया था। आते ही उसने मशीन के आगे से मकई का कतरा हुआ चारा टोकरी में भर लिया। दोनों बाहों से उसे उठाकर कमर पर टिका लिया और फिर भैंसों के चारागाह में जा फेंका । दोनों भैंसें एक दुसरे से बढ़कर जल्दी - जल्दी कच्ची मकई को मुंह मारने लगीं। भगवान ने '' ऐ मेरियो सालियों '' कहकर दोनों के थोबड़े पर एक -एक मुक्का जड़ दिया . भैंसों ने चारे से मुंह हटा लिया , उसने जल्दी से चारागाह के बीच की सन्नी में हाथ मार दिया। माँ से आँख बचा कर बरामदे में खड़ा अध पुराना साइकिल उठाया , हाथ से दबाकर दोनों टायरों की हवा जाँची और पैडल मार चिमियाँ की ओर जाती सड़क पकड़ ली …………………………………… . ।
गुरुद्वारा पार होते ही टोभा आ गया। टोभे के ठीक सामने श्मशान में स्थित बड़ा बुजुर्ग पीपल का पेड़ दिखाई देने लग पड़ा। पीपल से कुछ हट कर एक पुराना जंड का पेड़ भी था। यह जंड तो पता नहीं कितनी पीढ़ियों का इतिहास अपनी टहनियों में छुपाए इसी तरह खड़ा था। कोई गिनती नहीं कितने ही सूरज इसने चढ़ते- छिपते देखे। कितने ही मचते श्मशानों की लाटें आसमान में चढती देखीं और अभी पता नहीं कितनी और चिताओं की आग सेकनी बाकी थी। भगवान ने साईकिल सड़क से उतार कर नई पिंडी (छोटा गाँव ) की ओर मुड़ते कच्चे पाहे पर डाल ली। सड़क से पाहे पर उतरते ही सामने नए पिंड के घर नज़र आते हैं। इस पिंड में बसने वाले कोई अजनबी नहीं , बल्कि सांतपुर से आकर यहाँ बसे थे क्योंकि पिंड के दक्षिण में बहता नाला बरसातों के मौसम में कई बार उछल कर पिंड में आ जाता। निचले घर ज्यादा पानी की मार झेल नहीं पाते और ढह जाते। कईयों ने पानी के क्रोध से डरकर पिंड की चढती तरफ ऊंची जगह पर घर डाल लिए. यह जगह टिब्बे की जमीन होने के कारण सस्ती मिल गई थी और कुछ बेकार पड़ी सरकारी जमीन पर कब्जा कर गोबर - उपले की जगह बना ली. इस तरह पानी की मार ने एक नए गाँव का निर्माण कर दिया था।
पाहे में साइकिल रुक -रुक जा रही थी। भगवान सीट से उठकर रिक्शे की तरह झूल - झूल कर पैडल मारने लगा। उसकी चढ़ी हुई साँस धौकनी की तरह चलने लगी। जब साइकिल रेत पार कर पक्की सड़क जा चढ़ा , वह उलटी हथेली से पड़पडियों से पसीना पोंछता सीट पर जा बैठा। सामने ही करमी का घर दिखा। किसी प्यार भरे डर से उसके दिल की धडकन तेज हो गई। पगली मुझे देख कर ऐसे मुंहफुला लेगी ! बोलेगी , '' इतने दिन बाद आया ओये !'' मैं भी कई दिनों से नहीं गया था. भला मैं क्या बहाना बनाऊंगा? चलो कोई न कोई तो बहाना ढूंढना ही पड़ेगा। वह करमी के सात आसमानी पहुंचे गुस्से को ठंडा करने की मन ही मन किसी बहाने को तरतीब देता बाहर से पार हो अंदर आ गया।
सामने ओटे के पास बैठी करमी बर्तन माँज रही थी. उसके पास ही बैठी कोई और लड़की माँजे बर्तनों को बट्टठल में धो -धोकर टोकरे में रख रही थी. एक बार तो देख कर भगवान अन्दर तक हिल गया. उसने होश गुम करती खूबसूरती पहली बार देखी थी. जैसे उसकी आँखों को यकीन न आ रहा हो , '' उफ्फ ! इतनी सुंदर लड़की पहले तो कभी नहीं देखी। किसी रिश्तेदारी में से न हो …!'' वह इसी उलझन में अनुमान लगाता करमी के पास जा खड़ा हुआ .
'' करमी ! '' भगवान ने बुलाया …।
करमी ने अपने गोरे माथे पर सिलवटें डालते हुए नीचे का होंठ थोड़ा आगे निकाला और दूसरी ओर मुंह घुमा लिया पर उसका मन अन्दर से भगवान से बातें करने को पल - पल तरस रहा था .
'' करमी पहले सुन तो ले , फिर चाहे जो मर्जी कह लेना .'' कहता हुआ भगवान उसके सामने बारिश में भीगी गाय की तरह इकठ्ठा सा होकर खड़ा हो गया.
'' हाँ , बता फिर !'' करमी के माथे की सिलवटें कुछ कम हुईं।
'' मुझे मेरे घर वालों ने बुआ के पास भेज दिया था जमीन जोतने ! '' भगवान ने रस्ते में बनाया बहाना करमी के आगे परोस दिया। करमी ने इसे सच मान सुलह कर ली.
'' अच्छा फिर सुबह भी जरुर आना . '' उसने चेहरे के हाव- भाव पूरी तरह बदले नहीं थे अभी क्योंकि उसे पता था कि अगर वह इतनी जल्दी उसकी बात से सहमत हो गई , फिर उसने अगले दिन भी ऐसे ही करना है । .
'' अच्छा मेरी माँ आ जाऊंगा। '' भगवान ने दोनों हाथ करमी के आगे जोड़ दिए.
पास बैठी लड़की ने भगवान और करमी की नोक - झोंक सुन होंठों में ही धीमा - धीमा मुस्कुराते हुए नखरे के साथ भगवान की ओर देखा।
लड़की की आसमान से परिंदे उतारती नज़र ने भगवान के धड़कते दिल में प्यार की ज्वाला जला दी. उसके पैर थिरक गए.
'' अरी कोई काम- धंधा भी करोगी या यूँ ही बैठी गप्पें लड़ाती रहोगी !''
करमी की माँ के बोल सुन भगवान को होश आई। उसने मेले में रुलती गाय की तरह डोर - भोर हुए खड़े ने आस - पास नज़र मारी। करमी की माँ बट्टठल बाहर के कोल के पास रख कर , मुंह में दाने से भुनती नलके पर हाथ धोने लग पड़ी।
'' बेबे मुश्किल से तो अपना भागू आया , तूने यूँ ही आकर ' गाजरों में गधा ' ला खड़ा कर दिया '' करमी ने हाथ बट्टठल में धोकर चुन्नी के लड़ से पोंछ लिए।
करमी की माँ सुरजीत को इन बहन- भाइयों के गहरे प्यार का पता था. आज ही नहीं, जब भी भागू आता , करमी सब काम धंधा छोड़ कर उसके साथ जा बैठती । फिर पता नहीं दोनों कौन सी कथाएँ छेड़ बैठते, न वो कभी खत्म होतीं न उनका कोई अंत दिखता। बातें करते- करते कभी वे बारिश में धुले फूल से खिल जाते तो कभी संजीदा हो जाते इसलिए वे और बहस करने की बजाय नलके पर हाथ धो कमरे में जा घुसी।
'' बैठ जा भागू क्यों भागने जैसी मुद्रा में खड़े हो. '' करमी ने चारपाई की ओर इशारा किया।
'' चौड़ी होकर हमें तो रोज़ बुला लेती हो , जिस दिन व्याही गई , हमारे घर एक दिन भी नहीं घुसना तूने '' भगवान चारपाई पर बैठी लड़की की बगल में बैठ गया.
'' तुझे भी देख लूँगी बड़े नाडू खाँ को , जब आ गई न कोई झबरिटी सी फिर पूछूंगी , उसके बिना तो खांसेगा भी नहीं। पीछे - पीछे दुम हिलाता घूमता फिरेगा सारा दिन । '' करमी ने भगवान की बात का वकीलों की तरह तुरंत जवाब दिया।
'' मैं तो आगे लगा कर रखूंगा आगे …. तीर की तरह सीधी करकर रखूंगा '' भगवान ने चारपाई पर बैठे ही सीना उभार कर ऊँगली हवा में तीर की तरह लहराई। साथ बैठी लड़की मुंह पर हाथ रख हँस पड़ी.
'' चल आने दे वक़्त , देख लूँगी तुझे भी. '' करमी भगवान के कंधे पर हाथ मारती उसके बराबर बैठ गई. तीनों के भार से चारपाई की घुन खाई बाही चर … र …. र ' करती टूट गई. करमी और उसकी सहेली बीच में बैठे भगवान के ऊपर जा गिरीं। लड़की का ऊपरी हिस्सा भगवान की चौड़ी छाती को छू गया. यह छुअन दोनों जवान शरीरों में इक कंपकपी सी फैला गई. लड़की बिजली के झटके सी खड़ी हो गई. अनजानी शर्म से उसका चेहरा सुर्ख फूल सा लाल हो गया.
'' अरी चढा दिया चाँद … ? '' बाही टूटने की आवाज़ सुनकर सुरजीत गोली की गति से बाहर आई. भगवान और लड़की ' चाँद चढा देने ' की बात पर एक - दुसरे की ओर देख मुस्कुरा पड़े.
'' इसने तोड़ी बाजे ने '' करमी ने शरारत से भगवान की ओर इशारा किया।
''लो देख लो लोगो , वैसे ही भले आदमियों पर इतने बड़े -बड़े कलंक ! हम तो आराम से बैठे थे ताई , यही बाद में आकर बैठी थी '' फिर भगवान ने धीमे सुर में बोलते हुए करमी की ओर मुक्का ताना , '' खीर में कोकडू।''
किरना आ चलें। '' बाहर साइकिल पर खड़े लगभग चालीस साल के आदमी ने लड़की को आवाज़ मारी।
'' अच्छा करमी। '' किरना लिफाफा लेकर चल पड़ी.
'' अरी बैठ जाती और थोड़ा घर में क्या सूत कातना है. '' करमी अभी उसे जाने नहीं देना चाहती थी पर कुछ बोले बिना ही किरना उस आदमी के साथ बैठकर चली गई.
'' भागू आ जा चूल्हे के पास ही बैठ जा , मैं रोटी उतारती हूँ , तुम रोटी खा लेना और कुछ सुनाना भी नई ताज़ी। '' करमी भगवान की बाँह पकड़ के जोर जबरदस्ती चौके के पास ले गई और पास पडा पीढ़ा अपने गोर पाँव से सरका कर उसके आगे कर दिया। भगवान पीढ़े पर बैठ गया। करमी ओटे पर पड़ी परात उठाकर अन्दर आटा लेने चली गई. ।
किरना चली गई थी पर भगवान की आँखों के सामने वह खूबसूरत चेहरा अभी तक घूम रहा था. .' किरना !' यह शब्द उसके होंठों से अपने आप निकल गया और उसने किसी शर्मीली लड़की की तरह मुस्कुरा कर निगाह नीची कर ली. वह इस सुंदर सूरत के बारे जानने के लिए अपने अन्दर ही अन्दर धागे की तरह उलझा पड़ा था जिसका उसे अभी तक कोई सिरा नहीं मिला था।
'' यह लड़की कौन थी ?'' उसने करमी को आटा लेकर आते देख पूछा।
''कौन ? यह किरना …. ?''
'' हाँ ''
'' यह तो भंगुओं की लड़की है , जो तल्लोवाल गाँव जाते वक़्त रस्ते में घर आता है.'' कहते हुए वह आटा गूंधने लगी।
'' अच्छा ! अच्छा ! भगवान ने पूरी समझ से सर हिलाया। उसने इस लड़की के हुस्न के चर्चे पिंड के हर गली मोड़ पर सुने थे पर उसने उसे देखा आज था पहली बार . पिंड का हर लड़का इस ताजी महक को अपना बनाने के लिए ललायित था। उसका ताजे खिले गुलाब सा गुलाबी चेहरा , हिरनी सीचमकती आँखें , पीठ पर काले नाग सी लहराती लम्बी चोटी हर एक देखने वाले को डस लेती। उसके सुर्ख होंठों से हर जवान दिल प्यार के बोल सुनने को बेताब रहता . जब वह मुर्गाबी की तरह चलती हुई लड़कों की मंडली के पास गुजरती तो लड़के दिल पर हाथ रखकर ठंडी आहें भरते।
''भागू ! ओये भागू !! '' करमी ने पहले धीमे से फिर जोर से आवाज़ मारकर कहा , कौन सी परियों से देश में गुम गए … ?''
'' हूँ … ! नहीं … ! '' भगवान इस तरह तबका , जैसे किसी ने झकझोर कर उठा दिया हो, '' यह पहले तो कभी नहीं देखी , कहाँ रहती थी … ?''
'' हाँ , अपनी बुआ के पास रहती थी , बीस - पच्चीस दिन हुए आई को । '' करमी ने रोटी बेल कर तवे पर डाल दी ।
'' यह इसका क्या लगता है जो इसे लेकर गया … ? ''
'' तुम नहीं जानते इसको ? '' करमी ने हैरानी भरी सवाली नज़रें उसके चेहरे पर गड़ा दीं ।
'' जानता तो हूँ पर यह नहीं जानता कि यह इसका लगता क्या है । '' भगवान ऊँगली से धरती पर लकीरें खींचने लगा ।
'' यह इसका बाप है बाजे । ख़ास बन्दों का तो पता रखा कर …. । '' करमी की खोजी आँखें भगवान के दिल में किरना प्रति पल रहे प्यार को खुरच - खुरच कर देख रहीं थीं ।
'' करमी बहन एक बात बोलूं , मानेगी ? '' कहते हुए भगवान ने नज़र नीची कर ली । उसका दिल जोर -जोर से धडका ।
'' करमी बहन ! '' करमी ने भगवान का मुंह चिढ़ा दिया , '' जरुर कोई मतलब होगा जो करमी बहन, करमी बहन कर रहे हो … ? '' चाहे करमी को पता था कि वह क्या कहना चाहता है पर वह उसके मुंह से सुन स्वाद लेना चाहती थी ।
' हाँ बता मानूँगी । '' करमी रोटी उतार बैठी थी ।
' करमी!'' उसने खंगुरा मारकर गला तर किया और फिर धड़कते दिल को सँभालते हुए हिम्मत कर बोला , '' यह …क…किरना …. !'' भगवान के आधे शब्द मुंह में ही दब कर रह गए। उसका दिल फिर फड़क -फड़क बजने लगा ।
'' हाँ …. हाँ… मुझे पता है, मैं भी कहूँ आज मुझ से इतने मीठे -प्यारे क्यों हुए जाते हो। मुझे सब पता चल गया तुम दोनों की चोरी का । वह भी कैसे तुम्हारी ओर आँखें फाड़ - फाड़ कर देख रही थी । ''
'' ही … ही …. !'' भगवान ने हँसते हुए निगाह नीची कर ली।
'' अच्छा यूँ करना बाजे , अपना थोबड़ा अच्छी तरह धोकर आ जाना मैं उसे बुला लाऊँगी। '' करमी उसे छेड़कर भागने को तैयार हो गई ।
भगवान ने झपट्टा मार कर करमी की चोटी जा पकड़ी , '' अब बोल क्या बोल रही थी । ''
आ … ई … ई बेबे … ए … . '' करमी ने लम्बी चीख के साथ बेबे को पुकारा ।
'' अरी क्या हो गया तुम लोगों को , क्या झाटम-झट्टे हुए पड़े हो। '' सुरजीत बोलती हुई अन्दर से बाहर आई ।
'' बेबे ये भागू सा नहीं हटता । '' करमी ने नकली गुस्सा दिखलाया ।
'' मुझ से नहीं तुम लोगों से निपटा जाता । तुम लोगों का तो रोज का यही काम है ।'' कहती हुई वह फिर अन्दर चली गई ।
'' छोड़ मेरी चोटी।'' करमी ने भगवान के डौले पे धीमे से मुक्की जमाई।
'' पहले मेरा काम । ''
'' जा बाजे कर दूंगी वह भी । ''
'' अच्छा चल ले , तू भी क्या याद रखेगी । '' भगवान ने करमी की चोटी छोड़ दी , अच्छा करमी मैं जाता हूँ । '' भगवान ने समय का ख्याल करते हुए करमी से इजाज़त मांगी ।
'' भागू बस आधा घंटा और बैठ जा । ''
ना भाई जाकर पशुओं की भी देख -भाल करनी है । अभी दूध भी दोहना है । '' भगवान ने अपना काले रंग का अध पुराना साइकिल उठा लिया ।
'' अच्छा फिर कल जरुर आना । '' करमी ने ' जाते चोर की पगड़ी ही सही ' का दाव खेला ।
'' अच्छा मेरी माँ ।'' भगवान मुस्कुराते हुए साइकिल की काठी पर बैठ गया ।
' ओ भागू और वोटें … !'' करमी ने इशारे के साथ ऊँगली हवा में हिला दी और अगली बात वह समझ गया जानकर बीच में ही छोड़ दी ।
भगवान ने भी आगे से सहमती में हाथ खड़ा कर दिया । वह किसी नई ख़ुशी में आसमां में उड़ान लगा रहा था । उसके होंठों पर थिरकती मुस्कान किसी बेअंत ख़ुशी का इज़हार कर रही थी । गर्मियों का खुश्क वातावरण ख़ुशी में हँसता दिख रहा था। पाहे में बिछी रेत ने उसे पसीना -पसीना कर दिया था पर उसका ख़ुशी भरा मन अब इसकी परवाह कब करता , वह तो किसी अद्भुत शक्ति के बस में कैद साइकिल को सरपट दौडाई जा रहा था। शाम के झुरमुटे में भगवान के पैर पैडल पर मशीन की तरह चल रहे थे।
२ .
अच्छी बरसात होने के कारण खेतों में धान की बिजाई ने जोर पकड़ लिया था । जमीनों
में चलती गर्म लौ की जगह अब ठंडी हवा ने ले ली थी । चारो ओर खड़े ठंडे पानी
से बहती ठंडी हवा , शहरों में चलते कूलरों को मात देती । दोपहर होते ही
खेतों में काम करते लोग चाय पीने के बहाने दम लेने के लिए कोठियों के पास
लगे दरख्तों के नीचे आ बैठते । काम से थके होने के कारण ठंडी छाया तले नींद
की झपकी आती पर काम का लालच उन्हें दो घड़ी बैठने न देता । दिन रात खेतों
में चलते ट्रैक्टरों की गूंज खेतों की सीमा से गुजरती पिंड तक सुनाई देती।
इंजन की फट -फट खेतों में शोर डाले रहती ।
मिट्ठू और बलौर सुबह अँधेरे मुंह उठकर वट्ट बनाने के काम में लगे हुए थे । वे काम जल्द निपटाकर पिंड जाने को उतावले थे क्योंकि पिंड में वोटों के दिन नजदीक होने के कारण शराब के भंडारे खुले चल रहे थे। जीभ के सवादी शाम होते ही काम छोड़ पिंड की ओर भाग खड़े होते ।
पिंड में शुरू से ही दो पार्टियों की टक्कर चली आ रही थी। एक पार्टी का मोहरी मुख्तयार कांग्रस पार्टी के साथ संबंध रखता था। मुख्तयार एक आँख से काना होने के कारण लोगों ने मुख्तयार नाम के संग 'काना' शब्द और जोड़ दिया था । चाहे वह अपने नुक्स को छिपाने की खातिर काली एनकें लगाकर रखता पर आम लोग उसे आगे पीछे ' मुख्तयार काना ' कहकर ही पुकारते । आकालियों की ओर से मोहरी गुरदीप नौजवान लडका था ।
चाहे वह उम्र में मुखत्यार से आधा था पर पढ़ा - लिखा होने के कारण उसका प्रभाव पिंड में ज्यादा था । अब यह दूसरी बार वोटों में अपना हाथ आजमा रहा था । पिछली वोटों के समय वह अपने ही विरोधी , साबका सरपंच मुख्तयार को चार वोटों के फर्क से पीठ के भार गिरा चुका था । मुखत्यार भी अपनी पुरानी हार भूल कर मैदान में दोबारा आ खड़ा हुआ था । इस समय दोनों की बराबर की टक्कर थी.। जिसके नतीजे पर चलते शाम को पिंड के कुत्ते भी शराबी हो जाते । शराब पानी की तरह बहायी जाती । पिंड में दोनों पार्टियों ने कई -कई अड्डे खोल रखे थे । पिंड के चोटि के शराबियों कबाबियों को इन अड्डों के मोहरी बना दिया गया था । दोनों पार्टियों ने एक -एक अपना अड्डा नए पिंड में भी बना रखा था क्योंकि नया पिंड सरकारी तौर पर कोई अलग पिंड नहीं था , बल्कि सांतपुर का ही एक अलग अंग था । दोनों की पंचायत भी एक ही होती ।
''क्यों मिटठू दम न मार लें थोड़ा सा …. ?'' बलौर ने सर ऊपर आये सूरज की ओर देखकर माथे से पसीना पोंछते हुए कहा।
'' यार बस ये एक वट्ट रह गई है इसे भी पूरी कर लेते हैं। '' मिट्ठू ने कुदाल पानी में रख दिया और अपने दोनों हाथ पीठ पीछे रख खडा- खड़ा ही पीछे की ओर झुक गया , जिस से कमर के दो पटाखे पड़ गए और दुखती कमर दोबारा काम करने की स्थिति में आ गई ।
'' अच्छा फिर जैसे तेरी मर्जी '' बलौर ने मिटटी का चेपा उखाड़कर वट्ट पर रख दिया और उलटा कुदाल मार पोंछ दिया।। कुदाल ठोकने से गारे के छींटे खड़े पानी में जा गिरे, जिससे गंदे पानी में चक्कर से बन गए। पिंड में चल रही खुली शराब के लालच ने इनके हाथों में तेजी ला दी थी । वे काम को जल्दी खत्म कर पिंड जाने को उतावले थे ।
दोनों बाकी की वट्ट पोंछ कर कोठे के पास आ गए । मोटर की घू … ऊ … ऊ … की आवाज़ के साथ साफ्ट के पट्टे चौरासी के चक्करों की तरह चक्कर लगा रहे थे । टंकी , पाइप में से गिरते पानी को अपने बड़े पेट में समा लेती और फिर उसे एक सीध देकर खाल में गिरा देती । खाल के बीच का चाँदी रंगा पानी सांप की तरह बल खाता दूर तक चलता रहता और आगे जाकर प्यासी धरती की प्यास बुझाने के लिए उसके सीने में समा जाता। दोनों ने टंकी में से खाल में गिर रहे पानी के नीचे अपने पैर धो लिए और दो -दो पानी के छींटे गर्मी से धुआंखी अपनी आँखों पर भी मार लिए ।
'' यार, भगवान अभी तक अगले खेतों से ही वापस नहीं आया । '' बलौर गमछे से अपना मुंह पोंछता चारपाई पर बैठ गया ।
''आता ही होगा यहीं कहीं '' मिट्ठू ने अपने माथे के ऊपर हाथ की छतरी सी बना कर लम्बी निगाह मारी।। भगवान आठ नौ गज की दूरी पर चला आ रहा था , '' वो …ओ …ओ …आ रहा है । ''
'' कहाँ ओये कहाँ …. ?'' बलौर बंदर की तरह टपुसी मार कर चारपाई पर खड़ा हो गया ।
'' वो ….ओ … ओ … देख टाहली (एक तरह का पेड़ ) के पास से '' उसने बलौर का कंधे से कुर्ता पकड़ कर अपनी तरफ खींचते हुए दूर बड़ी टाहली की ओर इशारा किया ।
'' आये हाय ! मेरी गुगली - मुगली अब चक्कू बार में से रुड़ी । '' बलौर ने अपनी लम्बी बाहें मिट्ठू के ठिगने शरीर में कस दीं। '' हो ताऊ टिंग- लिंग , हो ताऊ टिंग- लिंग . '' वह एक लात ऊपर कर भांगड़ा डालने लग पड़ा ।
इन दोनों का आपस में बहुत प्यार था । दोनों ही कई सालों से भगवान के घरवालों के साथ पक्के मजदूरों की तरह काम करते आ रहे थे । बलौर गोरे रंग का पतले -दुबले शरीर का झिउर जाति का लड़का था । जिसकी शादी को अभी थोड़ा ही वक़्त हुआ था । उसकी घरवाली भी खूबसूरती के पक्ष में किसी से कम नहीं थी । दोनों की जोड़ी 'सोने की अंगूठी में हीरे का नग' थी । मिट्ठू चार बच्चों का बाप , नाटे कद और गठे शरीर का पक्की उम्र का आदमी था । सीरी ( जमीदार से फसल का कुछ हिसा लेने वाला ) होने की हैसियत में फसल अच्छी हो जाती । सारे परिवार की आई चलाई-चलती रहती । अब मिट्ठू ने अपने भाई से अलग होकर नए पिंड में एक बड़ा सा मकान डाल लिया था । ये दोनों मजदूर भगवान के परिवार में पूरी तरह घुल - मिल गए थे । जब भी घर का या खेती- बारी का कोई काम करना होता तो इन दोनों की सलाह जरुर ली जाती ।
'' आजा … आजा … , बहुत समय हो गया तुम्हें उडीकते । '' बलौर ने पास आये भगवान को ज्यादा समय लगा आने का अहसास करवाते हुए कहा ।
'' ओये बहुत मिल जाएगी तुझे , भूखे बैल की तरह रंभाते जा रहे हो '' वह टंकी पर डिब्बे से ठंडा पानी पीने लगा ।
'' हो ताऊ टिंग- लिंग , हो ताऊ टिंग- लिंग .'' बलौर ने ' बहुत मिल जाएगी ' सुन पहले की तरह नाचना शुरू कर दिया ।
'' देख - देख साला कैसे लंगड़ी हिजड़ी की तरह नाच रहा है । '' मिट्ठू भी कहने से रुक न सका ।
'' चलो मिट्ठू पहले हरे चारे से दो हाथ कर लें , कहीं बारिश न आ जाये । ''
भगवान ने ऊपर नज़र मारी , आग उगलते सूरज को एक बड़ी बदली ने अपने आलिंगन में ले लिया था ।
' चलो - चलो बलौर कोठे में से दात्री (हंसुआ ) उठा बाहर आ गया । स्कूटर स्टार्ट करने की तरह उसने एक लात ऊपर उठा कर धरती पर मारी ' डर… र …र … करता दात्री के स्टेयरिंग को पकडे सब से पहले मकई के चारे में जा घुसा । मिट्ठू और भागू उसकी बच्चों जैसी हरकतों के ऊपर हँस पड़े ।
थोड़े समय में ही तीनों ने हरा चारा काट कर ठेले पर लाद लिया ।
बलौर तू नाले की पटरी पर से रेहड़ा (ठेला) लेकर आ हम पगडण्डी से होकर आते हैं । ''
भगवान ने रेहड़ा बलौर को पकड़ा दिया और खुद दोनों ने पिंड को जाती सीधी पगडण्डी पकड़ ली ।
'' भागू ! और कोई जीते या न जीते तेरा बापू तो मैंम्बरी ले ही जाएगा । '' मिट्ठू ने सर पर आई वोटों की बात छेड़ ली ।
'' असल तो भाई वोटों वाले दिन ही पता चलेगा कौन बाजी मारता है । '' चाहे भगवान को अपने पिता की अच्छी स्थिति के बारे में पता था पर उसने भविष्यवाणी करनी अच्छी न समझी ।
'' हाँ भई असल तो वोटों वाले दिन ही पता चलेगा । '' मिट्ठू ने अपने मालिक से सहमती जताई । भई तू माने या न माने , गुरदीप का तो मुझे सरपंची में काम डावां- डोल ही लगता है । '' साथ ही उसने गुरदीप की कमजोर स्थिति का ज़िक्र किया ।
'' तभी तो मेरे बापू को मैंम्बरी में खड़ा किया है , कि अगर हार भी गया तो अपनी पार्टी का एक बंदा तो पंचायत में रह जाएगा । '' भगवान ने अपने पिता को मैंम्बरी में खड़ा करने का मकसद बता दिया ।
''अच्छा … !''मिट्ठू इस तरह हैरान हो गया , जैसे बहुत बड़े भेद का जानकार हो गया हो , '' तो ही किया मेरे चाचे चनण को भी खड़ा !''
'' यार मिट्ठुआ मुझे तो गुरदीप ने बुलाया था , काम - धंधे में याद ही न रहा , कहेगा पतंदर आया ही नहीं । '' भगवान को गुरदीप का भेजा बुलावा याद आ गया ।
'' हाँ भई जब मुँह मुलाहजा है तो जाना तो पड़ेगा ही ।'' मिट्ठू पसीने से तर छाती के बटन खोल फूंक मार -मार ठंडा करने लगा ।
दोनों बाते करते हुए पिंड पहुँच गए । सूरज बदली का घूँघट हटा दोबारा चमक उठा । उसकी आग उगलती किरणें अब काफी मद्धम पड़ गईं थीं । सर से ऊपर उड़ते जाते कौओं की कतारों ने दक्षिण की ओर अपने घोंसलों की ओर उडारियाँ भर ली थीं । घर आकर भगवान ने दोनों को एक -एक लाल परी पकड़ा दी ।
'' बलौर मिट्ठू का तो मुझे पता है , अगर तूने घर जाकर कोई करतूत की तो देखते रहना ।'' भगवान ने बलौर को बोतल पकड़ाते हुए आगाह किया ।
'' मैंने कहा भाई परवाह मत कर 'फट्टे चक दूँ !' हो ताऊ टिंग- लिंग , हो ताऊ टिंग - लिंग …। ' बलौर ने बोतल पकड़कर कमर में खोंस ली और दोनों हाथों की एक -एक ऊँगली को हवा में नचाया ।
'' तुझे 'फट्टे चकने ' को नहीं कहा , अगर पी कर कुछ इधर - उधर किया तो देख लेना फिर ।'' भगवान नहीं चाहता था कि बलौर घर जाकर लड़ाई करे और उस पर पिलाने का दोष लगे ।
'' नहीं करता भाई मान ले । '' बलौर बोतल लेकर भाग खड़ा हुआ ।
'' ओ भागू तुझे गुरदीप सरपंच ने बुलाया था । '' बाहर से किसी ने आवाज़ दी ।
'' चल - चल मैं उधर ही आ रहा था ।'' भगवान उस व्यक्ति के साथ चल पड़ा ।
सरपंच के खुले आँगन में शराब के प्रेमी एकत्रित होने लगे थे । शराब के पियक्कड़ मक्खियों की तरह हमेशा उसके आगे - पीछे रहते । उन्होंने वोटों तक घर का ख्याल बिलकुल ही त्याग दिया था । भले ही पहले भी वे घर का ख्याल बहुत नहीं किया करते थे पर अब तो अपने आप को सरपंच के मेहमान ही समझने लगे थे । अच्छी तरह खा - पी लेते और फिर अपना - अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देते . टेक ने शराब में धुत होकर विरोधी पार्टी को गन्दी गालियों की झड़ी लगा दी और फिर टल्ली 'राम प्यारी ' को पी टल्ली हो जाता और टूटी - फूटी अंग्रेजी पर जुबान चलाता , जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता , जो भी शब्द आगे आता वही बोल देता । अपनी इस विलक्षण बोली को वह खुद भी नहीं समझ पाता । शराबी हुए टल्ली का विचार था, ' इंगलिश बोलनी है चाहे जैसे मर्जी बोली जाये । '''
सरपंच और कानून के रखवाले पुलसिये अन्दर खुले कमरों में सोफों पर बैठे शराब पी रहे थे । घर की निकाली शराब सबके बीच मुजरे वाली की तरह घूम रही थी । कमरे के अन्दर घुसते ही शराब और मीट का तेज भभका भगवान के नाक में आ घुसा । वह नाक को मसलता अन्दर सोफे के पास जा खड़ा हुआ ।
'' तुम यार अच्छे आये । '' सरपंच ने नशे में लाल हुई आँखें भगवान के चेहरे पर गड़ा दीं।
'' मैं तुम्हारी ओर ही आने वाला था , तभी यह चला आया । '' भगवान ने उसे बुलाकर लाये व्यक्ति की ओर इशारा किया ।
'' अभी सारी वोट पर्चियां बनाकर बांटनी बाकी हैं , भाई बनकर जल्दी बना दे ।'' सरपंच ने माँस का टुकडा उठा दाढ़ के नीचे दबा लिया ।
'' बस तू बनी समझ '' भगवान एक तरफ बैठे राजे के साथ वोट की पर्चियां बनाने लग पड़ा ।
'' सरपंच तू चिंता मत कर सब हो जाएगा । '' थानेदार ने घर की निकाली शराब का गिलास होंठों से लगा ट्राली जैसे बड़े पेट में उतार लिया।
'' ये तो खैर शेर बच्चे संभाल लेंगे '' सरपंच क्लब के लड़कों पर मान कर गया । मिट्ठू और बलौर सुबह अँधेरे मुंह उठकर वट्ट बनाने के काम में लगे हुए थे । वे काम जल्द निपटाकर पिंड जाने को उतावले थे क्योंकि पिंड में वोटों के दिन नजदीक होने के कारण शराब के भंडारे खुले चल रहे थे। जीभ के सवादी शाम होते ही काम छोड़ पिंड की ओर भाग खड़े होते ।
पिंड में शुरू से ही दो पार्टियों की टक्कर चली आ रही थी। एक पार्टी का मोहरी मुख्तयार कांग्रस पार्टी के साथ संबंध रखता था। मुख्तयार एक आँख से काना होने के कारण लोगों ने मुख्तयार नाम के संग 'काना' शब्द और जोड़ दिया था । चाहे वह अपने नुक्स को छिपाने की खातिर काली एनकें लगाकर रखता पर आम लोग उसे आगे पीछे ' मुख्तयार काना ' कहकर ही पुकारते । आकालियों की ओर से मोहरी गुरदीप नौजवान लडका था ।
चाहे वह उम्र में मुखत्यार से आधा था पर पढ़ा - लिखा होने के कारण उसका प्रभाव पिंड में ज्यादा था । अब यह दूसरी बार वोटों में अपना हाथ आजमा रहा था । पिछली वोटों के समय वह अपने ही विरोधी , साबका सरपंच मुख्तयार को चार वोटों के फर्क से पीठ के भार गिरा चुका था । मुखत्यार भी अपनी पुरानी हार भूल कर मैदान में दोबारा आ खड़ा हुआ था । इस समय दोनों की बराबर की टक्कर थी.। जिसके नतीजे पर चलते शाम को पिंड के कुत्ते भी शराबी हो जाते । शराब पानी की तरह बहायी जाती । पिंड में दोनों पार्टियों ने कई -कई अड्डे खोल रखे थे । पिंड के चोटि के शराबियों कबाबियों को इन अड्डों के मोहरी बना दिया गया था । दोनों पार्टियों ने एक -एक अपना अड्डा नए पिंड में भी बना रखा था क्योंकि नया पिंड सरकारी तौर पर कोई अलग पिंड नहीं था , बल्कि सांतपुर का ही एक अलग अंग था । दोनों की पंचायत भी एक ही होती ।
''क्यों मिटठू दम न मार लें थोड़ा सा …. ?'' बलौर ने सर ऊपर आये सूरज की ओर देखकर माथे से पसीना पोंछते हुए कहा।
'' यार बस ये एक वट्ट रह गई है इसे भी पूरी कर लेते हैं। '' मिट्ठू ने कुदाल पानी में रख दिया और अपने दोनों हाथ पीठ पीछे रख खडा- खड़ा ही पीछे की ओर झुक गया , जिस से कमर के दो पटाखे पड़ गए और दुखती कमर दोबारा काम करने की स्थिति में आ गई ।
'' अच्छा फिर जैसे तेरी मर्जी '' बलौर ने मिटटी का चेपा उखाड़कर वट्ट पर रख दिया और उलटा कुदाल मार पोंछ दिया।। कुदाल ठोकने से गारे के छींटे खड़े पानी में जा गिरे, जिससे गंदे पानी में चक्कर से बन गए। पिंड में चल रही खुली शराब के लालच ने इनके हाथों में तेजी ला दी थी । वे काम को जल्दी खत्म कर पिंड जाने को उतावले थे ।
दोनों बाकी की वट्ट पोंछ कर कोठे के पास आ गए । मोटर की घू … ऊ … ऊ … की आवाज़ के साथ साफ्ट के पट्टे चौरासी के चक्करों की तरह चक्कर लगा रहे थे । टंकी , पाइप में से गिरते पानी को अपने बड़े पेट में समा लेती और फिर उसे एक सीध देकर खाल में गिरा देती । खाल के बीच का चाँदी रंगा पानी सांप की तरह बल खाता दूर तक चलता रहता और आगे जाकर प्यासी धरती की प्यास बुझाने के लिए उसके सीने में समा जाता। दोनों ने टंकी में से खाल में गिर रहे पानी के नीचे अपने पैर धो लिए और दो -दो पानी के छींटे गर्मी से धुआंखी अपनी आँखों पर भी मार लिए ।
'' यार, भगवान अभी तक अगले खेतों से ही वापस नहीं आया । '' बलौर गमछे से अपना मुंह पोंछता चारपाई पर बैठ गया ।
''आता ही होगा यहीं कहीं '' मिट्ठू ने अपने माथे के ऊपर हाथ की छतरी सी बना कर लम्बी निगाह मारी।। भगवान आठ नौ गज की दूरी पर चला आ रहा था , '' वो …ओ …ओ …आ रहा है । ''
'' कहाँ ओये कहाँ …. ?'' बलौर बंदर की तरह टपुसी मार कर चारपाई पर खड़ा हो गया ।
'' वो ….ओ … ओ … देख टाहली (एक तरह का पेड़ ) के पास से '' उसने बलौर का कंधे से कुर्ता पकड़ कर अपनी तरफ खींचते हुए दूर बड़ी टाहली की ओर इशारा किया ।
'' आये हाय ! मेरी गुगली - मुगली अब चक्कू बार में से रुड़ी । '' बलौर ने अपनी लम्बी बाहें मिट्ठू के ठिगने शरीर में कस दीं। '' हो ताऊ टिंग- लिंग , हो ताऊ टिंग- लिंग . '' वह एक लात ऊपर कर भांगड़ा डालने लग पड़ा ।
इन दोनों का आपस में बहुत प्यार था । दोनों ही कई सालों से भगवान के घरवालों के साथ पक्के मजदूरों की तरह काम करते आ रहे थे । बलौर गोरे रंग का पतले -दुबले शरीर का झिउर जाति का लड़का था । जिसकी शादी को अभी थोड़ा ही वक़्त हुआ था । उसकी घरवाली भी खूबसूरती के पक्ष में किसी से कम नहीं थी । दोनों की जोड़ी 'सोने की अंगूठी में हीरे का नग' थी । मिट्ठू चार बच्चों का बाप , नाटे कद और गठे शरीर का पक्की उम्र का आदमी था । सीरी ( जमीदार से फसल का कुछ हिसा लेने वाला ) होने की हैसियत में फसल अच्छी हो जाती । सारे परिवार की आई चलाई-चलती रहती । अब मिट्ठू ने अपने भाई से अलग होकर नए पिंड में एक बड़ा सा मकान डाल लिया था । ये दोनों मजदूर भगवान के परिवार में पूरी तरह घुल - मिल गए थे । जब भी घर का या खेती- बारी का कोई काम करना होता तो इन दोनों की सलाह जरुर ली जाती ।
'' आजा … आजा … , बहुत समय हो गया तुम्हें उडीकते । '' बलौर ने पास आये भगवान को ज्यादा समय लगा आने का अहसास करवाते हुए कहा ।
'' ओये बहुत मिल जाएगी तुझे , भूखे बैल की तरह रंभाते जा रहे हो '' वह टंकी पर डिब्बे से ठंडा पानी पीने लगा ।
'' हो ताऊ टिंग- लिंग , हो ताऊ टिंग- लिंग .'' बलौर ने ' बहुत मिल जाएगी ' सुन पहले की तरह नाचना शुरू कर दिया ।
'' देख - देख साला कैसे लंगड़ी हिजड़ी की तरह नाच रहा है । '' मिट्ठू भी कहने से रुक न सका ।
'' चलो मिट्ठू पहले हरे चारे से दो हाथ कर लें , कहीं बारिश न आ जाये । ''
भगवान ने ऊपर नज़र मारी , आग उगलते सूरज को एक बड़ी बदली ने अपने आलिंगन में ले लिया था ।
' चलो - चलो बलौर कोठे में से दात्री (हंसुआ ) उठा बाहर आ गया । स्कूटर स्टार्ट करने की तरह उसने एक लात ऊपर उठा कर धरती पर मारी ' डर… र …र … करता दात्री के स्टेयरिंग को पकडे सब से पहले मकई के चारे में जा घुसा । मिट्ठू और भागू उसकी बच्चों जैसी हरकतों के ऊपर हँस पड़े ।
थोड़े समय में ही तीनों ने हरा चारा काट कर ठेले पर लाद लिया ।
बलौर तू नाले की पटरी पर से रेहड़ा (ठेला) लेकर आ हम पगडण्डी से होकर आते हैं । ''
भगवान ने रेहड़ा बलौर को पकड़ा दिया और खुद दोनों ने पिंड को जाती सीधी पगडण्डी पकड़ ली ।
'' भागू ! और कोई जीते या न जीते तेरा बापू तो मैंम्बरी ले ही जाएगा । '' मिट्ठू ने सर पर आई वोटों की बात छेड़ ली ।
'' असल तो भाई वोटों वाले दिन ही पता चलेगा कौन बाजी मारता है । '' चाहे भगवान को अपने पिता की अच्छी स्थिति के बारे में पता था पर उसने भविष्यवाणी करनी अच्छी न समझी ।
'' हाँ भई असल तो वोटों वाले दिन ही पता चलेगा । '' मिट्ठू ने अपने मालिक से सहमती जताई । भई तू माने या न माने , गुरदीप का तो मुझे सरपंची में काम डावां- डोल ही लगता है । '' साथ ही उसने गुरदीप की कमजोर स्थिति का ज़िक्र किया ।
'' तभी तो मेरे बापू को मैंम्बरी में खड़ा किया है , कि अगर हार भी गया तो अपनी पार्टी का एक बंदा तो पंचायत में रह जाएगा । '' भगवान ने अपने पिता को मैंम्बरी में खड़ा करने का मकसद बता दिया ।
''अच्छा … !''मिट्ठू इस तरह हैरान हो गया , जैसे बहुत बड़े भेद का जानकार हो गया हो , '' तो ही किया मेरे चाचे चनण को भी खड़ा !''
'' यार मिट्ठुआ मुझे तो गुरदीप ने बुलाया था , काम - धंधे में याद ही न रहा , कहेगा पतंदर आया ही नहीं । '' भगवान को गुरदीप का भेजा बुलावा याद आ गया ।
'' हाँ भई जब मुँह मुलाहजा है तो जाना तो पड़ेगा ही ।'' मिट्ठू पसीने से तर छाती के बटन खोल फूंक मार -मार ठंडा करने लगा ।
दोनों बाते करते हुए पिंड पहुँच गए । सूरज बदली का घूँघट हटा दोबारा चमक उठा । उसकी आग उगलती किरणें अब काफी मद्धम पड़ गईं थीं । सर से ऊपर उड़ते जाते कौओं की कतारों ने दक्षिण की ओर अपने घोंसलों की ओर उडारियाँ भर ली थीं । घर आकर भगवान ने दोनों को एक -एक लाल परी पकड़ा दी ।
'' बलौर मिट्ठू का तो मुझे पता है , अगर तूने घर जाकर कोई करतूत की तो देखते रहना ।'' भगवान ने बलौर को बोतल पकड़ाते हुए आगाह किया ।
'' मैंने कहा भाई परवाह मत कर 'फट्टे चक दूँ !' हो ताऊ टिंग- लिंग , हो ताऊ टिंग - लिंग …। ' बलौर ने बोतल पकड़कर कमर में खोंस ली और दोनों हाथों की एक -एक ऊँगली को हवा में नचाया ।
'' तुझे 'फट्टे चकने ' को नहीं कहा , अगर पी कर कुछ इधर - उधर किया तो देख लेना फिर ।'' भगवान नहीं चाहता था कि बलौर घर जाकर लड़ाई करे और उस पर पिलाने का दोष लगे ।
'' नहीं करता भाई मान ले । '' बलौर बोतल लेकर भाग खड़ा हुआ ।
'' ओ भागू तुझे गुरदीप सरपंच ने बुलाया था । '' बाहर से किसी ने आवाज़ दी ।
'' चल - चल मैं उधर ही आ रहा था ।'' भगवान उस व्यक्ति के साथ चल पड़ा ।
सरपंच के खुले आँगन में शराब के प्रेमी एकत्रित होने लगे थे । शराब के पियक्कड़ मक्खियों की तरह हमेशा उसके आगे - पीछे रहते । उन्होंने वोटों तक घर का ख्याल बिलकुल ही त्याग दिया था । भले ही पहले भी वे घर का ख्याल बहुत नहीं किया करते थे पर अब तो अपने आप को सरपंच के मेहमान ही समझने लगे थे । अच्छी तरह खा - पी लेते और फिर अपना - अपना प्रभाव दिखाना शुरू कर देते . टेक ने शराब में धुत होकर विरोधी पार्टी को गन्दी गालियों की झड़ी लगा दी और फिर टल्ली 'राम प्यारी ' को पी टल्ली हो जाता और टूटी - फूटी अंग्रेजी पर जुबान चलाता , जिसका कोई अर्थ नहीं निकलता , जो भी शब्द आगे आता वही बोल देता । अपनी इस विलक्षण बोली को वह खुद भी नहीं समझ पाता । शराबी हुए टल्ली का विचार था, ' इंगलिश बोलनी है चाहे जैसे मर्जी बोली जाये । '''
सरपंच और कानून के रखवाले पुलसिये अन्दर खुले कमरों में सोफों पर बैठे शराब पी रहे थे । घर की निकाली शराब सबके बीच मुजरे वाली की तरह घूम रही थी । कमरे के अन्दर घुसते ही शराब और मीट का तेज भभका भगवान के नाक में आ घुसा । वह नाक को मसलता अन्दर सोफे के पास जा खड़ा हुआ ।
'' तुम यार अच्छे आये । '' सरपंच ने नशे में लाल हुई आँखें भगवान के चेहरे पर गड़ा दीं।
'' मैं तुम्हारी ओर ही आने वाला था , तभी यह चला आया । '' भगवान ने उसे बुलाकर लाये व्यक्ति की ओर इशारा किया ।
'' अभी सारी वोट पर्चियां बनाकर बांटनी बाकी हैं , भाई बनकर जल्दी बना दे ।'' सरपंच ने माँस का टुकडा उठा दाढ़ के नीचे दबा लिया ।
'' बस तू बनी समझ '' भगवान एक तरफ बैठे राजे के साथ वोट की पर्चियां बनाने लग पड़ा ।
'' सरपंच तू चिंता मत कर सब हो जाएगा । '' थानेदार ने घर की निकाली शराब का गिलास होंठों से लगा ट्राली जैसे बड़े पेट में उतार लिया।
'' साहब जी '' पास खड़े सिपाही की खत्म होती बोतलें देख लारें गिरने लगीं ।
'' लो … लो … , अपने पास कौन सी कमी है । '' सरपंच ने बोतल उठा सिपाही को पकड़ा दी ।
''' ही … ही … ही … कमी किस बात की जी । '' सिपाही दांत निकालता हुआ बोतल की बची -खुची सारी उलट गया । मेज पर खाली बोतल और गिलास रखकर अपनी खुश्क मूंछों के सख्त बालों पर हाथ फेर लिया ।
'' टल्ली … ओये टल्ली । '' सरपंच खाली बोतल देख कर अमरीकी बैल की तरह रंभाने लगा ।
'' क्या है स … सरपंच सा … ह … ब … । '' टल्ली लड़खड़ाता हुआ बार में आ खड़ा हुआ ।
'' ऐसे कर ढोली से एक और भर कर ले आ । '' सरपंच ने खाली बोतल टल्ली को पकड़ा दी ।
'' न … न … ओ प्रोब्लम , डी …दि …. दिस … इज … प … प्लेन ऑफ़ दा ग्राउंड … इन …. द … मोर्निंग … व … अ … क … । '' टल्ली की टूटी - फूटी अंग्रेजी सुन सारे हँस पड़े ।
'' तू ले आ यार अगर लानी है तो । '' थानेदार अपना ठंडा सा रोब डाल गया । उसके कन्धों पर लगे स्टार टल्ली को घूर - घूर कर देख रहे थे ।
'' नो … दिया … दियर … इ … इज … वै … वैरी …। '' टल्ली बोलता हुआ कमरे से बाहर चला गया ।
'' सरपंच बन्दे बड़े कमाल रखे हैं । '' थानेदार ने हड्डी का टुकड़ा चूस कर ट्रे में रख दिया और मसाले से लिबड़ी हुई ऊँगलियाँ दरवाजे जैसे मुंह में डालकर चाटने लगा ।
'' बन्दे तो जी सभी काम वाले हैं ।'' सरपंच ने टेढ़ी आँख से लड़कों की और देखा। अपनी तारीफ होती देख कर लड़कों के हाथों ने और तेजी पकड़ ली ।
'' सरपंच बदाणे का प्रोग्राम कहता था करने को ।'' थानेदार के बदाणे बारे ज़िक्र करने से वैष्णू लड़कों के कान खड़े हो गए ।
'' हाँ … हाँ … आज रात को तैयार करेंगे , तड़के बाँट देंगे । '' सरपंच तसल्ली दे गया ।
'' दिस इज वै … वैरी … म … मच !'' टल्ली ने रुड़ी मार्का मेज पर ला रखी । थानेदार के साथ आये दोनों सिपाही बोतल की तरफ भूखी नज़रों से देखने लगे ।
''लो थानेदार साहब लगाओ फिर । '' सरपंच ने बोतल और गिलास थानेदार की ओर सरका दी ।
'' वैसे तो सरपंच पहले तुम्हारा हक़ था चक्की के फेर की तरह । '' थानेदार ने चक्की के ह्थड़े की तरह ऊंगली घुमाई ।
जब आपने कह ही दिया तो … । '' फिर वो होंठो से लगे गिलास को एक ही डीक में पी गया ।
'' इसकी माँ की , कौन मुख्त्यार - सुख्त्यार । '' बाहर टेक की पी हुई रंग दिखाने लग पड़ी थी ।
'' चढ़ गई टेक की तो सुई लाल पर । '' सरपंच अपने विरोधी को दी हुई गाली सुनकर हँस पड़ा ।
'' अच्छा सरपंच अब हम चलते हैं । '' लड़के काम से निवृत हो चुके थे ।
'' अच्छा फिर सवेरे जरा जल्दी आ जाना , बदाना( मिठाई ) हम लोगों ने ही बांटना है । '' सरपंच ने इज़ाज़त देने के साथ ही यह हुक्म भी दे दिया ।
'' जब कहेगा , तभी ।'' लड़के सरपंच को तसल्ली दे गए .
'' मुझे टक्कर आकर,चाहता है सरपंची , सर … सरपंची तो ह … हमने लेनी है… सी ….सीने के जोर से . इसकी माँ की . '' टेक का इंजन गर्मी पकड़ गया था .
अन्धेरा होने तक सरपंच का आँगन शराब के पियक्कड़ों से शादी के घर जैसा भर गया था । सारे आँगन में चींटियों की तरह कुर्बल - कुर्बल होने लग पड़ी थी . कुछ मुफ्त के पियक्कड़ पी -पी कर बेसुरत हुए पड़े थे । सारे लड़के अपने -अपने घरों को चल पड़े . भगवान अपने घर जाने के लिए बाहर की फिरनी पड़ गया । आसमान में मद्धम -मद्धम से तारे निकल आये थे। चाँदनी मिले अँधेरे से गलियाँ भरी हुई थीं । लोग कोठों पर पड़ी चारपाइयों पर ऊंघ रहे थे । किसी-किसी कोठे से दबे बोल में घुसर-मुसर सुनाई दे रही थी । टेक की गालियाँ अभी भी चांदनी रात में दूर तक सुनाई दे रही थी ।
3
गुरदीप सरपंच पिछले दो दिनों के बीच ही मुख्त्यार के ऊपर पानी की तरह फिर गया । शराब की ओर हाथ और खुला कर दिया । बदाना पकाकर कई गाँव में बाँट दिया। कई औरतें बदाने की लालच में मुख्यतार से टूट कर गुरदीप से आ जुडी । वे एक दुसरे के कान में कहतीं , '' लो री जैसे मर्दों को इतनी-इतनी मंहगी दारु पिलाते हैं औरतों के लिए भी तो कुछ होना चाहिए न । क्या हमारी वोटें नहीं होतीं … ? ''
'' ले बहन , ये तो गुरदीप ने बढ़िया किया । '' दूसरी पहली की बात को पकड़ते हुए बोली ।
दोनों पार्टियों के लोग वोटें मांगने के लिए आधी - आधी रात तक चप्पलें घिसाते गलियों में घूमते रहते । आखिर वोटों का दिन भी आ ही गया । जो स्थिति वोटों से पांच सात दिन पहले थी , वह अब पिछले दो दिनों में हवा के झोंखे की तरह इक तरफ से आकर दूसरी तरफ बढ़ गई थी । गुरदीप जो कि पहले डावाँडोल दखाई दे रहा था अब मुख्त्यार के बराबर आ खड़ा हुआ । क्लब के लड़कों ने टैंट गाड़ कर काम मुकम्मल कर लिया ।
'' ये लो भागू वोटर सूचियाँ । '' सरपंच ने स्कूटर की डिक्की में से वोटर सूचियाँ निकाल कर पकड़ा दीं ।
''देख सरपंच टैंट ठीक है … ? '' क्लब के लड़के अपने किये काम को सरपंच की अच्छी निगाह में चढाना चाहते थे ।
'' हाँ … हाँ … बहुत बढ़िया , अगर किसी और चीज की जरुरत हो तो बता देना । '' सरपंच किसी भी पक्ष से किसी चीज की कमी नहीं रहने देना चाहता था .
'' चाय जरुर भेज दिया करना करड़ी सी । '' राजा अपनी चाय पीने की आदत सरपंच के आगे खोल गया ।
'' वह मैंने कहा है टल्ली को , जब भी जरुरत हो कह कर मंगवा लेना । '' सरपंच सारे काम अच्छे अगुवाई की तरह संभाल रहा था .
'' तेरी जान नूं की लड्डूआँ दा तोड़ा सालिये … '' गुनगुनाते हुई टल्ली ने चाय की केतली तख़्त पोश पर रख दी । जैसे ' माँ जन्मी नहीं पुत्र कोठे पे ' कहावत की तरह टल्ली कहने से पहले ही चाय बना लाया था ।
ओये वाह… ओये टल्ली सिंह '' राजे ने चाय की केतली देखकर टल्ली की पीठ थपथपाई ।
टल्ली ने चाय डाल सबको एक -एक गिलास पकड़ा दिया । सभी चाय पी कर अपने - अपने काम में जुट गए । टल्ली खाली केतली और चाय के जूठे गिलास लेकर चला गया । धीरे - धीरे वोटें डालने का काम जोर पकड़ने लगा । पोलिंग पर तिल धरने को जगह नहीं थी । वोटें डालने वालों की जैसे बाढ़ सी आ गई थी । हरेक पार्टी के आदमी अपने - अपने उम्मीदवारों के निशान लेकर सबके सामने कर देते । क्लब के कुछ लड़के गुरदीप और चंदन के चुनाव निशान उठाये हर इक को दिखा रहे थे और कुछ पोलिंग बूथ पर वोट पर्चियां निकालने में उलझे हुए थे।
'' भागु ! वह देख करमी और वह लड़की । '' राजे ने पर्ची निकालते भागु के कान में आकर कहा।
'' कहाँ … ?'' भगवान का चेहरा फूल सा खिल गया । वह कुर्सी से बंदर की तरह टपुसी मार खड़ा हो गया ।
'' वह … देख पीपल के नीचे । '' राजे ने बड़े पीपल की ओर इशारा किया । दोनों गहरे रंगों के सूटों में सजी पीपल के नीचे खड़ी आसमान से उतरी परियाँ सी दिख रही थीं । भगवान देख ख़ुशी में उछल पड़ा । भगवान क्या जो भी इनकी ओर देखता , सांप की तरह कील जाता । कितने ही लड़कों की नज़रें इन दोनों पर टिकी हुई थीं ।
'' क्यों करमी कैसे आना हुआ … ?'' भगवान के पास आते ही आस -पास के लड़के पीछे सरक गए थे ।
'' बस ऐसे ही वीर जी के दर्शनों को । ''
'' वोट डाल आये या रहती हैं अभी … ? '' भागू ने साथ खड़ी किरना को भी साथ जोड़ लिया ।
'' अभी कहाँ , गुरजीत वीर जी वोट पर्चियां ढूंढ कर ला रहे हैं , फिर जाते हैं डालने । भीड़ में जल्दी मिलती भी नहीं । '' करमी पोलिंग के पास जुडी भीड़ को देख परेशान थी ।
'' वोटें किसे डालोगी … ? '' भागु बातों के बहाने से किरना के खिले चेहरे को जी भर भर देख लेना चाहता था ।
'' मैं तो वीर जी सरपंची की गुरदीप को और मैम्बरी की चाचे चन्नन को डालूंगी , बाकी तू इसे पूछ ले । '' करमी ने पास खड़ी किरना की ओर इशारा किया । वह दोनों को इक - दूसरे से खोल देना चाहती थी ।
''
हमें क्या पता भाई किसी के दिल का , न हमारे कहने से किसी ने डालनी है ।''
भगवान ने किरना के शर्बत जैसे मीठे बोल सुनने के लिए चोट की ।
'' भागु जी , अभी तो आपके साथ ही चल रहे हैं , जिधर मर्जी
डलवा लो . '' किरना ने कहते हुए नज़रे नीची कर लीं । जिन गुलाबी होंठों से
भागु दो शब्द सुनने को बरसात को तरसते पपीहे की तरह तड़प रहा था , आज
उन्हीं होंठों से 'भागु जी ' और ' आपके साथ ' दो शब्द सुन कर भगवान ताजा
खिले गुलाब सा खिल गया ।
'' लो अपनी वोट पर्चियाँ । '' गुरजीत ने दोनों को -एक एक वोट पर्ची पकड़ा दी ।
पर्चियां
लेकर दोनों वोट डालने चली गईं । भगवान और गुरजीत दोबारा पर्चियां बाँटने
के काम में जुट गए । शाम होने तक काम बहुत कम रह गया था। अब सिर्फ वे
वोटें ही भुगतान वाली रह गईं थीं जो पिंड के बाशिंदे या तो बाहर रहते थे या
फिर किसी रिश्तेदारी में गए हुए थे । दोनों पार्टियों ने अपनी - अपनी
गाड़ियाँ हाँकी और बाहर रहते वोटर ढोने शुरू कर दिए । शाम के पांच बजे तक
वोटें जोर - शोर से डाली जाती रहीं । दोनों पार्टियों ने अपनी ओर से कोई
कसर न छोड़ी। वोटों की गिनती के समय उम्मीदवारों के सिवा बाकी सारे बाहर
निकाल दिए गए ताकि कोई हेरा-फेरी न कर सके क्योंकि पिछली वोटों के समय
दूसरी पार्टी बाद में जाली वोटें भुगता गई थी पर गुरदीप फिर भी चार वोटों
के फर्क से जीत गया था । वोटों की गिनती शुरू हो गई । पहले दो बूथों में से
मुखत्यार की बीस वोटें ज्यादा निकल आईं। वह ख़ुशी में दूना - चौना हो गया।
'' अब तो करतार भाई ले लिया काम । '' मुखत्यार ने सफेद मुछों पर हाथ फेरा ।
'' असल तो अगले बूथ में ही पता चलेगा . '' करतार का भीतरी मन छलक आया ।
'' असल तो अगले बूथ में ही पता चलेगा . '' करतार का भीतरी मन छलक आया ।
गुरदीप के मुंह का रंग उड़ गया कि इतनी मेहनत करने के बावजूद मुखत्यार क्यों आगे जा रहा है ।
बाहर खड़े लोगों के दिल की धडकन पल -पल बढती जा रही थी । लोग
कुम्भ के मेले की तरह नतीजे की प्रतीक्षा कर रहे थे । दोनों पार्टियों के लोग
अपने -अपने जीते सरपंच के गले में हार डालने के लिए उतावले थे । पर यह किसी
को नहीं पता था कि किसके हार किसकी गर्दन तक पहुंचेंगे । सात बजे तक कहीं
जाकर वोटों की गिनती खत्म हुई ।
'' गुरदीप की हो गई बल्ले - बल्ले , बाकि सारे थल्ले थल्ले । '' अन्दर से गूंजते नारे बाहर आये ।
नौ
वोटों के फर्क से गुरदीप जीत गया था । छ: मैम्बरों में से चार मैम्बर
गुरदीप की पार्टी के जीत गए । चन्नन मैम्बरी में सबसे ज्यादा वोटों से
बाजी मार गया । बाहर आते ही लोगों ने गुरदीप को कन्धों पर उठा लिया । नोटों
से गुंथे हारों से गुरदीप की गर्दन भर गई । सारा पिंड नारों से गूंज उठा ।
क्लब के लड़के ढोल के साथ नाचते गुरदीप के साथ गुरुद्वारे माथा टेकने गए ।
फिर सारी भीड़ नाचती , नारे लगाती भागू के घर की ओर चल पड़ी ।
मुखत्यार ससुराल से मार खाकर चली बहु की तरह रोता हुआ घर आ गया
। उसके साथियों ने उसके गले में डालने के लिए हार , हाथों में पकड़े काँटों की तरह दूर उठाकर फेंक दिए और ईंटे पत्थर उठाकर गुरदीप की नाचती आती
टोली पर मारने लगे। एक पत्थर … टी … टी … टी … करता गुरदीप के सर के पास
से होता हुआ नाचते हुए लाडकों के पैरों पर आ लगा । लड़कों का गर्म खून उबाल
खा गया । उन्होंने सड़क के किनारे पड़े पत्थर उठा लिए पर सयाने बुजुर्गों ने
कह-कहा कर उन्हें ठंडा कर लिया । मुखत्यार के चमचे लड़कों को ' ताब ' में
आया देख खिसक गए ।
मुखत्यार
के घर किसी ' जीव के भगवान को प्यारे ' हो जाने जैसा शोक पसरा पड़ा था।
मुखत्यार बाहरी गली के पास बने कमरे में बैठा जारो -जार रो रहा था । उसके 'कटोरी
चाट यार ' अगर रोयें न तो रोने जैसी शकल बना लें ' कहावत को चरितार्थ
करते उल्लुओं की तरह मुंह लटकाए बैठे थे ।
मुखत्यार सिंह कोई बात नहीं अखाड़े में एक जन तो हारता ही है । '' करतार ने उसके कंधे दबाते हुए हौंसला दिया ।
'' '' और क्या … हौंसला रख , यूँ रोने से क्या होगा अब ….? '' बीच से कोई और बोल पड़ा ।
'' हमने इतनी मेहनत की , वह फिर भी साला …. '' मुखत्यार के बोल मुंह में ही लटक गए । वह फिर सुबक पड़ा । दूसरी बार हुई हार ने उसे पूरी तरह कुचल दिया था ।
'' हमने इतनी मेहनत की , वह फिर भी साला …. '' मुखत्यार के बोल मुंह में ही लटक गए । वह फिर सुबक पड़ा । दूसरी बार हुई हार ने उसे पूरी तरह कुचल दिया था ।
'' मुखत्यार सिंह
हौंसला रख हौंसला । क्यों बच्चों की तरह करे जा रहे हो , फिर कौन सी वोटें
नहीं पड़नी । '' बीच से कोई और बोला था ।
'' सीधी तरह तो नहीं जीता , सालों ने कोई रण नीति तो खेली होगी । '' करतार ने हौंसला देने के लिए एक और पैंतरा फेंका ।
''
अगर जीत भी गया तो कौन सा पांच साल सरपंची कर लेगा । एक दो महीनों में ही
लगवा देंगे साले की बूथ । बीच में से चांदी ने शुरली छोड़ी .।
'' अगर तुम सब मेरे साथ हो तो कुछ और मैम्बरों को साथ मिलाकर , दे कर परचा अभी उतार देते हैं । '' मुखत्यार भी ताव में आ गया था ।
'' लो हम भला तेरा साथ कब छोड़ने लगे हैं । तुम आगे चलो हम तुम्हारे साथ हैं । '' करतार सिंह हवा में हाथ हिलाता तसल्ली दे गया ।
'' लो इसे फेंको अन्दर और दुःख को निकालो बाहर । '' सरपंच के
भतीजे ने रूडी मार्का की दो बोतलें लाकर सामने रख दीं । शराब के एक - एक
पैग ने ही सबको गम के दलदल से बाहर निकाल फेंका । वे शराब के नशे में अपनी
हार भूल के गुरदीप का तख्ता पलटने की स्कीमें बनाने लगे ।
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गुरदीप
की पार्टी नाचती हुई भागु के घर आ पहुँची । आते ही सबने लाल परी की सीलें
तोड़ लीं । क्लब के लड़के नाचते - नाचते पसीने से तर ब तर हो गए । पर ख़ुशी
उनके क़दमों की लोर को कम न कर सकी । टेक अपनी भारी आवाज़ से ऊंचे-ऊंचे
ललकारे मारता शेर की तरह गरज रहा था । भगवान ने तीन बोतलें झोले में डाल
लीं और साइकिल में टांग खेत की ओर चल पड़ा ।
''ओये बलोर जीत गए हम '' भगवान साइकिल का स्टैंड लगाकर कोठे के पास बिछी चारपाई पर बैठ गया ।
''ओये बलोर जीत गए हम '' भगवान साइकिल का स्टैंड लगाकर कोठे के पास बिछी चारपाई पर बैठ गया ।
'' कसम खा कर बोल '' बलोर हैरानी से सारा मुंह खोल गया ।
'' तो और क्या । ''
'' आये हाय ! हो ताऊ टिंग-लिंग , हो ताऊ टिंग-लिंग । '' बलोर साइकिल पर बंधे झोले की तेजी से गाँठे खोलने लगा ।
''
सरकार क्या बात हो गई … ? '' पनीरी खोदते साथियों की रोटी बनाता बिहारी
भइया , बलोर के छोटे बछड़े की तरह टपुसी मारने पर हैरान था ।
'' अरे भईया हम जीत गए । '' भगवान ने दो बोतलें झोले से निकाल कर भईये के दोनों हाथों में दे दीं ।
'' अरे सच्च !''
'' ओये हाँ यार … ये शराब किस लिए दी है तुझे ? ''
''
अरे … ! सरदार जीत गया , सरदार जीत गया . ''भईया दोनों हाथों में ली हुई
बोतलों को छलकाता कोठे के बार के सामने नाचने लगा । फिर पनीरी खोदते सारे
भइये कोठे के बार के सामने बलोर के साथ देसी भांगड़ा डालने लग पड़े । ''अरे
भइया, खाइके पान बनारस वाला , खुल जाए बंद अकल का ताला …. '' बीच से एक
गुनगुनाने लग पड़ा ।
सारे भइयों ने कोठे के दाहिनी ओर झुण्ड बना लिया । मिट्ठू और
बलोर बहते नाले में टाँगे लटकाकर बैठ गए । दो कटोरी और लाल परी दोनों के
बीच रख ली ।
'' ले फिर मिट्ठू कर मुहूर्त ;'' बलोर ने कटोरी और बोतल मिट्ठू की ओर सरका दी। मिट्ठू ने कटोरी में ऊँगलियाँ फेर कर हथेली पर झाड लीं और एक छोटा सा पैग गटक गया ।
'' ले फिर मिट्ठू कर मुहूर्त ;'' बलोर ने कटोरी और बोतल मिट्ठू की ओर सरका दी। मिट्ठू ने कटोरी में ऊँगलियाँ फेर कर हथेली पर झाड लीं और एक छोटा सा पैग गटक गया ।
'' क्यों ! आ रहा है लोर !'' बलोर ने एक पैग खुद भी डाल लिया ।
'' क्या पूछता है , यह तो चीज है चीज । जहां से पार होती है बस चीरती जाती
है ।'' मिट्ठू ने प्याज कटोरी से चीर कर एक टुकडा दाढ़ के नीचे दबा लिया ।
दोनों की बे सर पैर की बातें कितनी ही देर चलती रहीं । कभी - कभी कोई मच्छर
नंगी टांगों पर दांत गड़ा जाता । पर ये बेध्याने से ' ए मेरे सालियाँ दा '
कहकर मच्छर की काटी जगह पर थप्पा सा मारकर फिर अपनी बातों में रुझ जाते ।
भगवान दोनों से विदा लेकर चल पड़ा । उसने साँप जैसी बल खाती पही से निकल कर
साइकिल चोए (नाले ) की पटरी चढा ली । चारों ओर गहरा अन्धेरा छा गया था ।
आसमान से कोई - कोई तारा झाँकने लगा था । भगवान को कल करमी के घर जाने का
वादा याद आ गया । वह साइकिल के पैडलों को अपने पैरों से और जोर - जोर से
दबाने लगा , जैसे उसने कल नहीं आज ही जाना हो । साइकिल रात के अँधेरे को
चीरता हुआ , रुण्ड - मरुन्ड कीकरों के नीचे से सरपट दौड़ता जा रहा था .।
4
भगवान और गुरजीत दसवीं तक इकट्ठे पढ़ते रहे थे । गुरजीत दसवीं करके हट गया और अपनी गाड़ी खरीद भाड़े पर चलाने लगा । भगवान आगे पढता रहा और अब चीमे में बारहवीं में दाखिल हो गया था । राहें अलग -अलग होने के बावजूद दोनों की दोस्ती में कोई फर्क नहीं आया था । दोनों पहले की तरह ही एक - दुसरे के घर आते जाते थे । गुरजीत की बहन करमी भगवान को भी अपना दुसरा भाई समझती थी । वह उसे हर रोज़ अपने घर आने की जिद करती . यदि भगवान कभी एक - दो दिन नहीं जाता तो वह उसके आने पर बोलती नहीं , मुंह फेर काम पर लगी रहती । भगवान उसे सौ बहाने लगाता । हर रोज़ आने की हामी भरता , फिर कहीं जाकर वह मुस्कुराती । दोनों एक - दुसरे को छोटी - बड़ी खुशी देने की हर कोशिश करते । करमी, किरना और भगवान के दिलों में एक दूजे के लिए अंकुरित होते प्यार को भांप कर दिल से खुश थी । वह चाहती थी इन दोनों का मेल हो जाये । आज करमी ने सुबह ही संदेशा भेज किरना को बुला लिया था ।
भगवान और गुरजीत दसवीं तक इकट्ठे पढ़ते रहे थे । गुरजीत दसवीं करके हट गया और अपनी गाड़ी खरीद भाड़े पर चलाने लगा । भगवान आगे पढता रहा और अब चीमे में बारहवीं में दाखिल हो गया था । राहें अलग -अलग होने के बावजूद दोनों की दोस्ती में कोई फर्क नहीं आया था । दोनों पहले की तरह ही एक - दुसरे के घर आते जाते थे । गुरजीत की बहन करमी भगवान को भी अपना दुसरा भाई समझती थी । वह उसे हर रोज़ अपने घर आने की जिद करती . यदि भगवान कभी एक - दो दिन नहीं जाता तो वह उसके आने पर बोलती नहीं , मुंह फेर काम पर लगी रहती । भगवान उसे सौ बहाने लगाता । हर रोज़ आने की हामी भरता , फिर कहीं जाकर वह मुस्कुराती । दोनों एक - दुसरे को छोटी - बड़ी खुशी देने की हर कोशिश करते । करमी, किरना और भगवान के दिलों में एक दूजे के लिए अंकुरित होते प्यार को भांप कर दिल से खुश थी । वह चाहती थी इन दोनों का मेल हो जाये । आज करमी ने सुबह ही संदेशा भेज किरना को बुला लिया था ।
'' क्यों …. ? क्या आफत आ गई थी …? '' किरना आते ही करमी को संबोधित हुई ।
'' आफत मुझ पर नहीं तुझ पर गिरेगी मेरी सूरज की किरने । ''
'' क्या ? मुझ पर ?''
'' हाँ तुझ पर ।''
'' जो भी बात है तू सीधे - सीधे बता दे , यूँ ही वकीलों की तरह उलझनों में मत डाल । '' किरना बात को साफ़ - साफ़ सुनना चाहती थी ।
''
बात तो कोई नहीं बस ऐसे ही बुला लिया । '' करमी असल बात छुपा गई । इस डर
से कि कहीं बात बनने से पहले ही न टूट जाए । वह किरना से बातें करती हुई
घड़ी - घड़ी टाइम - पीस की ओर नज़र फेर लेती ।
'' क्यों घड़ी - घड़ी टाइम - पीस की ओर देखती जा रही है ? कोई आने वाला तो नहीं … ? '' किरना ने करमी की कमर में चिंयुटी काटी ।
''
मेरे तो नहीं तुम्हारे ग्राहक जरुर आ जायेंगे जो गाय की तरह टपुसी मारती फिर
रही है । '' करमी ने चिंयुटी का जवाब चिंयुटी में दिया ।
'' किसे बेचने की तैयारी हो रही है … ?'' बाहर से आते हुए भागु ने दोनों की बात सुन ली थी । वह किरना को देख खिल गया था ।
'' आ भागू तुम्हारा ही इन्तजार था । '' करमी ने नीची नज़र किये बैठी किरना की ओर मौन इशारा किया ।
'' हमारा इन्तजार भला कौन करता है यहाँ … ?'' भगवान की प्यार उडीकती
आखें किरना के चेहरे पर जा टिकीं . किरना ने अपने सुरमई नयनों की पलकें अदा
के साथ उठा कर सामने खड़े भागु की ओर सेध लीं । उसका दिल किया कह दे , '
नहीं मेरे हीरया , तुझे उडीकने वाले तेरे सामने बैठे हैं । '
'' भागू तू बैठ मैं अभी चाय बनाकर लाई । '' करमी जान बुझ कर दोनों को अकेला छोड़ गई ।
करमी
चले जाने से कमरे में ख़ामोशी छा गई । पंखे की साँय - साँय और टाईम -पीस
की टिक -टिक साफ़ सुनाई दे रही थी । किरना ने भगवान की ओर धीमे से देखा और
होंठों पर हलकी सी मुस्कान फेंक नजरें नीची कर लीं । किरना की मुस्कान
भगवान के डोलते दिल को हौंसले में ले आई । वह किरना की चारपाई पर थोड़ी दूरी बनाकर
बैठ गया ।
'' तुम लोग पहले कहाँ रहते थे …. ?'' भगवान ने जानते हुए भी पैंतरा मारा .।
''मैं अपनी बुआ के पास रहती थी । बस थोड़े दिनों से ही आई हूँ । ''
'' यहाँ आकर दिल तो लग गया होगा ?'' लडका बात को चलाए रखने के लिए लड़ी से लड़ी जोड़े जा रहा था ।
'' पहले दस - बीस दिन तो लगा नहीं , अब कुछ - कुछ लगने लगा है ।
'' असल में किरना अन्दर से कहीं महसूस करती थी कि यहाँ मेरा दिल तेरे साथ
हुई मुलाक़ात के बाद ही लगा है ।
'' कहीं कोई दिल लगाने वाला
तो नहीं मिल गया …. ?'' भगवान अन्दर के प्यार का मोहरा बना धड़कते दिल और
कांपते होंठों से इतनी बात कह तो गया , पर वह डर से कांपता सोचता रहा 'कहीं
मैंने कोई जल्दबाजी तो नहीं कर ली ।'
'' शायद …हो सकता है … । '' कानों तक लाल हुई लड़की अपने जादुमई
नयन भगवान के सारे चेहरे पर घुमा गई । जिन्होंने उसे अन्दर तक फाड़ दिया ।
'' कौन है वो कर्मों वाला … ? हमें भी तो पता चले । ''
'' खुद ही जान लो । ''
'' यदि हम ही अपने आपको आगे कर दें …. ?'' भगवान आगे से मिलने वाले हाँ पक्ष के जवाब का कयास लगाता होंठों में मुस्काया ।
'' मान लेंगे । ''
'' सच्च !'' भगवान हैरानी और ख़ुशी मिश्रित भावों से उछल पड़ा ।
'' हाँ सच्च !'' लड़की ने फौलाद सा जिगरा कर अपना हाथ भगवान के हाथ पर टिका दिया ।
'' हाय ओये !'' मेरिआ रब्बा , अब तो चाहे जान निकाल ले । '' भागु प्यार के खुमार में बेहोश सा हो गया ।
'' ला पकड़ा जान । '' लड़की ने दोनों हाथों को जोड़ भगवान के आगे कर दिया ।
'' यह ले !'' भगवान ने दिल के पास से हवा की मुट्ठी भर कर हाथों पर रख दी ।
'' क्यों मेरे भाई की जान निकालने लगी है चंदरिये । '' करमी ने दो चाय के गिलास चारपाई के पास लाकर रख दिए ।
'' अगर कोई अपने आप जान लुटाता फिरे , फिर भला हम क्या कर सकते हैं । '' तीनों की हँसी की महक सारे कमरे में बिखर गई ।
अगर साथ को साथ मिल जाये तो बातों का सिलसिला यूँ चलता है कि
समय का पता ही नहीं चलता कब बीत गया । इस तिकड़ी को बातें करते हुए शाम के
चार बज गए पर इनकी बातें अभी तक खत्म होने पर नहीं आईं थीं पर वक़्त किसी के
रोके नहीं रुकता । वह अपनी चाल दौड़ा चला जाता है । किरना को समय का ख्याल
आया तो वह घर जाने को उतावली हो गई ।
'' करमी इतना समय हो गया , मुझे कोई लेने ही नहीं आया अभी तक ? ''
'' कोई बात नहीं हम छोड़ आयेंगे । '' करमी ने भागु को अपने साथ जोड़ कर लड़की को तसल्ली दी ।
'' फिर अभी छोड़ दो , घर माँ अकेली है , इंतजार करती होगी । ''
'' गुरजीत को आ जाने दे वह छोड़ आयेगा । ''
'' उसका क्या पता कब आयेगा । '' किरना घर जाने के फ़िक्र में डूब गई । सूरज लाल सुर्ख हुआ पश्चिम में ऊँघ रहा था ।
'' अच्छा यूँ कर भागु को ले जा साथ । ''
'' क्या पता यह जाये या न जाये । '' किरना भगवान के मुंह से सुनना चाहती थी ।
'' मैं क्या करूंगा । '' लड़का यूँ तो जाने को तैयार था पर सोच रहा था उसे कुछ और जोर डाला जाये ।
'' मैं क्या करूंगा …तूने छोड़ कर मुड़ आना है , और क्या तूने वहाँ मंत्र फुकना है ?. ''करमी भागू को छेड़ती हुई उसके कंधे पर मुक्की मार गई ।
'' अच्छा बाबा अच्छा , चला जाता हूँ । '' भागू झट तैयार हो गया। असल में भागू का अपना मन भी किरना के साथ जाने के लिए ललायित था ।
वे दोनों करमी से अलविदा लेकर चल पड़े । सूरज पश्चिम की गोद में
नीचे उतर गया था । करमी दरवाजे पर खड़ी दोनों को इकट्ठे जाते देख मन ही मन
खुश हो रही थी । '' कितनी सुंदर लगती है जोड़ी '' कहकर करमी मुस्कुरा पड़ी ।
दोनों एक - दुसरे के नजदीक हो -हो बातें करते , हँसते चले जा रहे थे ।
दोनों को बातें करते , हँसते देख करमी गर्व से भर जाती । वह ख़ुशी में कुछ
और ऊंची हो जाती । भगवान और किरना पहे का रस्ता पूरा कर पीछे मुड़कर झांके ,
करमी अभी भी दरवाजे पर खड़ी देख रही थी । दोनों मुस्कुराते हुए फिर बातों
में व्यस्त हो गए ।
'' मैंने सुना तुमलोग यहाँ बाहर से
आकर बसे हो … ?'' चाहे भगवान को इस बात का जरा सा पता था पर उसने अच्छी तरह
जान्ने के लिए बात चला ली ।
'' हाँ मेरे बापू बताते थे की हम लोग बुन्गां से आये हैं । ''
कौन से बुन्गां से … ?''
'' पकिस्तान से । ''
'' अच्छा तो फिर तुम लोग रफ्युजी हो । ''
'' हाँ ।''
'' फिर तुम लोग यहाँ कैसे आ गए ? '' भगवान के दिल में किरना के बारे में और अधिक जानने की इच्छा प्रबल हो गई ।
'' मेरे बापू पहले पाकिस्तान के पिंड बुन्गां में रहते थे , वहां हमारी सारी जमीन मारू
होने के कारण फसल कम होती थी । फिर बातें होने लगीं कि देश का बंटवारा
होगा । हिन्दुओं और मुसलामानों के दो अलग अलग देश हो जायेंगे । फिर धीरे
-धीरे हल्ला तेज हो गया , अभी कोई वारदात नहीं हुई थी कि हम यहाँ आ गए ।
तब मेरा बापू कुछ दिनों का अभी गोद में था । यहाँ करमी के घर वालों से हमारी
रिश्तेदारी निकली मेरे ननिहाल की तरफ़ से । इन्होंने हमें यहाँ जमीन दिलवाई ।
फिर हमने यहीं घर डाल लिया । ''
'' यहाँ दिल लग जाता है अकेलों का … ?'' भगवान ने चाल थोड़ी तेज कर दी ताकि जल्दी मुड़ सके ।
'' तेरे जैसे आते -जाते सड़क पर बहुत मिल जाते हैं ।'' लड़की ने छेड़ते हुए आस - पास देख कर हौले से लड़के की कमर में कोहनी मार दी ।
'' क्यों मारती है बैरन ,, मैं तो पहले ही तेरे प्यार में मरा तड़प रहा हूँ ।''
'' अभी क्या तड़पे हो अभी तो और तड़पना पडेगा बच्चू ।''
'' ना बाबा ना यह जुल्म मत करना दास पर , मैं तो पहले ही मर जाऊंगा । '' भागू ने दोनों हाथ कानों से लगा लिए ।
'' दोनों बिना किसी डर के बातें करते सड़क पर चले जा रहे थे ।
आसमान में उड़ते पंछियों की तरह कभी एक - दुसरे से फासला कर लेते तो कभी
नजदीक आ जाते । चारो ओर बिहारी मजदूर काम में जुटे हुए थे । आधे से ज्यादा
धरती धान से हरी - पीली दिखाई दे रही थी और बाकी के खेतों में खड़ा पानी
चांदी की तरह लिशकारे मार रहा था । हवा के झोंके खेतों के खड़े पानी संग
घुलकर लू की जगह अब ठन्डे हो गए थे । सड़क पर चले जा रहो को कोई एक आध
साइकिल सवार या स्कूटर वाला दिखाई देता , जो इनकी ओर अजीब सा देखते हुए आगे
निकल जाता । जब घर आये तो सचमुच ही किरना की माँ के सिवा घर में कोई नहीं
था ।
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' जी भर गया होगा अब तो । '' गुरनैब ने दोनों को ताना मारा। .
'' नहीं भूख और बढ़ गई है। '' भागू बोला।
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भगवान बीते समय को याद करता हुआ खेत जा पहूँचा। वह खाल में टाँगें लटकाकर किनारे बैठ गया। खाल के सामने उगे छोटे - छोटे घास पर तरेल की बूंदें सूरज की रौशनी में मोतियों की तरह चमक रहीं थीं। भगवान उनकी ओर टकटकी लगा कर देखने लगा । कितनी सुंदर, पवित्र और मासूम सी लगती हैं ये बूंदें , बिलकुल करमी की तरह। सच्च ! करमी भी तो इनकी तरह सुंदर , पवित्र और भोली सी है. उसे भी इन बूंदों की तरह अपनी सुंदरता पर फक्र नहीं। वह सबका मोह करती है , दिल में किसी के विरुद्ध नफरत नहीं। सूरज की रौशनी की तरह सबको बराबर प्यार बांटती है। कितना अच्छा है उसका दिल , कितनी भोली है बेचारी , हर एक को अपना बना लेती है। मैं भी तो उसका कुछ नहीं लगता था पर अब मुझ पर कितना हक़ रखती है। मुझे अब भी याद है , जब मैं पिछली लोहड़ी पर दस दिनों बाद उनके घर गया था। वह पहले तो मेरे साथ बोली ही नहीं , नाक चढ़ा कर फिरती रही , कहती रही इतने दिनों बाद क्यों आये हो। बड़ी मुश्किल से मनाया था । फिर उसने हँसते हुए अन्दर से गच्चकें मेरे सामने लाकर रख दीं। जब मैंने उसे इसके बारे पूछा था तो बड़े मान से बोली थी , '' वीर जी आप लोग मेरे दो वीर हो। उस वीर ने तो अपने हिस्से की खा लीं थीं , आपका हिस्सा रह गया। '' यह सुनकर मेरी आँखों में उसके लिए प्यार के आँसू छलक आये थे और बोला था परमात्मा मैं तेरा शुक्रगुजार हूँ , जिसने मुझे बहन के रूप में देवी बख्श दी। भगवान भूतकाल से निकल कर वर्तमान में आ गया। उसे महसूस हुआ , जैसे उसकी आँखें अब भी नम हैं। भगवान को याद आया कि मैं अब भी तो कई दिनों से करमी के घर नहीं गया। वह जरुर नाराज़ होती होगी। इस सोच ने भगवान को वहां से उठाकर गाँव की ओर बढ़ा दिया। उठते वक़्त ठण्ड की झनझनाहट सी सारे शरीर में फ़ैल गई। उसे पैरों से लेकर सर तक कंपकंपी सी आ गई। सूरज और गर्म हो गया था। खेतों से पिंड तक आते हुए उसे दुशाला ओढ़ना अनावश्यक लगा। घर जाकर दुशाला उतार दिया और साइकिल उठाकर नए गाँव की रह पकड़ ली।
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''ताई घर में कोई नज़र नहीं आ रहा ? … ।'' भगवान ने स्वभाविक ही पूछ लिया ।
'' भाई सारे खेतों में गए हुए हैं जीरी (धान की पौध ) लगाने ।''
''अभी कितनी बाकी है … ?''
'' बस दो - तीन दिन एकड़ रह गई , परसों तक खत्म हो जाएगी । तूने अच्छा किया जो किरना को छोड़ने आ गया ,
यहाँ तो कोई लाने वाला ही नहीं था । ''
'' अच्छा ताई मैं चलता हूँ । '' भगवान जाने के लिए तैयार हो गया ।
'' नहीं - नहीं तू बैठ , मैं दूध बनाकर लाती हूँ । पी कर जाना । '' लड़की लड़के की ओर आँखें दिखाती हुक्म दे अन्दर चली गई ।
'' अच्छा फिर जल्दी कर । '' भगवान गेट के सामने बने कमरे में बैठ गया । किरना थोड़े समय बाद ही दूध बना लाई ।
'' लो भागू जी । '' लड़की ने दूध का गिलास बड़े अदब से भागू की ओर बढाया ।
'' क्यों फीका ही पिला रही हो कुछ मीठा भी डाल दिया होता । ''
किरना
झट समझ गई । उसने अपने गुलाबी होंठों से एक घूंट भरा और फिर गिलास भागू को
पकड़ा दिया । भागू ने दूध पी कर खाली गिलास किरना को पकड़ाया और बोला ,'' अब
जाने की आज्ञा मिलेगी बाबयो … ?''
'' हाँ अब आप जा सकते हो , पर अब मिलने जरुर आ जाया करना । ''
'' अगर बुलाओगे तो जरुर आयेंगे मालिको ।''
'' हाँ सच अभी जाने की आज्ञा नहीं । '' किरना को जैसे कुछ भूला हुआ याद आ गया था ।
'' बताओ जी । '' भगवान अद्भुत लोर में पैरों से लेकर सर तक डूबा हुआ था ।
'' मैंने सुना आप कुछ लिखते भी हो … ?''
'' न तुझे किसने बता दिया … ?''
'' मुझे सब पता है , ज्यादा चालाकियाँ मत कर ,सुनाना तो होगा ही आज कुछ, मुझे नहीं पता । ''
किरना अड़ गई ।
'' अच्छा ले फिर सुन ….
तेरे हुस्न के चर्चे
हर मोड़ गली
मुण्डियाँ ते डोरे पौन वालिये
तेरी संभदी नहीं अजे नली …. हा …. हा …। ''
भागू छलाँग मार दूर जा खड़ा हुआ , '' अच्छा जी हम चले … ''
किरना मुक्की दिखाकर उसकी ओर भागी पर वह तो सड़क पर जा चढ़ा था ।
भगवान ने सड़क पर जाकर हाथ हिलाया । किरना ने दूर खड़ी ने मुक्की दिखा दी ।
जो रास्ता भगवान ने किरना के साथ पलों में पार कर लिया था अब दुगुना लगने
लगा । पहले उसने करमी की ओर जाने का मन बनाया पर फिर घर की ओर ही चल पड़ा ।
5 .
मुख्त्यार
की हार ने उसे पूरी तरह तोड़ कर रख दिया था . हार का दुःख न सहन कर पाने
की वजह से वह बीमार पड़ गया । एक - दो महीने इलाज़ चलता रहा पर कोई फर्क न
पड़ा । डाक्टर ने सलाह दी कि वह जरा बाहर घूम फिर आये पर अपनी नमोशी भरी हार
से वह लोगों को मुंह दिखाने से झिझकता था तो फिर उसके दोस्तों मित्रों ने
उसे हौंसला देना शुरू कर दिया । उसकी गिरती दीवार को दोबारा खड़ा करने की
खातिर । अब मुख्त्यार और मुख्त्यार के ' कटोरी चाट ' यार हर रोज़ ही गुरदीप
को सरपंची की गद्दी से उतारने की योजनायें बनाते रहते पर कोई योजना पूरी
तरह कारगार सिद्ध न होती । आखिर इस बात पर सारे राजी हो गए कि क्यों न हम
सारे मैम्बरों को अपनी ओर खींच लिया जाये । फिर साला अपने आप मैंने की तरह मैं -मैं करेगा ।
उन्होंने पूरी जोर शोर से मैम्बर अपनी ओर जोड़ने शुरू कर दिए । दो मैम्बर
उन्होंने आसानी से अपनी ओर खींच लिए । पर अब जो कठिन काम था बाकी के
मेम्बरों को अपनी ओर खींचना । सब से पहले उन्होंने श्रवण को बस में करना
शुरू कर दिया . करतार दिन ढलते ही बोतल लेकर श्रवण के घर जा धमका ।
'' ओये और बता श्रवण सिंह क्या हाल -चाल हैं तेरे … ?'' करतार ने हाथ मिलाते हुए जोर से दबाया ।
'' बस भाई टाईम पास है । '' श्रवण के अन्दर की गरीबी बोल पड़ी । वह करतार को बिना पलस्तर किये खण्हर जैसे छोटे से कमरे में ले आया ।
'' टाईम पास ही करना है हम लोगों ने और यहाँ क्या रखा है। .'' कहता हुआ करतार बैठक में रखी चारपाई पर बैठ गया। .
'' करना तो टाईम पास ही है भाई। . '' श्रवण बात को ज्यादा खींचने के बजाय उसी से सहमत हो गया। .
'' और सुना नई - ताज़ी । . ''
'' हमने क्या सुनानी है भाई , आप सुनाओ आज गरीब के घर कैसे दर्शन दिए ? ''
''
भाई जी कोई गरीब अमीर नहीं। .यह तो बस लोगों ने बनाया हुआ है। . अगर अमीर
बनना है तो दिल का अमीर बने । ऐसे ही कह देते हैं यह चमार , यह हरिजन यह
फलां यह ढलां। . खून तो सबका एक ही है। . सच पूछो तो मुझे आज तुम्हारे संग
पीने का दिल कर आया। . इसी लिए अब सीधा बोतल लेकर तुम्हारे पास ही आया हूँ।
. '' करतार ने दाना डालना शुरू कर दिया। बात अपने अनुकूल होती देख , बोतल
निकाल श्रवण के आगे रख दी। .
'' अगर तुम्हारा मन मेरे साथ पीने का है तो मैं कौन सा मोड़ रहा
हूँ। . यह भी तुम्हारा अपना ही घर है , जब मर्जी आ जाना। . '' श्रवण ने भी
बोतल पर लारे गिरा लीं। .
'' ले डाल फिर। . ''
'' एक मिनट। . '' श्रवण अलमारी से कांच का गिलास निकाल कर बोतल
के पास रख गया और बाहर से पानी का जग भर लाया। . थोड़ा पानी गिलास में डाल
कर धो दिया और मुड़ शराब से आधा कर अन्दर गटक गया। .
'' मैम्बर इस बार तो पिंड को ग्रांट भी बहुत मिल गए लगता है। . '' करतार ने भी एक पैग चढा खुश्क मुछों पर हाथ फेरा। .
'' भाई ग्रांट को ग्रांट वाले जाने। . ''
'' नहीं यार मैम्बर तो तू भी है हिसाब लिया कर । ''
'' हमने हिसाब लेकर क्या करना । पिंड के पैसे हैं पिंड में लग जायेंगे। . ''
'' अगर पैसे पिंड में ही लगें तो फिर हिसाब की क्या जरुरत है। . ''
'' और फिर कहाँ लगते हैं। । ?'' श्रवण के माथे की त्योरियों पर प्रश्न चिन्ह उभर आया। .
'' आपको इस बार स्कूल के कमरों में कितने लगते हैं ?… '' प्रश्न का उत्तर देने की बजाए करतार ने एक और प्रश्न खड़ा कर दिया। .
'' लगा होगा डेढ़ लाख जैसा। . ''
'' डेढ़ लाख जैसा '' करतार ने ऊपर से नीचे की ओर सर हिलाया , बाकी कहाँ गए पता कुछ ? करतार उस पर पानी की तरह फ़ैल गया ।
'' किधर गए ?'' श्रवण ने उत्तर देने की बजाये वही प्रश्न वापस मोड़ दिया ।
'' जाने किधर हैं , खा गया साला । "
'' अच्छा मुझे नहीं पता था इस बात का। . '' श्रवण तबक कर बोला , जैसे कोई अँधेरे में फिर रहे के आगे उजाले की किरण ले आया हो ।
'' अभी तो इसी में से इतने खा गया , जो आगे गरान्टें आयेंगी उनका क्या होगा ?'' करतार ने एक मोटा पैग और चढ़ा लिया। .
'' चल छोड़ यार खुद ही भरेगा साला। . '' श्रवण थोड़ा नरम पड़ गया। .
'' भरने - भराने को कौन देखता है श्रवणा , तू खुद ही देख उसका कोई बच्चा इस स्कूल में पढता है क्या … ?''
'' ना '' श्रवण ने ढोल की तरह सर हिला दिया । .
'' फिर उसे पैसे लगाने की क्या जरुरत है। उसके एक लड़का है वहीं प्राइवेट स्कुल में दाल रखा है . यहाँ तो तेरे जैसे गरीबों के बच्चे पढ़ते हैं। . ''
'' अगर खा ही गया तो कौन सा अब वापस कर देगा। . '' श्रवण ने बेबसी जाहिर की। .
'' अगर मोड़ता नहीं तो अगली गरांटें तो नहीं खायेगा। . ''
'' अगर मोड़ता नहीं तो अगली गरांटें तो नहीं खायेगा। . ''
'' वह कैसे ?''
'' अगर सारे मैम्बर एक तरफ हो जाएँ तो दो मिनट लगेंगे तख्ता पलटने में । . '' करतार चुटकी मार गया । .
दोनों ने एक -एक पैग और अन्दर कर लिया। .
''
यार हम तो कुछ कर भी नहीं सकते । . लोग कहेंगे खुद ही बनाकर खुद ही हटा
दिया । . '' श्रवण ने आम के अचार की गुठली चूस कर मुड़ कटोरी में रख दी। .
'' अगर कोई अपना काम ही न करे फिर हमने उससे क्या करवाना। . '' करतार धीरे - धीरे श्रवण को कब्जे में करने की कोशिश में था। .
'' यह तो भाई तुम्हारी बात सोलह आने की है। . '' वह हाँ में हाँ मिला गया। .
'' भाई जी अगर तू मेरी मदद करे तो पौ- बारह हो जाए। . ''
हम कौन सा तेरे से भागे जा रहे हैं करतार सिंह , जहाँ जी करे जोड़ लेना। . ''
'' बस फिर , अगर तुम हमारे साथ हो , उसका अभी कर देते हैं घोगा चित्त। .'' करतार चारपाई से उठ खड़ा हुआ। .
करतार ने श्रवण से कस के हाथ
मिलाया और चल पड़ा । अपनी ओर से वह श्रवण को पटाने की पूरी कोशिश कर आया
था। जब वह बाहर निकला , गली में काफी अन्धेरा हो चुका था पर लोग अभी आ जा
रहे थे। . करतार लड़खड़ाता हुआ दरवाजे से अपने घर की गली की ओर मुड़ गया ।
श्रवण के घर पीकर उसे अच्छा नशा हो आया था। . वह अपने घर के आगे जाकर रुक
गया। घर का गली वाला दरवाजा ढोया हुआ था। . उसने उसे धकेल कर नहीं देखा
और न ही आवाज मारी। . वह वहीँ खड़ा कुछ सोचता रहा और फिर वापस परत गया। .गाडों के बड़े
दरवाजे के पास आकर सीधा मुख्त्यार के घर की ओर चल पड़ा। . आगे चाँदी ,
मुख्त्यार और मुख्त्यार का भतीजा जग्गी बैठे करतार का ही इन्तजार कर रहे
थे। .
'' क्यों फँसा चूहा पिंजरे में ?'' जग्गी जानने के लिए उतावला हो उठा। .
'' हम फँसाए बिना छोड़ते क्या ?'' करतार ने छाती फुला कर कहा। .
'' अच्छा ले फिर लगा ले घूँट ? मुख्त्यार ने गिलास और बोतल करतार की ओर सरका दी। .
शराब का दौर चल पड़ा। . सबके चेहरों पर ख़ुशी की लहरें दौड़ रहीं
थी , जैसे कोई बड़ी जंग जीत ली हो। . वह एक तरह से जंग ही तो लड़ रहे थे। .
अपने मिशन का पहला पडाव सहज ही पूरा कर लिया था। . अब दुसरे मैम्बरों को
बस में करने की बारी थी। . कुछ समय हो हल्ला होता रहा अंत में अगले मेंबर
को बस में करने के लिए चाँदी के जिम्मे डाला गया , जो चाँदी के खेत का
पड़ोसी था। . चाँदी ने इसे सहज ही कबूल कर लिया। .
चाँदी कई दिन जूते घिसाता जिउणे
मैम्बर के पीछे घूमता रहा । उसने लाख कोशिश की , कई पापड बेले पर कुछ हाथ न
लगा। . वह दांत किटकिटाता मूत की झाग की तरह बैठ गया। . फिर करतार, फिर
जग्गी सबने अपने - अपने दाव -पेच चला कर देख लिए पर जिउणा टस से मस न हुआ।
. आखिर थक - हार कर पीछा ही छोड़ दिया। .
अब
यह मंडली हर रोज़ नया पैंतरा सोचने के लिए बैठ जाती और काफी रात तक शराब के साथ -
साथ गुरदीप को फसाने की नई - नई जुगतें लगाई जातीं। . ' जितने मुंह उतनी
बातें ' कहावत की तरह हर कोई अपनी - अपनी राय देता पर किसी न किसी को यह
फिट ना बैठती। . इसी तरह एक - दो महीने बीत गए। . एक दिन शाम को हांफता
हुआ जैलू सरपंच की जुडी मंडली के पास आया , '' स … स … सरपंच !गुरदयाल
और उसके साथियों ने गली बंद कर ली। .
''क्यों …. ? '' मुख्त्यार ने माथे पर बलों से शिव जी का त्रिशूल बना लिया ।
'' पता नहीं। . ''
'' पता नहीं। . ''
'' न ऐसे कैसे गली बंद कर लेंगे। . उनके बाप का राज है क्या ?'' मुख्त्यार गुस्से में लाल हो गया। .
'' ओये यह सारी करतूत गुरदीप की होगी .'' करतार की सोच के आगे मौजूदा सरपंच घुमने लगा। .
''
फिर वह क्या कर लेगा साला, चलो दीवार गिरा कर आयें। . देखते हैं कौन हटाता
है। . '' जग्गी ने कोने से लगा गंडासा उठा लिया। . बाकी भी उसके साथ चल
पड़े। . जग्गी सबसे आगे सांड की तरह बिफरा जा रहा था। . उसके हाथ का गंडासा
पक्की वीही में 'ठक- ठक ' बजता जा रहा था। . आगे बढ़े तो गली खाली भांय
-भांय कर रही थी। . सारे गली में की गई दीवार के पास पहुँच गए। . कमर तक
आती टेढ़ी - मेढ़ी दीवार खुद ही बनाई लगती थी। .
'' क्यों कैसे करें … ?''
'' देखता क्या है गिरा दे। . '' मुखत्यार ने जोश दिलाया। .
जग्गी
ने गीली दीवार को धक्का दिया तो दीवार 'धाड़' सी गिर पड़ी । गिरती दीवार की
आवाज़ होते ही ' टी… ई… टी …' करता एक पत्थर का टुकडा जग्गी के कान के
पास से पार हो गया। . '' इसकी माँ की …. !'' जग्गी गंडासा उठाकर पत्थर आने
की दिशा में दौड़ पड़ा पर सरपंच ने उसे बांह से पकड़ कर खींच लिया , '' अब
हमें क्या जरुरत है , अपना काम हो गया, चलो चलें। . ''
सारे उलटे पैर भाग खड़े हुए। . भागते-भागते एक और पत्थर उनके
पैरों में आ लगा । गुरदयाल और उसकी घरवाली सीतो और दो लोग पत्थर उठा कर
मारते गली तक आ गए थे । जब और पास आये तो दीवार गिरी हुई दिखी। . सभी कुछ
समय तो वहां खड़े रहे फिर विरोधी पक्ष को गालियाँ निकालते धीरे - धीरे घरों
की ओर चल पड़े। . गली सूनी थी। .
6
जब
मनुष्य बहुत ज्यादा दुखी हो या हद से ज्यादा खुश हो तो वह अपने एक ऐसे
करीबी की खोज करता है , जो उसके विचारों से मेल खाता हो , जिसे वह सारा
अपना दुःख - सुख बेझिझक बता सके । अपनी ज़िन्दगी के उतार - चढाव उसके आगे
खोल सके। . उसे गम बताये गम कम हो जाये, ख़ुशी सांझी करने से ख़ुशी दुगुनी हो जाए। .
ऐसी स्थिति में ही गाढ़ी मित्रता का जन्म होता है। ऐसी ही मित्रता थी भागू
और राजे के बीच । भगवान का राजे के साथ बातें करने के लिए पेट ऊपर तक भरा हुआ
था। . उसका दिल उतावला हो - हो जाता कि मैं कब राजे से ख़ुशी सांझी कर लूँ।
. वह शाम छ: बजे तक जल्दी - जल्दी काम निपटाता रहा। सारे काम निपटा कर वह
राजे के घर की ओर चल पड़ा। . राजा घर ही मिल गया '' भागू ! ओये ईद का चाँद ही
हो गया तू तो , कभी आता ही नहीं इधर ?''
'' यार टाईम ही नहीं मिला। . '' भगवान ने हाथ मिलाया ।
'' और सुना पढाई -वढाई ठीक चल रही है ? ''
'' हाँ यार ठीक है। . ''
'' चल , ऊपर चल कर करते हैं बातें। . '' राजा भागु को कोठे के ऊपर ले गया।
दिन पूरा ढल चुका था। मटमैले आसमान में उड़ते कौओं की कतार दक्षिण की ओर
तेजी से बढ़ रही थी। . सूरज ने पश्चिम का सीना खून की तरह लाल कर रखा था। .
सामने कोठे पर दो लडकियां सुबह के डाले कपड़े उठाने में जुटी थीं। . राजा और
भागु बनेरे पर बैठ गए। .
'' सुना यार कोई परी की बातचीत, दयाल हुई या नहीं तुझ पर ? '' राजे ने लड़के का कंधा थपथपाया। .
'' हम करे बिना छोड़ते हैं। .''
'' ओये सदके बेलिया ! क्या बोलती फिर ? '' राजे ने ऐसे मुँह फाड़ लिया जैसे बातें कानों से नहीं मुँह से सुननी हो ।
'' अब तो मरती है तेरे वीर पे , कहती है जल्दी मिल के जाया कर। . ''
'' अच्छा ! मिला फिर ?''
'' हाँ !''
'' कब ?''
''छ: दिन हुए। . ''
'' छ दिन हो गए ? राजे के
माथे पे हैरानी की लकीरें उभर आईं , '' ओये जा यार, अगर तेरी जगह मैं होता
तो एक दिन में दो - दो बार मिलता। . ''
'' क्या करें यार , हर रोज़ उसके घर वाले नहीं आने देते। . ''
लड़के ने बेबसी जाहिर की क्योंकि जिस दिन करमी संदेशा देती या खुद जाकर ले
आती , उस दिन ही गुरजीत के घर मिला जाता। .
'' फिर तेरी कौन सी टाँगे टूटी हुई हैं खुद चला जाया कर। . ''
'' मुझे वहाँ रोज़ कौन घुसने देगा ?''
''
ओये भोंदू ! तूने उनके घर थोड़े ही जाना है , सारी सड़क पड़ी है , सड़क का एक
आध चक्कर लगा आया कर कभी तो मिलेगी। ''. राजे ने जुगत बताई। .
'' चल ऐसा करके भी देख लेंगे। .''
'' देखना क्या है अभी चल। ''
'' अभी ?''
'' तू चल तो सही ;'' राजा ने भागू की बाँह पकड़ खींच लिया। बाहर आते ही गुरनैब मिल गया। . तीनों ने चीमियाँ को जाती सड़क पकड़ ली।
'' अगर बाहर मिल गई तो क्या कहूँगा ? भगवान ने गुरनैब से सलाह माँगी।
'' कह देना रात को आऊँगा। .''
'' कितने बजे कहूँ ?''
'' ग्याराह बजे कह देना। ''
जब तीनों किरना के घर के पास पहुँचे तो किरना कचरा फेंकने बाहर
आई और कूड़ा रूडी के ऊपर फेंक वापस परत गई। . गुरनैब ने किरना को मुड़कर जाते
देखा तो दोनों हाथों से ताली मारी। . लड़की देख कर रुक गई , राजा और गुरनैब
तेज क़दमों से आगे बढ़ गए। .
'' रात को ग्यारह बजे आऊँगा । .'' भगवान लड़की के पास रुक गया ।
'' न नहीं … नहीं। .'' किरना ने तेजी से इनकार में सर हिलाया। .
''
मैं जरुर आऊँगा , तुम आना चाहे न आना। . '' भगवान किरना का जवाब सुने बिना
ही आगे बढ़ गया। किरण ठगी सी कुछ देर वहीँ खड़ी रही फिर अन्दर चली गई। .
'' क्या कहती फिर कबूतरी ? '' गुरनैब मस्ती में फुसफुसाया। .
'' कबूतरी डरती है घर वाली बिल्लियों से। .''
'' क्यों क्या हुआ ? '' गुरनैब उबलते दूध में मारे पानी के छींटों की तरह एकदम से ढीला पड़ गया ;;
'' वह तो इनकार कर रही थी मैंने कह दिया तू चाहे आना या न आना मैं जरुर आऊँगा ।''
'' ओये सदके तेरे। .'' गुरनैब दूध के नीचे दुबारा लगाये झोंके की तरह लड़के की पीठ पर थापी देकर उछल पड़ा ।
तीनों चीमियों को जाती सड़क पर चल पड़े। इसी सड़क पर आगे जाकर
राजे का खेत पड़ता था। खेत पहुँच कर वे कोठे के आगे बनी खेल पर बैठे शाम
तक बातें करते रहे। . जब वापस मुड़े तो सूरज कब का ढल चुका था। अब तो आसमान
में पहला मोटा तारा भी झाँकने लगा था। . अन्धेरा धीरे - धीरे अपने आस -पास
को गिरफ्त में लेने लगा था। .
पिंड तक आते - आते
वे रात को आने की सलाह बनाते रहे। आखिर फैंसला कर लिया कि तीनों की बजाय
दो का आना ज्यादा ठीक रहेगा। राजे को घर भेज दिया और उसके हाथ गुरनैब के घर
संदेशा भिजवा दिया कि वो आज भगवान के घर ही रहेगा। दोनों रोटी खाकर बैठक
में आ गए। साढ़े नौ बजे तक दोनों बातें करते रहे और फिर चारपाई डालकर लेट
गए। चारपाई पर पड़े दोनों एक - दुसरे को देखते और फिर उनकी नज़र घड़ी की ओर
चली जाती। समय ने जैसे चींटी की चाल पकड़ ली थी। एक - एक मिनट पहाड़ बन
गया था। . फिर भी समय का चक्कर , चक्कर काटता समय को कुतरता रहा और सुई दस के
ऊपर आ खड़ी हुई।
'' चल फिर भागु हो जा तैयार। टाइम देख दस बज गए हैं। '' गुरनैब ने जुत्ती पहनते हुए घड़ी की ओर इशारा किया। .
'' हाँ चल। '' लड़का छलांग लगा उठ खड़ा हुआ।
'' कोई कपड़ा तो नहीं उठाना। ''
'' छोड़ कौन सी ठंड है। ''
'' हवा की ठंड होगी । ''
'' चल ले - ले फिर एक - आध । ''
'' ये ले चलते हैं। '' गुरनैब ने बिस्तर पर बिछाई चद्दर उठा ली ।
कमरे की लाइटें बुझाकर उन्होंने बाहर गली की ओर खुलता द्वार
खोल लिया । बाहर आकर द्वार को कुण्डी लगा अन्दर पड़े घर वालों की हल्की सी
सुध ली। जब सभी तरफ़ से संतुष्ट हो गए तो दोनों चल पड़े। . बाहर चलती ठंडी हवा
शरीर पर के लोम खड़े करती ठण्ड होने का एहसास करवा रही थी । आसमान में
टिमटिमाते तारों में गोल चाँद प्रधान बना खड़ा था। आसमानी लाखों तारे चमकते
हुए ऐसे जान पड़ते थे मानों किसी ने हीरों से भरा थाल उलटा कर दिया हो और
उनमें पड़ा कोहेनूर हीरा चाँद हो । चाँदनी रात होने के कारण कोई भी चीज
दूर तक देखी जा सकती थी। दोनों बातें करते गांव से काफी दूर आ गए थे। अब गाँव में एक - आध ही बल्ब चमक रहा था या फिर गली में कुत्तों के भौंकने की
मद्धम सी आवाज़ आ रही थी। खेतों में कोठों पर लगे बल्बों से पता चलता था कि खेतों
वाली लाईट आ चुकी है। वे किरना के घर से कुछ दूर फासले पर रुक गए। सामने
की सड़क से दूर कोई लाईट इनकी ओर बढ़ी चली आ रही थी। .
'' ओये लगता कोई स्कूटर आ रहा है। '' गुरनैब ने भागू को सचेत किया।
'' आ जा इधर बेरी के पेड़ के पीछे हो जा । ''
'' चल । '' दोनों बेरी की ओट में हो गए । स्कूटर पास से ख …र … र … र करता पार हो गया ।
'' इस समय कौन साला भटक रहा है ? '' भागू ने दूर पार हो गए स्कूटर सवार को देख कर कहा ।
'' कोई होगा बेचारा अपने जैसा भगत । ''
'' ही … ही …. ही । '' गुरनैब की बात पर दोनों हँस पड़े.
'' ओये भागू ! अरे तूने उसे कोई जगह भी बतलाई थी …?''
'' ओये भागू ! अरे तूने उसे कोई जगह भी बतलाई थी …?''
'' नहीं । ''
'' ओये वाह ओये तेरे यारा । '' गुरनैब चिंता में डूब गया ।
''चल हम यूँ करते हैं , तू पीछे के दरवाजे के पास बैठ जा और मैं इधर बैठ जाता हूँ । '' भागू ने तरकीब बतलाई ।
गुरनैब घर के पिछले दरवाजे के पास बैठ गया और भगवान अगले दरवाजे से कुछ हट कर सड़क की ओर मुँह करके बैठ गया ताकि सड़क पर आते जाते लोगों पर भी नज़र रख सके। भागू कलाई पर बंधी घड़ी को बार - बार चाँद की ओर करके समय देखता । घड़ी की टिक -टिक के साथ उसके दिल की टिक -टिक बढती जा रही थी। . ग्यारह से पांच मिनट ऊपर हो गए । उसका धड़कता दिल शंकाओं से गुजरने लगा । अचानक पीछे की ओर से कोई रेशम जैसी चीज भागू की आँखों के आगे आई। जब इस रेशम को उसने हाथों से टटोला तो यह पतली - पतली उँगलियों का आकार था । . भागू का हाथ रेशम की उँगलियों से होता हुआ कोहनी तक चला गया । . कोहनी पकड़ कर उसने हल्का सा झटका दिया , अगले ही पल रेशम की किरण भागू की गोद में थी । चाँद शर्माता हुआ बदली के पीछे छुप गया। .
गुरनैब घर के पिछले दरवाजे के पास बैठ गया और भगवान अगले दरवाजे से कुछ हट कर सड़क की ओर मुँह करके बैठ गया ताकि सड़क पर आते जाते लोगों पर भी नज़र रख सके। भागू कलाई पर बंधी घड़ी को बार - बार चाँद की ओर करके समय देखता । घड़ी की टिक -टिक के साथ उसके दिल की टिक -टिक बढती जा रही थी। . ग्यारह से पांच मिनट ऊपर हो गए । उसका धड़कता दिल शंकाओं से गुजरने लगा । अचानक पीछे की ओर से कोई रेशम जैसी चीज भागू की आँखों के आगे आई। जब इस रेशम को उसने हाथों से टटोला तो यह पतली - पतली उँगलियों का आकार था । . भागू का हाथ रेशम की उँगलियों से होता हुआ कोहनी तक चला गया । . कोहनी पकड़ कर उसने हल्का सा झटका दिया , अगले ही पल रेशम की किरण भागू की गोद में थी । चाँद शर्माता हुआ बदली के पीछे छुप गया। .
'' उस समय तो बड़ी ना - ना कर रही थी . ''
'' मेरा भागू इतनी दूर से चल कर आये और मैं घर से उठकर भी न आऊँ। .'' किरना भागू की गिरफ्त में छुपती जा रही थी।
चल उठ , गुरनैब की भी थोड़ी सुध लें। '' भागू ने गिरफ्त ढीली कर उसे खड़ा किया।
'' गुरनैब भी आया है तुम्हारे साथ ? ''
'' हाँ । ''
'' कहाँ है ? ''
'' दुसरे दरवाजे पर , हम तुम्हें जगह बतलानी तो भूल ही गए थे , इसलिए उसे उधर बैठाना पड़ा . ''
'' गुरनैब ! '' भागू ने दबे क़दमों से पीछे की ओर से जाकर गुरनैब के कंधे पर हाथ रखा ।
क
… क क कौन ? '' गुरनैब डर से तबक सा गया। भागू और किरना हँसी न रोक
सके। . '' वाह ओये डरपोक ! तुम तो जरुर मारोगे शेर , चल आ उधर चल कर बैठते
हैं। '' तीनों वहाँ से सड़क पर आ गए।
'' तुम लोग उधर जा कर बातें करो मैं इधर बैठता हूँ। '' गुरनैब
ने सड़क से कुछ हट कर खड़े टाहली के पेड़ की ओर इशारा किया ताकि चांदनी रात
में वे टाहली के पेड़ के अँधेरे में किसी की निगाह में न आ सकें । जोडी
टाहली के पीछे जा बैठी। . उन्होंने देखा उनसे थोड़ी दूरी पर खरगोश और
खरगोशिनी आपस में कलोलें करते , खेलते , टपुसियाँ
मारते , एक दुसरे के पीछे भागते कितने प्यारे लग रहे थे। कितनी ही देर
दोनों इस जोड़ी को कलोलें करते देखते रहे। अपना मिलना भूल कुदरत की बनाई इस
खूबसूरत किरत की तारीफ़ करते रहे।
'' भागू कितने आज़ाद हैं ये जानवर है न ?'' किरना लगातार अटखेलियाँ करते इस जानवर को देखे जा रही थी।
'' नहीं किरना , ये हमसे भी ज्यादा गुलाम हैं। ''
'' क्यों ?'' किरना इस तरह हैरान हुई जैसे भागू ने कोई अनहोनी बात कह दी हो।
''
हाँ , हम तो सिर्फ समाज की झिड़कियों से डरते हैं पर इन्हें हर वक़्त अपनी
मौत का डर रहता है . पता नहीं ये मांस खाने वाली जात इनके लिए कब मौत का
कारण बन जाये ।''
''
हाय ओये कमीनो !कभी इन्हें खेलते , अटखेलियाँ करते तो देख लो कितने प्यारे
लगते हैं। '' किरना किसी अनजानी डर से भागू की गोद में दुबक गई। कितनी ही
देर दोनों इस जानवर जोड़ी के लिए , इनकी आज़ादी के लिए , अपने प्यार के बारे
बातें करते रहे , एक दुसरे को जी भर कर देखते और प्यार जताते रहे। समय
अपनी चाल चलता रहा , चाँद चलता रहा , बदलियों के साथ अटखेलियाँ करता रहा।
कभी उसके आलिंगन में जा छुपता तो कभी बाहर आ अपनी चांदी रंगी चाँदनी से
धरती को रौशन करता। जब चाँद बदली के आलिंगन से बाहर आया तो भगवान ने घड़ी
में समय देखा , चार बज गए थे। दूर गाँव में गुरद्वारे के लाउड स्पीकर की
आवाज़ सुनाई देने लग पड़ी थी। टाहली के ऊपर बने पक्षियों के घोंसलों में
हलचल हुई। दोनों उठकर गुरनैब के पास आ गए।' जी भर गया होगा अब तो । '' गुरनैब ने दोनों को ताना मारा। .
'' नहीं भूख और बढ़ गई है। '' भागू बोला।
फिर कोई इलाज करवाओ। .''
'' अच्छा , अच्छा चल अब चलें , जरा समय तो देख। .'' भागू ने घड़ी दिखाई।
दोनों
ने जल्दी- जल्दी गाँव को जाती सड़क पकड़ ली। किरना काफी देर घर के सामने
खड़ी उन्हें जाते देखती रही.. जब नज़र आने बंद हो गए तो घर के अन्दर चली गई ।
गोल चाँद छोटी बदली से निकल कर हँस पड़ा।
धान की फसल पक कर पूरी
जवानी में खड़ी थी। खेतों में चारों
ओर लहलहाती पक्की फसल सोने का झाँवला देती। किसान चाहे फसल के पकने तक
बेफिक्र रहे लेकिन जब फसल पूरी जवानी में आ जाती है तो वह भी किसी जवान
बेटी के पिता की तरह फ़िक्र में डूब जाता है कि कहीं कोई कुदरती आफत आकर
मेरी करी कराई मेहनत पर पानी न फेर दे। जब किसी तरफ से कभी रब्ब गरजता है
तो किसान का दिल धक् - धक् करने लगता है। . वह हाथ जोड़ता है , लाखों
मिन्नतें करता है। शायद इसी लिए किसान को भगत कहा गया है कि वह सारा साल
अपना खून - पसीना एक करके अपने बेटे - बेटी सी फसल पालता है पर जब यह पक
जाती है तो माँगता रब्ब से है। फसल पकी होने के कारण गली का बखेड़ा वहीँ का
वहीँ रह गया था । कितने ही दिन गली के बीच की निकाली गई ईंटें वहीँ बिखरी
पड़ी रहीं क्योंकि दोनों घर अपने - अपने कामों में उलझे हुए थे। . धान की
फसल काट ली गई , बेच दी गई और उस खाली हुई धरती की कोख में गेहूं की फसल
मुड़ बो दी गई। . जब दोनों
तरफ के लोग कामों से निर्वृत्त हो गए , फिर मैदान में आ डटे। . गुरदयाल ने
रात को एक -दो आदमी लगा गली बीच की दिवार फिर उठा दी। . दिन चढा। मुखत्यार
लोगों तक खबर पहुँची वे गंडासे लेकर आ गए दीवार गिराने। . जग्गी ने खोद से
ऊपर की दो कतारें गिरा दीं।
'' कौन है ?'' ठहर जरा तेरी
माँ की …। '' गुरदयाल , जीता और सुरजू गंडासे लेकर गली की ओर भागे। पीछे
सीतो और उसकी बेटी अक्की भी शोर मचाती दौड़ी आईं।
'' आ जाओ आगे, दें जरा दूध को पैसे। '' सरपँच लोगों ने गंडासे उठा लिए।
''
हाय ! ओ लोगो मार दिया री ….! चंद कौर और उसके साथ कुछ और औरतें
मुख्त्यार के सामने आ खड़ी हुईं। सीतो और अक्की ने गुरदयाल लोगों के
गंडासे पकड़ लिए।
'' तू पीछे हट जरा , आज मुझे इन्हें देख ही लेने दे। '' जग्गी अपनी घरवाली को
धक्का दे कर दौड़ पड़ा और एक डंडा सुरजू के सर पर दे मारा। .
'' ओये मुंडियो ! (लड़को ) शर्म करो शर्म , कभी ऐसे भी मसले हल
होते हैं ? '' बुजुर्ग हरभजन ज्ञानी ने दोनों को अलग -अलग करते हुए कहा ।
हल्ला सुनकर गली आँगन से कुछ लोग भी और आ खड़े हुए।
''देख भजन सिंह , तू खुद सयाना है , कभी गलियों में भी दीवार हुई है ? '' मुख्त्यार सरपंच अपने आप को सच्चा साबित करना चाहता था।
'' भजन सिंह , इन्हें कह गाँव का नक्शा देखें , यहाँ से गली है ही नहीं। ''गुरदयाल पिछले शब्दों पर जोर देता हुआ बोला।
'' ओये भाई ! क्यों आपस में मारा - मारी कर रहे हो। दो सियाने बंदे बैठा कर खत्म करो इस बात को। ''
'' ये खत्म होने वाला किस्सा नहीं है , यहाँ तो अब क़त्ल होगा क़त्ल । '' सुरजू आग बबूला हुआ खड़ा था।
'' अगर क़त्ल ही करवाना है तो फिर आ इधर , न चटनी जैसे रगड़ दिया तो कहना। '' जग्गी से दाहिना हाथ बाएँ हाथ पर धर कर रगड़ दिया।
'' अगर क़त्ल ही करवाना है तो फिर आ इधर , न चटनी जैसे रगड़ दिया तो कहना। '' जग्गी से दाहिना हाथ बाएँ हाथ पर धर कर रगड़ दिया।
'' ओये बीसों देखे हैं तेरे जैसे मच्छर , बड़ा बातें करता है। ''
अच्छा ! तो फिर आजा अब इक्कीसवाँ भी देख ले। '' जग्गी ने डंडा थोड़ा ऊपर उठा धरती पर जो से दे मारा।
''
चलो ओये मुंडियो अपने - अपने घर। गली तो यहीं रहेगी ,पर तुम सब कहीं कोई
और स्यापा न डाल देना। हरभजन ज्ञानी , गुरदयाल लोगों को उनके घर तक छोड़
आया।
मुख्त्यार और उसके साथी बड़ -बड़ करते वापस परत गए। घर जाकर
जग्गी और चांदी ने स्कूटर निकाल कर चीमे थाने की ओर रुक किया। दोनों को
जाते ,स्कूल से आते हुए गुरदयाल के लड़के ने देख लिया। . जब वह घर पहुँचा तो
घर में लड़ाई का माहौल बना हुआ था। सबने सरपंच से हुई लड़ाई की बातें छेड़
रखी थीं। गुरदयाल के लड़के सोनू को भी उखड़े माहौल के कारण दाल में कुछ काला
लगा तो उसने जग्गी और चांदी के स्कूटर पर चीमे जाने की बात भी बता दी।
सबने सुनकर क्रोध से कान खड़े कर लिए।
'' ला ओये जैलू ट्रेक्टर , देखते हैं थाने जाकर वो क्या करते हैं। ''
जैलू ने गुरदयाल के कहने पर ट्रैक्टर निकाल लिया। गुरदयाल और चंदन मैम्बर जैलू के दोनों साइड वाली सीटों पर बैठ गए।
'' ओये सुरजू। ''
'' हाँ ''
'' घर में भगवान होगा , उसे जाकर कह देना गुरदीप सरपंच के घर हो आये । अगर सरपंच हुआ तो उसे कह देना चीमे थाने आ जाये।
'' अच्छा। '' सुरजू भगवान के घर चला गया।
''किधर से चलें मैम्बरा ?'' जैलू ने ट्रैक्टर घर से बाहर निकाल लिया।
'' वे तोलावाल के रस्ते से गए हैं हम बीर गाँव से होते हुए चलते हैं। ''मैम्बर की जगह गुरदयाल ने जवाब दिया। ट्रैक्टर बीर को जाती सड़क पर चढ़ा दिया गया।
'' पहले साला गाय जैसा बना कहता था कर लो गली बंद , अब आकर जात नहीं पूछता। '' गुरदयाल सरपंच की करनी पर क्रोधित हो रहा था..
'' वह क्या करे बेचारा , उसे भी बहुत काम रहते हैं। कभी किसी का हल्ला , कभी किसी की पेंशन। '' जैलू सरपंच के काम गिनाने लगा ।
''कौन से करता है वो काम ? मैं तो उसे हमेशा चीमे , बीर वालों की स्पेयर की दूकान पर बैठा देखता हूँ। ''
''चल अच्छा है अगर आज 'वहीँ मिल जाए। ''
गुरदयाल और उसके साथी बीर होते हुए चीमे पहुँच गए। गुरदयाल ने जैलू बीर वालों की दूकान
में सरपंच को देखने भेज दिया। खुद थाने के गेट के आगे खड़े हो गए। जैलू को
सरपंच दूकान में ही मिल गया। वह उसे सारी बात बता कर साथ ले आया। चारो
थाने के अन्दर चले गए। आँगन में बिछी स्प्रिंगों वाली कुर्सी पर बैठा
थानेदार झूले में पड़े छोटे बच्चे की तरह झूल रहा था। आस - पास बैठी
सिपाहियों की टोली दूर आते चार लोगों की ओर मुँह उठा - उठा कर देखने लगी।
जब चारो पास आये तो कुर्सियों पर बैठे सिपाही खड़े हो गए और थानेदार ने आगे
रखे मेज को पकड़ कुर्सी का झुलना बंद कर लिया।
'' आओ जी सरपंच साहब ! आज भूले भटके इधर कैसे दर्शन दे दिए ?'' थानेदार ने दिखावटी हँसी के साथ कुर्सी की ओर इशारा किया।
'' बस आपके दर्शन करने को दिल कर आया। ''सरपंच और मैम्बर कुर्सियों पर बैठ गए और गुरदयाल और जैलू पास पड़े बैंचों पर बैठ गए।
'' जा मणी सामने पांच कप चाय के बोल आ। '' थानेदार ने पास खड़े होमगार्ड को हुक्म दिया।
'' चाय को रहने देते जी बस पी कर ही चले थे। ''
''
आप मत पिलाना सरपंच साहब
.'' थानेदार के दरवाजे के से मुंह के आगे लगे किसी किले के गेटों की तरह
मोटे -मोटे होंठ सुस्त सी मुस्कान से चौड़े हो गए क्योंकि थानेदार चाय पिला
कर
'चूय '(शराब )का प्रत्युपकार जिम्मे पाना चाहता था ।
'' और बताओ फिर कैसे आना हुआ ?''
''
गली का स्यापा है यार। गली है तो सारी गुरदयाल की जगह में , इन्होंने
पहले भाईबंदी में आकर छोड़ दिया था पर अब ये अपनी बंद करना चाहते हैं पर उस
मुख्त्यार को पता नहीं क्या हर्ज है रोज दीवार गिरा देता है। ''
'' वह तो कहता था यहाँ से गली है । ''
'' कैसे है ? ऐसे ही पानी में लाठी मार रहा है। ''
'' वे आये थे अभी, आपके आने से कुछ देर पहले ही रपट लिखा के गए हैं।''
'' किसका - किसका नाम लिखा गए ?''
'' पन्द्रह जनों का , तुम्हारा भी है साथ में । ''
'' मेरा ? सरपंच कुर्सी से उछल पड़ा।
'' हाँ ''
'' लो सर चाय। '' होमगार्ड ने चाय वाले बच्चे से पांच कप पकड़ कर मेज पर दिए .
''
लो जी पहले चाय पी लो फिर करते हैं बातें। '' थानेदार ने चाय की ओर
इशारा किया। पाँचों ने एक - एक कप उठा कर मुंह से लगा लिया। चाय पीने के
बाद गुरदयाल लोगों से सलाह बनाई , ' ताए दी धी चल्ली मैं क्यों रहां कल्ली '
कहावत की तरह इन्होंने भी रपट में विरोधियों के पन्द्रह जनों का नाम लिखा
दिया। गुरदीप ने थानेदार से कस कर हाथ मिलाया और इज़ाज़त लेकर चल पड़े। अभी
ये घर आकर चाय पानी पीने ही लगे थे कि पुलिस का कैंटर पीछे ही आ गया।
दोनों पक्षों को गली में इकठ्ठा कर लिया गया । सरपंच का भतीजा घर से दो
कुर्सियां ले आया। थानेदार कुर्सी पर बैठता हुआ बोला , बताओ फिर क्या
फैसला करें ?''
'' जी जो मर्जी है कर दो। '' गुरदयाल ने हाथजोड़ दिए।
''पहले आप यह बताओ यहाँ से गली है ?''
'' गली तो है जी। ''
'' नहीं है। ''
'' नहीं … नहीं …. है यहाँ से गली। ''
'' कौन कहता है, यहाँ से गली है ?''
'' शांति
…. शांति , अगर आपस में बोलना था तो मुझे क्यों बुलाया ? दो मिनट चुप
बैठो। '' थानेदार ने हवा में हाथ ऊपर नीचे करते हुए सबको चुप करा दिया। ''
तुम में से किसी के पास पिंड का नक्शा नहीं है ?''
'' है जी , मैं अभी ले कर आया। '' मुख्तयार घर से जाकर नक्शा ले आया।
'' ये देखो जी गली , ये … यहाँ से है। '' उसने गली के निशान पर ऊँगली रखी।
'' यह तो और कहीं से है ?''
'' हाँ जी , पहले यह यहाँ से थी जी , जहाँ इनके ये बड़े कमरे डाले हुए हैं, यहाँ से ही होकर जैलू के घर बीच से थी.'' .'मुख्तयार हाथ हिला - हिला कर थानेदार को बतलाने लगा। .
'' फिर न तो अब यहाँ से गली है और न जहाँ से पहले थी वहाँ से ही निकाल सकते हैं क्योंकि वहाँ अब घर डाल दिए गए हैं। अब आप सब ही बतलाओ
क्या फैंसला करें ?'' थानेदार दोनों पक्षों की राय उनके चेहरे से पढ़ने
लगा।
'' जैसे आप कर दोगे जी , बस ठीक है .'' गुरदयाल बोला।
थानेदार
पहले कुछ सोचता रहा फिर कोई फैसला लेकर बोला , हम यूँ करते हैं , जो गली
करतार के घर पीछे से गुजरती है , वहाँ से पानी निकाल देते हैं और गुरदयाल
की गली में से रस्ता रख देते हैं या यहाँ से पानी निकाल देते हैं और रस्ता
वहां से रख देते हैं। क्यों मंजूर है गुरदयाल ?''
'' जैसे आप ने कह दिया ठीक है जी। .''
'' तू भाई मुख्तयार ?''
'' नहीं जी ऐसे ठीक नहीं। अगर गली इधर से है , फिर पानी भी इधर से ही निकालो। ''
'' देखो मैंने तो दोनों पक्षों की कह दी मानना न मानना तुम्हारी मर्जी है। ''
थानेदार
दोनों पक्षों का फैंसला कराने के लिए शाम तक मध्यस्त बनता रहा पर मुख्तयार
की जिद्द कुत्ते की पूँछ की तरह टेढ़ी की टेढ़ी ही रही। कोई भी बात सही होती
न देख थानेदार ने दोनों पक्षों को सुबह थाने आने के लिए कह दिया। जाते
हुए थानेदार को सरपंच ने इशारे से घर आने के लिए कहा पर थानेदार साथ आये
ज्यादा मुलाजमों के कारण पासा पलट गया .
सुबह होते ही दोनों पार्टियां ट्रैक्टर लेकर थाने जा पहुँची .
थानेदार ने एक -दो फरियादियों को निपटा कर उन्हें अन्दर बुला लिया . दोनों
सरपंच और मैम्बर पहले ही अन्दर चले गये थे और एक - दुसरे को कनखियों से
घूरते रहे। . आज भी थानेदार ने हर कोशिश करके देख ली पर कोई फैंसला न हो
सका। फिर अगले दिन पर बात छोड़ दी गई.. फिर अगले दिन पर और फिर अगले दिन पर
बात टलती गई। इस तरह थानेदार कई दिन बुलाता रहा कि शायद आने - जाने से
तंग आकर कोई फैंसला हो जाये पर दिल्ली वहीँ की वहीँ रही। कोई फैंसला न हो
सका। आखिर थानेदार ने धारा ३२५ लगा कर दोनों पक्षों की पेशियाँ डाल दीं। .
शीतकाल
अपनी पूरी जवानी पर था। दरख्तों के पत्ते पीले पड़ झड़ने लगे थे। कई
दिनों से सूरज ने अपना मुँह नहीं दिखाया था। सारा दिन धुंध पड़ती रहती।
बूढ़े - ठेरे सारा दिन धूनी लगा बैठे आग सुलगाते रहते। आज जब कई दिनों बाद
सूरज की चमकती किरणों ने मीठी-मीठी गर्माहट दी तो सबके चेहरों पर खुशी की
लहरें दौड़ गईं। घर की औरतों ने कई दिनों से धोये गीले कपड़ों से
बनेरे भर दिए. जब सूरज थोडा और ऊपर चढ़ा तो उसकी गर्म किरणे पहले से कहीं
ज्यादा प्रचंड थीं।
भगवान जब गुसलखाने से नहा कर बाहर निकला तो उसकी आँखें सूरज की
तेज किरणों ने एक बार बंद सी कर दीं । उसने दोनों आँखें मलीं और अंगारे से
संतरी सूरज की ओर सरसरी सी निगाह भरी , '' आ … आ … आहा … हा … हा …
वाह ओ रब्बा !'' कह कर उसने श्रृष्टि के मालिक की तारीफ की। उसने चुल्हे
के पास बैठ के ठंडे हुए हाथ -पैर सेके . जब कंपकंपी उतर गई फिर रोटी खाई।
फिर दुशाले को ओढ़ कर बाहर की ओर चल पड़ा। भगवान अब नाले की पटरी पर आ गया
था। मिटटी डली होने के कारण पटरी काफी ऊँची हो गई थी। नाले के बीच के गंदे
पानी की बदबू भगवान के नाक में चढ़ने लगी । उसने ओढ़े गए दुशाले को नाक के
ऊपर तक सरका लिया। नाले के बदबूदार पानी से हुई बुरी हालत देख कर उसे अपना
बचपन याद आ गया। तब नाले का पानी चांदी की तरह चमकता साफ़ होता था। हम
छोटे - छोटे होते जब गर्मी की कड़कती दुपहरी इस नाले में नहा - नहा कर
काटते। . कभी पुल से नाले में छलाँगे लगाते । गाँव की कितनी ही औरतें यहाँ
कपडे धोने आतीं। हम सारा दोपहर इस नाले पर गुजार जब शाम को घर जाते तो
माँ झिड़कियां देती। . पता नहीं इस पानी से मोह ही इतना था कि माँ की
झिड़कियों की भी परवाह न करते हुए अगले दिन फिर इसी पानी में आ घुसते। बीच
में ही भैंसे भी नहाती ,उसी में हम भी , फिर भी पानी साफ़ का साफ़ रहता पर अब
बच्चों के नहाने के लिए तो क्या , पशुओं के नहाने के लिए भी ठीक नहीं था।
अब दो तीन शहरों का गंद - मंद इसी में बहकर आता है। .पहले से कितना बदल
गया है समां । लोग भी कितने बदल गए हैं। साथ ही गंदगी में बदल गई इस नाले
की शुद्धता।
भगवान बीते समय को याद करता हुआ खेत जा पहूँचा। वह खाल में टाँगें लटकाकर किनारे बैठ गया। खाल के सामने उगे छोटे - छोटे घास पर तरेल की बूंदें सूरज की रौशनी में मोतियों की तरह चमक रहीं थीं। भगवान उनकी ओर टकटकी लगा कर देखने लगा । कितनी सुंदर, पवित्र और मासूम सी लगती हैं ये बूंदें , बिलकुल करमी की तरह। सच्च ! करमी भी तो इनकी तरह सुंदर , पवित्र और भोली सी है. उसे भी इन बूंदों की तरह अपनी सुंदरता पर फक्र नहीं। वह सबका मोह करती है , दिल में किसी के विरुद्ध नफरत नहीं। सूरज की रौशनी की तरह सबको बराबर प्यार बांटती है। कितना अच्छा है उसका दिल , कितनी भोली है बेचारी , हर एक को अपना बना लेती है। मैं भी तो उसका कुछ नहीं लगता था पर अब मुझ पर कितना हक़ रखती है। मुझे अब भी याद है , जब मैं पिछली लोहड़ी पर दस दिनों बाद उनके घर गया था। वह पहले तो मेरे साथ बोली ही नहीं , नाक चढ़ा कर फिरती रही , कहती रही इतने दिनों बाद क्यों आये हो। बड़ी मुश्किल से मनाया था । फिर उसने हँसते हुए अन्दर से गच्चकें मेरे सामने लाकर रख दीं। जब मैंने उसे इसके बारे पूछा था तो बड़े मान से बोली थी , '' वीर जी आप लोग मेरे दो वीर हो। उस वीर ने तो अपने हिस्से की खा लीं थीं , आपका हिस्सा रह गया। '' यह सुनकर मेरी आँखों में उसके लिए प्यार के आँसू छलक आये थे और बोला था परमात्मा मैं तेरा शुक्रगुजार हूँ , जिसने मुझे बहन के रूप में देवी बख्श दी। भगवान भूतकाल से निकल कर वर्तमान में आ गया। उसे महसूस हुआ , जैसे उसकी आँखें अब भी नम हैं। भगवान को याद आया कि मैं अब भी तो कई दिनों से करमी के घर नहीं गया। वह जरुर नाराज़ होती होगी। इस सोच ने भगवान को वहां से उठाकर गाँव की ओर बढ़ा दिया। उठते वक़्त ठण्ड की झनझनाहट सी सारे शरीर में फ़ैल गई। उसे पैरों से लेकर सर तक कंपकंपी सी आ गई। सूरज और गर्म हो गया था। खेतों से पिंड तक आते हुए उसे दुशाला ओढ़ना अनावश्यक लगा। घर जाकर दुशाला उतार दिया और साइकिल उठाकर नए गाँव की रह पकड़ ली।
घर
पहुँचते ही उसने देखा करमी बाहर चारपाई पर पड़ी धूप सेक रही थी। पास ही
चारपाई पर उसका दोस्त गुरजीत और उसकी माँ बैठे थे। भगवान जाकर करमी की चारपाई पर बैठ
गया। करमी ने गुस्से में मुँह दूसरी ओर घुमा लिया।
'' ताई देख ….देख … गुस्से में कैसे सुंडी की तरह मुड़ी हुई है। '' भगवान करमी के गुस्से की शिकायत सुरजीत से कर गया।
'' गुस्सा तो होगी ही , आये कितने दिनों बाद हो ?'' सुरजीत करमी के हक़ में बोल गई। .
'' ताई तुझे पता तो है , गली का मसला था , बस उधर उलझे फिरते रहे। .'' भगवान किसी न किसी तरह करमी को मना लेना चाहता था। .
'' मुझे नहीं पता , गली का मसला था या नहीं ! तू इसके साथ खुद ही निपट ले। .'' सुरजीत ने अपना पल्ला छुड़ा लिया। .
'' भागू इसके मार कान पर एक जोर से अपने आप बोल पड़ेगी।'' गुरजीत गुस्सा हुई करमी को और चिढ़ा गया।
''
नहीं ओये बदमाश , अगर गुलाब के फूल को अपने शख्त हाथों में लेकर दबायेंगे
तो वह बिखरेगा ही। करमी भी तो अपने घर के बगीचे का एक गुलाब ही है। महक
बांटने वाले फूल किसी से नाराज़ नहीं हुआ करते। यह तो तुझे गलतफहमी है ,
क्यों बहन !'' भगवान ने कवियों की भाषा में लिपा - पोती करते हुए करमी का
कंधा पकड़ अपनी ओर घुमाना चाहा पर वह उठकर अन्दर चली गई। भगवान भी उसके पीछे
-पीछे अन्दर चला गया।
'' हाय , हाय ! इतना गुस्सा। '' वह चारपाई पर करमी के सामने बैठ गया। करमी ने मुंह दूसरी ओर घुमा लिया। .
भगवान
ने करमी का गोरा चेहरा अपने दोनों हाथों में लेकर अपनी ओर घुमा लिया ,''
देख करमी अगर तूने इसी तरह ही गुस्से रहना है तो फिर मैंने यहाँ क्या करने आना है। मैं
जाता हूँ फिर। ''.
'' नहीं , नहीं भागू .'' करमी ने खड़े हुए भागू की बाँह पकड़ दोबारा चारपाई पर बिठा दिया . '' मुझे नहीं पता चाहे कोई भी काम आन पड़े पर तुझे यहाँ जरुर आना है। ''
'' नहीं , नहीं भागू .'' करमी ने खड़े हुए भागू की बाँह पकड़ दोबारा चारपाई पर बिठा दिया . '' मुझे नहीं पता चाहे कोई भी काम आन पड़े पर तुझे यहाँ जरुर आना है। ''
'' अच्छा बाबा अच्छा , रोज़ आ जाया करूँगा ,
बस खुश ?'' भगवान ने दोनों कान पकड लिए। करमी ने अपने गुलाबी होंठों से
थोड़ा सा मुस्कुरा दिया। .
''चल भागू
खेत से सब्जी तोड़ कर लायें '।' करमी भगवान की बाँह पकड़ कर घर के साथ लगते
खेतों की ओर ले चल पड़ी। . चारो ओर गेहूं के फसल की हरियाली धरती पर बिछी
हरी चद्दर सी जान पड़ती थी। .गेहूँ की वट्टों के किनारे किनारे बोई गई सरसों,
फूलों से लदी हुई थी। सरसों के फूलों से रस चूसने आई मधुमक्खियाँ भीं-भीं
करती इधर उधर मंडरा रहीं थीं. दोनों खेत की एक बीघा जमीन में लगाई गई गोभी की
जगह जा पहुँचे। .
'' करमी अब तो कितने ही दिन हो गए , कभी मिलाना न उससे मेरी प्यारी बहन । .''भागू मुरझाये से फूल की तरह मुँह बनाकर अनुरोध कर गया । .
''
अगर मिलना है तो यूँ कर। '' करमी ने भागू को अपने नजदीक कर दूर ऊँगली से
इशारा किया ,'' वो … ओ … ओ …. देख सामने कलई वाला उसका ही घर है न ?''
''हाँ ''
'' यहाँ से सीधा भाग जा , जाकर मिल आ। . ''
'' ऊँ …. तुझे मजाक सूझ रहा है इधर मेरा मरण हो रहा है। .''
'' अच्छा वीर जी , आपको मरने नहीं देते , जरुर मिलवायेंगे। '' करमी ने दो गोभी के फूल उखाड़ कर भागू के दोनों हाथों में दे दिए।
'' कब मिलवाओगी ?''
'' कल , मेले में। .''
'' पक्का ?''
'' हाँ पक्का। . ''
ओ वेरी गुड '' भगवान ने ख़ुशी की लोर में करमी के दोनों हाथ पकड़ कर चूम लिए।
अब दोनों सब्जी तोड़ कर घर आ गए। करमी ने गोभी चीर कर चूल्हे पर
चढ़ा दी । सुरजीत आटा गूँध कर रोटियाँ उतारने लग पड़ी। भगवान अन्धेरा होने
तक करमी से बातें करता रहा और साथ - साथ उसके कामों में भी हाथ बंटाता
रहा। करमी ने आज जोर जबरदस्ती भगवान को घर पर ही रोक लिया और गाँव में
भगवान के घर पाली (चरवाहे ) के हाथों संदेशा भिजवा दिया। . आज ही नहीं जब कभी भी
करमी और उसकी माँ घर पर अकेली होतीं या कभी भगवान को देर हो जाती तो उसे
जबरदस्ती उसे वहीँ रख लेते। गुरजीत और उसकी माँ थोड़ी देर बातें कर सो गए
पर करमी और भागू रजाइयों में बैठे देर रात तक बातें करते रहे।
सुबह गाँव जाकर भगवान ने राजा और गुरनैब को भी तैयार कर लिया मेले जाने के लिए ।
तीनों ने फटाफट तैयारी की। . सारे गाँव में ही मेले जाने की जल्दी
में लड़के-लड़कियों के पैरों में आग सी मच गई थी। रंग - बिरंगे कपड़ों में
सजी जवानी 'बूढ़े - ठेरों ' को 'हट पीछे ' कह रही थी। जल्दी -जल्दी तैयार
होने की आवाजें और गाँव की फिरनी वाली सड़क पर से मेले जाते हुए ट्रैक्टरों
की तेज -तेज ' खर ….र … खर …की आवाज़ मुँह से गाँव की मेलों के लिए अहमियत बतला रही थी ।
भगवान का ट्रैक्टर भी मेले जाने के लिए तैयार था। सयानी उम्र की औरतें
पहले ही बच्चों को लेकर जगह घेरने के चक्कर में ट्राली में आ बैठी थीं।
कई शौक़ीन ट्रैकर के चले जाने की परवाह न करते हुए अभी भी आईने के सामने
जमे हुए थे.. जब सारे मेली इकट्ठे हो गए तो चन्नन ने ' बैठ जाओ भाई बैठ
जाओ ' कहते ने ट्रैक्टर चला लिया। शांतपुर से मेले तक जाने वाली सड़क मेले
जाने वालों से भरी पड़ी थी , जैसे सारा जहान ही मेले के लिए निकल पड़ा हो।
मेले में पहुँचते ही भगवान , राजा और गुरनैब सबसे अलग हो गए।
सब से पहले उन्होंने तलाब में स्नान किया। देग करवाई और फिर दरबार साहिब
माथा टेका। दरबार साहिब से निकलते ही चार - पांच दोस्त और मिल गए। अब
इनकी सात आठ जनों की अच्छी टोली बन गई थी। जब साथ को साथ मिल जाये , फिर
थकावट का पता ही नहीं चलता। भगवान की टोली ने सारे मेले की खाक छान डाली।
एक गली में से चार - चार पांच-पांच बार पार हो गए पर भगवान को कहीं भी
करमी और किरना न दिखाई दीं। दोपहर ढल गई। घड़ी की सुई ने दो बजा दिए। अब
लड़कों की चाल में पहले की सी तेजी नहीं थी। सारे थकावट सी महसूस करने लगे।
.
'' दोस्तों क्यों न अब हम थोड़ी सी रेस्ट ले लें ?'' बूटे ने
सबसे सलाह मांगी। .
'' हाँ … हाँ … चलो यार अब तो बस हो गई। '' राजा कमर को दोनों हाथों से दबाता हुआ बोला।
'' हाँ … हाँ … चलो यार अब तो बस हो गई। '' राजा कमर को दोनों हाथों से दबाता हुआ बोला।
'' चलो फिर बुआ के चलते हैं। '' बूटा सबसे आगे होकर चल पड़ा।
भगवान
, राजे और गुरनैब की नज़रें अब भी मेले में करमी और किरना को तलाश रहीं
थीं। पहला चौक फलांग कर दरवाजे के पास जाकर गुरनैब ने भागू की बाँह पकड़ कर
पीछे मोड़ लिया ।
10
'' क्यों क्या हुआ ?''
''
वह देख उधर। ' गुरनैब ने दरवाजे में खड़ी करमी और किरना की ओर ऊंगली सेध ली
। भगवान देख कर एकदम से खिल पड़ा । उसका ठाठें मारता अन्दर का मोह होठों
पर मुस्कराहट बन कर उतर आया। . राजा और गुरनैब भागू को अकेले छोड़ आगे बढ़ गई
टोली संग जा मिले।
'' किधर मुँह उठाये चले जा रहे थे ?'' लड़कियां भागू के पास आ हँसने लगीं ।
'' वह तो अपने गुरनैब की …। ''
'' अच्छा ! अच्छा ब्राह्मणी थी ''
'' हाँ। ''
'' मिले फिर ?'' किरना दोनों भौहें उठा गई।
''
गए हैं पीछे भुंड। तुम लोग यहाँ अकेले ? '' भागू के बोलों में थोड़ी हैरानी
और ख़ुशी घुली हुई थी। असल में जब प्यार को प्यार मिलता है तो कैसे ,
क्यों की जगह मिलने की ख़ुशी को एहमियत दी जाती है। करमी ने मेले में घूम
रहे लोगों का ख्याल करके दोनों को वहाँ से चलने का आग्रह किया ताकि गांव
का कोई देख न ले। बातें तो रस्ते में भी हो सकती हैं।
'' अब किधर जाना है ?'' भागू ने आगे चली जा रही करमी को पूछा।
'' हमने सरभी के जाना है , उसने हमें कहा था मेले के दिन जरुर आकर जाना। ''
'' ओह हाँ सच ! मुझे भी कहा था राम ने आने के लिए। '' भागू को भी कोई भूली बात याद आ गई।
राम भगवान से एक क्लास आगे था पर फिर भी दोनों की पड़ोसी गांव के
होने के कारण और एक ही बस में सफ़र करने के कारण जान -पहचान हो गई थी। राम
भगवान से थोड़ा हाड-माँस से तकड़ा होने के कारण हट्टा - कट्टा और रंग से
गोरा था। वह पढ़ाई में कुछ कमजोर जरुर था , फिर भी खींच - खाँच कर पास हो
ही जाता था। पहले - पहले दोनों एक - दुसरे से हाथ मिलाने और हाल - चाल
पूछने तक ही सिमित थे पर जब से राम के दिल में सरभी के प्रति प्यार की
तरंगों ने अंगडाई ली थी तब से वह भगवान से अपने दिल की बात सांझी करने के
लिए और नजदीक आ गया था क्योंकि उसे एक ऐसे दोस्त की जरुरत थी जो उसके
प्यार की मंजिल को पाने के लिए उसकी मदद कर सके। उसने अपने सारे दोस्तों
में से भगवान को चुना। इन दोनों के विचार आपस में अच्छे मेल खाते थे।
राम के माता -
पिता दो साल पहले नैना देवी मेले में गए थे जहाँ रस्ते में दुर्घटना के
शिकार हो गए थे। अब घर में सिर्फ तीन ही लोग रह गए थे। राम , उसका बड़ा
भाई और भाभी। एक लड़की थी राम से बड़ी , उसके भाई के ब्याह के साथ ही उसका
भी ब्याह कर दिया गया । दोनों भाइयों की अच्छी बनती थी इसलिए राम को अपनी
पढ़ाई जारी रखने में कोई कठिनाई न हुई। घर की चौदह किले जमीन थी , जिस पर
राम का बड़ा भाई सीरी (फसल का कुछ हिस्सा देकर रखा गया नौकर )रख कर खेती करता। कभी-कभार राम भी अपने भाई का हाथ बंटा देता।
सरभी चीमा पिंड (गांव ) के पिछली ओर पड़ते पिंड झाड़ो की थी , अपने बहन
भाइयों में सबसे बड़ी.. सरभी और करमी के नानके (ननिहाल )एक ही पिंड के थे।
एक बार दोनों नानके गईं हुई थीं तो इकट्ठी मिल पड़ीं. लड़कियों के लिए
इकट्ठे मिल बैठने का सबब तीज ही रह गया था, जहाँ वह इकट्ठी होकर एक दुसरे
से अपने दिल की बातें कर भड़ास निकाल लेती थीं। करमी का स्वभाव खुला हुआ और
विशाल था। वह हर एक से बहुत जल्द घुल मिल जाती . उसके स्वभाव में भगवान का
भी असर था। करमी और सरभी तीज के एक दो मिलन में ही पक्की सहेलियां बन गईं। सरभी का मन अपने प्यार की
बात करमी को बताने के लिए अन्दर ही अन्दर उबाले खाता पर हर बार उसकी बात
होठों पर आकर अटक जाती। वह कुछ बोलती - बोलती चुप हो जाती। . अपने उबलते
मन को कब तक वह पानी के छीटे मार दबा कर रखती । आखिर एक दिन उसने बता ही
दिया। जब बातों -बातों में सरभी ने भगवान का नाम लिया तो करमी ने हैरानी
में माथे और नाक के बीच प्रश्न चिन्ह बनाते हुए पूछा , ''भगवान ? वह तो मेरा
वीर है। ''
'' हाँ राम का गहरा दोस्त है , इकट्ठे रहते हैं दोनों। '' सरभी करमी को कोहनी मार कर मुस्कुरा पड़ी। . ''
''
ढह जाना टिंडा सा, कहीं नहीं टिकता , डालेगा बिचोलिये की सांप '' करमी की
बात पर दोनों हँस पड़ी। . इन बातों को तो बहुत समय बीत गया। अब तो उन्होंने
झाडो से किसी बूढी नैण को बीच में डालकर विवाह भी कर लिया था। राम ने
अपने भाई को सारी बात बता दी थी। उसने खिले माथे से मान भी ली. उधर सरभी
के घरवालों को भी ' तेल में कौड़ी' मिल गई.दोनों का झट-पट विवाह कर दिया गया
. राम खेती करने में कुछ कम रूचि रखता था। बहुत शख्त काम करना उसके बस की बात
नहीं थी। आखिर अपने भाई से सलाह कर अपने पिता के पहले खरीदे दो दुकानों
के प्लाट में दुकाने डालकर एक किराये पर दे दी और एक में खुद खली , गुड आदि
का सौदा लाकर रख लिया। दूकान कुछ ही समय में अच्छी चल निकली। हर रोज़
साइकिल पर आने -जाने की बजाए वह चीमे ही घर डाल कर रहने लगा। .
आज भगवान , करमी और किरना को इकट्ठा घर आया देख दोनों गुलाब की
तरह खिल उठे और सबको गले से लगा लिया जैसे सदियों से बिछड़े प्रेमियों का
मेल हुआ हो। .
'' आज हमारे घर की याद कैसे आ गई ?'' राम सबको अन्दर कमरे में ले आया। .
'' आप तो कभी आये नहीं वीर जी , फिर हमें ही टाँगे घसीटनी पड़ी..'' करमी ने सबकी ओर से जवाब दे दिया।
'' अच्छा आप लोग बैठो , हम चाय बनाकर लाते हैं । '' थोड़े समय के बाद राम और सरभी चाय और घर के बनाये ब्रैड और पकौड़े ले आये। .
'' इतनी तकल्लुफ की क्या जरुरत थी। '' भगवान इतनी सारी चीजें देख बोल पड़ा ।
''लो
लो तकल्लुफ कैसी , तुम लोग भी तो बड़ी मुश्किल से आये हो। अगर आप सबको
तकल्लुफ लगती है तो हमारे जाने पर मत करना !'' सरभी, भागू लोगों के आने पर
ख़ुशी से भरी हुई थी। .
सबने इकट्ठे चाय पी और जी भरकर बातें कीं। अपनी सारी पुरानी
यादें एक बार फिर ताजा कीं और उन बातों में से दूना-चौगुना स्वाद लिया . जब
किसी स्कूल , कालेज या किसी संस्था में इकट्ठे समा गुजरता है तो वहां
बिताये पल हमें वास्तव में उतने अच्छे नहीं लगते , जितने कि उसके बाद लगते
हैं। यह कुदरती है कि जब हम उस स्टेज से पार हो जाते हैं तो वह हमें बहुत
प्यारी लगने लगती है। . हमारा दिल उसी समय , उसी स्थान और उन्हीं लोगों के
बीच दोबारा आने को करता है पर समय कभी वापस नहीं आता। . हाँ , रब्ब ने
हमें एक याद जरुर बख्शी है , जिसके सहारे हम वक़्त की धूल हटाकर पुरानी
यादों का मुँह- माथा देख लेते हैं। ये सारे साथी एक बार फिर बातों - बातों
में अपनी पुरानी ज़िन्दगी में घूम आये। किरना शरीक बनी इनकी बातें सुनती
रही। बाहर राम को उसके दो दोस्त बुलाकर ले गए। करमी और सरभी रसोई में
जा घुसीं। .
तूने बताया नहीं अकेले कहाँ घूमती रही मेले में , कहाँ आखें लड़ाती ? भगवान ने पहले पूछी बात को और मसाला लगाया ।
'' देखो तो सही , मुझे आँखें लड़ाने वाली कह रहा है , अपनी सुनाओ किसके पीछे सुबह से जुत्तियाँ तुड़वाते रहे ।''
'' दोस्तों के लिए सबकुछ करना पड़ता है। जिधर ले जायें साथ जाना ही पड़ता है। तुम लोग बताओ सच्ची , कहाँ अकेले घुमा ?''
''
वह तो भागू मेले में लड़ाई हो गई थी शराबियों की। हम लोग माँ के साथ थे।
सबको जिधर जगह मिली भाग खड़ी हुईं। हमने भी इधर की शरण ली फिर हमें कोई
दिखा ही नहीं पता नहीं मेले में है या घर चले गए। ''
'' अभी खड़ी हैं तेरे लिए मेले में , है न ? समय देख !'' भगवान ने किरना का मुँह पकड़ कर दीवार पर लगी घड़ी की ओर कर दिया।
'' हाय ! पाँच बज गए ? आज तो हमें घर जाकर जरुर डांट पड़ेगी। '' किरना देर होने की वजह से फ़िक्र में जा डूबी।
'' मेरे लिए इतना भी नहीं सह सकती ?'' भागू चाहता था किरना उसके साथ दो घड़ी प्यार की बातें और कर ले।
'' भागू तेरे लिए सब कुछ सह सकती हूँ .'' किरना अपने फ़िक्र को प्यार के मीठे शहद में घोल कर पी गई।
बातें करते - करते सुई का चक्कर पांच से छ: पर आ गया. पड़ोसी गांव के ट्रैक्टर कब के परत गए थे। गड़ियों की उड़ाई धूल आसमान में जा
चढ़ी थी । डूबते सूरज ने किसी नवयौवना के गुलाबी होठों की तरह पश्चिम की
छाती लाल कर दी थी । भगवान ने राम का स्कूटर लिया करमी और किरना को बैठा कर
चल पड़ा। अपने प्यार के साथ होने के गर्व में भगवान ने अपनी चौड़ी छाती और
चौड़ी कर ली। वह आते - जाते दो -एक राहगीरों को हॉर्न बजाकर अपनी ओर देखने
को मजबूर करता। जब कोई उसकी ओर देखता तो वह गर्दन अकड़ा कर और ऊपर उठा
लेता। तेज चलते स्कूटर पर शरद जैसी ठंडी हवा जवान जिस्मों को छेड़ - छेड़
गुजर रही थी। भगवान दोनों को घर से कुछ फासले पर उतार कर चीमां वापस आ गया और
सारी रात अपने दोस्त राम के साथ पुरानी यादें ताजा करता रहा।
10
सर्दी अपने
ठण्ड के जलवे दिखाकर वापस मुड़ चली थी। पाले से रुण्ड - मरुण्ड हुए दरख़्त
दोबारा फूट पड़े थे । कुछ समय पहले जिनकी छाया से डर लगता था , अब वही
अच्छी लगने लगी। शाम - सबेर जरा ठंड होती पर दोपहर की तेज धूप शरीर पर
काँटों की तरह लड़ती। भगवान के बारहवीं के पेपर नजदीक आ गए थे । वह अब काफी
समय अपनी पढाई को देता। जब पढ़ते-पढ़ते मन थक जाता तो घर से बाहर फिरनी
वाली सड़क पर आ खड़ा होता या घर पर ही किसी और काम में लग जाता। कभी - कभी
पिंड में दोस्तों - मित्रों के पास भी चक्कर मार आता।
भगवान का आज पढाई में दिल नहीं लग रहा था। वह कुछ देर पढ़ता और
फिर उठ खड़ा होता। इस तरह करते दोपहर ढलनी शुरू हो गई . समय देखा , चारे का
समय हो गया था। उसने किताब में पैन डालकर बंदकर मेज पर ही रख दिया और
कमीज की बाहें टाँगकर चारा बनाने को तैयार हो गया। टोकरा उठाकर भूसा डाला , बाल्टी में खली डालकर सुखा चारा
तैयार कर दिया । छोटे कटुरुओं को मिलाया गया चारा टोकरे में डाल कर रख दिया और भैंसे
खुरली पर बाँध दीं.. अभी वह तुड़ी से लिबड़े हाथ धोने के लिए नलके पर जा ही
रहा था कि करमी के ताऊ का लड़का मक्खन बाहर से साईकिल लेकर आ गया। उसकी
साँस उखड़ी हुई थी.. उसने उखड़ी साँस को एक पल के लिए सँभालते हुए कहा , ''
भगवान फोन लगाना जरा जल्दी …. . ''
'' क्यों ?'' भगवान उसकी हालत देख किसी अनहोनी के अंदेशे में
जल्दी - जल्दी हाथ धोने लगा.. उसने मक्खन की हालत से ही अंदाजा लगा लिया था
कि कोई अच्छी खबर नहीं है। .
'' यार अपनी करमी का
एक्सीडेंट हो गया। .'' उसने फोन वाली डायरी भगवान को पकड़ा दी। .
'' क्या ? करमी का एक्सीडेंट ?'' उसके सुनते ही होश उड़ गए। . दिमाग को चक्कर से आने लगे , जिसके साथ ही उसके सारे बदन में कंपकंपी सी छिड़ गई। वह कांपते हाथों से डायरी के पन्ने पलटता जा रहा था। .
'' क्या ? करमी का एक्सीडेंट ?'' उसके सुनते ही होश उड़ गए। . दिमाग को चक्कर से आने लगे , जिसके साथ ही उसके सारे बदन में कंपकंपी सी छिड़ गई। वह कांपते हाथों से डायरी के पन्ने पलटता जा रहा था। .
''झाडो का नम्बर है, दो मैं निकाल दूँ ।'' मक्खन ने भगवान की
हालत देख कर डायरी उसके हाथों से ले ली और नम्बर ढूँढ कर दोबारा उसे पकड़ा
दी। भगवान ने नम्बर तो लगा दिया पर उससे बात न हुई। फिर मक्खन ने उससे
फोन पकड़ कर करमी के मामे को उसके एक्सीडेंट के बारे बता दिया ।
भगवान गुम -
सुम हुआ खड़ा था। उसे कुछ नहीं सूझ रहा था कि अब वह क्या करे। उसने समय
देखा चार बजने वाले थे। . सुनाम को जाने वाली बस आने वाली थी। .वह उसी तरह
पैर घसीटता बस अड्डे की ओर चल पड़ा . अड्डे पर जाकर वह बार -बार घड़ी देखता ,
घड़ी की सुइयां जैसे थम सी गई थीं। उसका दिल तेज-तेज धड़क रहा था। इस
धड़कते दिल में करमी से जल्दी मिलने की तड़प थी। इतनी तड़प कि उसे एक -एक पल
घंटों की तरह बीतता हुआ लग रहा था। उसके दिल में ख्याल आया कि क्यों न
मैं राजे को भी साथ ले लूँ। .'' वह लम्बे डग भरता राजे के घर आ गया। राजा
घर ही मिल गया था। ''
'' राजे चल मेरे साथ। ''
'' राजे चल मेरे साथ। ''
'' कहाँ ?''
'' करमी का एक्सीडेंट हो गया है सुनाम चलना है। ''
'' अच्छा…. ? वो कैसे …. ?
''
ये तो ज्यादा मुझे भी नहीं पता , मुझे भी मक्खन ने बताया। किरना को लेने
जा रही थी उसके घर , रस्ते में कोई टैंकर वाला मार गया। तू जल्दी चल बस
आने ही वाली है। '' वे दोनों वहाँ से भागते हुए बस अड्डे पर आ गये। पाँच
मिनट बाद ही बस आ गई। दोनों बस में चढ़ गए। भगवान सारी राह थोड़ी - बहुत
हाँ -हूँ के अलावा ज्यादा बात न कर सका। बस बार - बार आँखों में रिस आये
दर्द को पोंछता रहा। जब वे सुनाम अस्पताल पहुँचे तो देखा , करमी तीन नम्बर
कमरे में बिस्तर पर पड़ी तड़प रही थी। . उसके सर से दर्द उठता और सारे बदन
में फ़ैल जाता। वह बिस्तर पर पड़ी ज़ख़्मी परिंदे की तरह तड़प रही थी। डाक्टर
और नर्सों का जमघटा उसके पास इकट्ठा हुआ खड़ा था.. उसका सारा शरीर बोतलों
और टीकों से बिंधा था। . सर में गहरी चोट थी , जिसके कारण उसे थोड़ी-थोड़ी
देर बाद खून की उलटी आती और घुटने से चकनाचूर हुई दाहिनी टाँग के दर्द से
उसके आँसू बहे जा रहे थे। भगवान को देख उसने मुस्कुराने की कोशिश की पर
उसके सर का दर्द उसकी मुस्कान का गला दबा सामने आ गया और उसकी आँखों से
दर्द से पानी छलक आया ।
'' नहीं नहीं …क्यों ,रोती है यूँ ही दिल न छोटा कर , सब ठीक
हो जाएगा। '' भगवान करमी के बैड पर बैठ गया और अपने रुमाल से उसके आँसू
पोंछ कर सर पर स्नेह से हाथ फेरा। .
भ … भा …. ग। .''
करमी की टूटी - फूटी आवाज़ गले से डिक - डोले खाती बाहर आई और उसने भगवान का
हाथ कस कर पकड़ लिया। उसे अपनी मौत आवाजें मारती दिखी पर वह भगवान का साथ
नहीं छोड़ना चाहती थी।
'' भगवान '' राजे ने भगवान को बाहर आने का इशारा किया। गुरजीत और भगवान उसके पीछे बाहर आ गए।
'' हाँ बता ? ''
'' यार मेरे से करमी की हालत देखी नहीं जा रही। '' राजा करमी का दर्द देख पिघलता जा रहा था। जब उससे और देखा न गया तो बाहर आ गया।
'' अच्छा फिर, तू ऐसा
कर … '' भगवान ने घड़ी की ओर नज़र मारी , छ: बजे वाली बस आने वाली है , ''तू
पिंड चला जा , साथ ही हमारे घर संदेशा भिजवा देना कि हम आज सुनाम ही रहेंगे। ''
'' अच्छा। '' राजा पिंड चला गया।
गुरजीत
और भगवान दोबारा कमरे में आ गए। करमी की हालत और तरस योग्य होती जा रही
थी। वह दर्द से दोहरी हुई जा रही थी। गुरजीत उसकी हालत देख डाक्टर को बुला
लाया ; डाक्टर ने उसे दर्द का टीका लगा दिया। नशे में उसे दर्द में
तकलीफ थोड़ी कम महसूस होने लगी पर उसकी आवाज़ पहले से और मद्दम हो गई थी और
आँखों का हिलना भी
कम हो गया। भगवान आधी रात तक करमी के सिरहाने बैठा उसका माथा दबाता रहा।
करमी की माँ समय का ख्याल कर भगवान के पास आ गई , '' ला पुत्त अब मैं दबा
देती हूँ , तू जरा कमर सीधी कर ले , बहुत समय हो गया तुझे बैठे। ''
'' कोई बात नहीं ताई , मैं बैठा हूँ अभी। '' भगवान का असल में करमी के पास से उठने का मन नहीं था।
'' नहीं पुत्त (बेटा ) तू आराम कर ले थोड़ी देर । ''
जब
भगवान उठकर जाने लगा तो करमी ने उसकी कमीज़ का लड़ पकड़ लिया और खुली आँखें
धीरे से बंद करके फिर खोल लीं , जिसका भाव था भगवान मेरे पास ही बैठा रहे।
'' नहीं बेटी , देख इसे कितनी देर हो गई बैठे को , इस बेचारे को भी अब आराम कर लेने दे। ''
करमी ने एक बार फिर
आँखें बंद कर खोल लीं और भगवान को जाने की इज़ाज़त दे दी। भगवान और गुरजीत
जाकर दुसरे बैड पर लेट गए। उन्हें नींद बिलकुल नहीं आ रही थी। बस पड़े
करवटें बदलते रहे। वे नहीं चाहते थे कि उनकी ' गुड़िया ' सी बहन उन्हें
सोये हुए ही छोड़ जाये। चाहे वे करमी से कुछ फासले पर पड़े थे पर उनका ध्यान
करमी की ओर ही था , जिसकी साँसों की आवाज़ भी पहले से मद्धम होती जा रही
थी। समय पल - पल बढ़ता गया साथ ही घटती रही करमी के साँसों की गिनती। तीन
बजे के करीब सुरजीत ने गुरजीत को आवाज़ मारी ,ओये गुरजीत ! आ कर देख जरा करमी साँसें कठिनाई से ले रही है। ''
भगवान
और गुरजीत भाग कर करमी के पास गए। करमी खींच -खींच कर साँस ले रही थी।
उसकी नज़र बिलकुल स्थिर हो गई थी। आँखों की झिमनियाँ झपकनी बंद हो गई थीं।
गुरजीत दौड़ कर डाक्टर को बुला लाया। डाक्टर ने आकर करमी की नब्ज़ टटोली
। नब्ज़ रुक -रुक कर चल रही थी। उसने एक टीका और लगा दिया। धीरे - धीरे
करमी की साँस रूकती गई और शरीर ठंडा होता गया। आखिर करमी की आँखें उलट
गईं। नब्ज़ बंद हो गई। दिल की धड़कन रुक गई। हँसती - हँसाती करमी निर्जीव
देह में बदल गई। सबकी आँखों से आँसू झर -झर बहने लगे। सुबह के चार बज गए
थे। गुरजीत का चाचा दौड़ कर किसी कार को किराये पर ले आया। करमी की मिट्टी
बनी देह को कार में डाल लिया गया। उसकी माँ सारी राह दहाड़े मार -मार रोती
रही और अपने बाल नोचती रही। गाड़ी ज्यों - ज्यों रस्ता कम कर रही थी ,
त्यों- त्यों दिन चढ़ता जाता था और अँधेरा घटता जाता था पर आज इस गाड़ी में बैठे
परिवार के लिए तो सारे जग में अँधेरा हो गया था। उनके आँगन में रौशनी देने
वाली मोमबत्ती पिघल - पिघल कर खत्म हो चुकी थी। सारे गुम -सुम हुए बैठे
थे , जैसे सारे ही लाशें बन गए हों। गाड़ी श्मशानघाट से नई पिंडी की ओर मुड गई . मरघट को देखते ही एक बार फिर सबकी आँखें बहने लगीं। दिन चढ़ गया था।
पिंडी ( छोटा गाँव ) की औरतें गोबर - कूड़ा उठाने में जुट गई थीं। गाड़ी घर
के बाहर आकर रुक गई।
'' हाय ओ लोगों ! लुट गए वे !''
सुरजीत ने कार से उतरते हुए दोनों हाथ जाँघों पर मारे। सुरजीत की दिल
चीरती ह्रदय विदारक चीखों ने कामों में उलझे लोगों को वहीं जमा दिया।
'' ता … ई संभाल अपने आप को। '' भगवान ने कांपती आवाज़ में सुरजीत को चुप करने के लिए कहा पर खुद उसके आंसू लगातार बहे जा रहे थे.
'' वे पुत्त , मेरी राणी धी हूण कित्थों मुडू वे … ? '' सुरजीत का विलाप अब और ऊंचा होता जा रहा था वह हाथों से निकल - निकल जाती।
करमी का पिता पगलाया सा इसे ईश्वर की लीला माने बैठा था।
गुरजीत और भगवान का तो रो -रोकर बुरा हाल था। रोने की आवाज़ सुन आस-पड़ोस
के लोग भी इकट्ठा हो गए। सयानी बूढी औरतें सुरजीत को हौंसला दिलाने लगी पर
उसके दुःख में उठते
वैन आसमान चीर - चीर जाते। जिस आँगन में कभी फूलों की सुगंध जैसी हँसी
खिलखिलाया करती थी , आज दुःख , तकलीफों के पहाड़ टूट पड़े थे , जिन्होंने
फूलों
की सुगंध जैसी हँसी को कुचल दिया था। ज्यों - ज्यों दिन चढ़ता गया , लोग
और इकट्ठे होते गए। करमी के दाह - संस्कार की तैयारी की गई। जब अर्थी
उठाई, एक बार फिर सबके आँसू फूट पड़े। लोगों का लम्बा काफिला श्मशानघाट
को
चल पड़ा। श्मशानघाट के इधर ही अर्थी को नीचे उतार लिया गया। लागी ने चार
पिन्नियाँ अर्थी के चारों कोनों पर रख कर कोरे घड़े का पानी चारो ओर फेरा और
फिर बाकी बचे पानी समेत पहे
(कच्चा रस्ता ) पर जोर से मारा। घड़ा गिर कर टुकड़े -टुकड़े हो बिखर गया और
पानी धरती में जा
समाया और फिर अर्थी को दोबारा उठा लिया गया। करमी के पिता ने बिलखते हुए
चिता को आग दी। आग की लपटें आसमान की ओर उठने लगीं। .
भगवान
दुखों की गहरी दलदल में समाया वहाँ से सीधे घर आ गया। उसकी आँखों के आगे
करमी बहन के साथ बिताये पल रील की तरह घूमते तस्वीरें बन -बन आ रहे थे।
वह
दुःख में डूबा कई दिनों तक बिस्तर में ही पड़ा रहा। उसका चेहरा हल्दी की
तरह पीला पड़ गया था। . राजा और गुरनैब हर रोज़ चक्कर लगा जाते। . आखिर
परीक्षा के नजदीक वह कुछ पढने बैठा पर ज्यादा देर उसका पढाई में भी मन न
लगता। उदासी के आलम में उसने जैसे -तैसे इम्तहान दिए और करमी की यादों को
साथ रख एक बार फिर अपनी ज़िन्दगी के लम्बे सफ़र पर चल पड़ा। .
11
सर्दी
अपना पल्ला छुड़ा गई और गर्मी पक्के पैर जमाने लगी थी । गेहूं पक कर कड़क
हो
गई थी । जब कोई हवा का झोंखा इनके साथ कलोल करता पार होता तो यह गिद्दे
में
नाचती किसी नवयौवना की झांझर की तरह झनकती और जब यही झोंखा किसी खेत में
शहतूत की छाया में बैठे बुजुर्ग किसान की छाती में आ लगता तो वह स्वभाविक
ही कह उठता , '' वाह ओये रब्बा ! वारे जाऊँ तेरे। '' खेतों में सोने सी खड़ी
पक्की
फसल को देख किसान छाती फुला -फुलाकर चलते। उनके दिलों में चाव था , ख़ुशी
थी कि वे इस फसल से अपनी गरज पूरी कर सकेंगे। साहूकारों के कर्जे , जो
किसी ने अपनी कोठे जितनी हो चुकी बेटी की शादी के लिए , किसी ने नए लिए
ट्रैक्टर के लिए तो किसी ने नया घर डालने के लिए लिए थे , वे इस फसल से वो
कर्जा चुकता कर सकेंगे। इस बार की अच्छी फसल देख कर मजदूरों ने भी दिहाड़ी
उठा दी पर फिर भी मजदूरों की कमी रहती। . जमींदारों के लड़के अपनी जान
-पहचान के मजदूर लड़कों को जोर -जबर खींच कर ले जाते। . मज्बीयों, रमदासियों
के आँगन में ग्यारह-बारह बजे तक मेला लगा रहता। .
भगवान लोगों ने आज ही फसल काटनी शुरू की थी । आज ही नौ लोग डेढ़ किला काटकर बोझे बाँध आये। कल चन्नण ने सुनाम पेशी पर जाना था। इसलिए चन्नण ने भगवान लोगों से कह दिया कि वह सुबह के लिए कुछ और दिहाड़िए ले आये। .
'' बेबे हम मज़दूरों को पक्का करने जा रहे हैं , आ कर नहाऊँगा। .'' भगवान कह कर मिट्ठू के साथ मज़दूर पूछने चल पड़ा। भगवान ने सबसे पहले अपने साथ दसवीं तक पढ़े शेरी के घर जाकर आवाज़ मारी। शेरी , ओये शेरी … भई शेरी … ''
भगवान लोगों ने आज ही फसल काटनी शुरू की थी । आज ही नौ लोग डेढ़ किला काटकर बोझे बाँध आये। कल चन्नण ने सुनाम पेशी पर जाना था। इसलिए चन्नण ने भगवान लोगों से कह दिया कि वह सुबह के लिए कुछ और दिहाड़िए ले आये। .
'' बेबे हम मज़दूरों को पक्का करने जा रहे हैं , आ कर नहाऊँगा। .'' भगवान कह कर मिट्ठू के साथ मज़दूर पूछने चल पड़ा। भगवान ने सबसे पहले अपने साथ दसवीं तक पढ़े शेरी के घर जाकर आवाज़ मारी। शेरी , ओये शेरी … भई शेरी … ''
'' हाँ भई , क्या हाल चाल है ?'' शेरी ने बाहर आकर भगवान से हाथ मिलाया।
'' यार सुबह हमारे लगाकर आना एक दिन। '' भगवान ने कहा।
'' सुबह यार मैंने मंगू के जाना था। ''
'' भाई बनकर यार , उनके परसों चले जाना, कल तू हमारे आ जाना ।
'' चल यार ठीक है। ''
'' पक्का न फिर ?''
'' जब कह दिया तो फिर पक्का ही है। '' शेरी ने भगवान को यकीन दिलाया। .
भगवान और मिट्ठू दस बजे तक मज़दूरों को पूछते रहे। भगवान ने अपने
दो दोस्तों को कल के लिए पक्का कर लिया और तीन मज़दूरों को मिट्ठू ने पूछ लिए।
मज्बियों के आँगन से मिट्ठू सीधा अपने घर चला गया और भगवान अपने घर।
'' बे कितने मिल गए भागू ?'' भगवान के आते ही उसकी माँ ने पूछा।
'' मज़दूर तो बहुत मिल गए , सात हो गए। ''
'' चल अच्छा हुआ जल्दी काम निपट जाएगा। ''
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बारात वाले दिन भगवान घर पर ही रहना चाहता था , उसका बरात के संग जाने को दिल नहीं कर रहा था। किरना की प्यारी तंदें उसके दिल को अपनी ओर खींच रही थीं पर गुरजीत ने उसे जबरदस्ती तैयार करवा कर कार में बराबर बैठा लिया। . गुरुद्वारे और डेरे पर माथा टेक कर सारी बारात गाड़ियों में बैठ गई। गाड़ियों का काफिला धूल उड़ाता चल पड़ा । चिमियाँ से सुनाम रोड चढ़कर गाड़ी हवा से बातें करने लगी। गाड़ी में बैठा गुरजीत अपनी ज़िन्दगी के सांझे राहों की हमसफ़र साथी को ले आने की ख़ुशी में झूम रहा था। . उसकी आँखें किसी लोर में नशियाई सी हँस रही थी। दूसरी ओर भगवान अपने साथी से कुछ घंटों की दूरी बर्दाश्त न करते हुए लाजवंती के पौधे की तरह कुम्लाया बैठा था। .उसकी आँखों में वापस जाने की चाहत पलसेटे मार रही थी। .गाड़ियाँ ढंडोली पिंड के बीच बनी हथाई (धर्मशाला) में जा रुकीं । बराती उतर कर हथाई में बिछी चारपाइयों के ऊपर जा बैठे। . कुछ देर बाद कई लोग और पिंड की पंचायत मिलनी करने आ गए। . मिलनी के बाद सारी बरात आनंद कारज (फेरों ) के लिए चल पड़ी। . नई पीढ़ी का नया खून आगे चल पड़ा और बूढ़े ठेरे पीछे।
फूलों की फुलवाड़ी में खिले रंग - बिरंगे फूलों की तरह भांति -भांति
के सूट पहने खड़ी कोमल जवानियाँ , बरातियों की उडीक में नाका बंदी किये खिल
-खिल हँस रही थीं। इक नौजवान ने हरे सूट वाली को देख कर दिल पर हाथ रख कर
'हाय ' कह दिया। लड़की ने उसकी ओर होंठ उलेर दिए। लड़का साथ चल रहे भगवान को
कोहनी मार हँस पड़ा.. लड़कियों ने एक बार अपनी नज़रें प्यासी मृगनी की तरह
सारी बरात पर डालीं और आखिर सबकी तेज नज़र ने फूलों में से गुलाब ढूंढ ही
लिए। . सबकी नज़रें भगवान और नए दुल्हे पर आ टिकीं। .
'' बताओ क्या लेना है ?'' गुरजीत ने लड़कियों के बीच खड़ी अपनी साली से कहा।
'' इक्कीस सौ !'' हरी चुन्नी वाली ने सबकी ओर से जवाब दिया।
'' इक्कीस सौ तेरा मोल है ?'' 'हाय' कहने वाला नौजवान बोला।
''तुम्हारे लिए नहीं , कोई और कहे तो मान जाऊँ। '' वही लड़की भगवान को
ललचाई नज़र से देखती रही। पहले लड़के ने अपनी हेठी देख नज़र नीची कर ली।
''
छेती करो भई मुंडियों '' पीछे से एक बुजुर्ग ने कहा.. कई शरारती पीछे से
धक्का मारते और आगे के लड़के -लड़कियों पर उलट जाते। दस - पंद्रह मिनट लड़के
लडकियां एक दूजे की बातों में स्वाद ले -ले कर बोलते रहे। आखिर बात पांच
सौ पर आकर खत्म हुई। गुरजीत के मुंह को मीठा लगाते समय उसकी साली के हाथ
कांपने लगे।
'' क्यों कभी लड़के नहीं देखे ?'' लड़की के कांपते हाथ देख गुलाबी पगड़ी
बोल पड़ी पर लड़की ने अपने सुशील -पन में नज़र नीची कर ली। . दुल्हे के मुँह
को मीठा लगने के साथ ही पीछे से धक्का पड़ा। . सामने के लड़के आगे खड़ी
लड़कियों के ऊपर जा गिरे । . लड़कियां खिलखिला कर हँस पड़ीं। बाबे ने टैंट के
अंदर बाजा और तेज कर दिया ढोलकी वाले ने ढोलकी पर जोर -जोर से थाप मारनी
शुरू कर दी फिर लम्बी दाढ़ी वाले भाई ने शबद गाया ' हम घर साजन आये .... ''
आनंद
कारज (विवाह ) होने के बाद गुरु ग्रन्थ साहिब जी को गुरुद्वारे ले गए और उसके बाद
सलामी की रस्म शुरू हो गई। . हरी चुन्नी आनंद कारज होने तक भगवान को आँखें
फाड़ -फाड़ देखती रही। अगर कभी भगवान की नज़र उधर हो भी जाती तो वह अपने
गुलाबी होठों में मुस्कुरा देती। सलामी के वक़्त वह सरकती हुई भगवान के
पास आ गई .
'' लोग अपने हुस्न पर बड़ा गरूर करते हैं , किसी की ओर देखते तक नहीं। .''
''
लोगों में आग ही ज्यादा है , तभी तो देखते नहीं कि कहीं साथ लग कर ही न मच
जाये। '' भगवान लड़की के बेसब्र सा देखते रहने पर चोट कर गया। लड़की ने हँस
कर नज़रें नीची करने की बजाये भगवान के चेहरे पर गड़ा दीं। भगवान उठ कर
सलामी डालने चला गया।
सूरज कब का छिप चुका था पर रौशनी अभी काफी थी। आसमान में सफ़ेद बादल
नीचे आ गया और रुमकती - रुमकती हवा चल पड़ी। विवाह वाली गाड़ी ने गेट के
आगे आ ब्रेक मारे। देखते ही सारे घर में ख़ुशी नाच उठी। विवाह में आये
सारे रिश्तेदार भागे चले आये। सुरजीत ने सिर पर लाल फुलकारी लेकर नई बहू
के
ऊपर से हँस - हँस कर पानी वार कर पीया और उसे अंदर बढ़ाया . चाचियों -
ताइयों ने नई बहू के मुँह में रेवड़ियां डालकर उसका मुँह मीठा किया। सारा
मेल ही नई बहू को देखने उमड़ आया।
इतनी ख़ुशी देख कर भगवान का दिल भी हुलारा खा गया। उसका भी अपनी
प्रेमिका से मिल बैठ कर बातें करने को जी कर आया। उसने इशारे से किरना को
नाचती लड़कियों में से बाहर बुला लिया।
''क्या ?'' किरना भगवान के दिल की बात बूझ लेने की ख़ुशी में हँस पड़ी।
'' चल चलें ''
'' ना.... ! ''
'' क्यों ?''
'' पता चल जायेगा। '' किरना ने आगे पीछे देखा , किसी का ध्यान नहीं था . सभी अपनी -अपनी मस्ती में भागे फिर रहे थे।
'' कहीं नहीं चलता पता। मैं जाता हूँ तुम आ जाना सोनारों वाले बाग़ में। '' भगवान किरना के कुछ बोलने से पहले ही चला गया।
जब
भगवान घर से बाहर आया , अँधेरे ने रौशनी से सरदारी ले ली थी। आसमान पर
छाया बादल हवा के साथ कहीं उड़ गया था और उसके नीचे से मोतियों की तरह चमकते
तारे हँसने लग पड़े थे। इन तारों के बीच गोल चाँद किसी सुहागन के माथे पर
लगी बिंदी सा चमक रहा था . भगवान बाहर आकर खेतों की ओर जाते पहे की भड़ी
(मिटटी की ऊंची बट ) पर बैठ गया.. उसके चारो ओर बिंडों की टीं - टीं
रात को सोने के लिए लोरियां दे रही थी। वहाँ से दस बारह किले की दूरी पर
एक मोटर वाले कोठे पर लाइट जल रही थी और कोठे के पास किसी मनुष्य का आकार
इधर - उधर घूमता साफ़ नज़र आ रहा था। भगवान को बैठे को बीस - पच्चीस मिनट हो
चले थे पर उसे अभी तक घर की ओर से कोई आता न दिखा।
'' क्या हो गया अभी तक नहीं आई ?'' भगवान ने खुद ही सवाल किया। ''
कहीं कोई काम न पड़ गया हो। '' फिर खुद ही जवाब दे मारा। '' क्या पता
पगडंडी से आ रही हो ?'' उसने गुरजीत के घर के पीछे से बाग़ बाग़ को आती
पगडण्डी की ओर निगाह मारी और फिर बाग़ की ओर देखा , सिवाए अँधेरे के उसे
कुछ और न दिखा।
'' कहीं आकर न बैठ गई हो। ' भगवान की सोच भाखड़ा के पानी में पड़ती
घुमेरियों की तरह चक्कर काटने लग पड़ी। वह वहाँ से उठकर बाग़ की ओर चल पड़ा।
जब वह बाग़ के नज़दीक पहुंचा तो एक मनुष्य का आकार उसकी ओर बढ़ा। थोड़ा और
नज़दीक आने पर एक औरत के रूप में ढल गया।
'' मैं कब की उडीकी जा रही हूँ , आप बोल कर अच्छे आये। '' किरना ने नज़दीक आये भगवान को पहचान लिया।
'' ओह ! तुम आ गई ?'' भगवान के चेहरे पर हैरानी और ख़ुशी के भाव उभर आये। '' मैं तो तुझे इधर उडीक रहा था पहे पर बैठा ,''
'' मैं तो पगडण्डी से आई । ''
'' चल अच्छा हुआ आ तो गई। '' भगवान ने ख़ुशी में बांह उसकी बगल में कस ली और बाग़ में जा बैठे।
'' मैंने तुझे विवाह से पहले भी कितने संदेशे भेजे थे , आई नहीं … ?'' भगवान ने अपने चेहरे पर गुस्से की नकली परत चढ़ा ली ।
'' घर वाले नहीं आने देते। ''
'' घर वालों का तो बहाना है मुझे तो
लगता है तुम खुद ही पीछे हटती जा रही हो। '' भगवान के कहने का भाव था कि
मेरा प्यार तुम्हारे दिल से कम होता जा रहा है।
किरना के शरबती होंठ मुस्कान से चौड़े हो गए और उसकी आँखों की पलकें
इक बार झपक कर बंद हो गईं जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो ,'' भागू अब हम पीछे
हट जाते हैं। '' किरणा प्यार की राह से वापस मुड़ना चाहती थी..
'' क्यों ? यह क्या कोई खेल है , कि जब दिल किया खेल लिया , जब दिल किया हट गए। '' किरणा की कही बात भगवान का दिल चीर गई।
''
मैं तो मज़ाक कर रही थी , कैसे मुँह फुला लिया। '' किरना भगवान के चेहरे
पर बदलते हाव - भाव पढ़ती उसकी छाती में मुक्की मार हँस पड़ी।
'' किरना कभी ऐसी बात मत करना , मैं तो मर जाऊंगा। '' भगवान सचमुच ही मरने जैसा हुआ पड़ा था।
'' अच्छा बाबा , माफ़ कर दे। '' किरना ने भगवान के आगे हाथ जोड़े।
दोनों
वहाँ से उठकर बाग़ के बीच चले गए। ठंडी हवा के झोंके जवान ज़िस्मों को छेड़ते
हुए आगे बढ़ जाते। किरना कंपकपी के साथ भगवान की बाहों में और सिमट
जाती। नज़दीक गुरजीत के घर से गिद्दा डाले जाने की मद्धम सी आवाज़ सुनाई
दे रही थी। मोटर के पास फिरता आदमी खाल पर चक्कर लगाने चला गया था। आसमान
में खिला गोल चाँद और टिमटिमाते तारे जोड़ी के पहरेदार बनकर खड़े थे। दोनों
एक दूसरे के प्यार भरे आलिंगन में एक हो गए।
13
जब से करमी ज़िन्दगी से अलविदा कह गई थी , भगवान भी उस दिन से उखड़ा -उखड़ा रहने लगा था। गुरजीत के विवाह से पहले भगवान उनके घर दो चार गेडे मार आता था पर गुरजीत के विवाह के बाद उसने बिल्कुन जाना छोड़ दिया क्योंकि अब वहाँ उसका कोई अपना भी तो नहीं रहा था। जिसके पास बैठ कर वह अपना दुःख-सुख बाँट सके। गुरजीत और उसकी माँ भी अब पहले जैसे नहीं रहे थे। विवाह के पहले जिस भगवान को देख कर खिल उठते थे , अब उसी को देख कर माथे पर बल डाल लेते। यदि भगवान कभी न कभी जाता भी तो वे उसके साथ पहले की तरह घुलते - मिलते नहीं थे , बस एक दो बातें पूछ लेते या कभी तो बात ही न करते तो भगवान खुद ही 'अच्छा चलता हूँ ' कहकर उठ आता। अब उसे पहले की तरह कोई नहीं कहता कि ' बस वीर जी पांच मिनट और बैठ जाओ। '' आखिर उसने आना -जाना बिलकुल ही बंद कर दिया। अब तो कभी राजे लोगों के साथ बैठता तो जरा सा हँस बोल लेता या करमी की बातें कर मन हल्का कर लेता । जब कभी करमी की बहुत याद आती तो उसका दिल करमी के घर जाने को करता पर घर के लोगों का उसके प्रति व्यवहार देख कदम रोक लेता। कभी अकेले बैठे को किरना की यादें आ चिपकती जो दो महीनों से कई संदेशे देने के बाद भी नहीं आई थी। उसे समझ नहीं आ रही थी कि समय इस तरह , इतनी जल्दी कैसे बदल गया। जिन्हें वह दिल से अपना समझ बैठा था , उनका खून कैसे सफेद हो गया। इन्हीं ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव के ख्यालों में उलझे , खेतों से लौटते भगवान को नाले की पटरी पर राजा मिल गया। राजा भगवान को देखकर दूर से ही हँसता हुआ बोला , '' क्यों क्या हाल है तेरी सूरज की किरण के ?'' ''
उसे तीसरी जगह पे कहाँ याद कर रहा है पहले अपने वीर का हाल- चाल तो पूछ ले। ''
'' तुम तो अब हमारे पास ही रहते हो , तेरी तो हम रग -रग से वाकिफ हैं ,उस तीसरी जगह का हमें क्या पता चले ,वह तो तुझसे ही पूछेंगे। ''
'' वह तो अब डुबो देगी। '' भगवान के दिल की चीस बोल पड़ी।
'' क्यों ?'' राजे ने किसी भेद की बात जानने के लिए अपना पूरा ध्यान भागू की कही बात पर सेध लिया।
'' तुझे तो पता कितने संदेशे भेज दिए, मिलने ही नहीं आई।
'' अब भी कहा था कभी ?''
'' हाँ , कल ही कहा था नहीं आई। ''
'' ले हैं , बहन की .... '' राजा भगवान के हक़ में खड़ा होकर किरना को गाली दे गया।
वे घर तक बातें करते आये । राजा भगवान को अपने घर ले गया। दोनों सीढ़ियों से कोठे पर जा चढ़े। छिपती ओर बाबे रमाणे की मटील ( लोगों द्वारा श्रद्धा पूर्वक बनाया गया मिटटी का टीला ) की ओट में सूरज ऊंघ रहा था । कोठे पर से कौओं की कतारें दक्षिण की ओर अपने घरौंदों में लौटने लगी थीं। . किसी रकान के घर से जल्दी कामों में हाथ डालने का संदेशा देता धुआँ बनेरों पर चढ़ आया था। . सामने वाली गली में एक बड़े कुत्ते ने छोटे से पिल्ले को गले से पकड़कर उससे आधी रोटी का टुकड़ा छीन लिया , पिल्ला बेबस हुआ सामने की टांगों में मुँह दबाये चूँ … चूँ करता भाग खड़ा हुआ. अपने बरामदे में खड़े सीते के पाली ने छित्तर उतार कर बड़े कुत्ते के दे मारा ,कुत्ता रोटी छोड़ भाग खड़ा हुआ। . '' ओये राजे !'' राजे के आँगन से किसी की आवाज़ आई। '' गुरनैब है। '' राजे ने आवाज़ पहचान कर कहा।
15
'
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' लोगों का क्या है लोग तो सौ -सौ बातें करते हैं। '' गेजो को चाहे कुछ -कुछ बात समझ आ गई पर उसने बात को टालना चाहा। उसे डर था कि कहीं बेटा और जमाई आपस में मार-पीट न कर बैठें।
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सुबह
मिट्ठू एक बार फिर रात पूछे गए मज़दूरों को जाकर बुला लाया। आते ही सबको
चाय पिला दी। जिस किसी ने नशा माँगा नशा दे दिया। . सबको खिला -पिला कर
ट्राली में बैठा कर ट्रैक्टर खेतों की ओर रवाना हो गया.. नाले के साथ -साथ
जाते कीकर के पेड़ों से ढके मार्ग के बाद ट्रैक्टर खेतों को जाते बड़े मार्ग पर आ
गया। बड़े मार्ग पर चार -पांच किलों की बाट पार करने के बाद भगवान ने
ट्रैक्टर खेत की ओर जाती सांप जैसी बल खाती पगडंडी की ओर मोड़ लिया। खेत पहुँच कर
ट्रैक्टर शहतूत की छाया तले खड़ा किया। चाय गुड का सामान मिट्ठू दौड़ कर
कोठे में रख आया। .
'' ताऊ , किधर से काटना शुरू करें ?'' भगवान ने अपनी दराँती के दांतों पर हाथ फेरा। जाट के हाथों मेंदराँती अकड़ी पड़ी थी।
'' ताऊ , किधर से काटना शुरू करें ?'' भगवान ने अपनी दराँती के दांतों पर हाथ फेरा। जाट के हाथों मेंदराँती अकड़ी पड़ी थी।
''
जिधर से कल काटी थी वहीँ से लग जाते हैं। '' गुरबचन ने कल की काटी फसल की
ओर इशारा कर दिया। सबने अपनी -अपनी जगह सम्भाल ली। मिट्ठू और भागू ने
जोड़ी बना ली। बलोर और जग्गे ने आपस में मेल कर लिय. बाकी दो -दो मज़दूरों
ने अपनी -अपनी जोड़ी बना ली और एक मज़दूर ने गुरबचन को अपने साथ लगा
लिया। पहले पहर ओस के कारण कटाई धीमी गति से चली पर ज्यों -ज्यों
सूरज ऊपर उठता गया जवानों के हाथ भी तेज होते गये। दराँती के तीखे दाँत '
खाऊँ -काटूँ ' कह उठे। हाथ तेज होते गए , जवान ललकारे मारते एक -दुसरे को '
हट पीछे ' कहने लगे। इससे पहली बार फांट सबसे पहले बलोर की जोड़ी काट गई
थी पर इस बार आगे जाते बलोर को भागू और मिट्ठू की जोड़ी ने पछाड़ दिया ।
'' धर ली बूथ , अब माँजेंगे। '' मिट्ठू ने बलोर के साथ मिलकर ललकारा मारा।
''
ओये तुम लोग हमारी क्या रीस करोगे , खींच जग्गे खींच। '' बलोर ने दूसरी
जोड़ी को अपने साथ आते देख अपने जोड़ीदार को हल्लाशेरी दी । जवानो के हाथ और
तेज हो गए, कटी फसल के ढेर आसमान छूने लगे। खड़ी फसल पूहों में बदलती जा
रही थी।
'' देखते जाओ जवानों कौन मारता है बाजी। '' पीछे खड़े एक अधेड़ उम्र के मज़दूर ने जवानों का जोश देख हल्लाशेरी दी।
'' लग जाएगा पता किसने पीया है बूरी भैंस का दूध ।
'' भागू और मिट्ठू बलोर से दो कदम आगे हो गए। क्यारे का माथा दो कदम पर रह
गया , जिसे दरांतियों की 'चीकर -चीकर' पलों में काटने को उतावली थी।
'' वाह ओये भागू , सदके तेरे। '' गुरबचन ने आगे जाती जोड़ी को हौंसले के लिए ' शाबाशी ' दी।
'' कहाँ है बलोर -शलोर। '' मिट्ठू पीछे छोड़े बलोर को ललकार गया।
'' हो …. हो …. ओ … ओ …. काट दी नाक बड़े सूरमों की , पानी पी लो पानी। ''
भागू
लोगों ने पहले फाट लगाकर ललकारा मारा। बलोर और जग्गा दो कदम पीछे रह
गए। उन्होंने मुस्कुराते हुए अपनी हार मान ली, आगे की जोड़ियों ने पीछे
रह गई जोड़ियों का हाथ बंटा दिया बदले में उन्होंने जवानो को शाबाशी दी।
'' सदके जवानो चलो अब पानी पी लो। '' गुरबचन ने सबको हौंसला दिया।
आग
लगाता सूरज सर पर आ गया था। काम करने वालों के कपड़े पसीने से भीगे शरीरों
से चिपक गए थे. पसीने की बूंदे सर से होती हुई कानों और नाक पर से होती
हुई नीचे की ओर बह रही थीं। हवा बहनी बिलकुल बंद हो गई थी। सबने कोठे के
पास आकर घड़े का पानी पीकर अपनी सांस ठीक की और मुड़ अपनी -अपनी जगहों पर जा
बैठे। गुरबचन चाय बनाने के लिए एक तरफ पड़ी सूखी टहनियों से लकडियाँ
तोड़ने लगा। जब तक चाय बनी एक -एक फांट जवानों ने और लगा दी.. गुरबचन के
बुलाने पर सारे चाय पीने कोठे के पास छाया के नीचे आ गए. चाय पीते हुए
ओरियो के कम -ज्यादा लेने की जिद्द - जिद्दाई चलती रही। चाय पीकर सभी फिर अपने
कामों में जा लगे। .
समय बीतता गया। दराँती चलती रही , शरीर तपते रहे , और तपते
शरीरों के आगे गेहूं बेबस हुई कटती रही . रोटी के समय तक ढाई किले गेहूं
काट दी गई और फिर रोटी खाकर गटठर बाँधने शुरू कर दिए। गटठर बांधते दिन छिप
गया। खेतों में ट्रैक्टरों के स्टार्ट होने की आवाज़ आनी शुरू हो गई पर कई
खेतों में अभी भी ललकारे चल रहे थे , जिससे उनके काम में जुटे होने का
संकेत मिल रहा था। गुरबचन लोग गटठर बना कर मुक्त हो चुके थे और बर्तन -
बाटी इकट्ठा कर ट्राली में जा बैठे। भगवान ने ट्रैक्टर स्टार्ट कर कच्चे
मार्ग पे डाल लिया। सारा रस्ता किसी मेले में जाते लोगों की तरह ट्रैक्टर
, ट्रालियों और रेहड़ियों से भरा हुआ था और उनमें सारे दिन की थकावट से
टूटे किसान निढाल हुए बैठे थे। ट्रैक्टर , ट्रालियों के साथ उड़ती धूल शाम
के अँधेरे में घुल, गड -मड हो गई थी। घर आते -आते आसमान में कोई - कोई तारा
चमक उठा था।
दोनों पक्षों के पंद्रह
-पंद्रह लोग सवेरे ही सुनाम पेशी पर जा पहुँचे थे। . घर से कोई भी रोटी
खाकर न गया क्योंकि काम का सीजन होने के कारण घर की जनानियाँ कहीं नौ बजे
तक जाकर खाना तैयार करतीं। . बारह बजे तक दोनों पक्ष भूखे -प्यासे आवाज़ को
उडीकते रहे पर कोई आवाज़ न आई। . ऊपर से भूख से बुरा हाल था। जाट चाहे लड़ाई
झगड़े पर कितने ही पैसे उजाड़ दें पर उनका बाज़ार से रोटी मोल लेकर खाने का
हिया नहीं होता। उसे अपनी खून -पसीना बहाकर की गई कमाई याद आती है। वह
इस कमाई को बाजारी चीजें खाकर लुटाने में अपनी हेठी समझता है पर जब पेट की
भूक दैत्य बन आ खड़ी होती है तो जाट बेचारा मज़बूरी वश किसी रेहड़ी के पास जा
खड़ा होता है। .
''चन्नण ,आवाज़ का क्या पता कब आएगी ,सुबह से भूखे -प्यासे चले
हैं घर से , चल कुछ खा-पी लेते हैं '' गुरदयाल की नज़र सुबह से खड़ी समोसे
वाली रेहड़ी पर जा टिकी थी। .
'' हाँ यार खा लो कुछ न कुछ , अब तो भूख से हाल -बेहाल है '' जैलू की अन्दर की भूख छलाँग मार बाहर आ गई। .
'' जा यूँ कर फिर , उस रेहड़ी वाले को बोल आ पंद्रह चाय के गिलास
और एक -एक समोसा दे जाये। .'' जैलू गुरदयाल का हुक्म सुनकर रेहड़ी वाले को
पंद्रह चाय के गिलास और समोसों का हुक्म दे आया। . रेहड़ी वाला अच्छी गाहकी
देख कर फुर्ती से चाय बनाने लग पड़ा और सुबह से बने पड़े समोसे गर्म कर सब्जी
संग ले आया ,
'' लो साहब चाय। .''
'' ओये ये समोसे तो तेरे
बासी लगते हैं। .'' गुरदयाल पास पड़े समोसों को देखने लगा जो सुबह से रेहड़ी
पर सजाये अब गर्म कर ले आया था। .
'' नहीं साहब आज ही बनाये थे । .'' रेहड़ी वाला रखकर चला गया। .
''
साला आज का। .'' गुरदयाल ने मुँह में ही बड़ - बड़ कर नाक सिकोड़ कर एक
समोसा उठा लिया। . सबने चाय के साथ एक -एक समोसा खाकर अन्दर की भूख को शांत
किया । इनको चाय पीते देखकर मुख्तयार उन लोगों ने भी चाय और समोसे मँगवा
लिए। . खा पीकर फिर वही उडीक शुरू हो गई। . फिर कहीं जाकर साढ़े चार बजे आवाज़
पड़ी और अगली पेशी की तारीख दे दी गई। . दोनों पक्षों ने चिमियाँ से पिंड
को आते हुए रस्ते में पड़ते ठेके से शराब ले ली। . पिंड आकर मुखत्यार के
साथी मुखत्यार के घर जुट गए और दूसरी पार्टी ने गुरदयाल के घर अड्डा जमा
लिया। देर रात तक शराब का दौर चलता रहा । . तारे निकलने के बाद जब चन्नण घर
आया भगवान नहा के रोटी खा रहा था ।
''' कितनी काट आये आज ?'' चन्नण ने आते ही पूछा ।
'' ढाई किले । .''
'' गट्ठर भी बाँध लिए ?''
'' हाँ ! पेशी पर क्या है ?''
'' दस दिनों बाद फिर जाना है। .''
'' अभी फिर ?''
और क्या इतनी जल्दी निपट जाएगा। .''
'' यह तो बड़ा पंगा है। .''
'' पंगा तो है ही , और मैंने तो कहा ही था पेशियों में दोनों
पक्षों को हैरानगी ही है , और फिर काम का समय है। बस आधे बीच में ना -नुकर सी करते रहे । मैंने कहा भाई तुम लोगों की मर्जी है हम क्या कर सकते हैं।
.''
'' चलो जो होना था हो गया ।'' भगवान ने रोटी खाके बर्तन रख दिए और हाथ धोकर अन्दर जा लेटा । .
' 12
दराँती और कम्पाइनों ने
गेहूँ की फसल काट कर धरती की छाती रुण्ड - मरुण्ड कर दी ।कम्पाइन के काटे
गए परालों को आग लगाई गई , काला धुआँ आसमान में जा चढा। कई जल्दबाजों ने
सूखी धरती की छाती को तवियों
(मिटटी खोदने वाला औजार ) से खोदना शुरू कर दिया। खाली पड़ी जमीनों में
से आग सा सेक निकलता। हर
रोज़ की तरह चलती तेज हवा ने रेत,धूल अम्बर में चढ़ा दी। कभी कोई चक्कर खाता हवा
का रेला मचाई गई पुराल की कालख को उड़ा कर ले जाता। . गर्मियों की बहती
गर्म लू जला -जला जाती। . लबेड़ियों के दूध सुखकर आधे रह गए थे। खेतों को सुंदरता बख्शने वाली हरियाली किसी -किसी खेत में ही दिखलाई देती। . सारा वातावरण किसी लम्बी उदासी में तप रहा था ।
दोपहर ढल गई थी पर गर्म लू अभी भी कान सेक रही थी। भगवान नई पिंडी (छोटा गांव )की ओर चला जा रहा था। करमी की याद उसे रह -रह कर आ रही थी। . चाहे करमी के मरने के बाद भगवान ने उनके घर जाना कम कर दिया था पर जब कभी उसकी याद दिल चीरती हुई टीस पैदा करती, दिल को डुबो -डुबो जाती तो भगवान करमी के घर जाकर यादें ताजा कर आता। उसे उनके घर से करमी की महक आती। . वह कितनी - कितनी देर उसकी दीवार पर लगी तस्वीर को देखता रहता। कितनी रौनक थी उसके साथ इस घर में। पर अब पता नहीं कितनी लम्बी चुप्पी दे गई है। . भगवान जब करमी के घर गया तो बाहर की दो जनानियाँ और एक आदमी आँगन के नीम के नीचे चारपाई पर बैठे थे। भगवान ने उन्हें 'सत श्री अकाल' बुलाई और सीधे सुरजीत के पास चला गया जो उनके लिए चाय बना रही थी ।
दोपहर ढल गई थी पर गर्म लू अभी भी कान सेक रही थी। भगवान नई पिंडी (छोटा गांव )की ओर चला जा रहा था। करमी की याद उसे रह -रह कर आ रही थी। . चाहे करमी के मरने के बाद भगवान ने उनके घर जाना कम कर दिया था पर जब कभी उसकी याद दिल चीरती हुई टीस पैदा करती, दिल को डुबो -डुबो जाती तो भगवान करमी के घर जाकर यादें ताजा कर आता। उसे उनके घर से करमी की महक आती। . वह कितनी - कितनी देर उसकी दीवार पर लगी तस्वीर को देखता रहता। कितनी रौनक थी उसके साथ इस घर में। पर अब पता नहीं कितनी लम्बी चुप्पी दे गई है। . भगवान जब करमी के घर गया तो बाहर की दो जनानियाँ और एक आदमी आँगन के नीम के नीचे चारपाई पर बैठे थे। भगवान ने उन्हें 'सत श्री अकाल' बुलाई और सीधे सुरजीत के पास चला गया जो उनके लिए चाय बना रही थी ।
'' ताई ये कौन हैं ?'' भगवान ने अपने दिल की उलझन सुरजीत के आगे रखी। .
'' यह तो पुत्तर अपने गुरजीत को देखने आये हैं। .'' सुरजीत ने चूल्हे से चाय उतार कर दूध डाल दिया।
'' गुरजीत कहाँ है ?''
'' चक्की पर गया है गेहूँ पिसवाने। . तुझे नहीं मिला राह में ?''
'' नहीं तो। . ''
'' लो चाय ले जाओ। '' सुरजीत ने गिलासों में चाय डालकर भगवान को पकड़ा दी। .भगवान चाय लेकर चल पड़ा और पीछे -पीछे सुरजीत भी आ गई। .
'' हमें तो सब कुछ पसंद है भई। . बस एक बार लड़की के मामे को भी दिखा दें। '' आदमी बोला। .
''
जी सदके! दिखाओ भई। . आपने भी अपनी लड़की देनी है , और फिर रिश्ते कौन से
रोज रोज बनते हैं। '' सुरजीत उनकी पूरी तसल्ली करवा देना चाहती थी। . बाहर
से गुरजीत भी साईकिल पर आटा लेकर आ गया। . उसने आटा अन्दर के कमरे में रख
दिया और साईकिल भी टिका दिया। . बाहर आये मेहमानों को सत श्री अकाल बुलाकर
वहीँ चारपाई पर बैठ गया। .
'' एक बात और है भाई , हम ज्यादा तो दे सकते नहीं , कहीं कोई आप लोगों की मांग हो तो … !'' वह व्यक्ति फिर बोला । .
''
लो भई परसिन्न कौरे हैं ! तुझे तो पता है अब हमारे बारे , घर में कोई खाना
पकाने वाला तो है नहीं , मैं हूँ , मैं बिमार रहती हूँ , क्या पता कब
आँखें बंद हो जाएँ। चलो हमने तो खा -पी लिया बहुत। बस एक बार रोटी पकती
हो जाये , फिर चाहे रब्ब उठा ही ले , और फिर आपने अपनी लड़की देनी है, ये
क्या
कम है। ' 'सुरजीत ने दहेज़ के बाबत भी उन्हें पूरी तसल्ली दिलवा दी। .
कई दिनों बाद
बिचौलिया लड़की के मामे को ले आया। . सब कुछ देख -दाख कर वे लोग सगुन का दिन
तय कर गए. । सगुन के बाद विवाह भी पांच महीनों तक कर देने की सलाह बना ली
गई।
जब विवाह के दिन नजदीक आने लगे घर की नए सिरे से सफाई होने
लगी। भगवान रोज काम में हाथ बटा जाया करता । घर के कोने -कोने से कचरा
निकाल फेंका गया। उनके दुःख - सुख में हाथ बंटाती नेगी को बुला आँगन में
मिटटी गोबर मिलाकर पोंछा लगा दिया गया। .विवाह के दिन तक घर बंगले की तरह
चमक उठा ।
नए डाले गए बरामदे में कढ़ाई चढ़ाई गई । लड्डुओं की खुशबू हवा में
इक -मिक होकर आस -पड़ोस में फैल गई। काफी समय से उदासियों से भरे आँगन में
खुशियों ने आकर दस्तक दी और वक़्त के बदलने के साथ -साथ मुरझाये चेहरों पर
ख़ुशी छलकने लगी। आस पड़ोस के बच्चे लड्डुओं की खुशबू लेकर तालियाँ मारने
लगे। लड्डुओं का पहला कड़ाहा निकलने तक सुरजीत सगे संबंधियों और आस पड़ोस की
लड़कियों को लड्डू बनाने के लिए ले आई। उनके साथ आये बच्चे लड़कियों के लड़
पकड़ -पकड़ कर खींचते जिसका भाव होता '' मुझे भी लड्डू दो.. ' सुरजीत देख
कर बच्चों को एक -एक लड्डू पकड़ा देती । बच्चों के लड्डू प्राप्त करने की
जिद्द में सूखे चेहरे लड्डू लेकर कपास के फूल की तरह खिल जाते। .
भगवान हलवाई के पास बैठा बार -बार बाहर की ओर देखे जा रहा था। . गुरजीत किरना को लेने गया अभी तक लौटा नहीं था , ' चल कर जाने में रस्ता भी लंबा जान पड़ता है। पहले चल कर जाना और फिर चल कर आना। . चार किलो मीटर से कम न होगा। . चलो जब आना होगा आ जायेंगे ' भगवान ने खुद से फैसला कर लड्डुओं के लिए नए निकाले कडाहे की पकौड़ियां तोड़ने लगा। . उसने अभी आधी पकौड़ियाँ ही तोड़ी होंगी कि पीछे से किसी ने उसकी पीठ पर थापी दे मारी ,'' शाबाश , अच्छी तरह बना दे चटनी। .''
भगवान हलवाई के पास बैठा बार -बार बाहर की ओर देखे जा रहा था। . गुरजीत किरना को लेने गया अभी तक लौटा नहीं था , ' चल कर जाने में रस्ता भी लंबा जान पड़ता है। पहले चल कर जाना और फिर चल कर आना। . चार किलो मीटर से कम न होगा। . चलो जब आना होगा आ जायेंगे ' भगवान ने खुद से फैसला कर लड्डुओं के लिए नए निकाले कडाहे की पकौड़ियां तोड़ने लगा। . उसने अभी आधी पकौड़ियाँ ही तोड़ी होंगी कि पीछे से किसी ने उसकी पीठ पर थापी दे मारी ,'' शाबाश , अच्छी तरह बना दे चटनी। .''
'' तू ? '' पीछे गुरजीत खड़ा था। . भगवान की 'तू ' का मतलब था कि तू किरना को ले आया ?''
फिर
उसने सेकेंटों में ही पुलसिया नज़र आँगन के चारो ओर डाली । . किरना कोने में गुलाबी सूट
पहने गुलाबी परी बनी खड़ी थी , उसके चेहरे की लाली पूर्व से जन्म लेते सूरज
की तरह झलक मार रही थी। . सर ऊपर ली गुलाबी धारियों वाली हरी चुन्नी का लड़
हवा में मद्धम सा हिलता भगवान को चोरी से न्योता दे रहा था। . भगवान का दिल
किरना से बातें करने के लिए उबलते दूध की तरह उछल -उछल जा रहा था। पर
उसका कोई दाव न चला। . आखिर शाम को जब परीहे (हाथ बंटाने आये अड़ोसी-पड़ोसी )
टैंट लेने के लिए सुरगढ़ चले गए तो भागू आँखें बचाकर सब्जी के लिए आलू
चीरती किरना के पास जा खड़ा हुआ। .
'' क्या हाल हैं आपके ?'' भगवान ने नज़र नीची किये बैठी किरना के पास जाकर पूछा।
'' आपके ठीक हैं तो हमारे भी ठीक हैं। '' नज़र ऊपर उठाते ही किरना के काले नयन , भगवान के जादू बिखेरते नैनों से जा टकराये।
'' वे मुँडिआ वेहला खड़ें , कुड़ी नाल आलू ही चीरदे। ''
सुरजीत भगवान को कहती हुई एक थाल आलुओं का किरना के आगे रखी टोकरी में और डाल गईं।
' अंधे को क्या चाहिए दो आँखें ' भगवान को और क्या चाहिए था। उसे किरना के पास बैठने का बहाना अपने आप मिल गया , जिसके लिए वह अपने दिमाग में कब का स्कीमें बना -गिरा रहा था।
'' इतने दिन हो गए कहीं मिले नहीं ?'' भगवान किरण से बातें करता हुआ चाकू से आलुओं का छिलका उतारने लगा।
'' बस दिल ही नहीं किया। ''
'' दिल नहीं किया , या दिल से प्यार कम हो गया ? ''
'' ना , ऐसे कैसे कम हो जायेगा। '' किरना ने कहकर नज़रें नीची कर लीं। रोटी बनाने वाली लड़कियाँ आटा गूंधकर उसके पास ले आईं। भगवान का वहाँ बैठना अब मुश्किल हो गया। वह एक दो आलू चीरकर उठ आया।
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'' क्या हाल हैं आपके ?'' भगवान ने नज़र नीची किये बैठी किरना के पास जाकर पूछा।
'' आपके ठीक हैं तो हमारे भी ठीक हैं। '' नज़र ऊपर उठाते ही किरना के काले नयन , भगवान के जादू बिखेरते नैनों से जा टकराये।
'' वे मुँडिआ वेहला खड़ें , कुड़ी नाल आलू ही चीरदे। ''
सुरजीत भगवान को कहती हुई एक थाल आलुओं का किरना के आगे रखी टोकरी में और डाल गईं।
' अंधे को क्या चाहिए दो आँखें ' भगवान को और क्या चाहिए था। उसे किरना के पास बैठने का बहाना अपने आप मिल गया , जिसके लिए वह अपने दिमाग में कब का स्कीमें बना -गिरा रहा था।
'' इतने दिन हो गए कहीं मिले नहीं ?'' भगवान किरण से बातें करता हुआ चाकू से आलुओं का छिलका उतारने लगा।
'' बस दिल ही नहीं किया। ''
'' दिल नहीं किया , या दिल से प्यार कम हो गया ? ''
'' ना , ऐसे कैसे कम हो जायेगा। '' किरना ने कहकर नज़रें नीची कर लीं। रोटी बनाने वाली लड़कियाँ आटा गूंधकर उसके पास ले आईं। भगवान का वहाँ बैठना अब मुश्किल हो गया। वह एक दो आलू चीरकर उठ आया।
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बारात वाले दिन भगवान घर पर ही रहना चाहता था , उसका बरात के संग जाने को दिल नहीं कर रहा था। किरना की प्यारी तंदें उसके दिल को अपनी ओर खींच रही थीं पर गुरजीत ने उसे जबरदस्ती तैयार करवा कर कार में बराबर बैठा लिया। . गुरुद्वारे और डेरे पर माथा टेक कर सारी बारात गाड़ियों में बैठ गई। गाड़ियों का काफिला धूल उड़ाता चल पड़ा । चिमियाँ से सुनाम रोड चढ़कर गाड़ी हवा से बातें करने लगी। गाड़ी में बैठा गुरजीत अपनी ज़िन्दगी के सांझे राहों की हमसफ़र साथी को ले आने की ख़ुशी में झूम रहा था। . उसकी आँखें किसी लोर में नशियाई सी हँस रही थी। दूसरी ओर भगवान अपने साथी से कुछ घंटों की दूरी बर्दाश्त न करते हुए लाजवंती के पौधे की तरह कुम्लाया बैठा था। .उसकी आँखों में वापस जाने की चाहत पलसेटे मार रही थी। .गाड़ियाँ ढंडोली पिंड के बीच बनी हथाई (धर्मशाला) में जा रुकीं । बराती उतर कर हथाई में बिछी चारपाइयों के ऊपर जा बैठे। . कुछ देर बाद कई लोग और पिंड की पंचायत मिलनी करने आ गए। . मिलनी के बाद सारी बरात आनंद कारज (फेरों ) के लिए चल पड़ी। . नई पीढ़ी का नया खून आगे चल पड़ा और बूढ़े ठेरे पीछे।
'' घर वाले नहीं आने देते। ''
13
जब से करमी ज़िन्दगी से अलविदा कह गई थी , भगवान भी उस दिन से उखड़ा -उखड़ा रहने लगा था। गुरजीत के विवाह से पहले भगवान उनके घर दो चार गेडे मार आता था पर गुरजीत के विवाह के बाद उसने बिल्कुन जाना छोड़ दिया क्योंकि अब वहाँ उसका कोई अपना भी तो नहीं रहा था। जिसके पास बैठ कर वह अपना दुःख-सुख बाँट सके। गुरजीत और उसकी माँ भी अब पहले जैसे नहीं रहे थे। विवाह के पहले जिस भगवान को देख कर खिल उठते थे , अब उसी को देख कर माथे पर बल डाल लेते। यदि भगवान कभी न कभी जाता भी तो वे उसके साथ पहले की तरह घुलते - मिलते नहीं थे , बस एक दो बातें पूछ लेते या कभी तो बात ही न करते तो भगवान खुद ही 'अच्छा चलता हूँ ' कहकर उठ आता। अब उसे पहले की तरह कोई नहीं कहता कि ' बस वीर जी पांच मिनट और बैठ जाओ। '' आखिर उसने आना -जाना बिलकुल ही बंद कर दिया। अब तो कभी राजे लोगों के साथ बैठता तो जरा सा हँस बोल लेता या करमी की बातें कर मन हल्का कर लेता । जब कभी करमी की बहुत याद आती तो उसका दिल करमी के घर जाने को करता पर घर के लोगों का उसके प्रति व्यवहार देख कदम रोक लेता। कभी अकेले बैठे को किरना की यादें आ चिपकती जो दो महीनों से कई संदेशे देने के बाद भी नहीं आई थी। उसे समझ नहीं आ रही थी कि समय इस तरह , इतनी जल्दी कैसे बदल गया। जिन्हें वह दिल से अपना समझ बैठा था , उनका खून कैसे सफेद हो गया। इन्हीं ज़िन्दगी के उतार-चढ़ाव के ख्यालों में उलझे , खेतों से लौटते भगवान को नाले की पटरी पर राजा मिल गया। राजा भगवान को देखकर दूर से ही हँसता हुआ बोला , '' क्यों क्या हाल है तेरी सूरज की किरण के ?'' ''
उसे तीसरी जगह पे कहाँ याद कर रहा है पहले अपने वीर का हाल- चाल तो पूछ ले। ''
'' तुम तो अब हमारे पास ही रहते हो , तेरी तो हम रग -रग से वाकिफ हैं ,उस तीसरी जगह का हमें क्या पता चले ,वह तो तुझसे ही पूछेंगे। ''
'' वह तो अब डुबो देगी। '' भगवान के दिल की चीस बोल पड़ी।
'' क्यों ?'' राजे ने किसी भेद की बात जानने के लिए अपना पूरा ध्यान भागू की कही बात पर सेध लिया।
'' तुझे तो पता कितने संदेशे भेज दिए, मिलने ही नहीं आई।
'' अब भी कहा था कभी ?''
'' हाँ , कल ही कहा था नहीं आई। ''
'' ले हैं , बहन की .... '' राजा भगवान के हक़ में खड़ा होकर किरना को गाली दे गया।
वे घर तक बातें करते आये । राजा भगवान को अपने घर ले गया। दोनों सीढ़ियों से कोठे पर जा चढ़े। छिपती ओर बाबे रमाणे की मटील ( लोगों द्वारा श्रद्धा पूर्वक बनाया गया मिटटी का टीला ) की ओट में सूरज ऊंघ रहा था । कोठे पर से कौओं की कतारें दक्षिण की ओर अपने घरौंदों में लौटने लगी थीं। . किसी रकान के घर से जल्दी कामों में हाथ डालने का संदेशा देता धुआँ बनेरों पर चढ़ आया था। . सामने वाली गली में एक बड़े कुत्ते ने छोटे से पिल्ले को गले से पकड़कर उससे आधी रोटी का टुकड़ा छीन लिया , पिल्ला बेबस हुआ सामने की टांगों में मुँह दबाये चूँ … चूँ करता भाग खड़ा हुआ. अपने बरामदे में खड़े सीते के पाली ने छित्तर उतार कर बड़े कुत्ते के दे मारा ,कुत्ता रोटी छोड़ भाग खड़ा हुआ। . '' ओये राजे !'' राजे के आँगन से किसी की आवाज़ आई। '' गुरनैब है। '' राजे ने आवाज़ पहचान कर कहा।
'' कोठे पर हैं भाई। '' राजे की माँ बोली।
गुरनैब सीढ़ियां चढ़ कोठे पर आ गया , '' ओह भागू भी यहीं है। ''
'' राजा तो जाता नहीं इसलिए मुझे ही आना पड़ता है। ''भगवान राजे की ओर देखता हुआ बोला।
'' क्या करें यार काम ही नहीं खत्म होते। '' राजे ने घर के झमेले दोस्ती के बीच ला डाले।
'' भागू तेरी कबूतरी तो तुझसे छुड़ा गई पंख। ''
'' क्या हो गया ओये ?'' राजे के साथ भगवान भी हैरानी से पूछ
बैठा , वह गुरनैब की कही बात का जवाब उसके मुँह से पढ़ने लगा। भगवान का दिल
बड़े समुंदर की लहरों में उलझी छोटी कश्ती की तरह डोल गया। उसके दिल पर छूरी चल गई , जरुर कोई अनहोनी हो गई है, उसने सोचा।
'' उसने तो रफूजियों के लड़के से डाल ली है यारी। ''
''तुझे किसने कहा ?'' राजे और भगवान को अभी तक गुरनैब की बात पर यकीन नहीं आया था।
'' मंजीत कहती थी। ''
'' वैसे ही कहती होगी खीर खानी जात। '' भगवान सच्चाई से मुंह चुरा कर भाग रहा था पर सच्चाई उसके आगे आकर उसकी हालत पर हँस रही थी।
'' वैसे ही क्यों , उसने तो मुझे अभी फोन किया, कसमें भी खाईं। '' गुरनैब यकीन दिलाने के लिए पिछली बात पर जोर देकर बोला।
भगवान की आँखों के आगे अन्धेरा छ गया। पश्चिम की लाल हुई छाती
उसे अपना बहता हुआ खून लगा , जिसे अभी -अभी किरना की बेवफाई की तलवार ने
काट कर धारे बहा दी थी। उसे कुछ समय पहले का बेबस हुआ पिल्ला अपना ही रूप लगा। उसका रोम -रोम किरना की बेवफाई को लानतें दे गया।
'' मुझे पहले ही पता था यह तोड़ नहीं निभाएगी , स…साली… कु… कु
कुतिया ' भगवान के अंदर उबलता दुःख का सागर आँखों की राह से छलकने लगा। .
'' साले काँटा तो तुझ में नहीं अगली को क्या दोष देता है ?'' गुरनैब अपने
स्वभाव के मुताबिक़ बोल गया। उसने इतनी गहराई तक जाकर कभी नहीं सोचा था कि
वह भगवान का अंदर पढ़ सके।
'' म … मैं जाता हूँ यार। '' भगवान उठकर चल पड़ा।
'' तू बैठ तो सही। '' राजे ने उसकी बांह पकड़ ली।
'' नहीं यार .''
'' अच्छा हम चलते हैं दोनों। '' राजा भगवान के साथ चल पड़ा और उसे घर छोड़ कर वापस परत आया।
'' बे … रोटी तो खा लिया कर वक्त पर । '' भगवान की माँ ने बर्तन धोते हुए कहा।
'' बेबे भूख नहीं। ''
जितनी भूख है उतनी ही खा ले ''
''
ना। '' भगवान कहकर अंदर बिस्तर पर जा गिरा। उसके अंदर का दर्द आंसुओं में
बदल कर बाहर आना शुरू हो गया। वह किसी सदियों के रोगी की तरह बिस्तर में
मुँह दिये देर तक रोता रहा। किरना की बेवफाई उसका अंतर समेट कर ले गई
थी। वह सारी रात करवटें बदलता रहा पर बिलकुल भी नींद नहीं आ रही थी। फिर
अचानक कुछ याद आ जाने पर वह बिस्तर से उठा और धीरे -धीरे अलमारी की ओर
बढ़ा। अलमारी खोलकर किताब से एक फोटो निकाल ली , ' नहीं … नहीं यह इतना
भोला, इतना मासूम चेहरा किसी को धोखा क्यों देगा ? यूँ ही मज़ाक करते होंगे
.... पर वो तो कसमें भी खा गए। क्यों यह क्या किसी को धोखा नहीं दे सकती ?
किसी के चेहरे पर तो नहीं लिखा होता कि यह कैसी है , और फिर गुरनैब ने एक
दिन कहा भी था कि स्त्री का कभी विश्वास मत करना।'
भगवान पता नहीं पलों में ही क्या कुछ सोच गया।
उसे
अपने हाथ में पकड़ी फोटो पर किरना का गुलाबी चेहरा किसी काले साँप का सर
लगा। उसके गुलाबी होंठ किसी जहरीली नागिन के नीले होंठ जान पड़े. वह फोटो
की ओर आँखें फाड़ -फाड़कर देखने लगा। उसने फोटो को फाड़ने के लिए दोनों
हाथों में ले लिया पर पता नहीं फिर दिल में क्या आया , उसने एक गन्दी गाली
देकर फोटो को फिर अलमारी में रख दिया और फिर बिस्तर पर आ गिरा। आधी रात के
बाद उसे नींद ने आ दबोचा।
……………… 0 ……………
रफ्यूजियों
का लड़का कई दिन किरना के घर आने - बहाने चक्कर मारता रहा। जब भी वह आता ,
चोर निगाहों से किरना की ओर देखता रहता। किरना भी कभी कभार देख जाती पर
ज्यादा दिलचस्पी न लेती। उसने लड़के द्वारा दिए कई ख़त ले तो लिए पर पढ़े
बिना फाड़ कर फेंक दिए।
एक दिन तोलावाल से रफ्यूजियों की पड़ोसन लड़की किरना को मिलने आई
, जिसने एक बार किरना के संग इकट्ठे दरियां लगाई थीं पर उसके बाद दोनों कम
ही मिल पाईं । आज दोनों गले लगकर मुद्द्तों से बिछड़ी सहेलियों की तरह
मिलीं। किरणा ने हाल -चाल पूछकर चाय चढ़ा दी। चाय पीकर दोनों अपने घर के
साथ लगते मोटर वाले कोठे के पास बिछी चारपाई पर आ बैठीं ।
'' बड़े
दिनों बाद याद किया , क्या बात है ?'' इस तरह सुखपाल का अचनचेत आना किरना के
दिमाग को किसी नए संदेशे के मिलने का अंदेशा दे गया।
'' जो तुम्हें रोज याद करते हैं उनका तो होठों पर नाम भी नहीं लाती। '' लड़की की शरारती आँखें हँस पड़ीं।
'' हमें कौन याद करता है। ''
'' क्यों करते क्यों नहीं , तुझ पर तो कम्बख्त मरा जा रहा है , तुम ही नाक पर मक्खी नहीं बैठने देती। ''
''
किसी का नाम भी ले तो पता चले। '' किरना लड़की का इशारा कुछ -कुछ समझ गई थी
पर किरना को भी बातों में स्वाद आ रहा था इसलिए वह बात को खींचती जा रही
थी।
'' बीस तो बेचारे ने तुझे ख़त लिख दिए , अभी कुछ और बाकी रह गया
है क्या ? कम से कम एक-आध का ही जवाब दे देती, उस बेचारे का दिल रखने को ।
''
'' तुझे यह किसने बताया ?'' किरना इस तरह अपने भेद को सुखपाल के जानने से हैरान हो गई ।
'' मुझे उसी ने भेजा है , बेचारा बहुत ही मिन्नते कर रहा था। ''
'' मुझे उसी ने भेजा है , बेचारा बहुत ही मिन्नते कर रहा था। ''
'' नहीं जब मैंने उसे कोरा सा जवाब दे दिया था और उसे पता भी है कि मेरी किसी और से बनती है .''
'' उसे पता है सारा। कहता है मेरे साथ जरा सा हँस के बोल लिया करे और मुझे कुछ नहीं चाहिए। ''
'' तब तो वह पागल ही है फिर। ''
'' तूने कर
दिया। '' दोनों खिलखिला कर हँस पड़ीं ,'' और उसने ये सोने की चेन भेजी है
तुम्हारे लिए। '' लड़की ने कुर्ती के नीचे पहनी बनयाइन की जेब से सोने की
चेन निकाल किरना के गोरे हाथों पे रख दी।
'' नहीं मैं नहीं लेती। '' किरना ने चेन को लड़की की ओर बढ़ाया पर
उसने किरना की चेन वाली मुट्ठी अपने हाथ से बंद कर दी और फुर्ती से चारपाई
से उठ खड़ी हुई , '' अच्छा मैं चलती हूँ। ''
'' मेरी बात तो सुन। ''
'' नहीं कभी फिर। '' लड़की बोलकर चली गई।
किरना
हाथ में चेन लिए उसी जगह खड़ी रही। उसने अपने हाथों में पकड़ी चेन की ओर
सरसरी सी निगाह मारी , उसका दिल किया कि वह जा रही सुखपाल के पीछे फेंक
मारे पर जल्द ही उसने अपनी यह सोच रद्द करते हुए सोचा '' इतनी कीमती !''
हुंह ! पागल हैं लोग। '' उसने चेन की तरफ और जा रही सुखपाल की तरफ होंठ
उटेर दिए। '' तूने कर दिया '' किरना सुखपाल के कहे शब्द याद कर हँस पड़ी '
क्या सच्ची वह मुझे इतना प्यार करता है ?'' ' तुझ पर तो वो मरता है , बस
जरा हँस के बुला लिया करे और मुझे कुछ नहीं चाहिए ' किरना के दिमाग में
सुखपाल के कहे शब्द रील की तरह घूमने लगे।
'' हँस के बुलाने की इतनी कीमत , और फिर हँसने से क्या घिसता
है। नहीं -नहीं भगवान से धोखा होगा , क्या मुंह दिखाऊंगी उसे। '' किरना के
दिमाग में दो विरोधी विचारों का संघर्ष चल रहा था। वह सारा दिन कोई फैसला
न ले सकी। रात बिस्तर पर पड़ी तो दिमाग में फिर वही संघर्ष शुरू हो गया
,'' भागू मुझे प्यार करता है , इतना ही यह भी करता है , नहीं -नहीं उससे भी
ज्यादा करता है। भागू ने मुझे क्या दिया , इक यह चांदी की अँगूठी। '' उसने
चांदनी रात में अपनी पहली ऊँगली में डाली चांदी की अंगूठी की ओर देख कर
नाक चढ़ा लिया। '' इसने तो अभी ही सोने की चेन दे दी .'' किरना दोनों के
प्यार को पैसे से तोलने लगी . जिसमें भगवान का पलड़ा ऊपर उठने लगा और चेन
का पलड़ा नीचे दब गया। उसने कमीज में डाली चेन निकाल कर गले में डाल ली .
चेन गर्व से चांदनी रात में चमकती , ऊँगली में पड़ी अंगूठी को घूरने लगी।
14
रफ्यूजियों
के लड़के तेजी को सुखपाल ने किरना के साथ हुई सारी बातें जा बताई और यह भी
बता दिया कि उसकी दी चेन उसे पकड़ा आई है। तेजी अपनी चेन पकड़ाये जाने की बात
सुन खिल उठा। जलती आग में फूस डाल देने से वह और तेज होकर मचती है पर अगर
उसे इसी तरह छोड़ दिया जाये तो बुझती -बुझती बुझ जाती है। तेजी नहीं चाहता
था कि उसके प्यार की चिंगारी जो किरना के दिल में सुलगी है वह ज्यादा देर
करने से बुझ जाये। वह तो किरना के दिल में सुलगती प्यार की चिंगारी से
अपने प्यार का दीप जलाना चाहता था। तेजी ने बरामदे से मोटरसाइकिल निकाली
और उस पर प्यार से कपड़ा मार कर किरना के घर की ओर चल पड़ा। आज वह जीत कर
आये फौजी की तरह मोटरसाइकिल पर छाती चौड़ी कर दुगुनी जगह में बैठा था। सब
कुछ उसे आज बड़ा प्यारा -प्यारा और नया -नया लगा.। सूरज की ताजा धूप रोज़
की तरह आज तीखी नहीं लगी । पही के साथ जाते पक्के खाल पर खड़ी सफेदों की
लम्बी कतार उसकी ख़ुशी में शरीक भंगड़े डालती दिखी। आज ख़ुशी बार -बार होठों
की सरहद पार कर दिल को भी हँसाये जा रही थी। किरना का गुलाबी मुस्कुराता
चेहरा सुरमे की तरह उसकी आँखों में आ रचा। वह दस बजे तक किरना के घर पहुँच
गया। सभी मोटर वाले कोठे पर ट्रेक की छाया तले चारपाइयों पर बैठे चाय पी
रहे थे। किरना का बड़ा भाई चलती मोटर पर भैंस को नहा रहा था। मोटर का
चांदी रंगा पानी खेल में से सीध लेता आगे खाल में गिरता और फिर धान की अंकुरित होती फसल में जा गिरता । तेजी ने मोटरसाइकिल भंगुओं के लोहे के गेट के आगे जा लगाई । किरना
उसे देखकर होठों में मुस्कुराई और फिर नज़र नीची कर ली।
'' आ भई तेजी कैसे आना हुआ ?'' भैंस को नहा रहे किरना के भाई ने हाथ उसकी ओर बढ़ाया।
''
बस तुम्हारे दर्शन को '' उसने मुँह में आई बात कह दी। फिर कुछ संभल कर
बोला ,'' यार मैं तो ढोली (द्वा स्प्रे करने वाली पानी की टंकी )पूछने आया
था स्प्रे वाली। ''
'' आज तो यार हम भी कर रहे हैं स्प्रे , बस यही भैंस रह गई ,
बाकी काम तैयार है. वो .... देख मेवे ने , भर -भर कर फौजियों के पिट्ठुओं
की तरह कतार में लगा रखी हैं .'' किरना के भाई ने अपने छोटे भाई मेवे की
और इशारा करते हुए कहा। वह खाल पर बैठा स्प्रे और पानी ढोलियों में डाल
रहा था . तेजी ने स्प्रे का बहाना इसे देख कर की गढ़ा था ताकि आगे से भी
जवाब मिल गए।
'' अच्छा यार मेरा मोटरसाइकिल खड़ा है , मैं जरा गिंदर के पता
करके आता हूँ । तेजी गिंदर के खेतों की ओर चल पड़ा। सामने गिंदर के खेत
में ऊंची टालियों के दरख्तों से घिरा कोठा झाड़ियों में मटील की तरह लग रहा था
। बोर में से पानी की धार खेल में गिर रही थी। जो दूर से दूध में चमकते
कांच के टुकड़े की तरह दिख रही थी। वह धीरे -धीरे वट्ट पर चला जा रहा था।
उसके दिल में ख्याल था कि जब तक वह पलट कर आएगा तो मेवा स्प्रे करने चला
जायेगा और उसे एक -आध मौक़ा किरना से बात करने का मिल जायेगा। वह यही सोच
कर गिंदर के खेत जाने का बहाना लगा आया था। उसके दिल में किरना से बात
करने की रीझ घास -फूस में रखी चिंगारी की तरह सुलग रही थी। वह ज्वाला का
रूप धारण करती तेजी को उतावला कर रही थी। इसलिए वह गिंदर के पास ज्यादा
देर न बैठा और उलटे पैर वापस आ गया। किरना और उसकी माँ बकरैन दरख़्त के पास
चारपाई पर बैठी थीं। मेवा और उसका भाई पांच -छः किले की दूरी पर ढोली उठाये जा रहे थे।
'' मिल गई भई ढोली ?'' किरणा की माँ गेजो ने आते ही तेजी से पूछा।
'' नहीं ताई , मैंने कहा चलो अब सवेरे ही कर लेंगे। '' तेजी चारपाई के पास आ खड़ा हुआ।
'' अरी किरना भाई चाय गर्म करके ला दे। ''
'' बस ताई चाय को तो रहने दो। ''
'' अच्छा भाई शर्बत बना लेते हैं । जा अच्छा फिर शर्बत बना ला '' गेजो ने किरना को हुक्म दिया।
'' म … मैं … नहीं तू ही बना ला । '' किरना ने आगे के शब्दों
पर जोर देते हुए जरा तल्खी से कहा . असल में वह भी कोई न कोई बात करने का
बहाना ढूंढ रही थी। .
'' तू मत कहना मानना,मुझे ही जाना पड़ेगा । '' गेजो उठकर शर्बत बनाने अंदर चली गई।
'' अब तो आ गई निशानी पसंद नखरे वाली के। '' तेजी ने मौक़ा देख कहा। सोने की चेन किरना की गोरी गर्दन में चमक रही थी।
'' और फिर क्या करें , जब पीछा ही नहीं छोड़ता कोई। '' किरणा ने आँखों में आँखें दाल नखरे से होंठ मरोड़े।
'' पीछा तो हमने तमाम उम्र नहीं छोड़ना था यदि न मानती। '' तेजी
किरना को पाने की लालसा जाहिर कर गया। फिर साथ ही बोला , '' कभी मिल भी लो
अकेले, जी भर बातें तो कर लूँ। ''
'' हाँ जी। '' जानती हूँ तुम्हें बातें करने वाले को , मुझे नहीं मिलना। '' किरना ने नखरे में कंधे उचकाए।
'' क्यों ?''
'' क्या फायदा , हम तो यूँ ही ठीक हैं। '' किरना बोली .
'' मज़ाक छोड़ , और जल्दी बता, तेरी बेबे आ जायेगी। '' तेजी ने गेट की ओर झांका।
'' सोचेंगे। ''
'' सोचेगी कब ? ऐसी बातें तो पहले सोच कर रखनी चाहिए। ''
'' बड़े उतावले हो । ''
'' मेरे दिल से पूछ कर देख , तेरे बिना कैसे तड़पता है। ''
तेजी ने गरीब सा मुँह बना लिया। उसका दिल उतावला हो -हो जा रहा था कि
कब किरना को अपने से चिपका ले। पर वह बेबस था। किरना की माँ पानी बनाकर
ले आई। तीनों ने पानी पीया और पानी पीते -पीते छोटी -मोटी इधर -उधर की
रस्मी सी बातें की। सूरज की धूप पहले से तेज हो गई थी। हवा पहले से धीमी
हो गई थी। दूर खाल पर मेवे उन लोग एक -एक ढोली और भर कर ले गए थे. तेजी ने
सोचा यहाँ ज्यादा देर बैठना उलट असर कर सकता है। तेजी वहाँ से उठ चल पड़ा.
जाते तेजी को किरना ने मुस्कान की सौगात दी। चोर चाल चलती हवा मोटरसाइकिल
पर बैठे तेजी को तेज हो गई लगती थी पर दरख़्त तो वैसे ही पहले की तरह धीरे
-धीरे सर हिला रहे थे। हवा की तेजी उसे मोटरसाइकिल पर बैठे होने की वजह से
महसूस हो रही थी क्योंकि वह खुद हवा को चीरता सरपट सड़क पर दौड़ा जा रहा
था। तेजी के दिल में एक दुःख भी था कि वह किरना को मिलने के लिए स्पष्ट न
पूछ सका। पर दूसरे पल ही उसके दिल में ख्याल आया कि कल तक जिस किरना को वह
बुलाने के लिए तरस रहा था , आज उसने ही उसके साथ हँस -हँस बातें की थीं।
उसके दिल से एक ख़ुशी की लहर उठी और होठों पर आकर मुस्कान में बदल गई।
मोटरसाइकिल सड़क से उतर कर सफेदों वाली पही पर चल पड़ा।
सैंतालीस में जब रफ्यूजी पकिस्तान से उजड़कर इधर आये तो बहुतों ने जहाँ
ज़मीन मिली , वहीँ घर बना लिया। तोलावाल से शांतपुर जाते हुए सड़क के आस -
पास चार -चार , पांच -पांच सौ गज की दूरी पर रफ्यूजियों के कई मकान नज़र
आते हैं। तोलावाल से शांतपुर की ओर लगभग डेढ़ किलोमीटर की दूरी पर और किरना
के घर से सौ गज़ तोलावाल की ओर सड़क से छिपती ओर सांप की तरह बल खाती एक
पतली सी पही जाती है। पही के साथ एक पक्का खाल है जिस पर थोड़ी दूर जाकर
आसमान को छूते सफेदों की लम्बी लाइन किले की दीवार की तरह खड़ी है। आगे
जाकर पही दो तीन मोड़ खाती तेजी के घर की ओर चली जाती है। घर के आगे दो तीन
बकरैना और शहतूत के दरख़्त खड़े हैं , साथ ही मोटर वाला कोठा भी है। कोठे के
चढ़ती ओर चारा कुतरने वाली मशीन खड़ी है। कोठे के बाईं ओर एक लंबा बरामदा पशुओं
के लिए डाला गया है। बरामदे से आगे जाकर कोठीनुमा घर है। तेजी के घर से
उत्तर की ओर पचास मीटर की दूरी पर दो घर हैं , जिनको पही किसी दूसरी तरफ से
लगती है। इनमें से पहला घर किरना की सहेली सुखपाल का है। पिंड से टूटे
होने के कारण इनका आपस में अच्छा लेन -देन है। ब्याह शादी में तथा और छोटे
-मोटे काम -धंधे में एक दूजे के आते जाते हैं। इन तीनों घरों की एक अपनी
अलग ही दुनिया है। जब इनके बड़े पुरखे यहाँ आये थे तब उसनी पंजाबी बोली इधर
की पंजाबी बोली से अलग थी। पाकिस्तानी रंग चढ़ा हुआ पर नई पीढ़ी अब बिलकुल इधर की
बोली ही बोलने लग पड़ी । पर उनके माँ -बाप अभी भी 'आटे में नमक ' जितने
फर्क से कुछ अलग तरह की बोली बोलते हैं।
तेजी किरना को मिलने के लिए पपीहे की तरह तड़प रहा था। किरना की
याद उसे हर समय बेचैन करती रहती। चाहे वह कई बार किरना के घर जा आया था
पर कभी उसकी किरना के साथ खुल कर बात न हुई। कल उसने सुखपाल को भी संदेशा
भेजा था पर उसने भी अभी तक कुछ नहीं बताया था। वह जंग में लड़ रहे फौजी की
पत्नी की तरह संदेशे का बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रहा था वह बार -बार
एड़ियाँ उठाकर सुखपाल के घर की ओर देखता कि शायद अब आ जाये पर उसकी हर बार
जुए में खेलते बुरे कर्मों वाले खिलाड़ी की तरह हार हो जाती। वह ढेर होकर
बैठ जाता। कल भी उसका सारा दिन इसी तरह इन्तजार में गुजर गया था। तेजी को
इधर -उधर चक्कर काटते को देख उसकी माँ उसे आटा पिसाने के लिए बोली ,''
बेटा तेजी यूँ यहाँ फालतू के चक्कर लगाता फिर रहा है जाकर शांतपुर से आटा पिसवा ल . ''
'' ले आता हूँ मम्मी। '' फिर कुछ रूककर बोला , '' मम्मी चरने के पूछ के आऊँ यदि उन्होंने भी पिसवाना हो तो इकट्ठे ही रेहड़े पे ले जाएंगे . ''
'' मर्जी है तुम्हारी यदि पूछना है तो पूछ आ । ''
अपनी माँ की 'हाँ ' सुनकर तेजी को चाव चढ़ गया। वह सुखपाल के घर को
जाती सीधी वट्ट चल पड़ा . तीनों घरों का आना -जाना इसी बट के माध्यम से होता
था। इसीलिए इस वट्ट को मिटटी लगाकर हर छः महीने बाद चौड़ी कर लिया जाता था।
अभी भी धान की फसल पर गिरी ओस पूरी तरह सूखी नहीं थी। ओस की बची कणिकाओं
ने सुखपाल के घर तक पहुँचते -पहुँचते तेजी की पैंट को थोडा गीला कर दिया
था। तेजी ने सुखपाल के घर जाकर पुलिस की तरह सारे आँगन में नज़र घुमा दी ,
उसकी उतावली नज़र आँगन को छानती ओटे पर आ रुकी । सुखपाल ओटे के पास बैठी
बर्तन मांज रही थी। तेजी हवा के झोंके की तरह सुखपाल के पास जा खड़ा हुआ।
'' आज
बुलाया है उसने। ''तेजी के बोल अभी मुँह में ही थे कि सुखपाल ने पहले ही
ऐसी खबर सुना कर उसे आसमान पर चढ़ा दिया। तेजी ख़ुशी में झूम उठा। उसे
सुखपाल देवी का रूप लगने लगी।
'' कब बुलाया है ?'' तेजी जल्दी से बोला।
'' आज ग्यारह बजे रात को। '' सुखपाल तेजी के चेहरे के हाव -भाव बदलते देख मुस्कुरा पड़ी।
'' कसम खा। '' तेजी को यकीन नहीं आ रहा था।
'' तेरी कसम , मैं तुझे बताने आने ही वाली थी कि तू आ गए। ''
'' घर में कोई नहीं है क्या ?'' तेजी ने चारो ओर देखते हुए कहा।
'' बेबे बाड़े गई है गोबर पथने। ''
'' मैं तो आटा पूछने आया था कि अगर आप लोगों ने भी पिसवाना हो तो रेहड़ा लेकर इकठ्ठा पिसवा लें। ''
'' हाँ कहती तो थी बेबे , हमने भी पिसवाना है। ''
''
ला उठा फिर बोरी। '' तेजी ने बोरी अपने सर पर रखवा ली। घर आकर तेजी ने
बोरी रेहड़े में रख दी और फिर दो बोरियां अपनी रख ली। चारे में मुँह मारता
भैंसा रेहड़े में बोरियां रखे जाने का खड़ाक सुन चारे में जल्दी-जल्दी मुँह
मारने लग पड़ा ताकि मालिक के रेहड़े में जोतने से पहले अपनी बची -खुची भूख भी
मिटा ले। तेजी ने सामने से पकड़ कर भैंसे को रेहड़े से जोड़ लिया और फिर उसी
टेढ़ी -मेढ़ी पही में डाल लिया , पही की राह खत्म कर सड़क पर जा चढ़ा।
भैंसे के कदम धीमे होते देख कर तेजी ने शहतूत की छड़ी उसकी पीठ पर दे मारी ,
भैंसा एकदम से तेज हो गया। सड़क पर बजते उसके पैर तेजी के साथ टक -टक करने
लगे। जब भी भैंसे की चाल धीमी होती तेजी की छड़ी उसकी पीठ पर आ पड़ती या
फिर रेहड़े के साथ खड़ाक से बजती , जानवर मालिक का इशारा समझ कर और तेज हो
जाता। तेजी ने आज समय को पीछे छोड़ने की जिद कर रखी थी। वह हवा के साथ घुल
कर हवा जितना तेज हो जाना चाहता था। किरना के घर के बराबर आकर उसने किरना
को सुनाने के लिए भैंसे को तेज होने के लिए ललकारा मारा पर घर से कोई भी बाहर न
निकला।
चक्की पर उससे पहले ही कई पिसावन पड़े थे पर तेजी ने जिद करके
तीन पिसावन के बाद अपनी बारी ले ली , फिर भी मुड़ते - मुड़ते एक बज गया। वह
किरना के घर के बराबर आया तो किरना और उसकी माँ बाहर घूम रही थीं। उसने
रेहड़ा बिलकुल धीमा कर लिया। जब किरना की माँ ने पीठ घुमाई तो तेजी ने अपना
हाथ छाती पर रख कर हवा में खड़ा कर दिया , जिसका मतलब था कि मुझे तुम्हारा
संदेशा मिल गया है. किरना ने सहमति में सर हिलाते हुए होठों में मुस्कुरा
दिया।
घर आकर तेजी सुखपाल का पिसावां उनके घर फेंक आया और फिर नहाकर
चौबारे चढ़ गया। उसकी खुसी होठों पर आ आकर नाच रही थी। उसका मन प्यार के
नशे में नशयाया बेकाबू हुआ जा रहा था . उसका दिल कर रहा था कि सारी प्रकृति
को बाहों में भर कर चूम ले। उसने दीवार पर लगा आइना उतार लिया और फिर
उसमें अपने नक्श जांचने लगा। मुश्की सा रंग , तीखे नयन नक्श , सर पर डेढ़
इंच की सी बोदी पर नाक थोड़ा बड़ा लगता था।
'' भला मुझ में क्या कमी है ? किरना क्यों न फंसती और फिर वो
भागू कौन सा आसमान से उतरा हुआ है. '' फिर अचानक उसके मन में पछतावा सा हुआ
, 'मैंने तो भागू के साथ धोखा किया है । मैंने कब धोखा किया ? यह तो किरना का कसूर
है। ' उसके मन में खुद ही विरोधी पैदा हुए विचारों को उसने गले से पकड़ कर
फिर अपने पक्ष में कर लिया। उसने आइना फिर उसी दीवार पर टांग दिया और
बिस्तर पर लेट गया। विचारों की होती उथल -पुथल उसके दिमाग को कुछ समय के
लिए अकेला छोड़ गई। कमरे की शान्ति में उसे घड़ी की टिक -टिक सुनाई दी।
उसने उठकर देखा , पौने तीन बज गए थे। वह भैंसों को चारा डाल नीचे उतर आया।
आज जैसे तेजी के लिए समय रुक सा गया था। उसकी सोच समय को नथ
डाले आगे खींच रही थी पर समय टाँगे अड़ाए वहीँ खड़ा था। उसे मिनट -मिनट
गिनते हुए रात के नौ बज गए। वह थोड़े -थोड़े समय बाद चौबारे से बाहर निकलता ,
कोठे पर फेरा लगाकर फिर अंदर आ जाता। समय बीता , साढ़े नौ हो गए। फिर दस
और फिर सुई सवा दस पर आ गई। उसके होंठ गहरी मुस्कान से चौड़े हो गए। वह
बिस्तर से उठा , धीरे -धीरे सीढ़ियां उतरता आँगन में आ गया। उसे आँगन में
आते देख कर भैंस रेंगी। तेजी ने उसे मन ही मन गाली दी । गेट के पास आकर
उसने पीछे मुड़कर देखा , आँगन में कोई नहीं था। उसने धीरे -धीरे गेट खोलना
शुरू किया फिर हलकी सी 'टिक ' की आवाज से गेट का ' घ्रील ' खुल गया। गेट
से बाहर होते वक़्त उसने फिर आँगन में नज़र मारी उसे कोई खतरा महसूस न हुआ।
आँगन के सिवा बाकी सारे कमरों के बल्ब बुझे हुए थे। वह बाहर निकला और गेट
धीरे से बंद कर दिया। बाहर आते ही खुले खेतों से ठंडी शीत हवा का आवारा
झोंखा तेजी के जवान ज़िस्म के साथ टकरा कर कंपकंपी छेड़ गया। उसने दोनों की बुक्कल मार ली । मशीन के पास खड़े शहतूत पर किसी पक्षी की
सुगबुगाहट हुई। सामने पही पर बैठी टटीरी 'टरी … टरी … ई ' करती शोर मचाने
लगी। दूर पिंड से किसी -किसी कुत्ते के भौकने की आवाज़ कानों से आ
टकराती। पहले उसने सीधे वट्ट के ऊपर से जाने की सोची पर फिर ओस का ख्याल कर
पही के रस्ते पड़ गया। चांदनी रात में लम्बे सफेदों की लम्बी छाया ने सारी
पही को ढक रखा था। पही के साथ -साथ जाते पक्के खाल में पानी नहीं था। खाल
में से बिंडों की टरीं .... टरीं ईं की आवाज़ टिकी रात में बोलियां डाल
रही थी. वह सड़क पर आकर कुछ तेज हो गया। कहीं वह बाहर देख कर ही न लौट
जाये। घर के पास आ कर वह थोड़ा झिझका फिर धीरे -धीरे गेट के पास जा खड़ा
हुआ। बाहर मोटर के कोठे वाला बल्ब जल रहा था पर घर के सारे बल्ब बंद थे।
उसने मन ही मन शुक्र किया। तेजी ने गेट को धीरे से अंदर धकेल कर देखा ,
गेट अंदर से बंद था। वह गेट के बायीं ओर लगकर खड़ा हो गया। समय देखने के
लिए उसके अपनी कलाई पर हाथ मारा पर घड़ी तो वह घर ही भूल आया था। उसने सोचा
चलो पंद्रह मिनट और इन्तजार कर लेता हूँ।
अभी पांच मिनट ही बीते थे कि गेट धीरे से खड़का। तेजी का दिन
धड़का , कहीं कोई और ही न हो यह सोच कर उसने कहीं और छुपने की सोची पर फिर
वह खड़ा रह गया। औरत का आकर गेट से बाहर आ गया। तेजी ने किरना को झट पहचान
लिया। वह झट किरना के सामने आ खड़ा हुआ , '' इतनी देर लगा दी ?''
'' अभी तो ग्यारह भी नहीं बजे .''
'' मैं तो कबका इन्तजार कर रहा हूँ। ''
'' तेरा क्या है पागल का , शाम को ही आकर बैठ गए होगे। ''
तेजी अपने पागलपन पर मुस्कुरा पड़ा।
'' चल उधर चलते हैं। '' किरना तेजी को इशारा करके मोटर के पास बिछी चारपाई की ओर चल पड़ी , जो अक्सर वहीँ पड़ी रहती थी।
'' नहीं यहाँ कोई देख न ले। '' तेजी खड़ा हो गया।
कहीं नहीं देखता कोई , हम चारपाई ही कोठे से पीछे ले जाते हैं। ''
किरना
के इतना कहने पर वह उसके पीछे कोठे की ओर चल पड़ा। उन्होंने वहाँ से
चारपाई उठा कर अँधेरे में कर ली ताकि कोठे की लाइट की रौशनी उनपर न पड़े।
दोनों चारपाई पर पास -पास बैठ गए ।
'' संदेशा मिल गया था। '' किरना बोली।
'' तो ही अब यहाँ बैठा हूँ। '' तेजी ने किरना की कमर में बाँह डाल ली और उसके गले में पड़ी सोने की चेन को टटोलने लगा।
'' क्यों दोबारा लेकर जाने का इरादा है। ''
'' न चेन तो
नहीं पर तुझे लेकर जाने का जरुर दिल करता है। किरना तुझ पर इतना प्यार
क्यूँ आता है मुझे , दिल तेरे लिए तड़पता है , बहुत ज्यादा प्यार करता हूँ
तुम्हें। '' तेजी ने किरना को अपने सीने के साथ भींच लिया और उसके चेहरे
को निहारने लगा , जैसे वह उसे आँखों के रस्ते से पी जाना चाहता हो या फिर
उसकी आँखों में खुद पिघल -पिघल कर उसमें समा जाये।
'' छोड़ अब मैंने जाना है। '' किरना अपनी नीम रजामंदी में उसकी बाहों की जकड़न तोड़ने लगी।
'' क्या ? अभी तो तुम आकर बैठी हो। '' तेजी किरना के जाने की बात सुन हैरान हो गया।
'' अरे … मैं तो यूँ ही कह रही थी , कैसे गुस्सा दिखाते हो। ''
तेजी
को किरना पर थोड़ा गुस्सा भी आया था जो 'मैं तो यूँ ही ' सुनकर काफूर हो
गया। दोनों वहीँ बैठे घंटे दो घंटे बातें करते रहे। जब दोनों के दिल का
गुब्बार निकल गया तो किरना ने जाने की अनुमति मांगी। तेजी न चाहता हुआ भी
उठकर खड़ा हो गया। उसने सड़क पर आकर किरना की ओर हाथ ख़ड़ा किया और आगे बढ़ गया।
किरना कुछ देर वहीँ खड़ी देखती रही। सड़क पर जाते तेजी का आकार धुंधला होते
-होते अँधेरे में कहीं गुम हो गया।
16
समय
का चक्र घूमता रहा। उस पर लिखी तारीखें बदलती रहीं। दिन बदलते गए।
महीने बदलते गए। मौसम बदलते गए। जेठ महीने ने आ दस्तक दी। किसानों ने
धान की फसल लगाने के लिए कमर कस ली . मज़दूरों ने पहले ही अपने -अपने मेल की
टोलियां बना लीं। निर्दयी पेट की भूख ने बिहारियों को अपनी तंदों से जकड़कर
पंजाब ला फेंका। वे कई महीनों के लिए अपने परिवार , अपने पिंड , अपनी
मिटटी को अलविदा कह आये।
आज भागू सारी जमीन धान की फसल लगाने के लिए तैयार कर आया।
उसने पिछले तीन दिनों से रात -दिन एक कर दिया था। उसने खेतों से आते ही
जल्दी- जल्दी नहाकर रोटी खा ली कि कहीं तीन दिनों की थकावट उसपर भारी न पड़
जाये और उसे बिना नहाये ही लेटना पड़ जाये . रोटी खाकर वह कोठे पर पड़ी
चारपाई पर कपड़ा बिछाकर लेट गया। सारा गाँव नींद के आलिंगन में सोया था।
किसी -किसी घर में ही बल्ब जल रहा था। दूर गुरुद्वारे के निशान साहिब पर
लगा बड़ा बल्ब आग के किसी छोटे गोले की तरह आसमान में तैरता लग रहा था।
आसमान में धुएँ के गुब्बारे जैसे छोटे -छोटे बादल काली रात में बिना हिल
-हुज्जत के चोरों की तरह चले जा रहे थे। कोठे से आस -पास खड़े दरख्त
अँधेरे में इस तरह लग रहे थे जैसे किसी ने बड़े दैत्य को फाँसी देने के लिए
उनके चेहरों पर काले नकाब चढ़ा दिए हों। दक्षिण की तरफ चार -पांच किलों की
दूरी पर नाले की दोनों पटरियों पर कीकरों की खड़ी लम्बी कतारें किसी मोटे
काले स्कैच से खींची दो काली लाइने सी दिखाई दे रही थीं।
भगवान को आज नींद नहीं आ रही थी , जैसे उसके दिमाग में कोई
खलबली मचा रहा हो। वह पल -पल करवटें बदलता रहा। भगवान की नज़र आसमान में
काले बादल पर जा टिकी। काला बादल उसे किरना के बेगैरत काले चेहरे सा लगा ,
जिसने उसकी ज़िन्दगी में एक बिखराव सा पैदा कर दिया था। उसकी पढ़ाई बीच में
ही छूट गई और शरीर पहले से आधा रह गया। उसने किरना की बेवफाई का दर्द
अपनी हड्डियों पर झेला। इक किरना की बेवफाई दूसरा करमी बहन का विछोह ,दोनों
ने भागू को चक्की के दो पाटों के बीच के अनाज की तरह पीस डाला । उसे सारी
खलकत रूखी -रूखी लगने लगी। दोस्तों -मित्रों के कहने पर भी उसने आगे
दाखिला नहीं लिया था। पाँच- छः महीने बीतने के बाद उसे एहसास होने लगा था
कि जैसे उसने दाखिला न लेकर खुद अपनी ज़िन्दगी की नीरसता में और इज़ाफ़ा कर
लिया था। उसे लगा कि जिन्हों के लिए उसने अपने शरीर को दुखों की भट्टी में
झोंका , जिन्हों के लिए वह अपनी हड्ड गलाता रहा , वे ही उसकी हालत पर हँसते
रहे , उसकी भावनाओं का मज़ाक उड़ाते रहे।
उसे ज़िन्दगी की पटड़ी दोबारा दिखाई देने लगी , जिसके ऊपर चल कर उसने ज़िन्दगी के अंत तक पहुँचना था और जो पहले किरना की बेवफाई के अँधेरे में उसे दिखाई देनी बंद हो गई थी। कुछ दोस्तों के कहने पर और कुछ अपने मन की रज़ामंदी से उसने अबकी बार कालेज दाखिला लेने का मन बना लिया था ।
उसे ज़िन्दगी की पटड़ी दोबारा दिखाई देने लगी , जिसके ऊपर चल कर उसने ज़िन्दगी के अंत तक पहुँचना था और जो पहले किरना की बेवफाई के अँधेरे में उसे दिखाई देनी बंद हो गई थी। कुछ दोस्तों के कहने पर और कुछ अपने मन की रज़ामंदी से उसने अबकी बार कालेज दाखिला लेने का मन बना लिया था ।
भगवान को सुबह दाखिला लेने जाने की बात याद आई। उसकी आँखों के आगे
कालेज का एक धुंधला सा दृश्य घूमने लगा। ऊँची लम्बी बिल्डिंग , जींस पहने
घूमते लड़के , हिरनियों जैसी आँखों वाली , मोरनी की चाल चलती , मक्खन की सी
मुलायम लड़कियां। उसके होठों पर ख़ुशी की एक मुस्कान सी आ गई। फिर उसे पता
ही न चला कि वह ये सब बातें सोचता -सोचता कब नींद की आगोश में जा डूबा।
जब सुबह आँख खुली, अन्धेरा आँगन से उडारी भरने के लिए पंख फड़फड़ा
रहा था . आस पास के दरख्तों पर पक्षियों की हिलजुल होने लगी थी। आसमान
में एक दो तारे रह गए थे। बाकी के अपना काम निपटा कर कबके चले गए थे।
भगवान बिस्तर से उठ खड़ा हुआ। अपने सिरहाने से पानी की गड़वी उठाई और मुँह
धो लिया। फिर अपनी दोनों बाहें ऊपर कर पंजों के भार खड़ा होकर अंगड़ाई ली।
एक बार आस -पास नज़र मारी और फिर सीढ़ियों से नीचे उतर गया। उसकी माँ चाय की
पतीली के नीचे आग जला रही थी। सोने रंगी आग ने चूल्हे पर पड़ी पतीली के
चारों ओर एक दीवार सी बना रखी थी। माँ के चेहरे पर पसीने की बूंदें मस्सों
की तरह चिपकी हुई थीं। पास ही चारपाई पर बैठा चन्नन चाय के इंतजार में
चूल्हे की ओर टकटकी लगाये देखे जा रहा था। भगवान अपने पिता के पास चारपाई
पर जा बैठा।
'' आज दाखिला लेने जाओगे ?'' चन्नन ने पूछा।
'' हाँ। ''
'' कितनी तारीख तक भरना है ?''
'' अभी तो चार पांच दिन पड़े हैं। ''
'' फिर सुबह भर लेना। आज यहीं रह जा। वो गली का किस्सा निपटा लें आज। तुम बस चाय -पानी का ध्य़ान रख लेना जरा। ''
'' अच्छा। ''
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भगवान
आज अपने बापू के कहने पर कालेज जाने का प्रोग्राम रद्द कर घर पर ही रह
गया। नौ बजते तक गुरदयाल के खुले आँगन में लोग इकत्रित होने शुरू हो गए।
पिंड के सयाने -सयाने बन्दे बिछी चारपाइयों पर आ बैठे। भगवान और जीते ने
सबको पानी पिलाया। थोड़े समय बाद थानेदार और उसके साथ दो पुलिस वाले आ गए।
गुरदीप सरपंच ने कोई अनहोनी घटना होने के डर से थानेदार को कल ही संदेशा
भेज दिया था। जब अच्छा खासा इक्कठ जमा हो गया तो एक पुलसिया और दो और आदमी जाकर
मुखत्यार सरपंच को ले आये। मुखत्यार के साथ भी आठ -दस लोग आकर चारपाइयों
पर बैठ गए। जीते ने उन्हें भी पानी पिला दिया। थानेदार ने सबको चुप करवा
कर कहना शुरू किया , '' लो भाई गुरदयाल सिंह , अब हम सभी लोग सुन रहे हैं बताओ
कैसे करना है ? ''
'' हम तो जी पहले भी सीधे थे और अब भी सीधे हैं। जैसे आप कहते
हो वैसे ही कर लेंगे। '' गुरदयाल अपनी सियानप का प्रभाव डालने के लिए बड़े
सलीके से बोला।
'' क्यों भाई मुखत्यार सिंह ?'' थानेदार ने अपनी मोटी आँखें मुख्त्यार की टोकरे जैसी सफ़ेद पगड़ी पर गड़ा दी।
'' देखो जी यह तो आपको भी पता है कि सरकारी गली कौन बंद कर लेगा , और पानी भी …… .''
''
ओये हो ! सौ हाथ रस्सी सिरे पर गाँठ , यह झगड़ों वाली बातें तो हमें
पहले ही दो साल हो गए करते हुए। क्या निकला इनमें से ? परेशान होकर और पैसे
खर्च कर तुम वापस आ जाते हो , दूसरी तरफ ये मुड़ लौट आते हैं । जो काम छूटता है वो अलग। इन
बातों को अब छोड़ो, कोई निपटारे की बात करो ।'' हरभजन ज्ञानी ने दोनों
पक्षों को समझाते हुए कहा। .
'' ज्ञानी जी , आप ही निपटारा करा दो। '' थानेदार ने फैसले की डोर ज्ञानी के हाथ में पकड़ा दी।
''
मैं तो देख न इनकी करूंगा , न ही उनकी , हमने तो बात करनी है विहार की , डंडे
जैसी। चाहे किसी को कड़वी लगे , चाहे मीठी। जैसे फैसला कर दिया उसे मानना
पड़ेगा। क्यों भाई ?'' हरभजन ज्ञानी सबके चेहरे पर सहमति के शब्द ढूंढने
लगा। असल में दोनों पक्षों के पेशियों पर चक्कर लगा -लगाकर मुँह मुड़े पड़े
थे। दिल से सभी चाहते थे कि फैसला हो जाये। सो सबने सर हिलाकर सहमति दे
दी।
'' यूँ करो , पार होने के लिए राह तो रखो गुरदयाल की गली के बीच से और पानी दूसरी तरफ से निकाल देते हैं। ज्ञानी ने सबकी ओर देखा।
''
हां ठीक है .... ठीक है। '' थानेदार ने झट से सबकी ओर से सहमति दे दी। वह
सोचता था कि कहीं कोई उलट ही न बोल पड़े। थानेदार के बाद कोई उसके विरोध
में न बोला , जिसका मतलब था कि सबने फैसला मान लिया। गुरदयाल ने सबको वहीँ
बैठे रहने को कहा और चाय चढ़वा दी। चाय बनने तक सभी आपस में बातें करने में
व्यस्त हो गए ।
चाय बनने पर भगवान और जीते ने सबको चाय पिला दी। चाय पीकर मुखत्यार उनलोग
अपने घर चले गए पर कुछ लालपरी के लालची और थानेदार ने गुरदयाल के घर ही
पीने के लिए अखाडा जमा लिया । दोपहर से लेकर शाम तक कई बोतलें खाली कर दी
गईं . जब सबकी
आँखें अंगारों की तरह दहकने लगीं , धरती घूमती जान पड़ने लगी , जुबान हासिये
से फिसलने लगी तब सभी धीरे -धीरे रात को गड्ढों में गिरने जैसे लड़खड़ाते
हुए घरों की ओर
चल पड़े। थानेदार ने गुरदयाल से कस कर हाथ मिलाया और अपने दो सिपाहियों को
लेकर चिमियों की ओर जाती सड़क पर बढ़ गए।
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अगले
दिन भगवान कालेज में दाखिला लेने गुरनैब को साथ ले चल पड़ा। वे गाँव से
ग्यारह बजे
की बस पकड़ कर बारह बजे तक बुढलाडे जा पहुंचे। अड्डे पर उतर कर उन्होंने आस
-पास निगाह फेरी , शायद कोई जान पहचान वाला मिल जाये पर सभी नये -नये
चेहरे चीनी की बोरी के आस -पास चक्कर लगाती चींटियों की तरह भागते फिर रहे
थे। जैसे सारा मुल्क ही किसी गुमशुदा की तलाश में चल पड़ा हो। बसों के
हार्नों ने शोर मचा रखा था। कंडक्टर गला फाड़-फाड़ कर अलग -अलग शहर, गाँव
जाने की आवाजें लगा रहे थे। रंग -बिरंगी बसें , सँपनियों की तरह अड्डे में
आ जा रही थीं.. भगवान और गुरनैब एक हॉकर से अखवार लेकर बस अड्डे से बाहर आ
गए .
'' किधर है तेरा कालेज ?'' गुरनैब ने कुछ सोच रहे भगवान को पूछा।
'' मुझे तो खुद नहीं पता , मैं सोच रहा था कि अगर रिक्शा कर लें तो खुद ही छोड़ देगा। ''
'' ऐसे भी ठीक है। '' गुरनैब ने सहमति जताई।
'' दोनों ने दस
रूपए में रिक्शा कर लिया। रिक्शा चालक ने दोनों को रिक्शे में बैठा कर
पहले थोड़ी दूरी तक पैदल भाग कर रिक्शे को धकेला जब रिक्शे ने तेजी पकड़ ली
तब दाहिना पैर दाहिने पैडल पर रखकर बांया, बांये पैडल पर टिका लिया। फिर ऊपर
के पैडल पर शरीर का सारा भार देकर रिक्शे की रफ़्तार तेज कर ली। रिक्शा अड्डे
से अब चौड़े बाज़ार की ओर बढ़ चला था। बाज़ार के दोनों ओर दुकानों की लम्बी
कतार थी जिनपर अलग -अलग बोर्ड लटक रहे थे , 'कपडे दा सस्ता डिपू' , 'पप्पू दी
हट्टी' ,'इंजन दा समान एत्थे मिलदा है' ,चूड़ियाँ ही चूड़ियाँ और बुक स्टॉल।
बुक स्टॉल पर नज़र पड़ते ही भगवान ने रिक्शा रुकवा लिया।
'' क्यों क्या हो गया ?'' भगवान के अचानक रिक्शा रुकवाने पर गुरनैब हैरान हो गया।
'' कोई किताब देख लें। '' भगवान ने कहा।
दोनों
दुकान में चले गए। दुकानदार ने गाहक को आता देखकर बनावटी सी हँसी हँसते
हुए ' आओ जी ' कहा। भगवान ने दुकान पर सजाई किताबों पर जल्दी -जल्दी नज़र
डाली और फिर एक शीशे के अंदर सजाये दो नॉवेल नानक सिंह का ' चिट्टा लहू '
और जसवंत सिंह कंवल का ' पूरनमासी ' निकाल लिए। किताबें खरीद कर वे दोबारा
रिक्शे में आ बैठे। रिक्शा चालक ने रिक्शा फिर उसी रफ़्तार में ले लिया।
वह दुकानों को ' हट्ट पीछे ' कहता अपनी मंज़िल की ओर सरपट दौड़ा जा रहा था।
रिक्शे के तीनों टायर तेज रफ़्तार होने के कारण तारों रहित दिखाई दे रहे
थे। रिक्शा चालक के सर से पसीने की धारें नीचे की ओर बह चलीं थीं । पीठ के
पीछे से उसका कुरता पसीने से चिपक गया था । सर की सेध पर पड़ रहे सूरज की
किरणें गर्म तकले की तरह बदन में चुभ रही थीं। आगे एक ऊँची बिल्डिंग ने
सड़क को दो हिस्सों में बाँट दिया था। रिक्शा दाहिनी ओर जाती सड़क पर मुड़
गया । थोड़ी दूर जाकर रिक्शा एक चौड़े गेट के पास जा रुका। कालेज आ गया
था।
'' कहीं यूँ ही मत ऊट -पटांग बक देना कुछ यहाँ । '' भगवान ने कालेज में आते -जाते लड़के -लड़कियों की ओर देख कर कहा।
'' भागू तुम क्यों डरते हो ?'' गुरनैब ने भगवान के कंधे पर धीरे से थपकी दी।
दोनों गेट के अंदर आ गए। सामने से दो सुनहरी सूटों में सजी
लड़कियां मटक -मटक चली आ रही थीं। गुरनैब से देख कर रहा न गया। उसने
लड़कियों के बराबर आने पर चुटकी छोड़ दी , '' आय -हाय पर्सिनिये , मर जां पूछ
तड़ा के। ''
'' ओये मरवाएगा साले। '' भगवान ने उसकी कमर में चिकुटी काटी।
'' तुझे क्या होता है यार , पड़ेगी तो मुझे पड़ेगी। ''
'' न मैं क्या उनकी बूआ का बेटा लगता हूँ , मुझे भी वो साथ ही रगड़ेंगे। ''
'' अच्छा अब नहीं छेड़ता बस। '' गुरनैब ने उसे तसल्ली देते हुए कहा।
'' भाई जी प्रॉस्पेक्ट कहाँ मिलता है …?''भगवान ने सामने पार्क में खड़े दो लड़कों से पूछा।
भाई वो जो सामने शटर दिख रहा है न , वहीँ खिड़की में कलर्क बैठा है ,
वहीँ मिलते हैं। '' उनमें से पगड़ी वाले लड़के ने एक कमरे के आगे लगे लोहे
के शटर की ओर इशारा किया , जहाँ एक दो लड़के प्रोस्पेक्ट लेने के लिए खड़े
थे।
'' तू यहाँ बैठ मैं लेकर आता हूँ। '' भगवान ने पार्क में बनी
सीमेंट की कंधोली की ओर इशारा कर दिया और खुद प्रोस्पेक्ट लेने चला गया।
गुरनैब उसके ऊपर बैठने के बजाये उसके ऊपर दाहिना पैर रख कर खड़ा हो गया।
पार्क में कटा अंग्रेजी घास किसी की ताज़ी कटी घनी दाढ़ी की तरह आपस में फँसा खड़ा
था। पार्क के आस -पास बनी पतली -पतली क्यारियों में खिले रंग -बिरंगे
कोमल फूल , कालेज में रंग -बिरंगे सूटों में सजी कोमल शरीरों वाली लड़कियों
की तरह हँस रहे थे। पतली क्यारी बीच के फूलों को माली खुरपी से गुड़ाई करते हुए
उसके अंदर की झाड़ - झंखाड़ को बाहर फेंक रहा था। बाहर फुदकती चिर -चिर करती
गुटारें उस घास -फूस से भोजन ढूंढने की कोशिश में जुटी हुई थीं। गुरनैब
ने पैंट की जेब से रुमाल निकाल कर चेहरे पर आई पसीने की बूँदें पोंछ लीं।
फिर अपनी कमीज का ऊपर का बटन खोल कर रुमाल से हवा करने लगा। पार्क के
सामने की पगडण्डी के ऊपर बाजरे के सिट्टे की तरह इकहरी सी लड़की को आते देख
कर गुरनैब की आँखों में एक चमक सी आ गई। वह अपने आप को कुछ कहने के लिए
तैयार करने लगा।
'' ओये होए रब्बा ! फुर्सत में बैठकर बनाया है लगता है ''
गुरनैब ने लड़की के पास आते ही हिम्मत करके कह ही दिया पर लड़की बिना कुछ
बोले ऊँची हिल की सैंडिल से टक -टक करती पास से गुजरने लगी।
'' नहीं कुछ बोलना तो गाली ही निकाल दो . ये तो मान लूँगा कि बोल पड़ी .''
लड़की
कुछ पल के लिए रुक गई। गुरनैब के दिल की धड़कन इंजन की तरह 'ठक -ठक -ठक '
बजने लगी। शरीर काँप गया। माथे पर पसीना उभर आया। आँखें ऊपर उठ गईं ''
मितरा चड़िआ रगड़ा '' गुरनैब ने झट सोच लिया। लड़की ने पीछे मुड़ कर देखा।
उसके मुस्कान से पतले गुलाबी होंठ चौड़े हो गए और उन होठों से सफेद मोतियों
से चमकते दांत गुरनैब के दिल में आ घुसे। लड़की महकती सी हँसी देकर आगे बढ़
गई पर गुरनैब के होश ठिकाने से हिल गए। उसने लोर में आकर दोनों हाथों की
ऊँगलियाँ आपस में फँसा कर दबा लीं।
'' हटा नहीं कारस्तानी करने से । '' भगवान ने आते -आते लड़की को हँसते देख लिया था।
'' भाई जान निकालकर ले गई कंजर की , मैं तो कहता हूँ मुझे यहीं दाखिला दिला दे । '' गुरनैब के अंदर प्यार की तरंगों का भूचाल आया पड़ा था।
'' दसवीं में तो चार बार फेल हो गए , दाखिला किसमें दिलाऊं तुम्हें। ''
'' और कुछ नहीं तो माली ही रखवा दे , बस दर्शन करके ही निहाल हो जाया करूंगा । ''
'' तुझे तो बस यही सपने आते रहते हैं , चल छोड़ , आ फार्म भरें। '' भगवान
छोटी टाहली के दरख़्त की छाया तले अंग्रेजी घास पर पालथी मार बैठ कर फार्म
भरने लगा। गुरनैब की नज़रें प्यासे मृग की तरह लड़कियों को ढूंढती चारो ओर
चक्कर खाती रही। उसकी नज़रें उतनी देर किसी लड़की के पीछे से न हटती जब तक
कि वो नज़र से ओझल न हो जाती .
भगवान अपना फार्म भरने में मगन था ताकि काम जल्दी निपटा कर समय
रहते घर पहुँच जाये। इनके पीछे दो लडकियां और फार्म लेकर बैठ गईं। थोड़े
समय बाद उनमें से एक लड़की ने फार्म के एक कोने पर पैन की नोक रखकर गुरनैब
के आगे कर दिया।
'' यह जी , जरा सा बताइयेगा यहाँ क्या भरना है ?'' किसी लड़की के
अचानक बोल सुनकर भगवान का ध्यान फार्म से हट गया। उसने उसी तरह बैठे -बैठे आगे
निगाह मारी . मक्खन के पेड़ों की तरह गोरे दो मुलायम पैर उसके सामने काले
सैंडिलों में सजे थे। '' इतने सुंदर पैर ! हाय ओये रब्बा ! धन्य है तू
बनाने वाला। ' भगवान के तार -तार हुए दिल से निकले शब्द दिल के अंदर ही समा
गए। उसने गर्दन ऊपर उठाई , एक खूबसूरत सी लड़की , फूलों के भार से झुकी
टहनी की तरह गुरनैब के ऊपर झुकी हुई थी। उसके बालों की दो लटें झुकी होने
के कारण उसके चेहरे पर लटक रही थीं। इन जुल्फों के बीच उसका चेहरा अँधेरी
रात में चमकते पूरे चाँद की तरह लिशकारे मार रहा था। लम्बी चोटि उसकी
पतली कमर पर सोये काले नाग की तरह अडोल पड़ी थी। रेशम जैसी पतली ऊँगलियाँ
में पैन गर्व से फुला न समा रहा था। भगवान को यकीन नहीं आ रहा था कि कोई
इतना भी सुंदर हो सकता है। उसे याद आया , कभी उसकी दादी , छोटे होते उसे
परियों की कहानी सुनाती थी पर आज तो उसने प्रत्यक्ष परी को देख लिया था।
भागू
ओये भागू । '' गुरनैब ने भगवान की जाँघ पर धीरे से थपथपाया , ''यार ये भरना
जरा सा..'' उसने लड़की से फार्म लेकर भागू को पकड़ा दिया . भगवान ने फार्म
पकड़ लिया। उसने ऊपर एक खाने में देखा बड़े ही सुंदर शब्दों में लिखा था '
गुरमीत कौर ' । फार्म पूरी तरह मुकम्मल था। बस कुछ खाली स्थान भरने बाकी थे।
भगवान ने वे रिक्त स्थान भी पूरे करवा दिए।
'' बहुत बहुत मेहरबानी जी। '' लड़की ने शुक्रिया अदा किया।
''
नहीं जी , यह तो हमारा फ़र्ज़ बनता था । '' भगवान पेंडू भाषा का 'ती '
छोड़कर 'सी ' पर आ गया था। उसे लड़की का पंजाबी में धन्यवाद करने का ढंग बड़ा
अच्छा लगा।
गुरमीत फार्म लेकर अपनी सहेली के पास चली गई। भगवान अपना बाकी
का फार्म मुकम्मल करने लगा। लड़की ने पास बैठे भगवान की ओर अपनेपन से भरी
नज़रों से दो-तीन बार देखा, ' कितना सीधा , शरीफ और अपना सा है ' लड़की के
ज़िस्म के किसी चोर दरवाजे से यह शब्द उसके दिल में बिना कदम -चाल किये जा
उतरे पर भगवान अभी भी अपना फार्म भरने में मग्न था। उसे पता नहीं था कि
वह कुछ पल के लिए किसी के दिल से हो आया है।
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बुढलाडे
से चढ़ती ओर एक काले नाग जैसी पतली सड़क कीकरों की खुड्ड में जा घुसती है।
उसके आस -पास बड़ी -बड़ी कीकरें वक़्त के मारे मनुष्य की तरह झुकी खड़ी हैं।
इनसे हटकर दूर कहीं- कहीं टिब्बे दिखाई देते हैं , जिन पर दूब उगी है और
कुछ के ऊपर कोई -कोई नरमे का बूटा कुंभलाया सा खड़ा ,खुश्क मौसम को गालियां
देता जान पड़ता है। कभी किसी टिब्बे पर बेरियों के नीचे बैठीं नील गायें खेतों
के मालिक बनी बैठी हैं । इन टिब्बियों को चीरती सड़क शेखगढ़ फाटक पर आ जाती
है। फाटक फांद कर फाटक की कोठी है। उसके साथ एक ऊँचा दैत्य जैसा वटवृक्ष
खड़ा है। जिसके चारो ओर ईटों का चबुतरा बनाकर अड्डे का काम लिया जाता है।
इससे दाहिनी ओर झील जैसा पोखर है और बायीं ओर गाँव बसा हुआ है। रेल की
पटरी से थोड़ा हटकर एक चौड़ा पहा गाँव के ऊपर से चक्कर काटकर दोबारा फिर इस
अड्डे पर आ जाता है। अड्डे से करीब दस घर छोड़कर एक लोहे के गेटों वाली
शानदार कोठी है। गेट के एक तरफ पत्थर का सलैब लगा है जिस पर सुनहरे
अक्षरों से लिखा है ,'सूबेदार हरबख्श सिंह शेखगढ़। 'कोठी के अंदर जाते ही एक
कोने में चरनी पर भैंसे बँधी हुई हैं। आँगन में एक चारपाई बिछी है, जिस
पर गुरमीत लेटी हुई है। उसकी नज़रें चौबारे के बनेरे पर बैठे पेडुकी के
जोड़े पर टिकी हुई थीं। इनमें से एक नर था और एक मादा। कभी यह जोड़ा प्यार
की लोर में अपनी चोंचें टकराने लग पड़ता तो कभी एक आगे-आगे चल पड़ता तो दुसरा
उसके पीछे - पीछे। फिर यह दोनों बस स्टैंड के बड़े वटवृक्ष की ओर उडारी
मार गए। पर गुरमीत की नज़र अभी भी बनेरे पर टिकी हुई थी। शायद उसे आज भी
पहले की तरह किसी का धुंधला सा चेहरा नज़र आने लगा था , जो धीरे-धीरे किसी
जाने पहचाने चेहरे में बदल जाता। गुरमीत को खुद को नहीं पता था कि यह
चेहरा उसकी आँखों के आगे क्यों आ जाता है। शायद कोई उसकी इज़ाज़त लिए बिना
ही चोर रस्ते से उसके दिल में उतर रहा था। वह अपने दिल के उलट इस चेहरे को
पहचानने से इंकार करती किसी और काम में तल्लीन हो जाती। इसी तरह आज भी
गुरमीत अपनी दिल की निचली परतों में उतर गए इस चेहरे को अनदेखा करती कालेज
जाने के लिए बिस्तर से उठकर नहाने चली गई।
गुरमीत का कालेज में आज दसवां दिन था। इन दस दिनों में वह थोड़ी
-थोड़ी किसी की सुंदरता की ओर , सीधेपन की ओर खींची चली जा रही थी। उसकी
नज़रें छुप -छुप कर रोज किसी के आने का इन्तजार करतीं। उसके आने पर खुश होती
और न आने पर मुरझा जाती। आज कितनी ही देर वह चोरी -चोरी अपने महरम को
उडीकती रही। . उसकी मायूस नज़रों ने सारा कालेज छान मारा पर उसकी झलक सारे
कालेज में कहीं न मिली। वह उदासी के दलदल से पैर घसीटती कैंटीन की और चल
पड़ी। कैंटीन के अंदर जाते ही उसने सभी लड़के -लड़कियों पर सरसरी सी निगाह
मारी पर उसकी नज़रें यहाँ भी उदासी में गोता खा गईं। वह एक कप चाय का
आर्डर करके कोने में खाली पड़े डेस्क पर जा बैठी और लाइब्रेरी से निकाली
किताब के पन्ने बिना पढ़े ही पलट -पलट कर देखने लगी।
'' गुरमीत साइड दोगे थोड़ा सा ?'' किसी ने बेध्यान पन्ने पलट रही गुरमीत से कहा।
''
ओह आप ? आओ बैठो। '' गुरमीत भगवान को देखकर खिल उठी। '' आप मेरा नाम कैसे
जानते हो ?'' उसने एक ओर हटते हुए भगवान को बैठने के लिए स्थान दे दिया।
'' जिस दिन हम फार्म भरने आये थे , उस दिन देखा था तुम्हारे फार्म पर। '' भगवान गुरमीत संग बैठ गया।
''
अच्छा ! याद है तब का ?'' गुरमीत को ख़ुशी और हैरानी हुई कि इतने समय से वह
मेरा नाम नहीं भूला ,'' आपने अपना नाम तो बताया ही नहीं ?''
'' आपने कौन सा पूछा। ''
'' अब पूछ लेते हैं जी। '' गुरमीत के कहने पर दोनों हल्का सा मुस्कुरा पड़े। कैंटीन वाला दोनों की चाय रख गया।
''
मेरा नाम है भगवान। वैसे भागू कहते हैं और पिंड है शांतपुर। गुरमीत आपका
कौन सा पिंड है ?'' भगवान को अपना पिंड बताने पर गुरमीत के पिंड का भी
ध्यान आ गया।
'' मेरा पिंड है शेखगढ़ '' गुरमीत ने कहा।
'' शेखगढ़ !'' ख़ुशी और हैरानी से भगवान ने कहा , वहाँ तो मेरे दोस्त की बुआ है। मैं भी जाकर आया हूँ एक दो- बार। ''
'' अब आना। ''
'' अगर बुलाओगी तो जरुर आएंगे। ''
'' हमने बुलाया और आप न आये फिर ?'' गुरमीत भगवान को बर्तन की तरह ठोक -ठोक कर देख रही थी , कहीं कच्चा ही न हो।
'' अभी ले चल बेशक। '' भगवान अपनी कहनी और करनी का सबूत दे गया।
''
चलो मान लिया तुझे , जिस दिन मौक़ा आया देखेंगे। '' गुरमीत को भगवान पर
सचमुच ही यकीन आ गया था . दोनों ने चाय पी ली। भगवान ने घड़ी पर नज़र मारी।
'' अच्छा आ चलें , पंजाबी के पीरियड का समय हो गया है। '' गुरमीत ने
जबर्दस्ती चाय के पैसे खुद दे दिए। दोनों पीरियड लगाने चले गए।
आज
कालेज में काफी रौनक थी। आडोटोरियम को दुल्हन की तरह सजाया गया था। नीचे
दरियाँ बिछाई गईं थीं। आस -पास कुर्सियां सजा दी गई और कुछ कुर्सियां ख़ास
मेहमानों के लिए स्टेज के ऊपर रख दी गई। जजों की कुर्सियाँ स्टेज के
सामने एक ओर करके लगा दी गईं। जहां से वे भाग लेने वालों की पेशकारी भी
देख सकें और दर्शकों को देखने में भी कोई अड़चन न आये। सारे आडोटोरियम की
अंदर की दीवारों के आस -पास भी अच्छी सजावट की गई। कालेज में पढ़ने वाले
लड़के -लडकियां बगीचे में खिले रंग - बिरंगे फूलों के से कपड़े पहने तितलियों
की तरह घूम रहे थे। कविता पाठ का समय दस बजे रखा गया था पर जज साढ़े दस के
करीब आये। उनके आते ही लड़के -लडकियां बिछी दरियों पर आकर बैठने लगे।
आडोटोरियम के गेट के आगे भगवान को गुरमीत मिल गई।
'' आप लोगे भाग मुकाबले में ?'' गुरमीत ने भगवान के पास जाकर पूछा।
'' ले लूँ ?''
''जरुर लो। ''
'' अगर आप कहते हो तो जरुर भाग लेंगे। ''
'' हमारे कहने से कौन लेता है , नाम तो आपने सबसे पहले लिखा रखा है। ''
'' आपको कैसे पता ?'' भगवान को ख़ुशी भरी हैरानी हुई कि उसके भाग लेने के बारे में गुरमीत को पता है।
'' मैंने मेरी सहेली अमन को पूछे थे सभी भाग लेने वालों के नाम .''
'' वह भी लेगी भाग ?''
'' हाँ। ''
'' चलो देखते हैं फिर क्या बनता है। '' भगवान और गुरमीत अंदर दरियों के ऊपर जा बैठे।
स्टेज संचालक ने स्टेज संभाला और बोलना शुरू किया , '' सबसे
पहले मैं अपने कीमती समय से समय निकाल कर यहाँ पहुंचे जज साहेबानों ,
प्रिंसिपल डॉ हरनाम सिंह , समूह स्टाफ और बहुत ही प्यारे विद्द्यार्थियों
का धन्यवाद करता हूँ। हम जो हर साल कविता पाठ मुकाबला करवाते हैं वह शुभ
दिन आज फिर आया है। इस बार इस मुकाबले में बीस विद्द्यार्थी भाग ले रहे
हैं। विद्द्यार्थियों को बता दें कि जो विद्द्यार्थी अपनी मौलिक कविता
बोलेगा , उसके अलग नम्बर दिए जायेंगे। समय बहुत हो गया है इसलिए मैं और
समय न लेता हुआ सब से पहले बुला रहा हूँ बी ए. भाग दो की छात्रा अमनदीप कौर
को कि वह अपनी रचना लेकर स्टेज पर आये। ''
अमनदीप
ने पहले कविता की अच्छी भूमिका बाँधी और फिर बड़ी ही सुरीली आवाज़ में कविता
बोली। कविता खत्म होते ही सारा हाल तालियों से गूंज उठा। उसके बाद
सुखजीत की बारी आई। फिर डिम्पल , महिंदर , रेनू , करमजीत और बलजीत। बलजीत
के बाद फिर संचालक ने स्टेज सम्भाली , '' दोस्तों सबको अपना साजन अर्श से
उतरा जान पड़ता है। कोई अपने साजन की फूलों से तुलना करता है तो कोई चाँद
तारों से, तो किसी को वह सूरज का जाया महसूस होता है। किसी का साजन चाहे
कैसा भी हो पर उसे वह सारे जग से न्यारा ही लगेगा। कहते हैं कि एक बार
मजनू को किसी ने कह दिया कि तेरी लैला सुंदर नहीं तो उसने जवाब दिया कि आप
मेरी आँखों से देख कर देखो , सारे जहां से सुंदर लगेगी। सो दोस्तों , अपने
साजन के हुस्न , सादगी की महिमा गाती अपनी मौलिक रचना लेकर आ रहे हैं
भगवान सिंह। '' जब भगवान स्टेज पर चढ़ा तो गुरमीत ने जोर -जोर से तालियाँ
बजाईं। भगवान ने स्टेज पर जाकर सबसे पहले सारे मेहमानों और दर्शकों का
धन्यवाद किया और फिर पूरी लय-ताल से अपनी कविता गानी शुरू की …
' सज्जण साडे हुस्न पिटारी
परियां दी ओह जाई
तक्क हुस्न नूं चन्न -चानणी
हेठी विच शरमाई ....
सज्जण साडे फुल्ल सुगन्धिआं
सब कूटीं महकाई
भोरे आये झलकी देखण
बागी पई दुहाई ....
भगवान
आँखें बंद किये दिल से गाता रहा। सारा हॉल सन्नाटे में डूबा उसके बोलों
के साथ ही बह चला था। जब कविता खत्म हुई तो सभी भोंचक्के से जैसे सपने से जाग पड़े हों।
सारा हाल तालियों से गूंज उठा।
बारी -बारी सभी विद्द्यार्थी अपनी -अपनी कवितायें सुनाकर चले
गए। स्टेज संचालक जजों से नतीजा ले आया , '' दोस्तों , जिसका आप सब अब तक
बड़ी बेसब्री से इन्तजार कर रहे हैं , वह नतीजा आपके सामने लेकर आएंगे हमारे
जज साहेबान गुरकीरत सिंह खहरा जी। ''
खहरा ने आकर स्टेज सम्भाली ,'' विद्द्यार्थियो मुझे बड़ी खुशी हो रही है कि आप सब कविता पाठ मुकाबला करवाने की परम्परा हर साल निभाते आ रहे हो। जो आज यहाँ कवितायेँ बोली गईं , वे आपका एक अच्छे लेखक बनने का संदेशा देती हैं। प्यारे विद्द्यार्थियो ! असल में तो सबसे बड़े जज दर्शक होते हैं , जो अपनी तालियों से फैसला कर देते हैं पर फिर भी कविता के कुछ नियम हैं , जिन्हें सामने रख नतीजा तैयार करना पड़ता है। हमें यहाँ नतीजा तैयार करने में बड़ी मुश्किलें आईं क्योंकि यहाँ सभी ने बहुत ही अच्छी कवितायेँ पढ़ी और गाई हैं पर फिर भी कुछ अंतर निकाल कर नतीजा तैयार किया गया है। तीसरे स्थान पर हमें तीन विद्द्यार्थी रखने पड़े , जिनके नाम हैं , रेनू , करमा और बलविंदर .''
खहरा ने आकर स्टेज सम्भाली ,'' विद्द्यार्थियो मुझे बड़ी खुशी हो रही है कि आप सब कविता पाठ मुकाबला करवाने की परम्परा हर साल निभाते आ रहे हो। जो आज यहाँ कवितायेँ बोली गईं , वे आपका एक अच्छे लेखक बनने का संदेशा देती हैं। प्यारे विद्द्यार्थियो ! असल में तो सबसे बड़े जज दर्शक होते हैं , जो अपनी तालियों से फैसला कर देते हैं पर फिर भी कविता के कुछ नियम हैं , जिन्हें सामने रख नतीजा तैयार करना पड़ता है। हमें यहाँ नतीजा तैयार करने में बड़ी मुश्किलें आईं क्योंकि यहाँ सभी ने बहुत ही अच्छी कवितायेँ पढ़ी और गाई हैं पर फिर भी कुछ अंतर निकाल कर नतीजा तैयार किया गया है। तीसरे स्थान पर हमें तीन विद्द्यार्थी रखने पड़े , जिनके नाम हैं , रेनू , करमा और बलविंदर .''
सारे हाल में जोर की तालियां बजीं। तीनों विद्द्यार्थी अपना इनाम लेकर बैठ गए।
''
दूसरे नम्बर पर रहा है तरसेम सिंह और अब पहले नम्बर की बारी है। पहले
नम्बर पर भी हमें दो विद्द्यार्थी चुनने पड़े हैं। पहला नाम है अमनदीप कौर
और दुसरा नाम है भगवान सिंह। '' तालियों के शोर में दोनों ने अपने -अपने
इनाम प्राप्त किये। गुरमीत ने तालियां मार -मार कर अपने हाथ लाल कर लिए।
सारे विद्द्यार्थी अपने जीते हुए मित्रों को बधाई देने लगे। तीन बजे तक
प्रोग्राम खत्म हो गया . भगवान अपना इनाम लेकर आडोटोरियम से बाहर आ गया।
'' बधाई भागू। '' गुरमीत और अमन ने दो लड़कों के साथ जा रहे भागू को पीछे से आकर कहा।
'' आपको भी बहुत -बहुत बधाई , कमाल कर दिया अमन जी आपने। '' भगवान ने सत्कार के तौर पर अमनदीप की तारीफ की।
'' हम कौन सा किसी से कम हैं। '' अमन ने ख़ुशी में छाती तान ली और शरारती आँखें भगवान के चेहरे पर गड़ा दीं ।
' भागू जी आज मैंने आपको एक और तोहफा देना है। '' गुरमीत काँपते हुए दिल से कह गई। उसे यकीन था कि भगवान उसका तोहफा कबूल कर लेगा।
' भागू जी आज मैंने आपको एक और तोहफा देना है। '' गुरमीत काँपते हुए दिल से कह गई। उसे यकीन था कि भगवान उसका तोहफा कबूल कर लेगा।
'' लाओ जल्दी दो जी फिर। '' भगवान ने अपना एक हाथ गुरमीत के आगे बढ़ा दिया।
''
यहाँ नहीं मिलेगा तोहफा , क्या पता सबके सामने लेने से इंकार कर दो। ''
गुरमीत भगवान और अमन को दरख्तों के बीच बनी चौकड़ी की ओर ले गई।
'' ऐसा कौन सा तोहफा है जो यहाँ दिया जायेगा ?'' भगवान हैरान था।
'' मैं .... मैं .... मैं … आपको प्यार करती हूँ। '' गुरमीत ने बिना किसी भूमिका के जल्दी से कह डाला ।
'' क्या ?'' भगवान की हैरानी में प्रश्न चिन्ह बनी आँखें गुरमीत के चेहरे से सच्चाई जानने में जुट गईं।
'' हाँ भागू, मैं आपको बहुत चाहती हूँ। मार दो चाहे छोड़ दो। '' गुरमीत ने चेहरा दरवेशों की तरह बना लिया।
'' पर मैंने तो आपको अपना दोस्त समझा था। ''
'' मैंने आपको अपना रब्ब माना है। '' गुरमीत ने भगवान का हाथ पकड़ लिया।
''
मेरे साथ पहले धोखा हो चुका है। मैं नहीं चाहता बार -बार मेरे साथ वही
हो। '' भगवान की आँखों के आगे किरना का बेवफा चेहरा घूम गया।
'' यकीन नहीं तो अभी ले चलो साथ। मैं तो तुम्हारे बिना मर
जाऊँगी भागू . भ .... भागू अगर प्यार नहीं देना तो अपने सीने से भींच कर
मार डाल मुझे। '' गुरमीत पल में ही भावुक हो गई। उसकी झील सी आँखें भर
आईं। उनमें से दो गर्म बूंदें उसके गुलाबी गालों से होते हुए नीचे की ओर
बह चलीं ।
'' अरे पगली ! मैं तो मज़ाक कर रहा था , मैं भी चाहता हूँ
तुम्हें। '' भगवान गुरमीत के आगे पिघल कर मोम हो गया। भगवान की 'हाँ '
सुनकर गुरमीत की गुलाबी गालें मुस्कान से और गाढ़ी हो गईं।
'' अब तो भई पार्टी बनती है गुरमीत '.' अमन ने शरारत से गुरमीत की कमर में चिकुटी काटी।
''
चल चले फिर। '' भगवान के कहने पर तीनों वहाँ से उठकर चल पड़े। गुरमीत आज
बहुत खुश थी। उसका ख़ुशी से अंतर् भरा पड़ा था। सारा कालेज ही उसे अब अपना
-अपना सा लगने लगा था। वह ख़ुशी में हिलोरे लेती भगवान के साथ सीना तानकर
बराबर चल रही थी। वह सबको बताना चाहती थी कि भगवान अब उसका हो गया है। वह
आगे से हर टकराने को छुपी नज़रों से देखती। वह चाहती थी कि हर पार होने वाला उसके
साथ चल रहे नौजवान की ओर जरुर देखे और उनकी जोड़ी की तारीफ़ करे। गुरमीत कभी
-कभी जानकार साथ चल रहे भागू से सट कर आनंद लेती। चौक में आकर तीनों '
संगम स्वीट हॉउस ' में जा घुसे। गुरमीत ने उन्हें ना -ना करते जबरदस्ती चाय के साथ बर्फी
खिलाई। फिर वहाँ से ये बस स्टैंड आ गए। भगवान की बस चलने वाली थी। उसने
जल्दी -जल्दी दोनों से जाने की इज़ाज़त माँगी। गुरमीत का दिल किया कि वह
जाते समय भगवान को बाहों में भींच ले पर वह भरी भीड़ में ऐसा कैसे कर सकती
थी ? उसने अपने दिल में उठे उस बलबले को वहीं दबा लिया। बस में चढ़े भगवान
ने खिड़की की ओर खड़े होकर दोनों की ओर देखा। दोनों ख़ुशी से मुस्कुरा पड़ीं .
बस चल पड़ी। गुरमीत को जाती हुई बस पर गुस्सा आया पर दूसरे ही पल उसे यह
बस बड़ी प्यारी लगी कि यह बस ही कल उसके भगवान को दुबारा लेकर आएगी। उसका
दिल किया कि वह चली जा रही बस को चूम ले पर बस 'ड .... र .... र ' करती
बस अड्डे से निकल कर सड़क पर आ गई। पीछे की धूल ने बस को ढक लिया और वह धूल
में गुम होती -होती आलोप हो गई।
18
शाम
घसमैली हो गई थी। बाबे रमाणे की मटिल के पास आग के अंगियारे सा सूरज नीचे
की ओर सरकता आलोप हो गया। आसमान में उड़ती पंछियों की डारों ने अपने -अपने
घोंसलों की ओर उडारी भर ली । शाम के वक़्त दूध दोहने का वक़्त देख भगवान ने
सारी भैंसों को मशीन के आगे से टोकरे भर -भर चारा डाल दिया। चारा डाल कर
टोकरा मशीन के आगे रख दिया और नलके पर हाथ धोने लगा। हाथ धोते -धोते उसने
देखा कि दरवाजे में राजा और उसके साथ चौदह -पंद्रह साल का लड़का चला आ रहा
था। सामने आने पर भगवान ने उसे पहचान लिया। वह राजे की शेखगढ़ वाली बुआ का
बेटा था। भगवान ने गुसलखाने में से तौलिया उठाकर हाथ पोंछ लिए और दोनों
से हाथ मिला बैठक में ले आया।
'' और बताओ जी क्या हाल -चाल हैं ?''
'' बस ठीक है।'' केवल से पहले राजा बोल पड़ा।
'' आप लोग बैठो मैं दूध बनाकर लाता हूँ। '' भगवान कहता हुआ उठ खड़ा हुआ।
'' नहीं भई दूध की कोई जरुरत नहीं। '' केवल जल्दी से बोला।
''
आप मत पिलाना यार , हमारा तो पी लो। '' भगवान जाते -जाते बोल गया। भगवान
के जाने के बाद राजा और केवल खुसुर - फुसुर सी करने लगे और फिर राजा जोर से
हंस पड़ा। भगवान दूध बना लाया और गिलास में डालकर पकड़ा दिया। तीनों गर्म
दूध को फूक मार -मार ठंडा कर पीने लगे।
'' और भई तुम्हारे पिंड सब ठीक ठाक हैं बुआ लोग ?'' भगवान ने आगे बात बढ़ाते हुए पहले केवल के घर की कुशल - मंगन पूछी।
'' हाँ भई सब ठीक -ठाक हैं। ''
'' साले उधर तो पूछ ले ठीक है या नहीं। तुम तो यहाँ फिरते हो कताडियां मारते , वह बेचारी मछली की तरह तड़पती जा रही है। ''
भगवान राजे की कही इस बात पर थोड़ा झेंप गया। सोचने लगा केवल इस बात को जान कर मेरे बारे में क्या सोचेगा।
'' क्यों नवविवाहिता से शरमाये जा रहे हो। तुझसे तो वही दलेर है।
तुम लड़के होकर लड़के से यारी न निकाल पाये। वह लड़की होकर लड़के से दोस्ती कर गई '' राजा गुरमीत की हिम्मत की
तारीफ कर गया।
'' क्यों क्या हो गया ?'' भगवान को चाहे बात का थोडा सा भान हो गया था पर वह चाहता था कि पहले स्पष्ट पता चल जाये।
'' भाई जी यह भेजा है उसने। '' केवल ने एक कागज का टुकड़ा निकाल कर भगवान के आगे कर दिया।
''
तुम लोगों को बता दिया उसने। '' भगवान झट सारी बात समझ गया। ख़ुशी उसके
रोम -रोम से नाच उठी। उसके दिल में उठे प्यार के जज़्बे लहरों के से छल्ले बन गए । उसने केवल से दोबारा कसकर हाथ मिलाया और फिर हाथ में पकडे कागज की
तह खोली और पढ़ना शुरू किया ....
'' प्यारे भागू !
मेरे जीवन की केवल एक ही सुनहरी
किरण। जैसे -जैसे ख़त लिख रही हूँ , आपका चेहरा हर शब्द पर दौड़ता चला जा रहा
है। मेरे महरम , कल सोलह तारीख दिन सोमवार करवा चौथ का व्रत है . भारत की
हर नारी इस दिन अपने महरम की लम्बी उम्र की प्रार्थना करती है। मैं आपकी
लम्बी उम्र के लिए करवा चौथ का व्रत रख रही हूँ और आपको देख कर ही रोटी
खाऊँगी। आप कल जरुर आना। अगर आप नहीं आये तो मैंने यह व्रत आपको देखे
बिना नहीं खोलना। जल्दी में लिख रही हूँ। समय बहुत कम है। कोई न कोई
गलती जरुर रह गई होगी। अपनी जान समझ कर गलती माफ़ करना। आपके इन्तजार में ,
राहों में नज़रें बिछाए बैठी … आपकी मीत !
'' क्यों क्या सलाह है ?'' भगवान ने ख़त पढ़कर राजे की ओर इशारा
किया कि अब क्या किया जाये। असल में भगवान का दिल बिजली की तेजी सा उतावला
हो रहा था कि कब वह हवा के झोंखे सा उड़कर अपनी मीती के पास जा पहुंचे पर
जाना तो उसे राजे के आसरे से ही था . राजे के बिना वह वहाँ कैसे जा सकता
था। वह चाहता था कि राजा उसे जाने के लिए खुद ही कह दे तो ठीक है।
'' सोचता क्या है , क्या रोज़ -रोज़ आते हैं ऐसे दिन ? कर ले
तैयारी जाने की, फिर चलते हैं कल नड्डी के पास । '' राजे ने भागू के मन की
बात कहते हुए दोनों भौं उठा दी। तीनों ने कल तीन बजे वाली बस से जाने का
समय निश्चित कर लिया । राजे
ने जाने की इजाजत माँगी पर भगवान ने उनको जोर जबर्दस्ती रोटी खाकर जाने के
लिए कहा। उसने अपनी माँ से दूध में सेवइयाँ बनवाईं और सब्जी का देसी घी
में तड़का लगवाया। वह चाहता था कि वह केवल की पूरी सेवा करके उसे खुश कर दे
ताकि वह जाकर उसकी मीती को बताये। उसे लग रहा था कि वह केवल की नहीं
बल्कि मीती की सेवा कर रहा है। खाना खाकर केवल और राजा घर चले गए। भगवान
ने वह ख़त दोबारा पढ़ना शुरू किया। ख़त में गुरमीत का गुलाब सा खिला चेहरा
उभर आया। वही गुलाबी होंठ , होंठों से चमकते मोतियों से सफ़ेद दांत, नागिन
सी बल खाती चोटी और काले सैंडलों में सजे गुलाबी पैर , भगवान को सुध -बुध
ही न रही कि वह कहाँ पढ़ रहा है। उसने ख़त अपने सीने से लगा लिया। प्यार के
नशे में हिलोरें लेता दिल तेज -तेज धड़कने लगा।
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आज
का दिन गुरमीत के लिए बहुत ही भाग्यशाली था। आज उसके प्यार ने उसके पिंड
आना था। उसने सवेरे ही उठकर मल -मल कर नहाया। हरा कढ़ाईदार सूट पहना और
आँखों में हल्का -हल्का सुरमा रचा लिया। वह कितनी ही देर आईने के सामने
खड़ी अपने चाँद से चेहरे को निहारती रही। कोई नई ख़ुशी उसके होंठों से टपक
रही थी . उसकी सिंदूरी गालें किसी अजीब ख़ुशी में लाल हो गईं थीं। वह कुछ
गुनगुनाती आँगन में मुर्गाबी सी फिर रही थी। भगवान को आज अपने चाँद के रूप
में देखने की ख़ुशी उसके अंदर तूफ़ान बन मचल रही थी। गुरमीत चौबारे पर चढ़
गई। उसने अलमारी से एक किताब निकाल ली और चौबारे से बाहर आकर कोठे से झुक
कर पिछली गली में निगाह डाली। उनके घर के पीछे से एक चौड़ी गली गुजरती है।
इसी गली के सामने वाली कतार में चार , पांच घर छोड़ कर केवल का घर है।
केवल की बहन रानी गुरमीत के संग दसवीं क्लास तक पढ़ती रही थी। स्कूल के समय
से ही दोनों का आपस में गहरा स्नेह था। दोनों अच्छे नंबर लेकर दसवीं कक्षा
से पास हुईं। गुरमीत ग्यारहवीं में पढ़ने के लिए बुढलाडे पढ़ने लगी पर रानी
के घरवालों ने उसे पढ़ने के लिए पिंड से बाहर नहीं भेजा और वह दसवीं करके
घर बैठ गई। इन दोनों का प्यार अब भी आपस में अच्छा है। कभी -कभी गुरमीत
उनके घर हो आती है तो कभी वह उसे मिलने यहाँ आ जाती है , पर आज गुरमीत किसी
खास मौके पर जाना चाहती थी , उसी मौके के इंतजार में वह बार -बार गली की ओर
निगाह मारती और कभी घड़ी की ओर। उसने चौबारे की पिछली खिड़की जिसमें से गली
में जाता आदमी आम दिख जाता है , खोल ली। कुर्सी खींच कर खिड़की के पास
कर ली और हाथ की किताब जहां से खुली खोल कर बैठ गई। उसने किताब की सतरों
पर निगाह मारी पर झट ही निगाह फिसल कर गली में जा टिकी , जहाँ से उसके भागू
ने पार होना था पर गली खाली थी।
घड़ी की सुई टिक -टिक करती चक्कर लगाती रही , उसके पीछे मिनटों
वाली सुई और फिर घंटों वाली सुई वक़्त को पीछे धकेलती रही। गुरमीत की उडीक
लम्बी होती गई। परछाइयाँ ढलनी शुरू हो गईं। खिला चेहरा उदासी में बदलने
लगा पर जिसकी उडीक थी , उसकी झलक भी न दिखी। साढ़े तीन वाली बस ने हॉर्न
मारा। गुरमीत दौड़ कर बाहर आई। बस आकर वट के वृक्ष के पास रुकी।
सवारियां उतरने लगीं। उतर गईं , पहले से खड़ीं दो जनानियां बस में चढ़ गईं .
कंडक्टर ने सिटी मारी और बस फाटक पार कर धूल में गुम हो गई। पर इन्तजार
करवाने वाला न आया। गुरमीत की उम्मीदें ढहने लगीं। उसके अंतर से आहें
उठने लगीं। वह मन - मन का पैर घसीटती कुर्सी पर गिर गई। उसके अंदर की
आहें फूट कर आँखों के रस्ते से बाहर आ गईं। आँखों से छलके पानी ने चाव से
डाले सुरमें को तितर -बितर कर दिया . वह अधमोई सी कुर्सी पर लेटी रही। पड़े
-पड़े उसके दिल ने कहा कि वह कितनी पागल है , अभी तो कितना दिन पड़ा है और
वह पहले ही उम्मीद खो बैठी है। उसका भागू भी तो ऐसा नहीं जो वादा करके न
आये। उसने बिखरी उम्मीदों को दोबारा जोड़ लिया और फिर इन्तजार करने लगी।
एक बस और पार हो गई पर उसमें भी कोई न आया। फिर साढ़े चार वाली बस ने हॉर्न
मारा। मीती दौड़ कर चौबारे से बाहर आई। बस आकर वट के दरख़्त के तले रुकी।
सवारियां उतरनी शुरू हो गईं। फिर तीन लड़के उतर आये। गुरमीत ने देखा
इनमें से एक तो केवल है। 'दूसरा ?' दूसरा भागू। मेरा भागू। ' गुरमीत की
ख़ुशी आसमान तक चढ़ गई। उसकी आँखों में प्यार हिलोरें लेने लगा।
केवल,
भगवान और राजा बस से उतर कर गुरमीत के घर की पिछवाड़े की गली पड़ गए । जब गुरमीत का घर
चार -पांच क़दमों पर रह गया तो केवल ने भागू को कोहनी मारते हुए सामने वाली
कोठी की ओर इशारा कर दिया। . कोठे पर खड़ी गुरमीत हरे सूट में सजी , हरी
टहनी पर खिला गुलाब का फूल लग रही थी। भगवान कोठे पर खड़ी गुरमीत की ओर
देखता चलता रहा। गली में लगी उबड़ -खाबड़ ईंट उसके पैर से टकरा गई। वह
गिरता -गिरता बचा। गुरमीत भगवान को अंगूठा दिखाती खिलखिला कर हँस पड़ी।
तीनों मुस्कुराते हुए आगे बढ़ गए।
केवल का घर आम जमींदारों की तरह अच्छा खुला -डुला है। सामने
चार कमरे एक कतार में डाले गए हैं। दाहिनी ओर एक रसोई है। रसोई के साथ एक
ओटा बना हुआ है और ओटे के साथ कोठे की ओर सीढ़ी चढ़ती है। उससे आगे पहे के
साथ लगता तुड़ी वाला कमरा है , जो
बिना तख्तों के खड़ा है। बायीं ओर भैंसों की चरनी है। चरनी पर तीन भैंसे
और एक कटड़ी नथुने मार -मार सन्नी खा रहे हैं। कुछ सन्नी चरनी से नीचे गिरी
हुई है। पिछली ओर दो कटड़े खड़े हैं। सामने की बैठक में रानी सलाइयों से
कुछ बुन रही है। केवल और सबलोग जाकर चारपाई पर बैठ गए। रानी पानी लेने बाहर चली गई।
'' बेबे और बाकि सब कहाँ हैं ? '' केवल ने रानी के पानी ले आने पर पूछा।
'' वह तो कपास चुनने गईं हैं। .'' रानी ने सबको पानी डालकर दे दिया।
'' रानी। ''बाहर से किसी ने आवाज दी। आवाज़ जानी -पहचानी लगी .
'' आजा गुरमीत इधर ही। ''रानी ने स्वात के दरवाजे के आगे आकर कहा। उसने आवाज़ पहचान ली थी। भगवान ' आजा गुरमीत ' नाम सुनकर राजे की ओर देखकर होठों ही होठों में मुस्कुरा दिया गुरमीत बैठक में आ गई।
'' रानी। ''बाहर से किसी ने आवाज दी। आवाज़ जानी -पहचानी लगी .
'' आजा गुरमीत इधर ही। ''रानी ने स्वात के दरवाजे के आगे आकर कहा। उसने आवाज़ पहचान ली थी। भगवान ' आजा गुरमीत ' नाम सुनकर राजे की ओर देखकर होठों ही होठों में मुस्कुरा दिया गुरमीत बैठक में आ गई।
'' गुरमीत यह वीर तेरे साथ पढता है ?'' रानी ने भगवान की ओर हाथ करके गुरमीत से पूछा।
'' हाँ '' गुरमीत हल्का सा मुस्कुरा पड़ी।
'' आपलोग बैठो मैं चाय बनाकर लाती हूँ। '' रानी कहकर बाहर चली गई।
'' हम जायें भाभी अगर बातें करनी हैं तो ?'' राजे ने मसखरी की।
''
नहीं … बैठे रहो । '' गुरमीत नज़रें झुका कर मुस्कुरा पड़ी। उसकी आँखों ने
राजे का धन्यवाद किया कि वह उसके भागू को ले आया है। वैसे गुरमीत दिल से
चाहती थी कि अगर उन्हें कुछ देर अकेले छोड़ दिया जाये तो वे कुछ खुलकर बातें
कर लें।
'' अच्छा भागू , आपलोग बैठो हम जरा अपनी बहन से बातें करके आते
हैं । '' राजा और केवल रानी के पास आ गए। भगवान और गुरमीत किसी मुँह
माँगी ख़ुशी से मुस्कुरा पड़े।
'' और सुनाओ जी क्या हाल हैं ?'' भगवान गुरमीत के गोरे चेहरे को निहारता हुआ बोला।
'' हाल तो आपसे ही जुड़ा है , अगर आप ठीक हो तो हम भी ठीक हैं।
अगर आप दुखी हैं तो हम आपसे पहले दुखी हैं। '' गुरमीत ने अपने आपको भागू
को समर्पित कर दिया।
'' न आज हमारी क्यों भागा - दौड़ी करवाई ?'' भगवान को आज आने का मकसद याद आ गया।
'' अगर नहीं आते तो मैंने रोटी नहीं खानी थी बेशक मर जाती '' गुरमीत गंभीर हो गई।
'' हम भी अपनी गुरमीत के फूल की लगी नहीं सहारते। चाहे लाख आँधियाँ झेल कर आना पड़ता। '' भगवान जज़बाती हो गया।
'' आज इस तरह करना भागू जी , मुँह अँधेरे कोठे पर चढ़ जाना। ''
'' क्यों धक्का देना है ?'' भगवान की बात पर दोनों खिलखिला कर हँस पड़े।
'' नहीं , आपको देख कर पूजा करके फिर रोटी खानी है। '' गुरमीत को भगवान अपना साथी , महरम और रब्ब सबकुछ लग रहा था।
'' क्यों किसने खानी है रोटी ?'' राजे के कानों में अंदर से आते हुए टूटे - फूटे शब्द सुनाई पड़े .
किसी ने नहीं यह तो कोई और बात थी। '' भगवान ने राजे के पीछे चाय लेकर आती रानी और केवल को देख कर बात पलट दी।
'' भई चाय तो ज्यादा है मैं कम पीता हूँ। '' भगवान ने गिलास उठाकर रानी की ओर बढ़ा दिया।
'' पी ले पी ले हवा छोड़ रहे हो यहाँ । घर में तो तेरी दो बाटे पिए बिना आँखें नहीं खुलती .'' राजे ने मसखरी की।
'' वीर जी , चाय तो कम ही थी। '' रानी ने चाय वाला जग भगवान की
ओर बढ़ा दिया। भगवान ने आधी चाय जग में निकाल दी। चाय पीने के बाद रानी
बर्तन इकट्ठे कर बाहर ले गई। उसके पीछे गुरमीत भी चली गई। दोनों काफी देर
ओटे के पास बैठी बातें करती रहीं। फिर गुरमीत अपने घर चली गई।
राजा ,
गुरनैब और केवल तीनों रोटी खाकर कोठे पर आ बैठे थे। वे गुरमीत के चौबारे
की तरफ मुँह करके बातें करते रहे। गुरमीत भी एक -दो बार कोठे पर आई और
जरा सा दिखलाई देकर नीचे उतर गई। धीरे -धीरे सारा पिंड अँधेरे में डूबता
गया। काफी अँधेरा हो जाने पर गुरमीत के चौबारे के किनारे लगा बल्ब जल
उठा। बल्ब की रौशनी में फिरती गुरमीत ने खड़ी होकर केवल के कोठे की ओर
देखा। चाहे अँधेरा काफी था पर गुरमीत का घर केवज के घर से ज्यादा दूर न
होने के कारण ध्यान से देखने पर कोठे पर चलता -फिरता आदमी नज़र आ जाता था।
गुरमीत को खड़ी देखकर भगवान ने हाथ खड़ा करके हवा में हिलाया , गुरमीत ने भी
उसका जवाब हाथ हिला कर दिया। फिर गुरमीत ने गिलास में डाला पानी भगवान की
ओर सात बार उछाला और हाथ जोड़ दिए। वह हाथ खड़ा कर हिलाती हुई कोठे से नीचे
उतर गई।
जब रोटी खाकर घंटे बाद चाँद को अर्घ देने वाली सुहागनों के साथ
गुरमीत कोठे पर चढ़ी तो उसने देखा , भगवान उनलोग अभी भी कोठे पर बैठे बातें
कर रहे हैं। '' ओये बुद्धूओ ! अभी तो नीचे उतर जाओ , अब तो रोटी खाये को
भी घंटा हो गया। '' गुरमीत ने बड़ -बड़ करती ने माथे पर हाथ मारा। सारी
सुहागनों ने पंडताईन से कहानी सुनते वक़्त पल्ले से बांधे दाने पानी की भरी
बाल्टी में डाल लिए। फिर उसमें सबने खिल्लां और सेव की फड़ियाँ डालीं।
गुरमीत उनलोग खड़ी होकर सबकुछ देखती रहीं। सबने एक -एक हाथ से बाल्टी उठाई
और चाँद की ओर करके पानी उछालते हुए अर्घ देना शुरू किया।
सोहणियां परमोहनियां
सोहणियां घर बार !
बाले चंदा अर्घ लै ,
दे लोडे घर बार
हथ कड़ी , पैर कड़ी
सुहागन भागन
अर्घ देण चौबार चढ़ी !
अर्घ देने के बाद सबने भोग बांटा और फिर धीरे -धीरे कोठे से नीचे उतर गईं।
''
बाबा जी अब तो नीचे उतर जाओ। '' गुरमीत ने पहले हाथ जोड़े और फिर थोड़ा झुक
कर अदब के साथ एक हाथ छाती से आगे करके जाने का हुक्म दिया। जब भगवान
उनलोग नीचे उतर गए तो गुरमीत ने चौबारे का बल्ब बुझा दिया और सुरमई अँधेरे
में हँसी की महक बिखेरती नीचे उतर गई।
19
जो
प्यार को पैसों से तोलने लग जाये वो कभी साथ नहीं निभा सकता। पैसों की
मोटी परत के नीचे प्यार का दम घुट जाता है। यदि प्यार को लालच का घुन लग
जाये वह अंदर से खोखला होता -होता एक दिन दम तोड़ देता है। यही कुछ हुआ था
भगवान के प्यार के साथ। लालच में आकर किरना ने भगवान का प्यार आसमान से
धरती पर पटक दिया था। और लालच में आकर किसी और की छाती से जा लगी। ऐसी
लालची प्रवृति दिन दुगुनी रात चौगुनी बढ़ती रहती है जो चाहने से भी घटती नहीं। अब
किरना को तेजी के तिलों से तेल निकल गया लगता था या किरना को कोई और बड़ा
शिकार मिल गया था। वह तेजी को बदली -बदली सी लगी , जब से वह अपनी बहन से
हीरों खुरद चार-पाँच दिन लगा कर आई थी।
उसकी बहन का पति हरमेश किरना पर अँधेरी सी चढ़ी जवानी देख आँख
मैली कर बैठा। उसके अंदर का शैतान कुम्भ करन की नींद से जाग पड़ा। हरमेश
ने अपने दिल -दिमाग से बुना जाल किरना पर फेंकना शुरू कर दिया। किरना भी
अब पहले वाली किरना नहीं थी। अब उसके दिमाग में पैसे की लालसा बढ़ती ही जा
रही थी। वह दिन पर दिन, बेगैरत, बेशर्म होती जा रही थी। किरना अपना प्रभाव
डालने के लिए पहले एक - दो दिन तो हरमेश को ऊंगलियों पर नचाती रही पर फिर
उससे खुली बाहें लेकर आ मिली। किरना को पाकर हरमेश को अपना आप हवा में
उड़ता नज़र आया। जब से किरना हीरों रहकर शांतपुर आई , हरमेश के फेरे शांतपुर
बढ़ने लगे। वह एक - दो दिनों बाद कोई न कोई बहाना लगाकर चक्कर मार जाता।
चोर को चोर और आशिक को आशिक दूर से पहचान लेता है। तेजी को भी बात समझते
देर न लगी। पहले किरना दस - पंद्रह दिनों पर किसी न किसी बहाने तेजी के
घर या सुखपाल के घर आ जाती थी पर अब संदेशा देने के बावजूद भी किरना का न
आना और दिन प्रतिदिन हरमेश के लगते चक्कर किसी अनहोनी का सूचक थे। तेजी को
अपनी बेड़ी समुन्दर में डूबती नज़र आई। वह कुछ न कर सका। बस बेबस हुआ
आँखों के सामने बदलते हालात देखता रहा। कभी वह अपने आपको टटोलता कि 'कहाँ
चूक रह गई जिसके कारण किरना ने उससे मुँह मोड़ लिया।' वह चारो ओर सोच के घोड़े
दौड़ाता पर कुछ हासिल न होता। 'कभी वह सोचता कि भगवान जैसे दरवेश लड़के से
उसका प्यार छीनकर मैंने खुद पाप खट लिया है। अब वही मुझे भुगतना पड़ रहा
है'. कभी वह अपने आप ही मन में आये इन विचारों को रद्द कर देता। ' इस तरह
भला कौन किसी का प्यार छीन सकता है ? अगर इस तरह प्यार छिना जा सकता तो अब
तक सारे पैसे वाले प्यार की कोठियाँ न भर लेते। असल में किरना ने किसी से प्यार
किया ही नहीं वह तो अपना मूल्य डालती रही , जो पहले मेरे पास आई। फिर उससे
बड़े व्यपारी बोली डाल कर ले गए।' वह सबकुछ समझ जाता है।
अब कुछ दिनों से तेजी को कुछ नहीं सूझ रहा था कि वह क्या करे।
उसकी हालत पल -पल पतली होती जा रही थी। उसके अंदर अपने आप के प्रति पछतावा
और किसी के लिए गुस्से के सैलाब का संघर्ष चल रहा था। वह मुर्दा लाश की
तरह आँगन में इधर -उधर चक्कर काटने लगा , फिर वह गिरता -पड़ता चौबारे जा
चढ़ा। वह बेजान सा चारपाई पर जा गिरा। छत की ओर निगाह टिकाये वह कितनी ही
देर एकटक देखता बेसुध पड़ा रहा। उसकी सोच भटके राही की तरह इधर -उधर भटकती
रही। फिर उसे किरना की सहेली की याद आई। 'क्यों न सुखपाल के जरिये किरना
को बुलाकर उसके साथ एक बार बात की जाये ' तेजी बीमारों की तरह बिस्तर से
उठा और सुखपाल के घर की ओर चल पड़ा। सुखपाल बाहर ही गोबर से उपले बना रही
थी। वह तेजी को आता देख होठों में मुस्कुरा पड़ी। तेजी ने ढीले से मुँह से
सुखपाल के पास जाकर कहा , '' बहन एक काम करोगी ?''
'' क्या ?'' सुखपाल ने पूछा।
'' किसी भी तरह से एक बार किरना से मिला दे। '' तेजी दिल से गिड़गिड़ाया। उसका दिल अभी भी किरना की चाहत में गोते खा रहा था।
'' पहले कितने संदेश भेज दिए आती तो है नहीं। ''
'' मेरे बारे में मत बताना उसे , तू किसी और बहाने से बुला ला। मैंने तो चार बातें ही करनी हैं उससे। ''
'' अच्छा , जिस दिन घर में कोई नहीं होगा बुला लाऊंगी उसे, तुम आ जाना। ''
'' फिर मुझे कैसे पता चलेगा ?'' तेजी को आस की किरण के साथ ही इक मुश्किल दिखाई दे गई।
'' मैं तुम्हारे घर के सामने से जाऊँगी और जाते हुए घर होकर जाऊँगी। ''
''
अच्छा। '' तेजी का मुरझाया चेहरा खिल गया। वह बाड़े से सुखपाल के घर की ओर
चल पड़े। गेट के पास जाकर सतगुरु को देखते ही तेजी ने आवाज़ मारी , '' वीर
घर में ही है ?''
''हाँ आजा - आजा। '' सतगुरु भैंसों को पानी पिला रहा था। तेजी
ने उससे हाथ मिलाया और फिर बातें करने लगे। आधे घंटे बाद तेजी वहाँ से घर
की ओर चल पड़ा।
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सुखपाल तीन -चार दिन इन्तजार करती रही पर उसे कभी अकेले रहने का
मौक़ा न मिला । छठे दिन सुखपाल का बापू और उसका भाई पांच तारीख की मंडी
में सुनाम भैंस बेचने चले गए। उसकी माँ ने चिमिया से कपड़ा लेकर आना था।
वह चाहती थी कि सुखपाल घर में अकेली रह जायेगी इसलिए वह भी साथ चले पर
सुखपाल ने कह दिया कि वह किरना को यहाँ बुला लेगी और फिर दोनों इकट्ठी
तकिये पर कढ़ाई कर लेंगी। अपनी माँ के जाने के बाद सुखपाल बार को बाहर से
कुण्डी लगाकर किरना को बुलाने चल पड़ी। जाती हुई वह तेजी के घर होती हुई
गई। फिर वहाँ से सीधी खेतों के बीच से होती हुई किरना के घर की ओर चल पड़ी।
सोने रंग की फसल अपनी जवानी में झूल रही थी। कहीं -कहीं
कम्बाइन की काटी फसल के करचे ताज़ी कतरी दाढ़ी की तरह खड़े थे। कहीं -कहीं एक
-आध भैंस चर रही थी। ढलती ओर ऊंची टिब्बी के ऊपर हरी -कचार कपास में खिले
सफ़ेद फूल , हरे सूट में की चाँदी रंगी कढ़ाई सी नज़र आ रही थी। पूर्व में
उगे सूरज की तीखी किरणों ने सुनहरी फूलों को और चमका दिया था। सुखपाल
किरना को लेकर परत आई। दोनों लड़कियां जवानी की लोर में झूलती , जवान फसल
में महक बिखेरती चली आ रही थीं। कभी -कभी किरना का धारीदार दुपट्टा हवा
में हलराता धान की फसल की गुंबदों पर गुदगुदी निकाल जाता। तेजी कोठे पर
खड़ा इन्हें आते देख रहा था। उसका शरीर किरना की बेवफाई के कारण गुस्से से
तप रहा था। वह किरना की बेवफाई पर लानतें डाल अपना दिल हल्का करना चाहता
था। कभी -कभी वह अपने आप को दोष देने लगता कि वह क्यों नहीं समझ सका कि
किरना इतने शरीफ भगवान को छोड़ कर उसके साथ आ जुडी थी तो कभी उसे भी छोड़
सकती है। उससे वफ़ा की आस करना उसकी अपनी बेवकूफी थी। जब दोनों घर पहुँच
गईं तो तेजी कोठे से उतर कर उनके पीछे ही चल पड़ा। उसके जाते ही सुखपाल
रसोई में चाय बनाने चली गई और किरना आँगन में पड़ी चारपाई पर बांह के भार
आधी लेती हुई थी . तेजी को आते देख वह होठों में झूठ- मुठ का मुस्कुराई और
चारपाई पर ठीक होकर बैठ गई।
'' क्या हाल हैं तुम्हारे नए साथी के ?'' तेजी ने जाते ही सच्ची बात किरना के माथे पर दे मारी।
'' कौन सा साथी ?'' किरना ने सबकुछ जानते हुए भी अनजान बनते हुए पूछा ।
'' इतनी जल्दी उसे भी भूल गई ?''
'' इतनी जल्दी उसे भी भूल गई ?''
'' किसे ?''
'' जो नया बनाया है हीरों वाला .''
तेजी
के सही निशाना लगाने पर किरना का चेहरा उतर गया। उसकी खुली आँखें शर्म से
झुक गईं। फिर उसने अपने आपको सम्भालते हुए कहा , '' तुझे किसने वहम डाल
दिया ?''
'' वहम ?'' पहले चौथे -पांचवें दिन अपने आप आ जाती थी मिलने ,
अब संदेशा देने के बावजूद नहीं आती। अगर घर जाता हूँ तो सामने नहीं आती।
और फिर तेरे उस नए यार के हर दिन लगते चक्कर , क्या यह वहम है सबकुछ ?''
तेजी का कड़कड़ाता सच सुनकर किरना हड़बड़ा गई।
''म .... मैं .... मैंने क्या किया ?'' किरना को कोई जवाब न सुझा। उसके झूठे तीर चलने से जवाब दे गए।
'' अभी मुझे पूछ रही है कि मैंने क्या किया। यही अपने आप को पूछ भई मैंने क्या किया ?'' तेजी की आवाज़ ऊंची हो गई।
'' क्यों सौतनों की तरह लड़ रहे हो। ये लो चाय पी लो पहले। ''
सुखपाल ने चाय का जग और तीन गिलास चारपाई के सामने रख दिए।
'' सुखपाल इसे देख अभी कहती है मैंने किया क्या है ?''
तेजी ने बच्चों की तरह किरना की शिकायत सुखपाल से की।
किरना तू चाहे गुस्सा कर चाहे गिला कर , तुम्हारा ये काम बिलकुल गलत है । '' सुखपाल सच के पलड़े में आ चढी ।
'' सुखपाल ये तो मेरे साथ धक्का हुआ है.'' किरना अभी भी सच्चाई से भाग रही थी।
धक्का भी तब होता , अगर आगे से कोई करवाना चाहता हो। '' तेजी ने किरना की बात बीच में ही रोक कर कहा।
'' तो तुम कौन सा किसी एक के साथ इश्क़ लड़ाते हो .'' किरना अपने असली रूप में आना शुरू हो गई थी .
'' कहला दे किसी से अगर तेरी बात सच हुई तो गला कटवा दूँगा । '' तेजी का गुस्सा दिमाग में जा चढ़ा।
'' कहला दे किसी से अगर तेरी बात सच हुई तो गला कटवा दूँगा । '' तेजी का गुस्सा दिमाग में जा चढ़ा।
'' मुझसे नहीं तुम्हारे साथ जवाब देही होती , तुम कर लेना जो करना है। '' किरना ने अपना नकली नकाब अब उतार दिया था।
'' मैंने कहा चल क्या गंदे के साथ गंदा होना , वर्ना कर तो मैं बहुत कुछ सकता हूँ। ''
'' तेजी इधर आ ! बैठ कर बात कर शांति से। '' सुखपाल ने तेजी को आँखों से घूरते हुए चारपाई पर बैठने का इशारा किया।
'' नहीं सुखपाल मैं जाता हूँ। '' कहकर तेजी चल पड़ा।
'' ओये बात तो सुन …।'' सुखपाल के बोल रस्ते में ही गुम हो गए। तेजी गेट से बाहर आ गया।
तेजी
ने चाहे अपने दिल की भड़ास निकाल ली थी पर उसका अंदर का दुःख अभी भी गीली
लकड़ी सा सुलग रहा था। उसके अंदर हौके की गाँठ सी बन गई थी। उसका शरीर
गुस्से और पछतावे के दर्द से सुन्न होता जा रहा था। वह बीमारों की तरह
गिरता -पड़ता अपने घर के पास आ गया। उसके कदम रुकते -रुकते फिर चल पड़े और
वह सड़क को जाती पही पर आ चढ़ा । आज वह पीड़ाओं से लदा दिल भगवान के आगे खोलना
चाहता था। उसे लगा उसके बिना उसका दर्द कोई नहीं समझ सकता। वह पही का
पहला मोड़ मुड़ गया। पही की वट्ट पर खड़े बेरी के पेड़ के छोटे -छोटे चार -पांच दरख्त आग की ताप
से झुलस गए थे.. जब कोई हवा का झोंका बेरियों के इन सूखे पत्तों से छेड़
-खानी करता गुज़र जाता तो , वह किसी डरावने संगीन में चीखने लगते। तेजी सफेदों की लम्बी
कतार के सामने आ गया। उसने आसमान छूते सफेदों की ओर निगाह मारी। ' शायद
किरना का कद भी अब इन सफेदों की तरह ऊंचा हो गया है , जहां मैं कोशिश करने
पर भी नहीं पहुँच सकता। ' उसने नज़दीक के पानी की खाल में मेंढक की कुलराहट भरी टर्र
-टर्र सुनी। उसने दौड़ कर पानी की खाल में देखा। सांप ने मेंढक को गले से
पकड़ा हुआ था। तेजी ने कोई चीज उठाकर मारने के लिए इधर -उधर देखा। इतने
में साँप मेंढक को लेकर गायब हो चुका था। 'छोटे को अक्सर बड़ा जानवर मारता
है। ऐसा क्यों है ?' उसे कोई उत्तर न सुझा। वह पही से सड़क पर आ गया। सड़क
पर जाकर उसके कदम रुक गए। 'मैं जाकर भगवान को क्या कहूंगा ?ये कि किरना
मुझे छोड़ गई ! नहीं … नहीं !उसके पास इसका क्या इलाज है। और फिर मैं भी
तो उसका दोषी हूँ। उसके भर आये ज़ख्म फिर कुरेदूं ? नहीं .... नहीं मुझे
उसके पास नहीं जाना चाहिए। ' वह वहीँ से वापस हो गया।
धीरे
-धीरे किरना और हरमेश के संबंधों की घर में भनक लगने लगी। ख़ास कर उसके
दोनों भाइयों को। वह पिंड के लोगों या ऐरे -गैरे से सुनी बातों की औसत
लगाने लगे थे। अब तो मेवी ने भी कितनी बार किरना को खुद हरमेश से बातें
करते देखा था। उसने क्रोधित आँखों से कई बार किरना और हरमेश को घूरा भी
था। किरना देखकर नज़रें नीची कर देती पर हरमेश पर इन गीदड़ भभकियों का कोई
असर न हुआ। मेवी अंदर ही अंदर विष घोल कर रह जाता। वह सोच रहा था कि अगर
घर में शोर शराबा किया तो अंतकर लोगों के कानों तक ये बात पहुँच ही जायेगी।
फिर लोगों को मुंह दिखाने लायक भी न रहेंगे। इसलिए उसका तूफ़ान बनकर उठा
गुस्सा , होंठों तक आ कर ख़ुदकुशी कर लेता। पर जब बात हद से गुजर गई तब उसके
लिए बर्दाश्त करना कठिन हो गया। एक दिन मेवी ने हरमेश के परत जाने के बाद
गुस्से में तपे हुए अपनी माँ से कह दिया , '' बेबे इसे कह दे यहाँ न आया
करे। ''
'' किसे ?'' माँ उसकी बात समझी नहीं थी।
'' अपने जमाई को बहन चोद को और किसे। '' मेवी का गुस्सा आँखों में सुलग उठा।
''
क्यों इसने क्या तेरी बालियाँ चुरा लीं ? घर के जवाकों की तरह है बेचारा।
आकर चुपचाप चला जाता है , भला तेरे क्या पैर लिताड़ता है वो ?'' गेजो जमाई के लिए
ऐसे शब्द सुन गुस्सा हो गई।
'' पैर लिताड़ने की अभी आपको क्या सूझ नहीं ? सारे पिंड में बहन चो ....
ढोल बज गया है। '' मेवी का गुस्सा जेठ - अषाढ़ की शिखर दोपहरी की तरह तप उठा।' लोगों का क्या है लोग तो सौ -सौ बातें करते हैं। '' गेजो को चाहे कुछ -कुछ बात समझ आ गई पर उसने बात को टालना चाहा। उसे डर था कि कहीं बेटा और जमाई आपस में मार-पीट न कर बैठें।
पास बैठे किरना के बाप और चाचा को भी यह बात चिंता में डाल गई।
उनकी सोचने की शक्ति का चोर दरवाजा भी खुल गया , जिसे उनहोंने कभी खोल कर
नहीं देखा था। मेवी की कही बात उसके पिता के दिमाग में सुई की तरह आ
चुभी। चोट लगने पर दिमाग हवा के झोंखे की तरह हरकत में आ गया। उसने सोचा
,'' जमाई पहले कभी -कभार पांच -छे महीनों में चक्कर मारता था पर अब दूसरे
-तीसरे दिन ही .... कोई बात तो है। '' उसकी आँखों के आगे जमाई और किरना का
हँस -हँस कर धीरे -धीरे बातें करने का दृश्य आ घुमा , जिसे पहले उसने
गहराई से न सोचने के कारण आँखों से ओझल कर रखा था। उसे जमाई अपने अपनी टाँगे खींचता नज़र आया। उसे लगा जैसे उसकी सफ़ेद पगड़ी मिटटी में मलिया मेट हो गई
हो। इक गुस्से की चिंगारी उसके बूढ़े शरीर में सुलग उठी। उसका दिल किया
किरना को गले से पकड़कर मरोड़ दे पर कोठे जितनी बड़ी हुई लड़की पर हाथ कैसे
उठाये ? '' अब क्या करूँ ?'' उसने अपने आपको पूछा. फिर वह कितनी ही देर
सोचों में डूबा रहा।
ज्यों - ज्यों दिन बीतते जा रहे थे , रुलदू सोचों के जाल में और गहरा
धँसता जा रहा था। उसे कुछ सुझाई नहीं दे रहा था कि वह अब क्या करे। किसके
आगे अपने दुःख का पुलिंदा खोले ? इक दिन हरनाम तोलावाल से पिंड को चला आ
रहा था। जब वह रुलदू के घर के पास आया तो रुलदू ने आवाज़ मार ली , '' आ भई
हरनाम सिंह , आजा दो मिनट दम लेकर चले जाना। ''
'' बस दम अब क्या लेना कुछ ही कदमों की दूरी रह गई अब तो। '' हरनाम कहता हुआ रुलदू की ओर बढ़ गया।
''
चिमीआ से कहते हैं अपने पिंड की बस अभी घंटा भर नहीं आनी । मैंने कहा चलो
तोलावाल तक तो फिर बस में चढ़ कर चलते हैं। आगे का दो मिनट का रास्ता है
पैदल चला जाऊँगा। .''
'' हाँ तोलावाल से ज्यादा दूर नहीं अपना पिंड। '' रुलदू ने हामी भरी।
कुछ
देर दोनों चुप बैठे रहे या छोटी - मोटी बातें करते रहे पर रुलदू ने जिस
मकसद के लिए हरनाम को आवाज़ दी थी वह अभी तक कह नहीं पाया था। आखिर उसने
अपने दिमाग की उलझी गाँठ खोल ही दी , '' हरनाम सिंह , कोई अपनी गुड्डी के
विवाव के लिए कोई रिश्ता बता। ''
'' कैसा लड़का चाहिए ?'' हरनाम ने अपनी बाज़ सी आँखें रुलदू के चेहरे पर टिका कर उसका भीतर पढ़ना चाहा ।
''
माता -पिता तो चाहते ही हैं कि उसके बेटा -बेटी को अच्छा घर -बार मिले पर
अगला भी तो उतना ही मुँह खोलेगा न। '' रुलदू ने ये बात कहकर अपनी आर्थिक
हालत की ओर हरनाम की नज़र दौड़ा दी।
'' वह तो अब रुलदू तुझे पता ही है आजकल क्या हो रहा है। फिर भी मैं कोशिश करूंगा कोई ठीक -ठाक रिश्ता मिल जाये।
''
बस चार -पांच किले हों तो बहुत है। लेने देने की बात भई तुझे पता ही है
जितनी पहुँच है देंगे ही। '' रुलदू की सवालिया नज़रें हरनाम की कुतरी मूछों
पर जा टिकीं , जिसे वह बार -बार बट दे रहा था..
हरनाम कुछ देर सोचता इधर -उधर देखता रहा। फिर उसने अपने सर पर
रखी ढीली पगड़ी को दोनों हाथों से हिलाया , जैसे किसी बात को कहने के लिए
अपनी पगड़ी के नीचे खोपड़ी में पड़ी बात को ठीक कर रहा हो। फिर मूछों पर हाथ
फेरता हुआ बोला , '' रुलदू सिंह रिश्ता तो है एक अपनी निगाह में , मेरे
साले के साले के लड़के का , गंडुआ से। किले हैं चार। जमीन है भैंसे के सर
जैसी। अगर देखना है तो चले जायेंगे कभी। ''
'' मैं तो तैयार हूँ। तुम देख लो कब समय निकाल सकते हो ? '' कोई मीठी सी ख़ुशी रुलदू के बूढ़े शरीर को छेड़ गई।
''
कल तो हमने गेहूं बोना है . दो किले रह गए हैं , तुम परसों तैयार रहना।
'' कुछ सोचते हुए हरनाम फिर बोला , '' तुम ऐसे करना , मेरी तरफ आ जाना
,वहीँ से इकट्ठे चले जायेंगे। ''
'' ठीक है ऐसे ही कर लेंगे फिर। ''
'' अच्छा अब
चलता हूँ फिर। '' हरनाम जाने के लिए उठ खड़ा हुआ। इतने में गेजो चाय की
गड़वी और दो गिलास ले आई , '' अरे भाई , चाय पीकर जाना अब .''
'' अरे ! ये तकल्लुफ क्यों की। '' हरनाम ने दोबारा बैठते हुए कहा।
'' लो
भई तकल्लुफ कैसी , क्या पता आज कैसे आ गए। '' गेजो दोनों गिलासों में चाय
डालकर अंदर चली गई . हरनाम और रुलदू चाय पीने के बाद भी कितनी देर बातें
करते रहे। फिर परसों गंडुए जाने की बात पक्की कर हरनाम उठ खड़ा हुआ ।
रुलदू परसों से अपने मन के अंदर किसी
गहरी ख़ुशी के लड्डू फोड़ रहा था। उसे लग रहा था जैसे उसके सर से मनो का बोझ
बस उतरने ही वाला है। . वह नए बनने वाले रिश्तेदारों के घर को अपने मन में
कई बार चित्रित कर चुका था। लड़के की अनदेखी शक्ल भी उसकी आँखों के आगे भेष
बदल- बदल के आ रही थी । आज उसने गँडुआ जाने की पूरी तैयारी कर ली थी। कंधे
पर चारखाने वाला गमछा रखा और साईकिल के पैडल मार कर पिंड हरनाम के पास आ
गया। उसके जाने से पहले ही हरनाम तैयार होकर चुल्हे के पास बैठा हुआ था। उसकी
घरवाली ने पतीली में चाय चढ़ा रखी थी। दोनों ने घूंट -घूंट चाय पी और फिर
पिंड से ही लहरे वाली बस में चढ़ गए। ग्यारह बजते -बजते वे संगतपुर पहुँच
गए। वहाँ से साढ़े ग्यारह बजे मिन्नी बस गँडुआ की ओर जानी थी। बस आने तक वे
अड्डे पर बैठे बातें करते रहे। जब बस आई तो वे गंडुआ के लिए चढ़ गए।
गंडुआ बस स्टैड पर उतर कर वे पिंड की सड़क पर चल पड़े। पहली गली छोड़ कर
वे दूसरी गली मुड़ गए। आगे दाहिनी ओर दो -तीन घर छोड़ कर लकड़ी के तख्तों
वाले घर जा खड़े हुए। हरनाम ने रुलदू को इशारे से समझा दिया। फिर हरनाम ने
बाहर से ही आवाज़ मारी , '' धन्ना सिआँ ....घरे आँ ? ''
'' आजा भई हरनाम सिंह अंदर आ जा । '' आँगन में खटिये पर बैठा अधेड़
सा आदमी गमछा झाड़ता हुआ उनकी ओर चल पड़ा। तीनों ने आपस में हाथ मिलाये और
आँगन में बिछी चारपाई पर जा बैठे ।
'' वह तीन गिलास चाय के बना देना ज़रा । '' धन्ने ने वहीँ बैठे ने ही अपनी घरवाली को आवाज़ दी।
'' बनाती हूँ '' औरत ने स्वात (बड़ा कमरा )
से निकल कर हरनाम और उसके साथ आये अनजान व्यक्ति की ओर गहरी नज़रों से देखा
और फिर चाय बनाने चली गई। चाय बनाते हुए उसके दिमाग में कई दिन पहले हरनाम को कही बात याद आ गई , '' भाई हमारे लड़के का भी कोई उपचार कर । ' बात
याद आते ही उसके पक्के रंग में खुशी की लालिमा झलक पड़ी। वह कुछ पल के
लिए चाय बनाना छोड़ कर रसोई की खिड़की से लड़की के बाप को देखकर लड़की के रूप-रंग
का अंदाज़ा लगाने लगी। गोरा अछूता रंग , हलकी- हलकी झलकती लाली और आँखों में
कोई अनोखी सी चमक । फिर उसने बाप के बुढ़ापे पर लड़की की जवानी को तौला। उसकी
कल्पना में परियों जैसी लड़की आ बसी , जिसका रूप झेला नहीं जा रहा था। फिर
उसकी सोच ने पासा पलटा , 'कहीं यह लड़की का चाचा या ताऊ तो नहीं ? चलो जैसी
भी हो लड़के की रोटी पकती हो जाये बस। ' उसने सोचा ।
रुलदू ने बैठे -बैठे पूरे घर का गहरी नज़रों से निरिक्षण किया।
उनके पिछली ओर दो कमरे , जिनको बाहर की ओर से पलस्तर किया गया था ।
जिनमें से एक में भूसा डाला गया था और दूसरी अपने प्रयोग करने के लिए थी।
भूसे वाली स्वात के दरवाजे नहीं थे। उसके दाहिनी ओर रसोई थी , उसके आगे
बड़ा नीम का दरख़्त और आगे गली
से लगती इक बैठक , जिसकी अभी लिपाई करनी बाकी थी। उसके बायीं ओर भैंसों की
चरनी थी जिस पर दो भैसे और एक डेढ़ साल की जवान भैंस बँधी खड़ी थी . उसके
पीछे दो महीनों की एक कटरी बैठी थी । उसके आगे नलका और फिर फिरनी
(गाँव के चारो ओर की परिक्रमा का मार्ग ) के साथ लगता नहाने का स्थान
बनाया गया था जिसकी ओट का काम सफेद पर्दा कर
रहा था। रुलदू को हरनाम ने रस्ते में ही बता दिया था कि वे दो भाई ही हैं
उनके, लड़की कोई नहीं। छोटा भाई गाडी चलाता है और हर महीने दो हजार कमा लेता
है। रुलदू ने नज़रों ही नज़रों में घर को दो हिस्सों में बाँट कर देखा ,
उसका मन तिड़क गया पर किरना और जमाई के मिलन से होने वाले खतरे और किरना की
दिन पर दिन बढ़ती उम्र की चिंता मलहम बनकर उसके मन की दरार में भरने लगी .
बाकी की कसर हरनाम, धन्ने और उसकी पत्नी ने पूरी कर दी। उन्होंने मीठी
-मीठी बातें करके ' कुल्ली में लाल किला दिखला '
दिया। अब बस बाकी था तो लड़के को देखना। धन्ने ने मौका सम्भाला और तुरंत
साईकिल पर जाकर खेत से लड़के को बुला लाया। लड़के ने आकर सत श्री अकाल बुलाई
और चारपाई पर साथ ही बैठ गया। रुलदू ने गहरी नज़रों से लड़के का रंग रूप
और शरीर खंगाला। गठीला शरीर , चौड़ी छाती और रंग पक्का था पर लड़के के तीखे
और सुंदर नैन - नक्श बदसूरत कहने वाले की ओर आँखें तरेरते थे। . रुलदू को
लड़का पसंद आ गया। उसने इशारे से हरनाम को अपनी पसंद बता दी। फिर हरनाम
धन्ने और उसकी पत्नी को अंदर ले गया। वे काफी देर घुसुर -फुसर करते रहे।
लड़का और रुलदू बाहर बातें करते रहे।
फिर कुछ देर बाद हरनाम और रुलदू बस अड्डे पर खड़े थे। लड़का
उन्हें बस अड्डे तक चढ़ाने आया था। जब बस आई तो लड़के ने दोनों को दुबारा
'सत श्री अकाल' बुलाई और किसी अनोखी ख़ुशी से भरा हुआ घर परत आया ।
20
गेहूं की फसल अब घुटनों को छूने लगी थी। दूर
तक पसरी हरियाली यूँ लगती जैसे किसी ने धरती पर हरी चादर बिछा दी हो।
गेहूं की वट्टों के साथ निकाली गई सरसों की कतारों में अब फूल उतर आये थे।
पीले -पीले फूल हरियाली की चादर के ऊपर किसी सुंदर जट्टी
द्वारा चाव से निकाली गई कढ़ाई की तरह लग रहे थे। सरसों के फूलों ने सारी
कायनात भीनी -भीनी खुशबू से भर दी थी। हवा का कोई भटका झोंका , फूलों से
लदी सरसों से टकरा जाता तब खुशबूओं की अंजुली भर -भर हरी फसल पर बिखेर
जाती । खुशबू से भरी फसल अपना सर हिलाने लग पड़ती , हवा के रुक जाने पर पहले
की तरह शांत हो जाती , जैसे फिर खुश्बुओं के लदे झोंके के इन्तजार में सब कुछ
भूल कर अडिग खड़ी हो किसी मीत का इन्तजार करती प्रेमिका की तरह।
एक तो इस रूत में पंजाब की धरती में स्वर्ग उतरा होता है ।
दूसरा इस रुत में पंजाब के लोग खास करके गांव में रहने वाले खेती-बारी के
काम से मुक्त होते हैं। वे इस रुत का लाभ उठाते हुए तमाम खुशियों के काज विहार इस
रुत की झोली डाल देते हैं। पिंड में हर रोज़ एक -आध शादी या अखंड पाठ अक्सर
होते रहते हैं। रुलदू ने भी इस महीने को विवाह के लिए चुना था। फिर
गंडुआ वालों का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था कि वे जवाब दे देते। उनके
लिए तो ' बिल्ली के भाग्य से छीका टूटा ' वाली बात थी । उन्होंने झट हाँ कर
दी। . रुलदू ने महीने का विवाह निकलवाया था। लकड़ी का घर से देने वाला
समान पहले ही तैयार था , बाकी दो तीन दिन में शहर से लाने वाली वस्तु भी
ले ली गई। कड़ाही का समान दो -चार दिन रहते ले आया गया। हीरो वाली लड़की और
जमाई चार दिन पहले ही आ गए । लड़की ने विवाह तक यहाँ पक्के डेरे लगा लिए पर
जमाई का काम की वजह से एक पैर शांतपुर
और एक हीरों होता। असल में शांतपुर
वाले भी अब उसे ज्यादा मुँह नहीं लगाते थे पर लड़की को तो काम काज के लिए
बुलाना ही था। किरना के चेहरे पर अपने विवाह की ख़ुशी की प्रात के नीचे इक
उदासी भी छुपी हुई थी। उसे पता चल चूका था कि लड़के का रंग पक्का है , जो
किरना की सोच से बिलकुल उलट था। उसने तो दिल के कैनवास पर एक गोरे चिट्टे ,
शरबती आँखों वाले सुंदर लड़के का चेहरा बना रखा था जो भगवान , तेजी और
हीरों वाले हरमेश से कहीं सुंदर था पर अब क्या किया जा सकता था।
कड़ाही चढ़ने से एक दिन पहले लागी
आस -पास खेतों में रहने वालों के घरों में और पिंड में इनके साथ विवाह
शादी के समय बरताव रखने वाले घरों को सवेरे कढ़ाई चढ़ने पर बुला आया था ।
भगवान और तेजी के घर भी नाई कह आया पर सवेरे भगवान और तेजी कोई भी कढ़ाही पर
नहीं आया। भगवान का भाई और तेजी का बाप कढ़ाही पर आये थे। भगवान दूध
पकड़ाने आया था और बिना चाय पिए लौट आया। किरना को सुखपाल से पता चला कि
तेजी के विवाह का दिन भी तय हो गया है। आज से बीसवें दिन कढ़ाही है।
सुखपाल ने किरना के पास तेजी के साथ विवाही जाने वाली लड़की के हुस्न की तारीफ भी की ,
जिसे सुखपाल ने तेजी की सगुन वाली एलबम में देखा था।
अगले दिन बरात आई तो रुलदू के आँगन से एक गुलाब का फूल तोड़ कर
गंडुआ की ओर चल पड़ी थी । जगतार छाती फुलाए कार में किरना के साथ जुड़ा
बैठा था। उसने जैसे पहाड़
की चोटि फतेह कर ली थी । हौसला भी क्यों न हो , कहाँ तो उसकी माँ
हर आये गए को कहती -फिरती थी कि कोई कैसा भी अच्छा -बुरा रिश्ता ला
दे उसके
बेटे के लिए ताकि उसके बेटे कि भी रोटी पकती हो जाये। ऐसा कोई न था जिसे
वह रिश्ते के बारे न कहती हो। इस बात से जगतार को भी फ़िक्र लगी रहती कि
कहीं धूल ढोते ही न ज़िन्दगी खत्म हो जाए पर आज वह परियों के देश से आई
इक परी के साथ
लगा बैठा था। जो अब उसकी धर्म पत्नी थी। वह तिरछी आँखों से किरना के
गुलाबी चेहरे की ओर देखता तथा छाती को और चौड़ा कर बैठ जाता। उसे महसूस
होता जैसे वह सारे पिंड से ऊंचा उठ गया हो। जगतार ने कार में बैठे -बैठे
ने
अपने आस - पड़ोस की सभी औरतों की तुलना किरना से करके देखी पर कोई भी
ऐसी नज़र नहीं आई जो किरना की सुंदरता के बराबर खड़ी हो सके। फिर उसने मन
ही मन
कहा , '' आस - पडोस क्या सारे पिंड में कोई ऐसी न होगी। उसने तसल्ली करने
के लिए किरना की ओर टेढ़ी आँखों से देखा फिर आँखों के आगे आई पिंड की सभी औरतों को '' नहीं ऐसी तो कोई नहीं होगी। '' उसने मन ही मन बोलकर तसल्ली कर
ली।
गाडी जगतार के दरवाजे के आगे जा रुकी। कार के पीछे आती धूल आगे
बढ़ गई , जैसे वह किरना की सुंदरता पर तरस खा गई हो। ड्राइवर कार से निकल
कर दुल्हन के दरवाजे के पास जा खड़ा हुआ।
'' बता भाई क्या
बिहार लेगा ? जगतार की माँ लाल फुलकारी लिए लड़कियों को चीरती गाडी के दरवाजे
के पास आ खड़ी हुई। उसके पक्के रंग से खुशी फूट -फूट पड़ रही थी।
'' पांच सौ। '' ड्राइवर एक ही वाक्य बोलकर चुप हो गया। उसने अपनी पीठ कार के दरवाजे से सटा ली।
'' भई इतना भी न चढ़ व्यवहार वाली बात कर। '' बीच से एक बुजुर्ग महिला सर की चुन्नी ठीक करते हुए बोली
'' ना '' ड्राइवर ने सर इनकार में हिला दिया।
'' भई जल्दी निपटाओ बात। '' पास खड़ी इक दूसरी महिला बोली।
'' अच्छा बेबे तीन सौ निकाल फिर। '' ड्राइवर पांच से तीन पर आ गया।
'' इधर कर मुए हाथ , ये ले पकड़। '' सफ़ेद चुन्नी वाली ने हरनामी से सौ का नोट पकड़ ड्राइवर की हथेली पर धर दिया।
'' आप बेबे बहू भी देखो कैसी है , सौ देती अच्छी लगती हो ?'' ड्राइवर ने एक और दाव खेला।
'' ले अच्छा, ये ले
ले भाई। '' सफ़ेद चुन्नी वाली ने पचास का नोट और दो जोड़े लड्डुओं के ड्राइवर
को और पकड़ा दिए। उतावली महिलाओं ने ड्राइवर को 'ना -ना ' करते हुए भी
दरवाजे से परे धकेल दिया और बहू को कार से नीचे उतार लिया . औरतों ने गीत छेड़
दिया , …
पाणी वार नी बन्ने दीये माये …
बन्ना बन्नी बाहर खड़े
बन्ना बन्नी बाहर खड़े
पाणी ....
हरनामी
ने दोनों को बराबर खड़े करके पानी वारा और फिर अंदर ले गए। जब व्यवहार करके
आस -पड़ोस की औरतों ने बहू के सर से घूँघट उतारा सभी एक साथ वाह -वाह कर उठीं ,' बे जगतार तू तो कहीं से चाँद ही तोड़ लाया है '' पड़ोस वाली भाभी ने किरना
का मुंह देख जगतार को शाबाशी दी। जो भी किरना का चेहरा देखता तारीफ किये बिना न
रहता। किरना की सुंदरता की चर्चा आज सारे पिंड में हो रही थी।
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कुछ
दिन तो किरना का अच्छा दिल लगा रहा। गली , मुह्ल्ले की लड़कियां शाम सवेरे
किरना के पास आ जातीं। जगतार के मामे की लड़की , बहू का दिल लगाने शादी
में आई थी वो अभी तक यहीं थी। वे दोनों इकट्ठी काम करतीं , इकट्ठी बाहर
जातीं तथा एक दो लड़कियां उनके साथ और मिल जातीं पर धीरे -धीरे गली ,
मुहल्ले की लड़कियां भी आनी बंद हो गईं और जगतार के मामे की लड़की भी अपने
पिंड चली गई। अब सारा काम किरना को अकेले ही करना पड़ता और अकेले ही वह
बाहर अंदर आती जाती। बस कभी -कभार उसकी सास उसके साथ आती जाती। जब किरना
बाहर जाती तो पिंड के लड़के आँखें फाड़ -फाड़ उसे देखते। किरना की सुंदरता
उन्हें उसकी ओर देखने को मज़बूर करती। ऐसा कौन था जिसके किरना को देख दिल में टीस न
उठती हो।
जगतार
के सगे संबंधियों के लड़के धरमे पर तो किरना ने कुछ अलग ही असर डाल दिया
था। वह किरना के बाहर जाते वक़्त हर रोज़ अपने दरवाजे पर खड़ा होता। किरना
चाहे नागा डाल देती पर उसने अभी तक अपनी रीत कायम रखी थी। पहले -पहले तो
किरण बिना उस ओर देखे नज़रें नीची किये पार हो जाती पर अब वह धरमे की भक्ति
के आगे झुकते हुए आखें चार करने लग पड़ी थी। असल में किरना को जो कुछ जगतार से नहीं
मिला था ,वह यहाँ से पूरा हो सकता था। मायके में जो कुछ उसने सोचा था कि
उसका पति गोरा , सुंदर, गबरू जवान हो पर उसके अरमानों को जगतार को देख के जो
धूल जम गई थी वह अब धरमे को देख साफ होती दिख रही थी , ' चलो पति नहीं तो
कोई उसका भाई ही सही। '
दिल तो किरना का शादी वाले दिन ही धरमे को देख ललचा गया था , जब वह किरना का हाथ पकड़ गिद्दे में नाचा था। एक तरफ सुंदर -गठीला लड़का , छः फुट कद और शरबती आँखें और दूसरी ओर हुस्न की मल्लिका , जोड़ी खूब जँची थी। धरमे के हाथ की छुअन महसूस करते ही किरना के भीतर कहीं हूक उठी थी , ' काश जगतार की जगह यह मेरा साथी होता। ' पर अब क्या हो सकता था। चाहे किरना का दिल धरमे के लिए कितना ही बेबस क्यों न हो गया हो , पर वह चाहती थी कि पहल धरमा करे ताकि उसकी लात ऊपर रहे और वह शील धर्मे पर काठी डालकर जैसे चाहे दौड़ा सके। यही सोचती वह अपने मन को काबू कर धरमे के पास से नीची नज़रों से गुजरती रही , पर अब जब से धरमे के साथ उसकी आँखें चार हुई थीं वह कितनी -कितनी देर धरमे पर नज़रें गड़ाए रखती।
दिल तो किरना का शादी वाले दिन ही धरमे को देख ललचा गया था , जब वह किरना का हाथ पकड़ गिद्दे में नाचा था। एक तरफ सुंदर -गठीला लड़का , छः फुट कद और शरबती आँखें और दूसरी ओर हुस्न की मल्लिका , जोड़ी खूब जँची थी। धरमे के हाथ की छुअन महसूस करते ही किरना के भीतर कहीं हूक उठी थी , ' काश जगतार की जगह यह मेरा साथी होता। ' पर अब क्या हो सकता था। चाहे किरना का दिल धरमे के लिए कितना ही बेबस क्यों न हो गया हो , पर वह चाहती थी कि पहल धरमा करे ताकि उसकी लात ऊपर रहे और वह शील धर्मे पर काठी डालकर जैसे चाहे दौड़ा सके। यही सोचती वह अपने मन को काबू कर धरमे के पास से नीची नज़रों से गुजरती रही , पर अब जब से धरमे के साथ उसकी आँखें चार हुई थीं वह कितनी -कितनी देर धरमे पर नज़रें गड़ाए रखती।
धरमे का इस गली में पहला घर ही था। धरमे के दादे के पास चालीस
किले जमीन थी, उसके एक ही लड़का हुआ । .इत्तफाक से आगे धरमे के पिता के भी एक ही लड़का धरमा हुआ , इस लिए
इनकी जमीन का कहीं बंटवारा न हुआ और अब धरमा चालीस किले जमीन का अकेले
मालिक था। धरमे ने खुद कभी तिनका भी उठाकर नहीं देखा था पर सांझियों , बंधुआ मजदूरों को जरुरत अनुसार सामान लाने से वह कभी पीछे न हटा था।
धरमा आज सवेरे साढ़े चार बजे से ही चद्दर ओढ़े अपने द्वार के
सामने पड़ी ईंटों पर बैठा था। वह जनता था कि किरना का आने का समय पांच साढ़े
पांच का है। पर आज उसे पता नहीं कौन सी खींच आधा घंटा पहले ही बाहर ले आई
थी। वह जगतार के घर की ओर एकटक निगाह गाड़े देखे जा रहा था। जब निगाह फटती तो वह
अपने ठन्डे हाथों से आँखें मलता , इधर -उधर देखता फिर उधर ही निगाह टिका
लेता। पर अभी तक उसे कोई परछाई दिखाई नहीं दी थी। उसके मन में आया कि
क्यों न वह जगतार के घर तक हो आये। धरमे ने खड़े होकर चद्दर को अच्छी तरह
लपेट लिया। वह खड़का होने के डर से हौले हौले कदम बढता जगतार के घर से थोडा
इधर ही रुक गया। सामने अँधेरे में दो आँखें चमकीं। धरमे की दिल की धड़क
धक् -धक् करने लगी। गर्म शरीर को ठंडी कंपकंपी चढ़ गई .होंठों पे सिसकारी आ गई । फिर वह परछाई हिली , धरमा एक कदम पीछे हटा, दूसरा कदम पीछे हटने से पहले ही धर्मे के होंठ मुस्कुरा पड़े । सामने जुगाली करता जवान भैंसा दीवार की छाया के नीचे से
निकलकर पीछे की ओर चल पड़ा। '' वाह ओये भगता , आप सारे पिंड की भैंसे संभाली फिरता है यदि हम किसी एक के लिए आये तो आँखें फाड़ -फाड़ डराता है । '' धरमे ने हलके कदमों
से दरवाजे से सट कर दरारों से अंदर झाँका , अंदर कोई हिल-जुल नहीं थी।
अँधेरे में पसरा आँगन शांत पड़ा था। सामने की स्वात में
जीरो के बल्ब की मद्धम रौशनी दरारों से बाहर आने की असफल कोशिश कर रही थी
पर अँधेरे के अनदिखे हाथ उसका दरारों में ही गला दबोच लेते।
धरमा उदास मन से वापस परत आया। उसने अपने घर के दरवाजे से टेक
लगा ली। खड़े -खड़े घड़ी की ओर देखा , चमकती सुइयों ने पांच बजा दिए थे।
गुरूद्वारे से किसी सिक्ख के पढ़ने की आवाज़ लगातार गूंज रही थी। वह उसी तरह
दरवाजे से टेक लगाये खड़ा रहा। दस मिनट और बीत गए अब सामने से कोई काली
परछाई गली में लगातार धरमे की ओर बढ़ रही थी . पास आने पर यह परछाई किसी औरत
के अंगों में ढल गई . और नज़दीक आने पर यह किरना के नक्शों में घुल गई ।
धरमे ने धड़कते दिल और कांपते हाथों से किरना की चूड़ियों वाली बांह पकड़ ली।
चूड़ियों की छन -छन से किरना की उभरी छाती को कंपकंपी चढ़ गई।
'' और कितना तड़पाओगी ?''धरमे के तपते , होंठों से शब्द फूटे।
घड़ी की छोटी सुई ने पल -पल करके बड़ी मुश्किल से समय की राह को काटा। घड़ी ने दस बजा दिए। वह धड़कते ख़ुशी भरे दिल से कुण्डी खोल गली में आ गई। सामने धरमे को देखकर पतले होंठ ख़ुशी में मुस्कुरा पड़े। दोनों ने गली में ही एक दूसरे हो बाँहों में कस लिया। दोनों दिलों की धड़कन बराबर बढ़ रही थी। धरमा किरना का हाथ पकड़ चलने लगा। गली में सर्दी की मार से दुबके हुए कुत्ते दीवारों संग लगे सोये हुए थे। वे पदचाप सुन मुंह ऊपर उठाकर देखने लगे पर ठण्ड की मार से उनका भौंकने का दिल न किया और वे फिर ' हमें क्या लेना ' सोच टांगों में मुँह दिए सो गए। अँधेरी रात होने के कारण चाँद ने आज मुँह नहीं दिखाया था। सिर्फ तारों की मद्धिम रौशनी में पास खड़ा आदमी पहचाना जा सकता था। धरमे ने बैठक के पास जाकर धीरे से बैठक का द्वार खोला। टयूब की दूधिया रौशनी में बैठक दुल्हन की तरह सजी हुई थी। उसने बैठक के द्वार पर खड़े होकर दाहिने बाँये देखा फिर किरना को अंदर ले जाकर दरवाजा बंद कर लिया। आसमान में खिले तारे मुस्कुरा पड़े। अँधेरे ने सबकुछ अपने विशाल आलिंगन में छुपा लिया।
जगतार को दो दिन हो गए थे बारी पर जाते हुए। आज उसने अपने खेत पहले दिन काटने जाना था। कोने- किनारे में पड़ी पुरानी दरांतियों को ढूंढ कर दांत बनवाकर ठेले पर रखवा दिया गया। जरुरत अनुसार रस्सियाँ रख ली गईं। सारा परिवार किसी विवाह की तैयारी सा इधर -उधर भागा फिर रहा था। किरना चूल्हे के सामने बैठी ख़ुशी -ख़ुशी खेत में ले जाने के लिए रोटी का इंतजाम कर रही थी पर जगतार का उतरा चेहरा बता रहा था कि उसका शरीर आज स्वस्थ नहीं। हाड -हाड चसक रहा था। सर में भी हल्का- हल्का दर्द था। उसका दिल कर रहा था कि वह आज घर पर विडी वालों ? उनके साथ तो जाना ही पड़ेगा,चलो एक चम्मच आज ज्यादा सही ' यह सोचते हुए वह खेत की ओर चल पड़ा। आज काटने वाले पाँच जन हो गये। तीन विड़ी वाले जगतार और उसका बाप। जगतार का छोटा भाई अभी गाडी से नहीं आया था . जगतार की माँ सीतो ने चारा काट कर लाना था। किरना का जिम्मा रोटी बनाने और घर -पशु सँभालने का था।
जगतार लोगों ने खेत जाकर फसल काटनी शुरू कर दी। पहले पहर ओस गिरी होने के कारण दरांतियाँ इतनी तेज नहीं चल पा रही थीं ज्यों -ज्यों सूरज चढ़ता गया ओस सूखती गई , दरांतियाँ तेज होती गईं , शरीर गर्म होते गए। गेहूं ढेरियों में बदलता गया । किरना रोटी देकर चली गई। माँ चारा काटने लगी। ग्यारह बजे की चाय तक जगतार को लगा था शरीर अब ठीक है , सर का दर्द भी हट चूका था। दुखते हाड गर्मा गए थे। ज्यों -ज्यों दोपहर चढ़ती गई , बुखार की गर्मी से उसका अंदर तपने लगा , शरीर निढाल हो गया। वह बड़ी मुश्किल से दोपहर तक फसल काटता रहा पर जब शरीर बिलकुल जवाब दे गया , वह कोठे के पास पेड़ के नीचे गमछा बिछा कर लेट गया। उसकी माँ चारा काटती उसके पास आ गई।
'' क्या हो गया पुत्त ? '' माँ ने पास आकर पूछा।
'' माँ ताप चढ़ गया। ''
'' फिर यहाँ क्यों पड़ गया पुत्तर ? जा घर जाकर दवा -दारु कर । ''
'' पानी देना '' जगतार उठकर बैठ गया। सीतो ने घड़े में से पानी का गिलास भर कर दिया। जगतार पानी पीकर शराबियों की तरह लड़खड़ाता घर की ओर चल पड़ा। तपता हुआ सूरज सर पर आ गया था। गर्म हुई धरती ताप छोड़ रही थी वह गेहूं की वट्टों होता हुआ सीधा बड़े कच्चे रास्ते पर आ गया। राह में उसे साईकिल वाला मिल गया। उसने रब्ब का लाख -लाख शुक्र मनाया। उसकी टांगें बिलकुल जवाब दे गईं थी। अगर आगे चलना पड़ता फिर वह पता नहीं पिंड पहुँच पता या नहीं। साईकिल वाले ने घर के नज़दीक मोड़ पर उतार दिया . वह दीवार की छाया तले धीरे -धीरे घर के बाहरी दरवाजे तक पहुंचा। उसने थके शरीर से दरवाजे को धक्का दिया , अंदर से कुण्डी लगी थी। उसने तख्तों के बीच की दरार से हाथ डालकर कुण्डी खोल ली। जगतार ने आँगन में नीम के नीचे पड़ी चारपाई पर नज़र डाली चारपाई खाली थी। किनारे वाली बैठक देखी वहाँ भी कोई नहीं था। वह मुँह में बड़ -बड़ करता अगले कमरे की ओर बढ़ा। जब वह कमरे के पास पहुँचा , अंदर छत के पंखे के चलने की खड़ -खड़ की आवाज़ सुनाई दी। पंखे की खड़ -खड़ में किसी मर्द और औरत की मद्धम खुसर -फुसर हो रही थी और कभी ये खुसर -फुसर हलकी हँसी में बदल जाती। कमरे में अंदर से कुण्डी लगी हुई थी। उसकी आँखों के आगे कोई अनहोनी घटना साकार रूप में आ खड़ी हुई। उसका मन हजारों शंकाओं से घिर गया। वह धीरे से तख्तों से कान लगा सुनने लगा। धीरे -धीरे उसने किरना की आवाज़ पहचान ली पर मर्द की आवाज़ उसकी पकड़ में न आई। बुखार से तपा शरीर भट्टी के कोयलों की तरह लाल हो गया। क्रोध से सारा शरीर काँप उठा। आँखों से आग बरसने लगी। उसकी सांस हवा में मची आग की लपटों की तरह ' खऐं -खऐं' गूंजने लगी। उसने भूसे वाले कमरे से गंडासा उठा लिया।
'' किरना ! नी किरना कुत्तिया !'' उसने दरवाजे पर धड़ाधड़ थाप मारी। पतली प्लाई का दरवाजा जाट के मोटे हाथों की थाप न झेलता हुआ कांपने लगा।
'' क … क … कौ .... कौन .... ह … है ? '' अंदर से डरी -सहमी टूटी -फूटी आवाज़ आई।
'' मैं हूँ तेरा खसम , दरवाज़ा खोल। '' जगतार का डरावना बोल किरना का अंदर चीर गया।
'' ख … खोलती हूँ .... '' अंदर किरना और धरमे के पैरों तले से जमीन निकल गई। उनके हाथ -पैर कांपने लगे। धरमा जल्दी से पेटी की ओट में छिप गया। किरना ने कांपते हाथों से द्वार खोल दिया।
'' तेरी माँ की .... कुत्तिया । '' जगतार ने ताड़ -ताड़ थप्पड़ किरना के मुंह पर जड़ दिए। उसकी लाल गालों में लहू उतर आया। वह लड़खड़ाती हुई गिरती -गिरती बमुश्किल सम्भली।
'' कहाँ है वो साला ढेड ?'' जगतार भड़के हुए सांड की तरह सूंघने लगा। उसने दरवाजे के दोनों पात के पीछे देखा। फिर वह सीधा पेटी की ओर बढ़ा। किरना उसे उधर जाते देख ऊपर से लेकर नीचे तक काँप गई , अब कैर नहीं ,' हे गुरु महाराज ' उसने कांपते हाथ जोड़ लिए।
'' तेरी माँ की कुत्ते की । '' जगतार ने गंडासा उठा धरमे के सर पर दे मारा। सर खरबूजे की तरह फट गया। वह 'हाय मार डाला …' कहता हुआ वही ढेर हो गया . जगतार ने कांपती बाहों से दांत किटकिटाते हुए गिरे पड़े धरमे पर गंडासे का एक वार और कर दिया। उसके सफ़ेद कपडे लहू से सुर्ख हो गए। धरती पर लहू का छप्पड़ लग गया। किरना डरी -सहमी ये तमाशा देखती रही। उसे कुछ सुझाई नहीं दे रहा था कि अब वह क्या करे। धरमा धरती पर पड़ा दम तोड़ता रहा। किरना ने सूनी दोपहर चीरती लम्बी चीख मारी। जगतार वहीँ गंडासा फेंक शराबियों की तरह लड़खड़ाता बाहर की और भाग गया। वह थोड़ी दूर भागा पर टाँगे जवाब दे गईं। शरीर से जान निकलती जान पड़ी। उसका शरीर बुखार , क्रोध और डर ने निढाल कर दिया था। उसे कुछ सुझाई न दिया , कुछ समझ न आया कि वह अब क्या करे ? कहाँ जाये ? यह क्या हो गया ? वह किसी तरह गिरता -पड़ता किसी के आँगन में बिछी चारपाई पर गिर गया।
'' वे क्या हो गया पुत्त ?'' उस घर की बूढी चाची ने जगतार को पहचान लिया।
'' आ … आह .... बू … खा … खार .... !''जगतार के मुँह से टूटे -फूटे दो शब्द निकले। वह फिर न बोल सका। उसकी साँस रात की सांय -सांय की तरह डरावनी थी। उसकी आँखों से लहू रिस रहा था। अंग -अंग भट्टी की तरह तप रहा था। बूढी औरत ने जगतार के माथे पर हाथ रखकर देखा। उसने गर्म तवे पर जल उठे हाथ की तरह हाथ पीछे खींच लिया , '' ओह हो ...तुझे तो बहुत ताप है । '' वह डाक्टर को बुलाने भागी।
जब वह डाक्टर को बुलाकर वापस आई तो आस -पास की औरतें जगतार के घर की ओर जा रहीं थीं। वह डाक्टर को जगतार के पास छोड़कर खुद भी उनके पीछे चल पड़ी . तपती दोपहर में वारदात की बात सुलगती आग की तरह आस -पड़ोस में फ़ैल गई थी। जगतार का आँगन औरतों से भर गया। कोई जगतार के माँ -बाप को खेतों से बुलाने दौड़ा। धरमे की लाश पर ठंडा हुआ लहू वहीँ का वहीँ जम गया था . धरमे के माँ -बाप उसकी मिटटी बनी लाश को छाती से लगा -लगा कर आसमान चीरती चीखें मार रहे थे। धरमे की माँ अपने बाल नोचती , जाँघों को पीटती धरमें की लाश पर गिर -गिर जा रही थी। दोनों को पकड़कर लाश से बमुश्किल एक तरफ किया गया। सारे पिंड को मामले का पता चल गया। कुछ को तो पहले ही पता था और कुछ जगतार के घर पड़ी धरमे की लाश को देख कर समझ गए। पिंड की बूढी -बुजुर्ग औरतें बड़ -बड़ करती किरना को भला -बुरा कह रही थीं।
'' नी यह सारा कुछ इस कलमुँही के पैरों से हुआ है । ''
'' धुले पैरों वाली , जट्ट का हीरे का सा पुत्तर मरवाकर आ गया सब्र डायन को । ''
'' जिसे रस्से चबाने की आदत पड़ जाये वह कहाँ रूकती है भाई। ''
'' मैंने तो सुना यह पिंड भी अपने जीजा से मुँह काला करती फिरती थी । ''
'' ले होट ....। ''
जितने मुंह उतनी बातें। कितनी देर घर में खुसर -फुसर होती रही। जगतार के माँ - बाप अनआई मुसीबत में फसे डरे हुए लोगों की हमदर्दी ढूंढ रहे थे पर उनसे कौन हमदर्दी जताता , सभी औरतों और मर्दों ने तो धरमे के माँ -बाप को बमुश्किल सम्भाला हुआ था। फिर पुलिस का कैंटर 'खर … खर ' करता द्वार के सामने आ रुका। सभी ने डरे हुए हिरणों की तरह द्वार की तरफ कान लगा लिए। घर में चुप्पी छा गई। जैसे सब को सांप सूंघ गया हो। खाकी वर्दी वाले पुलसिये दगड़ -दगड़ करते अंदर जा घुसे । लाश को बाहर निकाल कर कपड़ा डाला। थानेदार ने लाश के ऊपर से कपड़ा हटा अच्छी तरह से मुआयना किया फिर वारदात वाला गंडासा ज़ब्त कर लिया। थानेदार किरना को एक तरफ ले जाकर कुछ पूछ- ताछ करता रहा , किरना आंसू भरी आँखों से जवाब देती रही।
'' कहाँ है वह जगतार का बच्चा ?'' थानेदार ने लोगों के बीच आकर पूछा। सबके मुँह बंद हो गए और आँखें नीची।
'' देखो भाई , ''थानेदार ने समझाना शुरू किया , '' यह कोई छोटी - मोटी वारदात नहीं है। अगर तुम लोगों में से किसी को मुजरिम के बारे पता है तो बता दे , नहीं तो हमारे पास पूछने के और भी तरीके हैं , जब खींची तुम्हारी बहू -बेटियां , और साथ ही डंडा-परेड हुई , उसका सारा परिवार थाने बुलवाया तब अपने आप ही आ जायेगा भागा। ''
सबके दिल काँप गए। सभी एक -दूसरे को डरी नज़रों से देखने लगे।
सूरज कब का पश्चिम में
डूब चूका था। डाकटरी इलाज से जगतार को थोड़ी -थोड़ी होश परत आई थी। उसने
आँखें खोल कर देखा। वह अस्पताल के ऊंचे बेड पर पड़ा था। दाहिनी बांह में
स्लाइन की बोतल आधी से ज्यादा लगी हुई थी। आस -पास दो सिपाही शिकारी
कुत्तों की तरह कान उठाये खड़े हुए थे। धीरे -धीरे दोपहर को हुई वारदात
जगतार की आँखों के आगे से फ़िल्म की तरह घूम गई . उसके दिल से एक लम्बी आह
निकली ,जो आंसू बनकर आँखों से टपक पड़ी। उसने झट आँखें बंद कर ली।
पिंड में बत्तियाँ जल गई थी। आसमान में तारे उतर आये थे जब धरमे की
लाश को श्मशानघाट लाया गया . सारे पिंड के लोग श्मशानघाट एकत्रित हो गए
थे। धरमे
की लाश को वहीँ स्नान करवाया गया। उसका पेट काट कर बड़े -बड़े टांकों से
सीया गया था। लकड़ियाँ चिनकर लाश को उसपर डाल दिया गया। बूढ़े माँ -बाप का
सहारा ऊपर रख दिया गया । धरमे के बाप ने आंसू भरी आँखों से ,कांपते हाथों
से
चिता को अग्नि दी। उसका आखिरी सहारा सदा के लिए छूट गया था। आग की पीली
लपटें काली रात को चीरती आसमान छूने लगीं।
22
सोई
हुई रात में स्कूटर की 'खरड़ -खरड़' दूर तक गूँजती रही . सड़क के आस -पास कीकर और
सफेदों के दरख़्त अँधेरे से भरे दीवारों से दिखते थे। काली सड़क पर स्कूटर
मस्त चाल से चलता जा रहा था। गुरनैब के पीछे बैठा भागू किसी गहरी सोच में
डूबा हुआ था।
परसों राजे की बुआ के बेटे भगवान को कोई कागज़ का टुकड़ा पकड़ा गया
था। बस इतना ही बताया था कि यह गुरमीत ने दिया है। इस छोटे से टुकड़े ने
भागू का दिल हिला दिया था , आँखों के आगे अँधेरा छा गया था , भीतर काँप
गया , शरीर झूठा पड़ गया था । गुरमीत के विवाह की तैयारियाँ चल रही थीं।
रविवार उसे लड़के वाले देखने आ रहे थे। आज मंगलवार का दिन बीत चूका था। कल
गुरमीत ने भागू को कालेज आने के लिए जोर देकर कहा था ।
गुरमीत रिजल्ट का पता करने का बहाना बनाकर घर से इज़ाजत लेकर कालेज आ
गई थी . गुरमीत और भागू को बी.ए. फ़ाइनल के इम्तहान दिए काफी अर्सा बीत चूका
था पर अभी तक रिजल्ट नहीं आया था। विद्द्यार्थियों के साथ -साथ घर के
लोगों को भी इस रिजल्ट की चिंता थी। इसी चिंता की वजह से गुरमीत को आज
कालेज आने की इज़ाज़त मिल गई थी। वह सोच में पड़ी बस अड्डे पर आ खड़ी हुई।
उसका अंदर डर से काँप जाता था । कभी उसके दिल के किसी कोने से उठा हौसला इस डर
को परे धकेल देता। आज उसे अपनी ज़िन्दगी में एक दोराहा नज़र आ रहा था , एक
उसके माता -पिता के घर की ओर जाता , जहाँ उसने अपने माता -पिता की मर्जी
अनुसार चलना था। अपने दिल के अरमानों को मार कर उनके चुने लड़के से ही
विवाह करना था। दूसरा रास्ता भागू की ओर जाता था , जिसके साथ उसने अनगिनत
मीठे सपने सजा रखे थे . पहले रास्ते में उसे हर सुख मिलना था पर मन का सुख ,
मन का चैन हमेशा के लिए खो जाना था । अंकुरित होते अरमान वहीँ दब जाने थे । दूसरे रस्ते
में उसे शारीरिक कष्ट झेलने पड़ते पर उसे दिल का आनंद मिलता , दिल की
इच्छाएं पूरी हो जानी थी। बस अड्डे पर आ खड़ी हुई गुरमीत ने हौसले के साथ
पहला कदम बस की सीढ़ियों में टिका लिया और भागू की ओर जाते रास्ते की ओर बढ़
चली।
बस सड़क के उबड़ -खाबड़ रस्तों से होती हुई सरपट दौड़ी जा रही थी।
गुरमीत खिड़की से दूर आसमां में सजाये सपनों को देख रही थी …वह अपने सजाये
सपनो के ख्यालों में गुम मुस्कुरा पड़ती पर फिर उसे ये समाज की काली धुंध
में गुम होते दिखते। उसके चेहरे पर मौत सी ख़ामोशी छा जाती , दिल पंछी की
तरह छटपटाने लगता। उसे पता ही न चला कि वह इस सोच में डूबी कब बुढलाडे
पहुँच गई। बस से उतर वह रिक्शे में जा बैठी।
'' कालेज ''
रिक्शे वाला हैरानी भरी आँखों से देखता हुआ चल पड़ा , ' हर कोई पूछता है फलानी जगह जाना है क्या लोगे ? पर इसे ऐसी क्या आफत आ गई? ' वह मन में सोचता हुआ गहरी नज़रों से गुरमीत का चेहरा पढ़ रहा था। गुरमीत से ज्यादा उसका दिल उतावला था कि वह पलों में उड़कर कालेज पहुँच जाए पर रिक्शे की धीमी चाल उसके दिल से मजाक करती जान पड़ती थी। जब वह कालेज पहुंची तो कालेज का सूना आँगन देख उसका दिल धड़का। मन पानी सा बह चला। वह एक ही नज़र से कालेज का कोना -कोना छान देना चाहती थी . उसने चारों ओर खोजी नज़रों से देखा पर हर ओर का सूनापन ईंट की तरह उसके माथे से आ टकराता। वह पार्क में गई वहाँ भी उदासी ही हाथ लगी। उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया , '' हाय रब्बा ! अब क्या करूं ? '' उसने दोनों हाथों से अपना पेट दबा लिया। अंदर से दिल चीरती हूक उठी , वह वहीँ ढेर हो गई। आँखों से आंसुओं की धारा बह चली , '' हाय माँ !'' उसने अपनी जननी को पुकारते हुए चीख मारी
. भागू दस मिनट लेट हो गया था। वह कालेज आया। चारो ओर निगाह मारी। गुरमीत कहीं न दिखी। कालेज की बिल्डिंग के पीछे बने पार्क में गया तो गुरमीत सामने झुकी बैठी थी। वह धीमी गति से चलता हुआ गुरमीत के पीछे जा खड़ा हुआ , '' गुरमीत ! ''
गुरमीत ने पीछे मुड़ कर देखा , '' मेरे भाग !!'' उसने भागू को पागलों की तरह अपनी बाहों में कस लिया।
'' क्या हुआ मेरी मीत को ?'' भगवान ने उसके बालों में प्यार से हाथ फेरा।
'' इतनी देर से आये तुम ?'' उसने नकली गुस्से से मुंह फेर लिया पर उसकी अंदर की ख़ुशी होंठों पर उतर आई थी।
'' इतनी कितनी देर हुई ? तेरे दिए समय से बस दस मिनट ऊपर हुए हैं। '' भगवान ने अपनी घड़ी वाली बांह उसके आगे कर दी। गुरमीत ने भगवान की बांह को दोनों हाथों से पकड़ लिया , '' तेरे इन दस मिनटों ने मेरी जान निकाल लेनी थी। ''
'' जान निकले हमारे दुश्मन की। '' भगवान ने उसका हाथ अपने मज़बूत हाथ में कस लिया . फिर कुछ देर ख़ामोशी छाई रही। दोनों एक दूसरे को एकटक देखते रहे।
'' हाँ बता फिर , अब क्या किया जाये ?'' भगवान की आँखों के आगे होने वाली अनहोनी चक्कर लगाने लगी।
'' अब तो एक ही रास्ता है। ''
'' क्या ?''
'' दोनों भाग चलते हैं कहीं। '' गुरमीत भगवान के चेहरे पर नजर गड़ाते हुए उसका चेहरा पढ़ने लगी।
''घर वाले बिलकुल नहीं माने ?''
'' नहीं, मैंने तो हर संभव कोशिश कर के देख ली , मेरी माँ के सिवाय और कोई नहीं माना। अब यही एक रस्ता बचा है। ''
'' मीत पहले अपने मन को अच्छी तरह तौल ले , बड़ी मुश्किलें झेलनी पड़ सकती हैं।''
'' मैंने तो मन को तौल कर ही तुम्हें संदेशा भेजा था। मैं तुम्हारे साथ हर कठिनाई का सामना करने को तैयार हूँ , बस तुम धोखा मत देना। '' गुरमीत का गला भर आया।
'' तुम्हारे लिए जान दे सकता हूँ , बोलो कब चलना है ?''
'' अभी ले चल। '' गुरमीत ने भगवान की बाँह दोनों हाथों से पकड़ ली।
'' अभी ठीक नहीं , हम रात को चलेंगे , ताकि दिन चढ़ने तक दूर निकल जाएं। और फिर तब तक मैं कुछ पैसों का इंतजाम भी कर लूंगा। ''
''अच्छा तुम्हारी मर्जी। ''
'' बता कौन सी रात आऊं ?''
'' परसों आ जाना ,ग्यारह बजे के आस -पास ? ''
उस दिन वे पूरा प्लान बनाकर लौटे थे। दोनों के हंसते नैनों में दिल की मुराद पूरी होती दिखाई दे रही थी और साथ ही समाज के विरुद्ध बगावत करने पर मिलने वाली सजा का डर भी था।
आज गुरमीत से किये वादे के मुताबिक भगवान स्कूटर लेकर रात को निकल पड़ा था । स्कूटर सड़कें फलांगता बड़े चक्क के नजदीक पहुँच गया। गुरनैब ने सुए (सोता ) की पुलिया पर स्कूटर रोक लिया। स्कूटर की लाइट के आगे बांह करके टाइम देखा।
'' अभी तो चालीस मिनट बाकी हैं , कैसे करना है ?'' उसने भागू को पूछा।
'' बंद कर दे स्कूटर , पंद्रह मिनट पहले चलेंगे। ''
दोनों स्कूटर का स्टैंड लगा सुए की पुलिया पर बैठ गए। सुए का ठंडा पानी शांत बह रहा था। अँधेरी रात में धान की फसल काली चादर की तरह धरती पर बिछी हुई लग रही थी। सामने सड़क के किनारे ऊँचे लम्बे सफेदों के दरख़्त चीन की दीवार से जान पड़ते थे । दूर बुढलाडे से बाहर -बाहर जाती जी. टी. रोड पर कोई एक -आध गाड़ियों की लाईट , किसी यौवना के दुपट्टे पर लगे सितारों की मद्धिम रौशनी में चमकने की तरह चमकती थी। सुए से दो - तीन किले की दूरी पर पिंड चक्क के घरों में कहीं -कहीं बत्तियां जल रही थीं। कभी -कभी किसी कुत्ते के भौंकने की आवाज सुनाई दे जाती। सुए के किनारे खड़े कीकर के दरख़्त से कोई पक्षी चिर -चिर करता उड़कर सफेदों के दरख़्त पर जा बैठा , शायद उसे आधी रात के समय अपने घोंसले के पास किसी मनुष्य की उपस्थिति खतरे की घंटी लगी थी।
दोनों की हो रही धीमी बातचीत सुए के पानी की तरह शांत और चुपचाप थी। बीस मिनट बीत गए। गुरनैब ने स्कूटर को किक मारी। दरख्तों पर बैठे पक्षियों में हिलजुल हुई। कीकर वाला पक्षी खतरा टल गया समझ चिर -चिर करता फिर कीकर पर जा बैठा। लंबे सफेदों के बीच स्कूटर की आवाज़ कुएँ में बोलने जैसी ऊँची हो गई। सामने जी. टी. रोड थी। दोनों ने धड़कते दिल से स्कूटर जी. टी. रोड पर चढ़ा लिया। अब कोई भी खतरा गले पड़ सकता था। पुलिस ने घेर लिया तो क्या जवाब देंगे। दोनों के दिल डर से 'धक् -धक्' कर रहे थे। कोई भी सामने से आती गाड़ी पुलिस की गाड़ी हो सकती थी या किसी चौक में पुलिस से सामना हो सकता था।
जब बुढलाडा पार हो गया तो दोनों के चेहरों पर ख़ुशी झलक आई। एक तसल्ली भी हो गई थी कि वापसी में भी कोई खतरा नहीं। शेखगढ़ को जाती उबड़ -खाबड़ , टूटी -फूटी सड़क पर स्कूटर धीमे हो गया। बूढ़े कीकर के दरख़्त कुबड़े बुजुर्गों की तरह झुके हुए खड़े थे। स्कूटर की 'खरड़ -खरड़ ' सुनकर टीले पर खड़ी बेरी के नीचे बैठी नील गायों के झुंड ने कान खड़े कर लिए। उनकी आँखें काली रात में बैटरियों की तरह चमकी। कुछ हिलजुल के बाद शांत होकर बैठ गई। अब सामने शेखगढ़ पिंड का कोई -कोई बल्ब चमकता नज़र आने लगा था। स्कूटर शेखगढ़ फाटक से थोड़ा हटकर पहे में डाल लिया गया . रेल पटरी के नज़दीक पहुँच कर बंद कर लिया। सामने गुरमीत का घर था। सारा पिंड सोया हुआ था। कभी -कभार किसी कुत्ते के भौंकने की आवाज़ अपनी होंद जाती। दाहिनी तरफ फाटक की मद्धिम लाइट की दूधिया रौशनी पटरी पर ऊंघ रही थी . दोनों कुछ देर खड़े स्थिति को भांपते रहे। जब चारो ओर शांति दिखी तो भागू ने कंधे से बैग उतार कर गुरनैब को पकड़ा दिया।
''तुम ऐसा करो , यहीं खड़े रहो , अगर तुम्हें कोई पूछे तो कह देना हम तो फलाने शहर से आये हैं , यहाँ स्कूटर खराब हो गया , मेरे साथ का साथी पिंड से कोई चाबी -पाने ( औजार ) का इंतजाम करने गया है।'' भागू उसे पूरी बात समझकर पटरी फलांग गया। गुरमीत के गेट के पास जाकर दीवार से चिपक कर बैठ गया। एक काला कुत्ता उसे देखकर भौकने लगा। पहले तो भागू का जी किया कि ईंट उठाकर उसे दे मारे , पर फिर शोर के डर से चुपचाप बैठा रहा। कुत्ता कुछ देर भौक कर फाटक की ओर चला गया।
लोहे के गेट के आगे खड़ा भागू थोडा चौकन्ना हो गया। छोटा गेट खोलकर गुरमीत बाहर आई , भागू ने दौड़कर उसे बाहों में कस लिया। गुरमीत ने बाहर से कुण्डी लगा दी और बिना कुछ बोले भागू के साथ चल पड़ी .
तुम्हारे पिंड आया हूँ और तुमने चाय -पानी तक नहीं पूछा। '' भागू ने गुरमीत को छेड़ते हुए कहा।
----------------------------० 0 ० -------------------------
'' हाय ! कोई देख लेगा .'' किरना के इन बोलो ने धरमें से अपनी सहमति प्रकट कर दी। अब धरमें का डर छू मंतर हो गया था।
''जो देखता है देख लेने दे। ''
'' हाय ! छोड़ दे। ''
'' पहले बता कब मिलोगी ?''
'' अच्छा मेरे पीछे -पीछे आ जा। '' दोनों आगे -पीछे हुए बाड़े में जा खड़े हुए। बाड़े में खड़े गोल गहारे (उपलों का ढेर ) , रात के पहरेदार बने मंत्रियों की तरह डटे खड़े थे। उपलों की लम्बी कतारें अँधेरे में सोये किसी अजगर की तरह लगती थीं । किरना ने हाथ में पकड़ा पानी का डिब्बा नीचे रख दिया और गहारे की ओट में जा खड़ी हुई।
'' हाँ बता , क्या कहना है ?'' किरना ने अपनी बड़ी -बड़ी आँखें धरमे के गोरे चेहरे पर गड़ाते हुए पूछा।
'' तेरे प्यार में आधा हो गया हूँ सूखकर अभी कहना बाकी है ?तू ये बता कि कब मिलोगी ?''
'' जब समय लगेगा बता दूंगी। ''
'' समय की छोड़ तू मुझे अभी बता फिर जाने दूंगा। ''
'' तेरा भाई रात गेहूं में पानी लगाने गया था खेत , कहता था रात की बारी है , आज पता नहीं जायेगा या नहीं। ''
'' चार दिनों के बाद बदलती है बारी , आज फिर जाना होगा। ''
'' अगर लग गया होगा सारे पानी ?''
'' एक रात में सारे कैसे लग जायेगा ? दो किले सिजते हैं मुश्किल से। आज लाजमी है जाना ही होगा। आज आ जाना रात को। ''
'' कहाँ ?''
'' हमारी किनारे वाली बैठक में , मैं
अकेला ही होता हूँ वहाँ। जो गली में खुलता है द्वार उसकी कुण्डी मैं खुली
ही रखूँगा तुम खोल कर आ जाना। ''
'' क्यों मुझे इतनी दूर गली में डर नहीं लगेगा ?''
'' अच्छा मैं ले आऊंगा जाकर , और बता दे कितने बजे आऊं ?''
'' दस बजे आ जाना। ''
'' अच्छा पक्की रही। ''
''हाँ -हाँ आ जाना। ''
''अच्छा अब जाता हूँ मैं। '' धरमा ख़ुशी से फूला लम्बी छलांगे भरता घर आ गया। किरना शौच के लिए बाड़े में जा घुसी।
उसके वापस आते तक आँगन की लाईट जल चुकी थी। जगतार भैसों को चारा डाल
रहा था। किरना ने आकर डिब्बा नलके के पास दीवार के संग रख दिया। नलका
चलाकर उसने हाथ गीले किये , साबुन की पतली टिक्की हाथों पर मली और फिर हाथ
धो लिए।
'' इतनी सुबह न जाया कर बाहर। '' जगतार ने पास से गुजरती किरना से कहा।
किरना जाते -जाते वहीँ रुक गई , '' जब जोर पड़ेगा तभी जाऊंगी न ?''
''
ही … ही .... ही पागल। '' जगतार खिल -खिलाकर हँस पड़ा , साथ ही किरना भी
हँस पड़ी। '' अच्छा भैंसे बाँध दे । '' जगतार चारा डालकर नलके पर हाथ धोने
चला गया। किरना ने बरामदे से सारी भैंसे खोलकर चरनी पर बाँध दी।
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आज
सारा दिन किरना का भीतर हँसता रहा , मन नाचता रहा। वह सारा दिन ख़ुशी से
बावली हुई फिरती रही। कोई जीत , कोई अनजानी सी ख़ुशी उसकी आँखों से झलक-
झलक पड़ रही थी पर वक़्त ने किरना से जिद लगा रखी थी। वह पल -पल घड़ी की ओर
देखती , रह- रह दीवार की परछाई को नापती पता नहीं किस बैरी ने समय के
पैरों से भारी पत्थर बाँध दिए थे , वह आगे सरकने का नाम ही नहीं ले रहा
था। एक -एक घंटा एक -एक महीना होकर बीता। किरना ने शाम की रोटी के लिए
चूल्हे में आग जला ली , आटा गूँधकर रोटियां उतार लीं . जगतार ने दूध की
बाल्टी किरना के पास लाकर रखते हुए कहा , '' चाय गुड बाँध दे खेत के लिए ,
दूध जरा ज्यादा डाल देना रात को कई बार चाय पीनी पड़ती है। ''
इतना सुनते ही किरना का गुलाबी चेहरा ख़ुशी में और गुलाबी हो गया
. उसके गोरे शरीर में एक झनझनाहट सी दौड़ गई , जैसे धरमे के बाँह पकड़ते
वक़्त दौड़ी थी। जैसे धरमे ने उसे खुद छू लिया हो। किरना ने रोटियाँ उतार
कर , चूल्हे पर पानी का पतीला चढ़ा दिया और नीचे आग ठीक कर उपले और डाल दिए।
उसने पहले सास- ससुर को रोटी खिलाई फिर जगतार को रोटी खिलाकर , चाय
गुड बांधकर खेत भेज दिया। बाद में खुद रोटी खाई , बर्तन धोये और फिर गर्म
पानी से मल -मलकर नहाई। सारा काम निपटा कर वह किनारे वाली बैठक में आ गई।
समय देखा साढ़े आठ बजे थे। वह बिस्तर पर पड़ी करवटें बदलती रही पर पहाड़
जैसा डेढ़ घंटा पैर अड़ा कर खड़ा हो गया। वह उठकर दीवार के सहारे से बैठ गई ,
फिर रात के हसीन ख्यालों में गुम हो गई। नौ बजे ख्यालों की लड़ी टूटी। वह
गोरे पैरों में तिल्ले की जूती डालकर बाहर आ गई। उतरती सर्दियों की ठंडी
हवा उसके कपड़ों के भीतर से शरीर को चीर गई। पाले की मार से सारे शरीर के
रोयें खड़े हो गये। वह कंपकंपी लेकर फिर अंदर चली गई। अंदर जाकर स्वेटर
पहना और शाल ओढ़कर फिर बाहर आ गई , फिर कुछ सोचकर सास -ससुर की सुध लेने
उनके कमरे की ओर बढ़ी , अंदर खुसर -फुसर हो रही थी। वह दांत दबाती वापस आ
गई। घड़ी की छोटी सुई ने पल -पल करके बड़ी मुश्किल से समय की राह को काटा। घड़ी ने दस बजा दिए। वह धड़कते ख़ुशी भरे दिल से कुण्डी खोल गली में आ गई। सामने धरमे को देखकर पतले होंठ ख़ुशी में मुस्कुरा पड़े। दोनों ने गली में ही एक दूसरे हो बाँहों में कस लिया। दोनों दिलों की धड़कन बराबर बढ़ रही थी। धरमा किरना का हाथ पकड़ चलने लगा। गली में सर्दी की मार से दुबके हुए कुत्ते दीवारों संग लगे सोये हुए थे। वे पदचाप सुन मुंह ऊपर उठाकर देखने लगे पर ठण्ड की मार से उनका भौंकने का दिल न किया और वे फिर ' हमें क्या लेना ' सोच टांगों में मुँह दिए सो गए। अँधेरी रात होने के कारण चाँद ने आज मुँह नहीं दिखाया था। सिर्फ तारों की मद्धिम रौशनी में पास खड़ा आदमी पहचाना जा सकता था। धरमे ने बैठक के पास जाकर धीरे से बैठक का द्वार खोला। टयूब की दूधिया रौशनी में बैठक दुल्हन की तरह सजी हुई थी। उसने बैठक के द्वार पर खड़े होकर दाहिने बाँये देखा फिर किरना को अंदर ले जाकर दरवाजा बंद कर लिया। आसमान में खिले तारे मुस्कुरा पड़े। अँधेरे ने सबकुछ अपने विशाल आलिंगन में छुपा लिया।
21
गेहूँ सूख कर कड़क हो गया था। खड़ -खड़ करता गेहूँ , हवा के झोंके से
किसी दुर्बल नशेड़ी की तरह काँपता। किसान पकी फसल को संभालने के लिए दरांती ले कूद
पड़े। कुछ ही दिनों में ढेर के ढेर खड़ी फसल ढेरियों में बदल गई। बच्चे ,
बूढ़े , जवान किसी को भी सर खुजलाने का वक़्त नहीं था। कोई रोटी लेकर जाता ,
कोई घास -फूस काट कर लाता , कोई सारा दिन आषाढ़ी फसल काटता। पिंड की सारी
रौनक खेतों में आ जुटी थी। सारा दिन पिंड में सुनसान होती। किसी उजाड़ की तरह
पिंड सांय -सांय करता पर खेतों में मेले लग जाते। कहीं ललकारे लगते , कहीं
हँसी की छनकार सारी कायनात को महका जाती। ज्यों -ज्यों दिन ढलता दरांती
की खट -खट बढ़ जाती , ललकारे बढ़ जाते। सूरज की मद्धिम रौशनी में गर्द आसमान
को चढ़ती। सूरज छिपते ही रेहड़ियों , ट्रैकटरों का लम्बा काफिला खड़ -खड़ करता पिंड की ओर चल पड़ता। जगतार को दो दिन हो गए थे बारी पर जाते हुए। आज उसने अपने खेत पहले दिन काटने जाना था। कोने- किनारे में पड़ी पुरानी दरांतियों को ढूंढ कर दांत बनवाकर ठेले पर रखवा दिया गया। जरुरत अनुसार रस्सियाँ रख ली गईं। सारा परिवार किसी विवाह की तैयारी सा इधर -उधर भागा फिर रहा था। किरना चूल्हे के सामने बैठी ख़ुशी -ख़ुशी खेत में ले जाने के लिए रोटी का इंतजाम कर रही थी पर जगतार का उतरा चेहरा बता रहा था कि उसका शरीर आज स्वस्थ नहीं। हाड -हाड चसक रहा था। सर में भी हल्का- हल्का दर्द था। उसका दिल कर रहा था कि वह आज घर पर विडी वालों ? उनके साथ तो जाना ही पड़ेगा,चलो एक चम्मच आज ज्यादा सही ' यह सोचते हुए वह खेत की ओर चल पड़ा। आज काटने वाले पाँच जन हो गये। तीन विड़ी वाले जगतार और उसका बाप। जगतार का छोटा भाई अभी गाडी से नहीं आया था . जगतार की माँ सीतो ने चारा काट कर लाना था। किरना का जिम्मा रोटी बनाने और घर -पशु सँभालने का था।
जगतार लोगों ने खेत जाकर फसल काटनी शुरू कर दी। पहले पहर ओस गिरी होने के कारण दरांतियाँ इतनी तेज नहीं चल पा रही थीं ज्यों -ज्यों सूरज चढ़ता गया ओस सूखती गई , दरांतियाँ तेज होती गईं , शरीर गर्म होते गए। गेहूं ढेरियों में बदलता गया । किरना रोटी देकर चली गई। माँ चारा काटने लगी। ग्यारह बजे की चाय तक जगतार को लगा था शरीर अब ठीक है , सर का दर्द भी हट चूका था। दुखते हाड गर्मा गए थे। ज्यों -ज्यों दोपहर चढ़ती गई , बुखार की गर्मी से उसका अंदर तपने लगा , शरीर निढाल हो गया। वह बड़ी मुश्किल से दोपहर तक फसल काटता रहा पर जब शरीर बिलकुल जवाब दे गया , वह कोठे के पास पेड़ के नीचे गमछा बिछा कर लेट गया। उसकी माँ चारा काटती उसके पास आ गई।
'' क्या हो गया पुत्त ? '' माँ ने पास आकर पूछा।
'' माँ ताप चढ़ गया। ''
'' फिर यहाँ क्यों पड़ गया पुत्तर ? जा घर जाकर दवा -दारु कर । ''
'' पानी देना '' जगतार उठकर बैठ गया। सीतो ने घड़े में से पानी का गिलास भर कर दिया। जगतार पानी पीकर शराबियों की तरह लड़खड़ाता घर की ओर चल पड़ा। तपता हुआ सूरज सर पर आ गया था। गर्म हुई धरती ताप छोड़ रही थी वह गेहूं की वट्टों होता हुआ सीधा बड़े कच्चे रास्ते पर आ गया। राह में उसे साईकिल वाला मिल गया। उसने रब्ब का लाख -लाख शुक्र मनाया। उसकी टांगें बिलकुल जवाब दे गईं थी। अगर आगे चलना पड़ता फिर वह पता नहीं पिंड पहुँच पता या नहीं। साईकिल वाले ने घर के नज़दीक मोड़ पर उतार दिया . वह दीवार की छाया तले धीरे -धीरे घर के बाहरी दरवाजे तक पहुंचा। उसने थके शरीर से दरवाजे को धक्का दिया , अंदर से कुण्डी लगी थी। उसने तख्तों के बीच की दरार से हाथ डालकर कुण्डी खोल ली। जगतार ने आँगन में नीम के नीचे पड़ी चारपाई पर नज़र डाली चारपाई खाली थी। किनारे वाली बैठक देखी वहाँ भी कोई नहीं था। वह मुँह में बड़ -बड़ करता अगले कमरे की ओर बढ़ा। जब वह कमरे के पास पहुँचा , अंदर छत के पंखे के चलने की खड़ -खड़ की आवाज़ सुनाई दी। पंखे की खड़ -खड़ में किसी मर्द और औरत की मद्धम खुसर -फुसर हो रही थी और कभी ये खुसर -फुसर हलकी हँसी में बदल जाती। कमरे में अंदर से कुण्डी लगी हुई थी। उसकी आँखों के आगे कोई अनहोनी घटना साकार रूप में आ खड़ी हुई। उसका मन हजारों शंकाओं से घिर गया। वह धीरे से तख्तों से कान लगा सुनने लगा। धीरे -धीरे उसने किरना की आवाज़ पहचान ली पर मर्द की आवाज़ उसकी पकड़ में न आई। बुखार से तपा शरीर भट्टी के कोयलों की तरह लाल हो गया। क्रोध से सारा शरीर काँप उठा। आँखों से आग बरसने लगी। उसकी सांस हवा में मची आग की लपटों की तरह ' खऐं -खऐं' गूंजने लगी। उसने भूसे वाले कमरे से गंडासा उठा लिया।
'' किरना ! नी किरना कुत्तिया !'' उसने दरवाजे पर धड़ाधड़ थाप मारी। पतली प्लाई का दरवाजा जाट के मोटे हाथों की थाप न झेलता हुआ कांपने लगा।
'' क … क … कौ .... कौन .... ह … है ? '' अंदर से डरी -सहमी टूटी -फूटी आवाज़ आई।
'' मैं हूँ तेरा खसम , दरवाज़ा खोल। '' जगतार का डरावना बोल किरना का अंदर चीर गया।
'' ख … खोलती हूँ .... '' अंदर किरना और धरमे के पैरों तले से जमीन निकल गई। उनके हाथ -पैर कांपने लगे। धरमा जल्दी से पेटी की ओट में छिप गया। किरना ने कांपते हाथों से द्वार खोल दिया।
'' तेरी माँ की .... कुत्तिया । '' जगतार ने ताड़ -ताड़ थप्पड़ किरना के मुंह पर जड़ दिए। उसकी लाल गालों में लहू उतर आया। वह लड़खड़ाती हुई गिरती -गिरती बमुश्किल सम्भली।
'' कहाँ है वो साला ढेड ?'' जगतार भड़के हुए सांड की तरह सूंघने लगा। उसने दरवाजे के दोनों पात के पीछे देखा। फिर वह सीधा पेटी की ओर बढ़ा। किरना उसे उधर जाते देख ऊपर से लेकर नीचे तक काँप गई , अब कैर नहीं ,' हे गुरु महाराज ' उसने कांपते हाथ जोड़ लिए।
'' तेरी माँ की कुत्ते की । '' जगतार ने गंडासा उठा धरमे के सर पर दे मारा। सर खरबूजे की तरह फट गया। वह 'हाय मार डाला …' कहता हुआ वही ढेर हो गया . जगतार ने कांपती बाहों से दांत किटकिटाते हुए गिरे पड़े धरमे पर गंडासे का एक वार और कर दिया। उसके सफ़ेद कपडे लहू से सुर्ख हो गए। धरती पर लहू का छप्पड़ लग गया। किरना डरी -सहमी ये तमाशा देखती रही। उसे कुछ सुझाई नहीं दे रहा था कि अब वह क्या करे। धरमा धरती पर पड़ा दम तोड़ता रहा। किरना ने सूनी दोपहर चीरती लम्बी चीख मारी। जगतार वहीँ गंडासा फेंक शराबियों की तरह लड़खड़ाता बाहर की और भाग गया। वह थोड़ी दूर भागा पर टाँगे जवाब दे गईं। शरीर से जान निकलती जान पड़ी। उसका शरीर बुखार , क्रोध और डर ने निढाल कर दिया था। उसे कुछ सुझाई न दिया , कुछ समझ न आया कि वह अब क्या करे ? कहाँ जाये ? यह क्या हो गया ? वह किसी तरह गिरता -पड़ता किसी के आँगन में बिछी चारपाई पर गिर गया।
'' वे क्या हो गया पुत्त ?'' उस घर की बूढी चाची ने जगतार को पहचान लिया।
'' आ … आह .... बू … खा … खार .... !''जगतार के मुँह से टूटे -फूटे दो शब्द निकले। वह फिर न बोल सका। उसकी साँस रात की सांय -सांय की तरह डरावनी थी। उसकी आँखों से लहू रिस रहा था। अंग -अंग भट्टी की तरह तप रहा था। बूढी औरत ने जगतार के माथे पर हाथ रखकर देखा। उसने गर्म तवे पर जल उठे हाथ की तरह हाथ पीछे खींच लिया , '' ओह हो ...तुझे तो बहुत ताप है । '' वह डाक्टर को बुलाने भागी।
जब वह डाक्टर को बुलाकर वापस आई तो आस -पास की औरतें जगतार के घर की ओर जा रहीं थीं। वह डाक्टर को जगतार के पास छोड़कर खुद भी उनके पीछे चल पड़ी . तपती दोपहर में वारदात की बात सुलगती आग की तरह आस -पड़ोस में फ़ैल गई थी। जगतार का आँगन औरतों से भर गया। कोई जगतार के माँ -बाप को खेतों से बुलाने दौड़ा। धरमे की लाश पर ठंडा हुआ लहू वहीँ का वहीँ जम गया था . धरमे के माँ -बाप उसकी मिटटी बनी लाश को छाती से लगा -लगा कर आसमान चीरती चीखें मार रहे थे। धरमे की माँ अपने बाल नोचती , जाँघों को पीटती धरमें की लाश पर गिर -गिर जा रही थी। दोनों को पकड़कर लाश से बमुश्किल एक तरफ किया गया। सारे पिंड को मामले का पता चल गया। कुछ को तो पहले ही पता था और कुछ जगतार के घर पड़ी धरमे की लाश को देख कर समझ गए। पिंड की बूढी -बुजुर्ग औरतें बड़ -बड़ करती किरना को भला -बुरा कह रही थीं।
'' नी यह सारा कुछ इस कलमुँही के पैरों से हुआ है । ''
'' धुले पैरों वाली , जट्ट का हीरे का सा पुत्तर मरवाकर आ गया सब्र डायन को । ''
'' जिसे रस्से चबाने की आदत पड़ जाये वह कहाँ रूकती है भाई। ''
'' मैंने तो सुना यह पिंड भी अपने जीजा से मुँह काला करती फिरती थी । ''
'' ले होट ....। ''
जितने मुंह उतनी बातें। कितनी देर घर में खुसर -फुसर होती रही। जगतार के माँ - बाप अनआई मुसीबत में फसे डरे हुए लोगों की हमदर्दी ढूंढ रहे थे पर उनसे कौन हमदर्दी जताता , सभी औरतों और मर्दों ने तो धरमे के माँ -बाप को बमुश्किल सम्भाला हुआ था। फिर पुलिस का कैंटर 'खर … खर ' करता द्वार के सामने आ रुका। सभी ने डरे हुए हिरणों की तरह द्वार की तरफ कान लगा लिए। घर में चुप्पी छा गई। जैसे सब को सांप सूंघ गया हो। खाकी वर्दी वाले पुलसिये दगड़ -दगड़ करते अंदर जा घुसे । लाश को बाहर निकाल कर कपड़ा डाला। थानेदार ने लाश के ऊपर से कपड़ा हटा अच्छी तरह से मुआयना किया फिर वारदात वाला गंडासा ज़ब्त कर लिया। थानेदार किरना को एक तरफ ले जाकर कुछ पूछ- ताछ करता रहा , किरना आंसू भरी आँखों से जवाब देती रही।
'' कहाँ है वह जगतार का बच्चा ?'' थानेदार ने लोगों के बीच आकर पूछा। सबके मुँह बंद हो गए और आँखें नीची।
'' देखो भाई , ''थानेदार ने समझाना शुरू किया , '' यह कोई छोटी - मोटी वारदात नहीं है। अगर तुम लोगों में से किसी को मुजरिम के बारे पता है तो बता दे , नहीं तो हमारे पास पूछने के और भी तरीके हैं , जब खींची तुम्हारी बहू -बेटियां , और साथ ही डंडा-परेड हुई , उसका सारा परिवार थाने बुलवाया तब अपने आप ही आ जायेगा भागा। ''
सबके दिल काँप गए। सभी एक -दूसरे को डरी नज़रों से देखने लगे।
एक
बूढी औरत पीछे खड़े सिपाही के कान में कुछ बुदबुदा गई। सिपाही ने आकर
थानेदार के पास खुसर -फुसर की। थानेदार ने कोई गुप्त इशारा किया। सिपाही
बताये गए स्थान की ओर बढ़ गए। थानेदार और कुछ सिपाही उसके पीछे -पीछे चल
पड़े। सात -आठ घर छोड़कर लोहे के गेट वाला घर आ गया। दो सिपाहियों ने बड़ी
होशियारी से गेट के दोनों ओर पोजिशन ले ली। थानेदार ने धीरे से गेट को
अंदर धकेला। गेट खुल गया। सामने कीकर के नीचे बिछी चारपाई पर जगतार पड़ा
था। कीकर की परछाई ढलकर चारपाई से कितनी दूर चली गई थी पर चारपाई वैसे ही
जगतार की देह को लिए संताप भोग रही थी। थानेदार सिपाहियों के साथ चारपाई
के पास आ खड़ा हुआ पर जगतार ने कोई हिलजुल नहीं की। चारपाई से भट्टी की तरह
ताप आ रहा था। जगतार की सांस पहले की ही तरह उखड़ी , डरावनी और तेज -तेज
चल रही थी। थानेदार ने हाथ लगाकर देखा बुखार हद से ज्यादा था। चार
सिपाहियों ने बेहोशी की हालत में पड़े जगतार को उठा लिया। सिपाहियों ने उसे
जगतार के घर लाकर नीम की छाया तले चारपाई पर डाल दिया। थनेदार ने किरना ,
जगतार के माँ -बाप , धरमे के माँ -बाप , जिस घर से जगतार को उठाया था उस
बुढ़िया का नाम तथा एक दो- नाम और लिख लिए . अपनी कार्यवाही मुकम्मल करके
थानेदार बोला , '' बुजुर्गो हमने मुज़रिम को हिरासत में ले लिया है पर हम
इसे इस हालत में थाने नहीं ले जा सकते। इसे पहले अस्पताल दाखिल करवाना
पड़ेगा क्योंकि इस समय इसकी हालत बहुत नाजुक है। इसकी जान भी जा सकती है और
लाश को हमें पोस्टमार्टम के लिए लेकर जाना पड़ेगा।'' थानेदार ने धरमे की लाश
की ओर इशारा किया।
'' भाई अब इसकी मिटटी क्यों बदीन करने हो । '' धरमे की माँ ने दहाड़ मारी।
'' यह कार्यवाही तो बेबे हमें करनी ही पड़ेगी। '' थानेदार ने नरमी से कहा।
जगतार को कपड़ा बिछाकर कैंटर में डाल दिया गया। धरमे के घर से जीप मंगवा कर
धरमे की लाश को उसमें डाल दिया गया। थानेदार खुद जीप में जा बैठा और
सिपाही कैंटर में बैठ गए। जगतार और धरमे के बाप को छोड़ एक -दो पिंड के
सयाने लोग और साथ में ले लिए । जीप और कैंटर सुनाम की ओर चल पड़े। एक में
धरमे की लाश और दूसरे में उसे मारने वाला जगतार। पर अब दोनों को ही पता
नहीं था कि क्या हो रहा है। सारे दिन का थका -मांदा सूरज दूर नहर के
कीकरों की ओट में डोल रहा था , रो कर हटे मनुष्य की लाल आँखों की तरह ढलक
रहा था। दोपहर की गर्मी शाम की ठण्ड में ढलती जा रही थी . आप -पास खेतों
में फसल काटने वालों के ललकारे डरावनी चीखों से सुनाई देते थे । अस्पताल के
सामने कैंटर के ब्रेक गरीब पर मारी गई लाठी की तरह चीखे। डाक्टर ने सारी
कार्यवाही करने के बाद जगतार को दाखिल कर लिया और धरमे की लाश पोस्टमार्टम
के लिए भेज दी। '' कालेज ''
रिक्शे वाला हैरानी भरी आँखों से देखता हुआ चल पड़ा , ' हर कोई पूछता है फलानी जगह जाना है क्या लोगे ? पर इसे ऐसी क्या आफत आ गई? ' वह मन में सोचता हुआ गहरी नज़रों से गुरमीत का चेहरा पढ़ रहा था। गुरमीत से ज्यादा उसका दिल उतावला था कि वह पलों में उड़कर कालेज पहुँच जाए पर रिक्शे की धीमी चाल उसके दिल से मजाक करती जान पड़ती थी। जब वह कालेज पहुंची तो कालेज का सूना आँगन देख उसका दिल धड़का। मन पानी सा बह चला। वह एक ही नज़र से कालेज का कोना -कोना छान देना चाहती थी . उसने चारों ओर खोजी नज़रों से देखा पर हर ओर का सूनापन ईंट की तरह उसके माथे से आ टकराता। वह पार्क में गई वहाँ भी उदासी ही हाथ लगी। उसकी आँखों के आगे अँधेरा छा गया , '' हाय रब्बा ! अब क्या करूं ? '' उसने दोनों हाथों से अपना पेट दबा लिया। अंदर से दिल चीरती हूक उठी , वह वहीँ ढेर हो गई। आँखों से आंसुओं की धारा बह चली , '' हाय माँ !'' उसने अपनी जननी को पुकारते हुए चीख मारी
. भागू दस मिनट लेट हो गया था। वह कालेज आया। चारो ओर निगाह मारी। गुरमीत कहीं न दिखी। कालेज की बिल्डिंग के पीछे बने पार्क में गया तो गुरमीत सामने झुकी बैठी थी। वह धीमी गति से चलता हुआ गुरमीत के पीछे जा खड़ा हुआ , '' गुरमीत ! ''
गुरमीत ने पीछे मुड़ कर देखा , '' मेरे भाग !!'' उसने भागू को पागलों की तरह अपनी बाहों में कस लिया।
'' क्या हुआ मेरी मीत को ?'' भगवान ने उसके बालों में प्यार से हाथ फेरा।
'' इतनी देर से आये तुम ?'' उसने नकली गुस्से से मुंह फेर लिया पर उसकी अंदर की ख़ुशी होंठों पर उतर आई थी।
'' इतनी कितनी देर हुई ? तेरे दिए समय से बस दस मिनट ऊपर हुए हैं। '' भगवान ने अपनी घड़ी वाली बांह उसके आगे कर दी। गुरमीत ने भगवान की बांह को दोनों हाथों से पकड़ लिया , '' तेरे इन दस मिनटों ने मेरी जान निकाल लेनी थी। ''
'' जान निकले हमारे दुश्मन की। '' भगवान ने उसका हाथ अपने मज़बूत हाथ में कस लिया . फिर कुछ देर ख़ामोशी छाई रही। दोनों एक दूसरे को एकटक देखते रहे।
'' हाँ बता फिर , अब क्या किया जाये ?'' भगवान की आँखों के आगे होने वाली अनहोनी चक्कर लगाने लगी।
'' अब तो एक ही रास्ता है। ''
'' क्या ?''
'' दोनों भाग चलते हैं कहीं। '' गुरमीत भगवान के चेहरे पर नजर गड़ाते हुए उसका चेहरा पढ़ने लगी।
''घर वाले बिलकुल नहीं माने ?''
'' नहीं, मैंने तो हर संभव कोशिश कर के देख ली , मेरी माँ के सिवाय और कोई नहीं माना। अब यही एक रस्ता बचा है। ''
'' मीत पहले अपने मन को अच्छी तरह तौल ले , बड़ी मुश्किलें झेलनी पड़ सकती हैं।''
'' मैंने तो मन को तौल कर ही तुम्हें संदेशा भेजा था। मैं तुम्हारे साथ हर कठिनाई का सामना करने को तैयार हूँ , बस तुम धोखा मत देना। '' गुरमीत का गला भर आया।
'' तुम्हारे लिए जान दे सकता हूँ , बोलो कब चलना है ?''
'' अभी ले चल। '' गुरमीत ने भगवान की बाँह दोनों हाथों से पकड़ ली।
'' अभी ठीक नहीं , हम रात को चलेंगे , ताकि दिन चढ़ने तक दूर निकल जाएं। और फिर तब तक मैं कुछ पैसों का इंतजाम भी कर लूंगा। ''
''अच्छा तुम्हारी मर्जी। ''
'' बता कौन सी रात आऊं ?''
'' परसों आ जाना ,ग्यारह बजे के आस -पास ? ''
उस दिन वे पूरा प्लान बनाकर लौटे थे। दोनों के हंसते नैनों में दिल की मुराद पूरी होती दिखाई दे रही थी और साथ ही समाज के विरुद्ध बगावत करने पर मिलने वाली सजा का डर भी था।
आज गुरमीत से किये वादे के मुताबिक भगवान स्कूटर लेकर रात को निकल पड़ा था । स्कूटर सड़कें फलांगता बड़े चक्क के नजदीक पहुँच गया। गुरनैब ने सुए (सोता ) की पुलिया पर स्कूटर रोक लिया। स्कूटर की लाइट के आगे बांह करके टाइम देखा।
'' अभी तो चालीस मिनट बाकी हैं , कैसे करना है ?'' उसने भागू को पूछा।
'' बंद कर दे स्कूटर , पंद्रह मिनट पहले चलेंगे। ''
दोनों स्कूटर का स्टैंड लगा सुए की पुलिया पर बैठ गए। सुए का ठंडा पानी शांत बह रहा था। अँधेरी रात में धान की फसल काली चादर की तरह धरती पर बिछी हुई लग रही थी। सामने सड़क के किनारे ऊँचे लम्बे सफेदों के दरख़्त चीन की दीवार से जान पड़ते थे । दूर बुढलाडे से बाहर -बाहर जाती जी. टी. रोड पर कोई एक -आध गाड़ियों की लाईट , किसी यौवना के दुपट्टे पर लगे सितारों की मद्धिम रौशनी में चमकने की तरह चमकती थी। सुए से दो - तीन किले की दूरी पर पिंड चक्क के घरों में कहीं -कहीं बत्तियां जल रही थीं। कभी -कभी किसी कुत्ते के भौंकने की आवाज सुनाई दे जाती। सुए के किनारे खड़े कीकर के दरख़्त से कोई पक्षी चिर -चिर करता उड़कर सफेदों के दरख़्त पर जा बैठा , शायद उसे आधी रात के समय अपने घोंसले के पास किसी मनुष्य की उपस्थिति खतरे की घंटी लगी थी।
दोनों की हो रही धीमी बातचीत सुए के पानी की तरह शांत और चुपचाप थी। बीस मिनट बीत गए। गुरनैब ने स्कूटर को किक मारी। दरख्तों पर बैठे पक्षियों में हिलजुल हुई। कीकर वाला पक्षी खतरा टल गया समझ चिर -चिर करता फिर कीकर पर जा बैठा। लंबे सफेदों के बीच स्कूटर की आवाज़ कुएँ में बोलने जैसी ऊँची हो गई। सामने जी. टी. रोड थी। दोनों ने धड़कते दिल से स्कूटर जी. टी. रोड पर चढ़ा लिया। अब कोई भी खतरा गले पड़ सकता था। पुलिस ने घेर लिया तो क्या जवाब देंगे। दोनों के दिल डर से 'धक् -धक्' कर रहे थे। कोई भी सामने से आती गाड़ी पुलिस की गाड़ी हो सकती थी या किसी चौक में पुलिस से सामना हो सकता था।
जब बुढलाडा पार हो गया तो दोनों के चेहरों पर ख़ुशी झलक आई। एक तसल्ली भी हो गई थी कि वापसी में भी कोई खतरा नहीं। शेखगढ़ को जाती उबड़ -खाबड़ , टूटी -फूटी सड़क पर स्कूटर धीमे हो गया। बूढ़े कीकर के दरख़्त कुबड़े बुजुर्गों की तरह झुके हुए खड़े थे। स्कूटर की 'खरड़ -खरड़ ' सुनकर टीले पर खड़ी बेरी के नीचे बैठी नील गायों के झुंड ने कान खड़े कर लिए। उनकी आँखें काली रात में बैटरियों की तरह चमकी। कुछ हिलजुल के बाद शांत होकर बैठ गई। अब सामने शेखगढ़ पिंड का कोई -कोई बल्ब चमकता नज़र आने लगा था। स्कूटर शेखगढ़ फाटक से थोड़ा हटकर पहे में डाल लिया गया . रेल पटरी के नज़दीक पहुँच कर बंद कर लिया। सामने गुरमीत का घर था। सारा पिंड सोया हुआ था। कभी -कभार किसी कुत्ते के भौंकने की आवाज़ अपनी होंद जाती। दाहिनी तरफ फाटक की मद्धिम लाइट की दूधिया रौशनी पटरी पर ऊंघ रही थी . दोनों कुछ देर खड़े स्थिति को भांपते रहे। जब चारो ओर शांति दिखी तो भागू ने कंधे से बैग उतार कर गुरनैब को पकड़ा दिया।
''तुम ऐसा करो , यहीं खड़े रहो , अगर तुम्हें कोई पूछे तो कह देना हम तो फलाने शहर से आये हैं , यहाँ स्कूटर खराब हो गया , मेरे साथ का साथी पिंड से कोई चाबी -पाने ( औजार ) का इंतजाम करने गया है।'' भागू उसे पूरी बात समझकर पटरी फलांग गया। गुरमीत के गेट के पास जाकर दीवार से चिपक कर बैठ गया। एक काला कुत्ता उसे देखकर भौकने लगा। पहले तो भागू का जी किया कि ईंट उठाकर उसे दे मारे , पर फिर शोर के डर से चुपचाप बैठा रहा। कुत्ता कुछ देर भौक कर फाटक की ओर चला गया।
लोहे के गेट के आगे खड़ा भागू थोडा चौकन्ना हो गया। छोटा गेट खोलकर गुरमीत बाहर आई , भागू ने दौड़कर उसे बाहों में कस लिया। गुरमीत ने बाहर से कुण्डी लगा दी और बिना कुछ बोले भागू के साथ चल पड़ी .
तुम्हारे पिंड आया हूँ और तुमने चाय -पानी तक नहीं पूछा। '' भागू ने गुरमीत को छेड़ते हुए कहा।
'' चाय -पानी पिलाने वाली तो पिंड को अलविदा कह कर तुम्हारे साथ चली जा रही है। '' गुरमीत ने अपनी बांह भागू की कमर में डाल ली .
'' बैग में क्या है ?'' भागू ने गुरमीत के गले में डाले बैग को देखकर पूछा.
'' बैग में क्या है ?'' भागू ने गुरमीत के गले में डाले बैग को देखकर पूछा.
'' कपड़े और पैसे .''
'' पैसे तो मैं ले आया था .''
'' तो क्या हुआ पैसों की जरुरत तो पड़ती रहेगी , और फिर मेरा भी तो हक़ बनता था . ''
'' कितने हैं ?''
'' बीस हजार .''
''बीस हजार ? इतने क्या करने थे ?''
'' इतने कितने हैं ?''
''हाँ तुम अमीरों के लिए तो ये कुछ भी नहीं .''
दोनों
बातें करते स्कूटर के पास पहुँच गए . भागू ने गुरमीत से बैग पकड़ कर अपने
कंधे में डाल लिया और दूसरा बैग स्कूटर के आगे रख दिया . शांत वातावरण में
स्कूटर की गूंज दोबारा फ़ैल गई . फाटक की मद्धिम लाइट दूर होती गई . पिंड में जलता
एक -आध बल्ब भी अँधेरे ने अपनी चपेट में ले लिया . बुढलाडे की दूधिया
रौशनियां आँखों के आगे चमकने लगीं . स्कूटर बाज़ार की रौशन गलियों से होता
हुआ रेलवे स्टेशन पहुँच गया .
'' अच्छा भाई गुरनैब , तूने मेरे लिए इतनी तकलीफ की , तुम्हारा बहुत -बहुत शुक्रिया . '' गुरमीत और भागू स्कूटर से उतर गए .
'' तकलीफ कैसी ये तो दोस्त के नाते मेरा फ़र्ज़ बनता था .''
'' अच्छा भाई संभल कर जाना .'' भागू ने गुरनैब से हाथ मिलाते हुए गले से लगा लिया .
'' तुमलोग भी
होशियार रहना . और भाभी का ख्याल रखना कहीं राह में ही न भूल जाना ..''
गुरनैब की मीठी चोट पर गुरमीत हँसने लगी , '' अच्छा वीर , अच्छा भाभी .''
'' अच्छा भाई !''
गुरनैब
चला गया। दोनों मुसाफिर हाल से होते हुए बाहर बैंच पर आ बैठे। सारे
स्टेशन में मौत जैसी चुप्पी थी। बस दस -पंद्रह सवारियां बाहर बैंच पर बैठी
ऊंघ रही थीं। प्लेटफार्म पर आवारा कुत्ते इंडुवों की तरह इकट्ठे होकर सोये हुए थे। एक
ओर एक रेहड़ी वाला किसी गाहक के इन्तजार में उबासियाँ ले रहा था। उसके छोटे
से स्टोव के ऊपर रखी केतली में से किसी नशेड़ी की बीड़ी के धुँए जितनी भाप
निकलकर प्लेटफॉर्म के चारों ओर फैलती जा रही थी और उसमें से आती लौंग की
सुगंध आते -जाते लोगों का दिल ललचा रही थी।
'' तुम बैठो यहाँ , मैं चाय के लिए
कहकर आता हूँ , और टिकटें भी ले आता हूँ। '' भागू ने बैग गुरमीत के पास
बैंच पर रख दिया और चाय वाले की ओर बढ़ गया।
'' एक बजे आएगी कुरुक्षेत्र को जाने वाली गाडी। '' भगवान ने दोनों टिकटें गुरमीत को पकड़ा दिन।
'' राह में कितना समय लग जायेगा ?''
'' लग जायेंगे तीन -चार घंटे , पहले थानेसर उतरना पडेगा। फिर वहाँ से कुरुक्षेत्र वाली गाडी पकड़नी पड़ेगी। ''
'' फिर तो हम सुबह तक पहुंचेंगे। ''
''हाँ। ''
'' लो साहिब चाय। '' चाय वाले ने ट्रे में रखे दो छोटे कप आगे कर दिए। दोनों ने एक -एक कप उठा लिया।
स्टेशन पर दो चार सवारियां और आ बैठी
थीं । गाडी का समय नजदीक होने के कारण स्टेशन पर खुसर -फुसर शुरू हो गई
थी। सारे मुसाफिर अपना - अपना सामान उठाने में जुट गए . गाड़ी ने दूर से
काले अँधेरे को चीरती चीख मारी। इंजन के माथे पर लगी चाँद जैसी गोल लाईट
नज़दीक होती गई। स्टेशन पर हफडा -तफडी मच गई , शोर बढ़ गया , गार्ड हरी झंडी
लेकर आगे आ गया। गाडी के रुकने के साथ ही ब्रेक चीखे। कुछ लोग अपना सफर खत्म कर उतर गए और कुछ नई मंज़िलों की तलाश में सफर पर चल पड़े।
भगवान और गुरमीत ने अपने -अपने बैग अपनी -अपनी जांघों पर रख लिए और खिड़की
के पास वाली सीट पर कब्ज़ा के लिया । सामने की सीट पर एक औरत , उसका पति और दो
बच्चे एक दूसरे के ऊपर सर रखे सोये हुए थे। ऊपर की सीट पर एक बुजुर्ग
खर्राटे मार रहा था। दाहिने की ओर सीट पर एक साधू गठरी बना लेटा हुआ था जो
शोर -गुल सुन जाग गया था और अब पुनः सोने की कोशिश में था। साधू वाली सीट
पर एक बिहारी भइया और उसकी पत्नी एक छोटे बैग और एक बोरी में निक्क -सुक्क डाले हुए आ बैठे थे। गाडी की लम्बी कूक ने सभी मुसाफिरों को चौकन्ना कर दिया और फिर छोटे से
झटके से धीरे -धीरे रेंगने लगी जैसे कोई ज़ख़्मी हुआ काला सांप धीरे -धीरे
रेंगता है। गाडी 'छुक -छुक 'करती धुएं के बादल छोड़ती और तेज होती गई।
स्टेशन और शहर की लाइटें दूर होती गईं , और छोटी होती गईं और फिर काले
अँधेरे में आलोप हो गई। अब गाडी अँधेरे को चीरती , स्टेशनों को पार करती ,
पिंड और शहरों को पीछे छोड़ती सरपट दौड़ी जा रही थी।
अँधेरा सिकुड़ कर कोनों में दुबक रहा था। रौशनी धीरे - धीरे बढ़
रही थी। घोंसलों में पक्षियों की हिलजुल और चीं -चीं उदय होती सुबह का
स्वागत कर रही थी। सुबह की गाड़ी की लम्बी कूक और 'दगड -दगड ' ने सारे
शेखगढ़ को झकझोर कर जगा दिया था। सूबेदार हरबख्श सिंह की नींद खुली तो सीरी
आवाजें मारता गेट को 'थप -थप ' खड़का रहा था। उसने हड़बड़ाहट में टटोल कर
चप्पल पहनी और गेट खोलने चल पड़ा। जब उसने गेट खोलने के लिए हाथ बढ़ाया, गेट
अंदर से खुला हुआ था।
'' ओये भाई देविआ बाहर से ही अड़ा हुआ लगता है । ''
'' ओह हाँ। '' सीरी बाहर से कुण्डी खोल कर अंदर आ गया।
'' मैंने कहा देवे को चाय बना देती जरा। '' हरबख्श मीती
की माँ के सिरहाने खड़ा होकर बोला। मीती की माँ आँखें मलती ' हे वाहेगुरु '
कहती हुई बिस्तर से उठ गई।
'' बाहर कौन गया है ?'' हरबख्श ने मीती की माँ से पूछा।
'' कोई भी नहीं। ''
'' कुण्डी तो बाहर से लगी थी , रात मैं खुद अंदर से लगाकर सोया था। मिन्दर कहाँ है ?''
'' वह तो कोठे पर सोया है। मीती अंदर होगी , रात कहती थी मैं पढ़ कर अंदर ही सो जाऊंगी । ''
हरबख्श ने कोठे पर चढ़कर देखा , मिन्दर सोया हुआ था। हरबंश ने उसे उठा दिया। जब हरबख्श और मिन्दर सीढ़ियां उतर रहे थे तो मीती की माँ घबराई सी भागी आई , ''
मीती के बापू ! मीती अंदर नहीं है , उसके कपड़े -लत्ते भी बिखरे पड़े हैं .
''
'' अरे …होगी यहीं कहीं, जायेगी कहाँ ? ''
''ना
जी आप अंदर जाकर तो देखो ! '' मीती की माँ आगे -आगे चल पड़ी। जब हरबख्श ने
देखा कपड़े सचमुच बिखरे पड़े थे , अलमारी देखी अंदर से गुरमीत के कई सूट गायब
थे . अंदर कमरे में देखा , हरबख्श की खुली हुई अलमारी होनी को ब्यान कर रही
थी। सारा परिवार सकते में आ गया। मीती की माँ गश खाकर गिर पड़ी। मिन्दर
ने भाग कर उसके मुंह में पानी डाला। वह बावरों की तरह 'हाय -हाय ' करने
लगी। सभी की अजीब हालत देख कर सीरी भी चारा डालना छोड़ भागा चला आया , ''
क्या हो गया जी ? ''
'' मीती घर में नहीं है। '' मिन्दर की बात से सीरी सब कुछ समझ गया।
''
अच्छा सुनो ! जो हो गया सो हो गया। अब बात को यहीं दबा दो , बात बाहर न
निकलने पाये . अगर कोई पूछे तो कह देना रिश्तेदारों के घर गई है। तब तक हम
सोचते हैं क्या करना है , मेरे भाई तुम भी बात अपने तक ही रखना। '' हरबंश
ने सारे परिवार को समझाते हुए कहा।
सारे परिवार ने किसी के कान तक हवा न
लगने दी। मिन्दर और हरबख्श सुबह ही गाड़ी लेकर खोज में निकल पड़ते और शाम तक
थके -हारे घर लौटते। मीती की माँ पानी का गिलास पकड़ाते हुए पूछती , ''
लगा कुछ पता ? '' पर हरबख्श का उदासी में झुका सर ' नहीं ' में हिल जाता।
मीती की माँ कलेजा पकड़ कर बैठ जाती। दो तीन दिन जब कोई सुचना हाथ न लगी तो
हरबख्श ने संगरूर जाकर अपने मित्र थानेदार से बात की। थानेदार ने उसे
तस्सली भरा हुंकारा देकर रवाना कर दिया और खुद गुप्त रूप से छानबीन करनी
शुरू कर दी।
23
जाट
धरमशाला की ऊपर की छत से सारे कुरुक्षेत्र की लाइटें दिवाली में लगे दीयों
की तरह चमक रही थीं। सारा आसमान तारों से भरा था। नीचे सड़क पर कारें ,
जीपों की लाइटें चींटियों की तरह इधर -उधर भागती नज़र आ रही थीं। सामने
शांतिनगर से गुजरती रेल की पटरी पर ' दगड -दगड ' करती जाती रेल गाड़ी शांति
नगर की शांति भंग करने में जुटी थी। नीचे धरमशाला में नए आते -जाते
मुसाफिरों का शोर था। भगवान और गुरमीत धरमशाला की ऊपर की छत पर खड़े सुबह
यहाँ से चले जाने की सलाह बना रहे थे। उनको यहाँ आये पांच दिन हो गए थे।
पहले तो चार -पांच दिन कुछ सुझा ही नहीं था कि क्या किया जाये। फिर भगवान की
सोच के आगे गुरदीप सरपंच आ खड़ा हुआ था। आज सुबह जब गुरदीप को फोन किया तो
उसने सलाह दी कि वे कोर्ट मैरिज का मुकदमा संगरूर ही करें। गुरदीप सरपंच
ने उन्हें कल शाम तक संगरूर पहुँचने की ताकीद भी की ताकि वह परसों सवेरे नौ
बजे तक उनसे मिलकर आगे आने वाले हालातों के बारे सलाह मशवरा कर सके। उस
वक़्त भगवान भी डर को पीछे छोड़ हौंसले में आ गया था , जब गुरदीप ने बता दिया
था कि अब तो तुम्हारे घर वाले भी ज्यादा विरोध नहीं कर रहे। गुरदीप ने
भगवान को यह भी हौसला दिया था कि अगर कोई जरुरत आन पड़ी तो वह खुद आगे होकर
घर वालों को मना लेगा।
गुरदीप
भगवान से फोन पर कितनी ही देर सलाह मशवरा करता रहा था। उसकी हौंसला देती
बातें सुन भगवान हल्का हो गया था। उसने दिमाग में उठाया चिंताओं का भार एक ही
झटके में उतार दिया। सरपंच से बातें करने के बाद उसके डोलते दिल को सहारा
मिल गया था। अब उसे अपनी मंज़िल की ओर जाता रस्ता साफ़ दिखाई दे रहा था।
सुबह उठकर दोनों ने ख़ुशी -ख़ुशी अपने
कपडे -लत्ते बैग में डाल लिए। पहले गुरुद्वारे जाकर मत्था टेका , देग
करवाई और फिर यूनिवर्सिटी के गेट के आगे से कैथल की ओर जाने वाली बस में चढ़
गए। कैथल से सीधी संगरूर की बस मिल गई। तीन बजे तक संगरूर पहुँच गए।
संगरूर बस अड्डे पर दोनों डरते -डरते उतरे , क्या पता कोई जान पहचान का न
मिल जाये। लम्बे सफर ने दोनों को तोड़ दिया था। उसपर सारे दिन की भूख ने
बुरा हाल कर दिया था। दोनों घबराये से बस अड्डे से बाहर आ गए।
'' गुरमीत। ''
'' हाँ। ''
'' पहले कुछ खा -पी लेते हैं , आगे की फिर देखेंगे। मैं तो मरने जैसा हुआ पड़ा हूँ। ''
'' चलो ठीक है , भूख तो मुझे भी बहुत लगी है। ''
दोनों बड़े बज़ार की ओर चल पड़े। छोटे चौक जाकर बाएं मुड़ गए।
'' यहीं ठीक है। '' भगवान ने खड़े होकर सामने के होटल की
ओर इशारा किया। गुरमीत ने सर हिलाकर सहमति दे दी। दोनों होटल में जा
बैठे।
'' आओ साहब '' बैरे ने
पास के मेज की ओर इशारा कर दिया। गुरमीत और भगवान कुर्सियों पर बैठ गए।
बैरे ने कंधे पर रखा गिला तौलिया सामने के मेज पर मार दिया और फिर उसी
तौलिये से हाथ पोंछ कर दोबारा कंधे पर टिका लिया। पहले से पड़े गिलास और जग
उठा लिए तथा दो गिलास और पानी का जग रख गया .
''हाँ साहब ?'' बैरा खाने के लिए पूछ रहा था।
'' दो पूरियों की प्लेटें। '' भगवान ने हुक्म दिया।
'' चाय ? '' बैरे ने पूछा।
'' बाद में। ''
'' अच्छा जी। '' कहकर बैरा चला गया।
पूरियों की प्लेटें आ गई। दोनों ने
अभी एक - एक पूरी ही खाई थी . जब गुरमीत ने दूसरी पूरी का कौर तोड़ते हुए सामने देखा
तो उसकी आँखें वहीँ पत्थर बन गई। दिल सहम गया। माथे से पसीना चूने लगा।
होंठों पर सिसकी आ गई। दिल धक् -धक् बजने लगा। सामने दो सिपाही और एक
थानेदार होटल वाले से बातें कर रहे थे। होटल वाला हुक्म सुन मिठाई तौलने
लगा।
'' भागू ! '' सहमी हुई गुरमीत के गले से बमुश्किल बोल निकला।
'' हाँ , क्या हुआ ?'' गुरमीत की ऐसी हालत देख भागू के भी होश उड़ गए।
'' वह सामने जो थानेदार खड़ा है , ''
भगवान ने गर्दन घुमा कर पीछे की ओर देखा और फिर सवालिया नज़रें गुरमीत के
चेहरे पर गड़ा दी , '' वह मेरे डैडी का दोस्त है , हमारे घर भी आया है कई
बार। ''
'' फिर क्या हो गया। '' भगवान ने बेपरवाह सा होकर कहा।
''
वह मुझे जानता है अच्छी तरह से । हमारी बात डैडी ने इसे भी लाज़मी बताई
होगी। '' भगवान ने तो इस बात का अंदाज़ा ही नहीं लगाया था। जब यह बात उसकी
समझ में आई तो उसका अंतर हिल गया। दोनों डर से सिकुड़े , नज़रें नीची किये
बैठे थानेदार के चले जाने का इन्तजार करने लगे पर थानेदार मिठाई पैक करवा
कर होटल वाले को कोई नया हुक्म दे कर कुर्सियों की ओर बढ़ गए ।
'' वे तो इधर ही आ रहे हैं। '' गुरमीत और सिकुड़ गई , जैसे कोई छोटा बच्चा अनजाने जानवर ' माऊं ' के नाम से डर जाता है।
'' अब क्या करें ? '' भगवान ने डरी आवाज़ में पूछा।
'' देखी जायेगी। '' गुरमीत को कोई रस्ता न दिखा।
कुर्सियों
पर बैठते समय थानेदार की निगाह सहमें बैठे लड़के -लड़की के ऊपर जा पड़ी। वह
बैठता -बैठता वहीँ रुक गया , '' हैं ! गुरमीत ? '' उसकी कुंडलीदार मूछें
हैरानी से फड़की। वह घेरने जैसी जल्दी से दोनों के सर ऊपर आ खड़ा हुआ , पीछे
दोनों सिपाही।
''
कुड़िये तूने अच्छी इज़ज़त बनाई है अपने डैडी की , हैं ? जरा सा अपने माता
-पिता की इज्जत का भी ख्याल कर लेती ?'' थानेदार गुरमीत पर बादलों की तरह गरजा।
'' तुन ओये ! किधर के बड़े आशिक बने फिरते हो ? चल थाने , तेरी निकालें आशिकी। '' थानेदार ने भगवान को बांह से पकड़ कर खड़ा कर लिया।
'' अंकल मैं इसके साथ अपनी मर्जी से आई हूँ। इसका क्या कसूर है। '' गुरमीत भगवान के बराबर खड़ी हो गई।
'' कल तू अपनी मर्जी से कुछ और करेगी
, जिन्होंने तुझे जन्मा , पाला , पढ़ाया , उनकी कोई मर्जी नहीं ? ''
थानेदार थानेदारी की रौब झाड़ता बरस पड़ा .
'' ब्याह करवा कर इनके साथ रहना है मैंने। चाहे मैं दुःख
में रहूँ या सुख में , उन्हें क्या ? अगर उन्होंने मेरे घर नहीं आना तो
मत आयें। मैंने तो इन्हीं से विवाह करना है। '' गुरमीत थानेदार की बात
का जवाब तल्खी से दे गई।
'' चलो तुम लोगों का कराते हैं
विवाह। '' थानेदार और दोनों सिपाही दोनों को पकड़ कर थाने ले गए। थाने ले
जाकर पहले तो दोनों को डराते धमकाते रहे। जब दोनों अपनी -अपनी बात पर अड़े
रहे तो थानेदार भगवान को थाने में छोड़कर , गुरमीत को अपने साथ घर ले गया। उसने गुरमीत के
डैडी को फोन करके घर बुला लिया। गुरमीत की माँ , बाप , भाई और मौसी उसे
जबरन कार में डाल कर पिंड की ओर ले चले। कार गुरमीत को लेकर छिपते सूरज
की तरह बाज़ार की भीड़ में गुम हो गई।
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गुरदीप
सरपंच , गुरनैब , राजा और भगवान के ताऊ का लड़का जग्गा , भगवान का संगरूर
बस स्टैंड पर नौ बजे से इन्तजार कर रहे थे पर भगवान कहीं दिखाई न दिया। नौ
से साढ़े नौ हो गए , फिर पौने दस और फिर दस बज गए। सबकी परेशानी बढ़ गई .
बुरे ख्यालों ने सबके दिमाग जकड़ लिए। आखिर क्या बात हो गई ? समय तो नौ बजे
बस अड्डे का ही दिया था।
'' सरपंच , अभी तक भगवान आया क्यों नहीं ? क्या बात हुई होगी ?'' गुरनैब ने सरपंच के पास जाकर पूछा।
'' मुझे तो उसने नौ बजे ही कहा था , कहता था पक्का आ जाऊँगा। '' सरपंच को भी कुछ समझ नहीं आ रही थी .
'' हो सकता है आया ही न हो। '' राजा बोला।
'' परसों तो उसने फोन में कहा था कि
मैं यहाँ से कल सुबह ही चल पडूंगा। यदि वहाँ से कल सुबह ही चल पड़ा होगा तो
कल दोपहर तक यहाँ पहुँच गया होगा। '' सरपंच के दिमाग में भगवान के साथ हुई
सारी बातचीत घूम गई ।
'' कहीं पुलिस के हत्थे न चढ़ गए हों ? '' गुरनैब ने अपनी सोच के मुताबिक शक जाहिर किया।
''
हो सकता है। '' गुरनैब का शक सबको सोचने के लिए मज़बूर कर गया , '' और फिर
हम इतनी दूर कैसे पता करेंगे ?' गुरनैब के सामने एक और उलझन आ खड़ी हुई।
'' पहले यहीं पता करते हैं , क्या
पता यहीं कोई हादसा हो गया हो।'' सरपंच की बात सबको जंच गई . सरपंच आगे
-आगे चल पड़ा बाकि सभी उसके पीछे। बाज़ार से होते हुए वे सभी बड़े चौक पहुँच
गए। जब वे थाने के दरवाजे के सामने से गुजरने लगे तो दरवाजे की दाहिनी तरफ
बनी हवालात में भगवान बैठा दिखाई दिया। सरपंच को देख कर उसका हौंसला बढ़
आया। वह ख़ुशी और शर्म से होंठों में मुस्कुरा पड़ा। सरपंच उसकी ओर हौंसले से
भरा हाथ खड़ा करके सीधे थानेदार के पास जा पहुँचा । गुरदीप सरपंच ने अपनी
पहचान बताई और दोनों ने आपस में जोश से हाथ मिलाया। जब उन्होंने भगवान को
छोड़ने की बात कही तो थानेदार 'पैरों पर पानी न पड़ने' दे . पहले तो सरपंच
मिन्नतें करता रहा जब घी सीधी ऊँगली से निकलता नज़र न आया तो सरपंच थानेदार
पर सीधा बरस पड़ा , ''थानेदार साहब ! लड़का -लड़की अपनी मर्जी से विवाह करना
चाहते हैं , और फिर ये नाबालिग भी नहीं , दोनों ने बी ए की है। इनको आप
किस कानून के तहत रोक रहे हो ? हमारे लड़के का कसूर बताओ क्या है ? कोई
पर्चा दर्ज है इसके नाम पर ? आप ने उसे बिना किसी कारण के बंद कर रखा है !
हम मीडिआ को बुलाएंगे। और फिर आप पर नजायज तशदद का केस करेंगे। चलो
साथियो !'' सरपंच गुस्से से लाल हुआ कुर्सी से भट्टी के दाने की तरह
तिड़कता उठ खड़ा हुआ।
'' सरपंच साहब आप लड़के को ले जाना ,
इतनी भी क्या जल्दी है, बैठ जाओ दो मिनट। '' थानेदार सरपंच की क़ानूनी बातें
सुन कर पानी की झाग की तरह बैठ गया। उसके पैरों के नीचे से जमीन निकल
गई। उसने बकरी के बच्चे की तरह से मिन- मिन करके सरपंच को ठंडा कर लिया और
आखिर भगवान को उनके साथ जाने दिया।
थाने से वे सीधा कचहरी की ओर चल
पड़े। सरपंच की आँखों में अभी भी गुस्सा अंगारों की तरह तप रहा था। यह
गुस्सा भगवान के पक्ष में भुगत गया । उसने अच्छे से अच्छा वकील
देख कर भगवान और गुरमीत का केस जबर्दस्त तैयार करवाया। शाम छह बजे वे
आँखों में उम्मीद लिए कचहरी से बाहर आये।
24
चाहे शेख़गढ़ियों के सारे परिवार ने गुरमीत की बात का पूरी तरह छिपाव रखा था
पर अंदर दबी आग का धुँआ कोठे पर चढ़कर चारों ओर फ़ैल गया था। गुरमीत के भाग
जाने की खबर मीते की घरवाली के मुंह से होती हुई सारे पिंड में जंगल की आग
की तरह फ़ैल गई थी। बाहर ढोल बज गए थे पर अंदर भ्रम था कि बात कोठी की ऊंची
दीवारें फलांग नहीं सकी। सारा परिवार शाम को सौ -सौ सलाहें करता था पर कोई
बात किसी किनारे नहीं लगी थी।
जिस दिन थानेदार का फोन आया सारे परिवार ने सुख की सांस ली , '
चलो इज्जत मिटटी होने से बच गई। ' वे तुरंत गाडी से गुरमीत को ले आये। घर
आते ही अंदर से कुण्डी लगाकर मिन्दर और हरबख्श ने गुरमीत को ' ताबड़ -तोड़ '
पीट डाला। मीती की माँ हाथ जोड़ती , मिन्नतें करती रही पर उसकी किसी ने न
सुनी। गुरमीत लाश बनी चुपचाप मार खाती रही। जब पीट -पीट कर दोनों थक गए
तो वे गालियां देते बाहर चले गए। गुरमीत की माँ ने नीचे गिरी गुरमीत को
उठाकर छाती से लगा लिया और उसका पसीने से तर हुआ चेहरा अपने दुपट्टे से साफ़
करने लगी . गुरमीत का रुका दर्द छाती फाड़कर बाहर आ गया। वह माँ के सीने
से लगकर जोर -जोर से रो पड़ी। उसकी माँ अपने आँसू पोंछती कितनी ही देर उसे
चुप कराने की कोशिश करती रही।
दो तीन दिनों तक सारे परिवार ने बात को आई -गई कर दिया। चलो
लोगों को पता लगने से पहले इज्जत घर आ गई। अगर बात आगे बढ़ाते तो अपना ही
पेट नंगा होना था। अभी भी रब्ब का शुक्र है पर जब अदालती केस का उन्हें
पता चला तो सारे परिवार के सूख रहे ज़ख्म दोबारा हरे हो गए। इस बात पर तो
किसी ने सोचा तक नहीं था कि शांतपुर वाले यहाँ तक पहुँच जायेंगे। हरबख्श
फिर थानेदार के पास भागा। पर अब कोई रास्ता न था। आखिर गुरमीत की
सहेलियों और रिश्तेदारों को बुलाकर गुरमीत पर जोर डाला जाने लगा कि वह
भगवान के विरुद्ध ब्यान दे दे। हरबख्श ने अपनी पहुँच से पेशी भी आगे करवा
ली। आखिर गुरमीत ने सबकी बात मान ली।
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गाड़ी
ने आसमान छूती बिल्डिंग के पास आकर ब्रेक मारे। बीच से भगवान , उसका बाप ,
मुखत्यार सरपंच , गुरदीप सरपंच , राजा , गुरनैब सिंह और साथ आये एक - दो
और लोग उतर कर सामने नीम के नीचे बनी सीमेंट की चौकड़ियों की ओर चल पड़े।
मुखत्यार और गुरदीप सरपंच समय के बदलने के साथ-साथ बदल गए थे। गली का
किस्सा खत्म होने के बाद वे अब एक ही बर्तन में खाने लगे थे और दोनों ने
इकट्ठे होकर पिंड के कई काम भी संवारे थे। पिंड में लोगों के पढ़ने के लिए
एक पुस्तकालय भी खोल दिया था। इन सब में भगवान के सयानेपन ने विशेष भूमिका
निभाई थी। अभी पेशी में पौना घंटा बाकी था। फैसला तो शायद इससे पहली
तारीख को ही हो जाना था पर शेखगढ़ वालों ने जोर डाल कर पेशी आगे बढ़ा दी थी।
शायद उन्हें यकीन था कि वे समझा -बुझा कर गुरमीत को भगवान के विरुद्ध कर
देंगे।
'' शेरा कितना काम बढ़ाया , तुझे बहुओं की कमी थी क्या , मुझे
बताता तुझे दूसरे दिन ही रिश्ता ला देता। '' गुरदियाल ने चौकड़ी पर बैठते
हुए कहा।
'' ताऊ रिश्तों की क्या कमी है इसके लिए , रोज चार -चार आते थे पर यह तो दिल मिलने की बात है। '' गुरनैब ने अपनी दलील दी।
'' दिल तो विवाह के बाद भी मिल जाते हैं पुत्तरा , मैंने तेरी
ताई का मुँह सुहागरात वाले दिन ही देखा था। अब देख ले हमारा कितना प्यार
है। '' गुरदयाल ने गुरनैब की दलील को घेर लिया।
'' ताऊ तूने रिश्ता बिना देखे ही कर लिया ?'' राजे ने गुरदयाल की बात पर हैरानी से मुंह खोल लिया।
'' लो .... पहले कौन देख -दिखाई करता था। पहले तो लाटरी निकलती
थी। सुहाग रात वाले दिन ही घूँघट उठाने से पता चलता था , कि कानी है ,
लूली है या गोरी चिट्टी। पहले तो अगर दोनों घरों की राय बन जाती तो छोटे-
छोटों को ही उठाकर फेरों पर बैठा देते। जब बड़े हो जाते तो लड़का आकर
मुकलावा ले जाता। वे भले दिन कहाँ रह गए शेरा।'' गुरदयाल ने नए -पुराने रीति
-रिवाजों को आपस में तौल कर उदासी में डूबी लम्बी साँस ली। उसकी मिचमिचाती आँखों में
पुराना जमाना झलक रहा था।
'' लगता है शेखगढ़ वाले भी आ गए हैं। '' राजे के शब्दों ने सबका
ध्यान सामने आते शेखगढियों की ओर कर दिया। पांच -छह पुरुषों और तीन -चार
औरतें से घिरी गुरमीत भगवान ने दूर से पहचान ली। पहले से आधी हो गई गुरमीत
के दमकते चेहरे की लाली ने अब पीलापन ओढ़ लिया था। शरबती आँखें अंदर की ओर
धँस गई थीं पर होंठों पर पहले जैसी ही ख़ुशी थी। शेखगड़ियों ने पास से
गुजरते हुए भगवान की ओर गहरी और विरोधी नज़रों से देखा। गुरमीत बिना देखे
ही सामने से पार हो गई। भगवान का दिल डर से काँप गया। हौंसला पस्त हो
गया।
'' इतने दिनों बाद एक -दूसरे को देखने का मौका मिला था। आँखें
तरस गई थीं देखने के लिए पर ये बिना देखे ही पार हो गई। '' भगवान सोच के
गहरे समंदर में गोते लगाने लगा। उसे राजे की बुआ के लड़के की कही बातें सच लगने
लगी। उसने बताया था कि गुरमीत को तुम्हारे विरद्ध ब्यान देने के लिए
रिश्तेदारों द्वारा दबाव डाला जा रहा है। उसने तो यह भी कहा था कि गुरमीत
तुम्हारे विरुद्ध बयान देने के लिए भी मान गई है। उस वक़्त ये सारी बातें
भगवान को मज़ाक लगी थीं। पर गुरमीत के अब के व्यवहार ने इनपर सच होने की
मोहर लगा दी थी।
पेशी का समय हो गया। सारा हाल लोगों से भर गया। किसी के लिए
यहाँ ज़िन्दगी मौत का सवाल था , किसी के लिए मनोरंजन और कोई उनमें से एक -दो
स्वाद की बातों का आनंद लेने के लिए आ बैठा था। जज के बैठते सार ही दोनों
वकीलों की आपसी बहस शुरू हो गई। शेख़गढ़ियों के वकील ने दोष लगाया , ''
भगवान लड़की को बरगला कर ले गया था। इसका लड़की से कोई सम्बन्ध नहीं जो कि
लड़की खुद मानती है। ''
सुनकर भगवान पैरों से लेकर सर तक काँप गया , '' हैं ! इतना बड़ा
धोखा ? मेरे साथ जीने -मरने की कसम खाने वाली गुरमीत इतना बड़ा धोखा कैसे दे
सकती है ? इसने तो घर के लोगों के आगे मुझे मुँह दिखाने लायक नहीं छोड़ा।
सारा पिंड मुझ पर थू -थू करेगा । मैं लोगों को क्या जवाब दूंगा ? रब्बा !
मुझे उठा ले , मुझसे यह धोखा सहा नहीं जायेगा।' भगवान की आँखों से आंसू
ढलक कर गालों पर आ गए।
'' नहीं जज साहब !यह दोनों भगवान सिंह पुत्र चन्नन सिंह और
गुरमीत कौर पुत्री हरबख्श सिंह आपस में प्यार करते हैं और आपसी सहमति से
विवाह करना चाहते हैं। दोनों बालिग़ हैं। ये मानयोग अदालत से अपना हक़
चाहते हैं। जज साहब इन्हें इन्साफ दिया जाय। ''
भगवान के वकील ने जज के आगे भगवान के हक़ के लिए फ़रियाद की।
आखिर मुकदमा लड़की के बयानों पर आ रुका। गुरमीत कटघरे में आ गई। जज ने बड़ी
नरमी से पूछा , '' आप बताओं बीबा क्या कहना चाहती हो ? क्या जो बातें
भगवान द्वारा आपको बरगलाने की आपके वकील साहब कह रहे हैं वे सच हैं ? ''
सब की नज़रें गुरमीत पर आ टिकीं। गुरमीत ने एक नज़र भरकर सबकी और देखा फिर करड़े जिगर से बोली , '' जज साहब वकील बिलकुल झूठ कह रहा है। मैं भगवान को प्यार करती हूँ और इसी से विवाह करना चाहती हूँ . मैं बालिग हूँ। मुझे अपना साथी खुद चुनने का क़ानूनी अधिकार है। मैं अपनी मर्जी से भगवान के साथ आई थी। ''
सब की नज़रें गुरमीत पर आ टिकीं। गुरमीत ने एक नज़र भरकर सबकी और देखा फिर करड़े जिगर से बोली , '' जज साहब वकील बिलकुल झूठ कह रहा है। मैं भगवान को प्यार करती हूँ और इसी से विवाह करना चाहती हूँ . मैं बालिग हूँ। मुझे अपना साथी खुद चुनने का क़ानूनी अधिकार है। मैं अपनी मर्जी से भगवान के साथ आई थी। ''
'' पर घर में तो …। ''
वकील की बात पूरी होने
से पहले ही गुरमीत बिजली की तरह गरजी , '' जज साहब ! मुझे घर पर भगवान के
विरुद्ध बयान देने के लिए मज़बूरीवश मानना पड़ा। अगर मैं न मानती तो
इन्होंने मेरे साथ मार -पीट करनी थी , मुझे तसीहे देने थे। मेरे माँ -बाप
से मुझे खतरा है, मैं भगवान के साथ जाना चाहती हूँ। ''
गुरमीत की लाठी के प्रहार जैसी बातें सुनकर शांतपुरियों में
ख़ुशी की लहर दौड़ गई। मुरझाये चेहरे खिल उठे। भगवान की आँखों में ख़ुशी के
आंसू छलक पड़े। जज ने लड़की की दलील सुनकर फैसला भगवान के हक़ में सुना
दिया। गुरमीत सरसों के फूल की तरह खिली भगवान के बराबर आ खड़ी हुई।
शेख़गढ़िये दांत किचकिचाते , झुकी नज़रों से अदालत से बाहर आ गए।
गाड़ी की ओर जाते वक़्त गुरनैब ने भगवान को कोहनी मार नीम के नीचे
बनी सीमेंट की उन चौकड़ियों की ओर इशारा किया जहां फैसला होने से पहले
भगवान लोगों ने चाय पी थी। चौकड़ियों की ओर देखते ही भगवान की आँखे हैरानी
से फटी रह गई , '' हैं ! किरना ? यहाँ ? '' हैरानी से भरे उसके मन में
हजारों सवाल उग आये। गुरनैब ने गुरदीप सरपंच लोगों को भी बता दिया। सारे
कार में बैठने की बजाये नीम की ओर चल पड़े। किरना सूखकर तिनका हुई पड़ी थी।
पहले वाला रंग रूप कहीं पंख लगा उड़ गया था , बस किरना के नैन -नख्शों के
खंडहर मौजूद थे जैसे बिना हाड- मांस का कोई साबूत पिंजर हो। सर पर ली मैली
चुन्नी और टूटी जूती आर्थिक मंदहाली का मुँह बोलता सबूत था। आस -पास से
बेखबर , किसी गहरी उदासी में समाई वह ज़िन्दगी की ठोकरों से नष्ट -भष्ट लग रही थी।
रुलदू और गेजो बेटी के दुःख में कच्ची मिटटी के ढेले की तरह ढह गए थे।
किरना के सास -ससुर तथा और दो -चार बंदे -बूढ़ियाँ पास की चौकियों पर बैठे
थे। ये सारे धरमे के कत्ल केस में , किरना के पति जगतार की हिमायत में आये
थे। आज आखिरी पेशी थी। जब गुरदयाल लोगों ने जाकर सोच में डूबी किरना के
खुश्क सर पर हाथ फेरा तो उसने हड़बड़ाकर डरी आखों से ऊपर देखा और फिर फटे
होंठों से खुश्क सा मुस्कुराते हुए सबको फीकी सी 'सत श्री अकाल ' बुला दी।
सरपंच लोग रुलदू के साथ बातों में मशगूल हो गये। भगवान के साथ परियों
जैसी गुरमीत को देख कर किरना ने ठंडी आह भरी , और फिर पता नहीं किन ख्यालों
में गुम हो गई ।
सबने रुलदू उनलोगों का फैसला सुनकर जाने का मशवरा किया। भगवान
भाग कर खोखे से सबके लिए चाय ले आया। चाय पीते हुए सभी जगतार के फैसले के
बारे बातें करने रहे। जब उनका नाम पुकारा गया तो सभी उठकर अदालत पहुँच
गए। जगतार को हथकड़ियां लगाये कटघरे में लाया गया। धरमे के वकील की छूरी
जैसी तीखी दलीलों के सामने जगतार का सस्ता वकील टिक न सका। गवाह आते रहे ,
जगतार के विरुद्ध गवाही देकर जाते रहे। फिर उस पड़ोसी बुढ़िया की बारी आई ,
जिनके घर जगतार क़त्ल के बाद बुखार से तप्त जा गिरा था। उसने सारी घटना
एक ही सांस में ब्यान कर दी। अंत में जज के भारी बोलों से किरना की दर्द
भरी , आसमान चीरती चीख ने सबको चौकन्ने कर दिया। जगतार को बीस साल की सजा
हो गई थी। किरना के सास -ससुर, रुलदू और गेजो की चीखें निकल गईं। साथ आये
लोग सबको कंधा देकर बाहर लाये। मुखत्यार और गुरदीप ने किरना , रुलदू और
गेजो को अपने साथ पिंड जाने का आग्रह किया पर उन्होंने गंडुआ जाने की जिद
की। सरपंच लोग रुलदू उनलोगों को हौसला देकर गाड़ी में बैठ गए। भगवान
गुरमीत के साथ सट कर बैठा। आज वह ज़िन्दगी की बाजी मार ले गया था। उसने
अपना प्यार जीत लिया था पर किरना अपना सबकुछ हार बैठी थी। जिंदगी ने उसे
जवानी की मोड़ पर लाकर धक्का दे दिया था। पुरानी यादें किरना के दिमाग
बिलोने से घूमने लगी । वह दहाड़ें मार -मार कर रो पड़ी। अपनी की गलतियों पर
पछताती वह मन -मन के पैर घसीटती रुलदू उनलोगों के साथ बस अड्डे की और चल
पड़ी। भगवान की दूर जाती गाड़ी की पिछली बत्तियां किरना को मुंह चिढ़ा रही
थी।
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