Wednesday, February 20, 2013

इमरोज़ की कुछ नज्मों का अनुवाद ......

(1)
तितलिओं संग खेलते -खेलते
उड़ते-उड़ते , हँसते -हँसते
पता ही न चला
कब इक तितली के ख़ास रंगों से रंगे हुए
मैं जवान होता गया
और अपनी मर्ज़ी का भी होता-होता
आर्ट स्कूल पहुँच गया ....

कक्षा की लड़कियों में
एक ख़ास लड़की देखी, देखने वाली
वह ख़ास लड़की जब भी कक्षा में आती
अपनी जगह से उठ के
 अपनेपन से उसे देखता
वह भी देखते को देख
मुस्कुराती भी और देखती भी रहती
मेरे बनाये चित्र वह बड़े चाव से देखती
जब भी चित्र बनाता
वह मेरे पीछे खड़ी निहारती रहती
और सामने आकर मुझे भी .....

इक दिन पास आ
उसने पूछ ही लिया
मुझमें तुम्हें ख़ास क्या दिखता है ...?
हर रोज़ देखने वाला
तुम्हारी ख़ास ख़ूबसूरती
जिसे देख मैं खूबसूरत होता रहता हूँ
तुम कोई ख़ास हो
खूबसूरती को देखकर खुबसूरत हो जाने वाला
मैंने तुझे ही देखा है ...सिर्फ तुझे ....

- इमरोज़

अनुवाद - हरकीरत 'हीर'

(2)

कुछ भी हमेशा के लिए नहीं होता
जो कल में पैदा हुआ था
वह कल में ही पूरा भी हो गया था
आज रोज़ आता है
सच्च ज़िन्दगी का भी
नयेपन का भी
खूबसूरती का भी
और ख्यालों का भी .....

हर युग अपना सच खुद बनता आ रहा है
कल भी अपना सच खुद बना था
और आज भी अपना सच खुद बनेगा ....

सच हमेशा अपने आप जी कर बनता है
सच किसी को भी विरसे में नहीं मिलता
किसी का भी सच अपना सच नहीं हो सकता ....

युग बदलते आ रहे हैं
और नाम भी .....
पता नहीं तुमने कितने नाम जीये
कभी तू राधा कभी तू मीरा
कभी तू सोहणी कभी तू हीर होकर
मेरा सच बनती आ रही हो और आज
मेरा आज भी बन रही हो ......

- इमरोज़

अनुवाद - हरकीरत 'हीर'

1 comment:

  1. सच हमेशा अपने आप जी कर बनता है
    सच किसी को भी विरसे में नहीं मिलता
    किसी का भी सच अपना सच नहीं हो सकता ....
    -----------------------------------
    सच..सच..सच..

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