Wednesday, July 31, 2013

इमरोज़ जी की कुछ और नज्में … 



जी रहे फूलों के संग

फूल तोड़ा फूल मर गया
घरों में मदिरों में टूटे फूलों संग
पूजा होती आ रही है और आज भी हो रही है
किसी को भी कभी जीते फूलों संग पूजा करने की
न कभी सोच आई है न ख्याल
राम कृष्ण एक बार एक मंदिर का पुजारी बना था
उस मंदिर में भी टूटे फूलों संग पूजा होती आ रही थी
पर राम कृष्ण ने टूटे फूलों संग पूजा नहीं की
कितने ही दिन मंदिर में कोई पूजा न हुई
लोगों ने मंदिर के मालिक को शिकायत की
मंदिर के मालिक ने राम कृष्ण से कारण पूछा
राम कृष्ण ने कहा टूटे हुए फूलों से कोई पूजा नहीं हो सकती
मंदिर के मालिक को राम कृष्ण समझ आ गया
एक दिन राम कृष्ण मंदिर के बाहर बैठा मंदिर के अहाते
में लगे फूलों के पौधे देख रहा था , देखते हुए लगा
कि पौधे भी उसे देख रहे हैं ,फूलों का देखना देख
राम कृष्ण को अपनी मर्ज़ी की पूजा दिख गई
राम कृष्ण की मनचाही पूजा शुरू हो गई
जब देवता  को फूल चढाने का वक़्त आया
मंदिर की खिड़की से दिखते फूलों के पौधों को देखकर
पौधों के फूल पौधों समेत राम कृष्ण ने हाथ जोड़कर
देवता से कहकर देवता को चढा दिए
पौधों समेत पौधों के फूल देवता को चढ़े , देवता ने भी पहली बार
बंद आँखों संग भी देखे
पूजा ने भी पहली बार जी रहे फूलों संग पूजा करके देखी
और जी कर भी …
अब यह अपनी तरह की पहली पूजा
हर रोज़ हो रही है पौधों के फूलों की हाजिरी में
और राम कृष्ण की हाजिरी में भी ….


इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर

(२ )

आसमान मैला नहीं ….

एक विद्द्वान को किसी ने पूछा
अच्छे -अच्छे लेखक एक दुसरे के बारे
बुरा लिखते रहते हैं बुरा सोचते रहते हैं
विद्द्वान ने कहा - इन
लिखने वालों को
अभी लिखना ही आया है
जीना नहीं आया
जिस दिन जीना आ जाएगा
कोई भी बुरा जीना नहीं चाहेगा
न बुरा लिखकर न बुरा बोलकर
अभी सोच साफ़ नहीं
जब सोच साफ़ हो जाएगी
सोच आसमान हो जाएगी
और आसमान कभी भी मैला नहीं होता ….



इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर

(३ )

कुछ बोल …

आज उसे मिल रही थी
कई सालों बाद
सैर करते चुपचाप
देख -देख चलते जा रहे थे
इक  जगह रूककर
मैंने कहा - कुछ बोल
कहने लगा मैं रौशनी में नहीं बोल सकता
यह फिकरा सुनते मुझे उम्र
हो चली है
गुस्से में मेरा दिल किया
सूरज को पकड़कर बुझा दूँ …
न वह कभी कुछ बोला
न मैं सूरज बुझा पाई  ….
अब अँधेरा हो चुका है
पर बोलने वाला ही न रहा ….


इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर

(४ )


देखा नहीं …
कल मैं आया था
तू कहीं भी नहीं मिली
न राह में
न गली में
न दरवाजे पर
न माँ के कमरे में
न अपने कमरे में
न रसोई में
न आँगन में .
न कुएँ पर
न ही दरिया पर
 तुम कहाँ थी ?
जहाँ तूने देखा नहीं
अपने आप में देखता
तो मैं दिख जाती  ….


इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर


Tuesday, July 30, 2013

मोनालिसा की जगह …

आर्ट स्कूल में
एक दिन हमारी सारी  क्लास
 नैशनल मियुजियम में
पेंटिंग के मास्टर पीस
स्डीज कर रही थी
मोनालिसा की मुस्कराहट देखकर
एक स्टूडेंट ने टीचर को  लिया
सर यह मुस्कराहट कभी हँसती नहीं ?
यह पेंटिड मुस्कराहट है
यह जवाब सुनकर मोनालिसा की जगह
साड़ी क्लास हँस पड़ी …

(२)

पेंटिंग …

ज़िन्दगी की पेंटिग
पता नहीं कब की बनती
आ रही है
पर अभी तक पूरी नहीं हुई
नए - नए हाथों के साथ
नए रंगों के साथ
यह पेंटिंग बन रही है
बनती जा रही है
न कभी ज़िन्दगी ने पूरा होना है
 और न ही ज़िन्दगी की पेंटिंग ने
पूरा होना है
बनती रहना ही
इसका पूरा होना है - जीते रहना है
मुहब्बत की तरह …

इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर

(3)

फूल बन ….

फूल तोड़ा
फूल मर गया
तोड़ने वाला नहीं मरा
पर बचा भी नहीं
वह कभी फूल नहीं बनेगा  ….

(४)

मुहब्बत की हीर …
मुहब्बत से कोई रांझा हो सकता है
कला से कोई शायर
पर कला से कोई रांझा नहीं हो सकता
शायर की नज्में
शायर की शायरी क्यों नहीं बनती
शायर की ज़िन्दगी
ज़िन्दगी की खूबसूरती
शायर की कला ही है शायरी लिखने की
सोचता रहता हूँ कि किसी तरह
शायरी की कला भी
जीने की कला खूबसूरत जीने की कला हो जाये
सोच सच भी तो हो जाती है …
इक बार अपनी इस सोच को
सच होते मैंने भी देखा है और सब ने भी
इक खूबसूरत शायरा को जब मुहब्बत हुई
उस की शायरी और खूबसूरत हो गई
और उसकी ज़िन्दगी उसकी शायरी से भी खूबसूरत ….
मुहब्बत  के साथ कोई हीर भी हो सकती है
और शायरा भी …

इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर 

(५)

लाइल्टी ….

किसी भी क्रिमनल वकील को
पूछकर देख लो
कि तुम्हारी लाइल्टी किसके साथ होती है ?
हमारी लाइल्टी  हमारे क्लाइंट के साथ होती है
सभी तरह के कातिल
उनके क्लाइंट होते हैं
सब तरह के कातिल ही
इन वकीलों को करोड़पति बना रहे हैं …
हैं कुछ वकील
जिनकी लाइल्टी आम लोगों के साथ भी है
और इन्साफ के साथ भी …

(६ )

बीबा - 'खामोश चीखां ' को अब हिंदी में छाप लेना
पंजाबी में फिर छापने की जरूरत नहीं
कुछ मात्राएँ ठीक नहीं यह ख़ास बात नहीं
नज्में ठीक हैं यही ख़ास है
जिसने सबसे पहले तेरी किताब पढ़कर
तुझे लिखा था वह पंजाबी पढ़ाती है
टीचर है उसे पहले स्पेलिंग दिखे
कविता बाद में …
जिसने कविता पढ़ी उसे बहुत अच्छी लगी
जिसने स्पेलिंग पढ़े टीचर हैं
टीचरों को मत सोच
तू कविता है कविता को सोच
कविता को जी …
कहीं 'चीखां' बोलते हैं तो कहीं 'चीकां '
तेरे ख़त में 'चीखां' ही थीं -
क्योंकि चीखां वाले इलाके में ही तू
जन्मी पली है - टीचर ही
गलतियों पर शोर मचा रहे हैं
कविता पढ़ने वाले नहीं
कम पैसे लेकर छापने वाले अच्छा नहीं छाप सकेंगे
किसी की बातों में आकर पैसे न गवा लेना
खराब छप गई किसी ने जिम्मेवारी नहीं लेनी
किताब भी और ड्राइंग भी तुझे रजिस्ट्री कर दी हैं
हिंदी में छापने के लिए ….
मैं अमृता को 'है ' लिखता हूँ टीचर 'थी' लिखते हैं
टीचरों को कभी मुहब्बत समझ नहीं आई
न कभी कविता ….
.
इमरोज़ ….

Wednesday, July 10, 2013

इमरोज़ जी की कुछ और कविताओं का अनुवाद .......!

इक जरा सी समझ ...


हीर को जब मुहब्बत हुई
घर के लोगों को समझ नहीं आई
और चाचे को तो कबूल ही नहीं हुई
मुहब्बत में और खूबसूरत हो जाते हैं
हीर भी और खुबसूरत हो गई थी
मुहब्बत की खूबसूरती देख-देख कर
कइयों की खूबसूरती जाग जाती है
वे भी खूबसूरत होने लग पड़ते हैं ...
पर कई ...
मुहब्बत की खूबसूरती देख बुझ जाते हैं
जैसे हीर का चाचा बुझ कर चाचा ही न रहा
कैदो हो गया ...
वैसे हीर का चाचा ही हीर की मुहब्बत देख
बुझ कर कैदो नहीं हुआ ...
जिस घर में भी हीर जन्म लेती है अनचाहे
माँ - बाप को मुहब्बत कबूल नहीं होती
उस के माँ- बाप भी हीर के चाचे की तरह
बुझ कर कैदो हो जाते हैं .....
आँखों को देखना आता है
देख कर समझना नहीं
आम लोगों को जो दिखता है
वह समझ नहीं आता
यह लोग ही हमारा समाज हैं
जिस दिन भी लोगों को यह सब जागना बुझना
समझ आ गया
दुनिया बदल जाएगी
यह समाज बदल जाएगा
सब के चाचे सब के माँ - बाप अपने आप को भी समझ लेंगे
और अपनी हीरों को भी ...
अपने आप से गैर हाजिर ही
अपने आप संग अनचाहे हैं
और अपने आप संग हाजिर मनचाहे
इक जरा सा समझ का फर्क है इक अनगोली समझ का .....



इमरोज़ -
अनुवाद - हरकीरत  हीर

(2)

सोच जैसा ....

कई चीजे ढूंढते नहीं मिलतीं
वे अपने आप मिल जाती हैं मिलती रहती हैं
वह भी आज अपने आप ही मिल गई
उसने मिल कर
न कोई संकोच किया न शरमाई बस मुझे ही देखती रही
जैसे सुबह की शाम की  कल की
मुझे ही उडीकती रही हो सोचती रही हो
तुम मुझे कब की सोच रही हो ...?
जब मैंने अपने आपको सोच लिया
तुझे भी सोच लिया
जितनी देर तुम नहीं मिले मैं सोचती रही
मैंने जहां भी लिखा जा सकता था
तेरी गैर हाजिरी लिखती आ रही हूँ
आज कल दफ्तर जाते भी और आते भी
तेरे स्कूटर के पीछे बैठ कर भी
तेरी पीठ पर तेरी गैर हाजिरी लिखती जा रही हूँ
अभी-अभी मुझे होश आई है
कि यह मैं क्या कर रही हूँ
हाजिर की पीठ पर ही गैर हाजिर लिखती आ रही हूँ
अब पहले मुझे तेरी पीठ चूम-चूम कर
सब लिखा अनलिखा कर लेने दे
देख मेरे जैसे गैर हाजिर कोई नहीं
और तेरे जैसी सोच जैसा हाजिर भी
कोई नहीं होगा ......


- इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर


(३)
फ्रेम मुक्त ....

रात सपने में इक सपना देखा
मोनालिसा जैसी खुबसूरत लड़की
इक फ्रेम में लगी दीवार पर टंगी
मेरी और देख -देख कर मुस्कुरा रही थी
जब मैंने उसे देखती को देखा वह भरी आँखों से
मुस्कुरा कर देखती हुई बोली
मैंने देख कर तुझे देख लिया हैं
तेरा ही इन्तजार था
अपना हाथ पकड़ा मैं फ्रेम मुक्त होना चाहती हूँ
तेरे हाथों में आकर फ़िक्र मुक्त भी
हमें फ्रेम मुक्त देख देखकर फ्रेम मुस्कुरा रहा था ..
और हम हँसते जा रहे थे ..
फ्रेम पेटेंड तस्वीरों के लिए होते हैं
म्यूजियम में टांगने के लिए
और संस्कार चलती फिरती तस्वीरों के लिए होते हैं
समाज की दीवारों में टांगने के लिए ...
मैं सुबह की चाय पी रहा था
कि उसका बड़ा खुश मैसेज मिला
कि वह फ्रेम मुक्त होकर आ रही है .....



- इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर

(४)

उडीक ...

तूने मुझ में ख़ास क्या देखा है
तुझे ही उडीक कर देखा है
तुम अपनी तरह की खूबसूरत हो
तेरी हर चीज तेरे जैसी खूबसूरत है
तुझे मैं तब से सोच रहा हूँ उडीक रहा हूँ
जब से मैंने अपने आप को सोच लिया था
हर मर्जी उडीक कर ही मिलती है
इस टी सैट को ही देख ले
इसे पिछले साल ही पसंद करके आया था
और इस साल लेकर आ सका हूँ
तेरे कमरे को सजाने की जरुरत नहीं
सजावट की जरुरत भी है और सजावट भी है
मेरी मौजूदगी मेरे कमरे की सजावट है
अपनी मौजूदगी से ज्यादा खूबसूरत कोई सजावट नहीं
तुम खूबसूरत किसे समझते हो
जिसे देखकर देखने वाला भी खूबसूरत होता रहे
अच्छा लगा यह जानकार
जिसे मैं उडीकता रहा हूँ
वह भी मुझे उडीकती रही है
चल आ अब नए टी सैट में चाय बना
और दोनों उडीकों को मिलकर चाय पीते देखें
लगता है
ज़िन्दगी उडीकते प्यालों में
चाय पीते रहना ही है ......

- इमरोज़
अनुवाद - हरकीरत हीर